कैंसर का रामबाण फार्मूला, पर तैयार करने में लग जाए साल पूरा

कैंसर का रामबाण फार्मूला, पर तैयार करने में लग जाए साल पूरा
पंकज अवधिया

तो आपको ब्रेस्ट कैंसर के उस फार्मूले की तलाश है जिसे मध्यप्रदेश के जाने-माने वैद्य प्रयोग करते थे और उनके पास रोगियों की लम्बी कतार लगी होती थी.

वह फार्मूला तो उनके साथ ही चला गया –ऐसा आपको पता चला फिर आपको जानकारी हुयी कि मैंने उनके साथ लम्बा समय गुजारा है तो आप मुझसे मिलने चले आये. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि वह फार्मूला अभी तक सुरक्षित है.

आप आयुर्वेद विश्वविद्यालय से आये हैं और वहाँ आप कैंसर के लिए उपयोगी पारम्परिक औषधीय मिश्रणों पर शोध कर रहे हैं. आप देश भर में घूम-घूम कर पारम्परिक ज्ञान को एकत्र कर रहे हैं. आपने मुझसे  मिलने के लिए दिन भर का समय लिया है ताकि विस्तार से चर्चा हो सके.

आपने बताया कि इस फार्मूले की थोड़ी बहुत जानकारी आपको उनके एक शिष्य से मिली है.

मैं आपको  बताना चाहता हूँ कि मध्यप्रदेश के जिन वैद्य जी  का फार्मूला आपके पास है वह आधा-अधूरा है. यह सच है कि वे इसमें अभ्रकभस्म,  गंधक, लोहासार, शीशा भस्म, वैक्रान्त भस्म और ताम्बा भस्म  का प्रयोग करते थे पर इसके अलावा वे फार्मूले में ५८ प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी डालते थे जिनकी सूची मेरे पास है . पर इसके बाद भी यह फार्मूला सम्पूर्ण नही होता है.

वे सभी घटकों को मिलाकर उसे अलग-अलग जड़ी-बूटियों के रस में खरल करते थे. उसके बाद फार्मूला रोगी के लिए रामबाण की तरह कार्य करता था और ज्यादा से ज्यादा एक महीने में उसे आराम मिल जाता था. साल के ३६५ दिन ३६५ अलग-अलग जड़ी-बूटियों के रस में खरल किया जाता था. उदाहरण के लिए

दिन १  - नीले भृंगराज के रस में खरल करे
दिन २ – जंगली हल्दी के रस में खरल करे
दिन ३ – काली हल्दी  के रस में खरल करे
दिन ४ – त्रिफला के रस में खरल करे
दिन ५ – निर्गुन्डी के रस में खरल करे
दिन ६ - मालकांगनी के रस में खरल करे
दिन ७ – जंगली बेर के रस में खरल करे
दिन ८ – मोहनी बूटी के रस में खरल करे
दिन ९ – तेलिया कंद  के रस में खरल करे
दिन १० – लांगली के रस में खरल करे
दिन ११ – संजीवनी बूटी  में रस से खरल करे
दिन१२ – अर्जुन की छाल में रस से खरल करे
दिन १३ – सफेद कंटकारी  में रस से खरल करे
दिन १४ – सफेद दूर्वा के रस में खरल करे
दिन १५ – दहीमन के रस में खरल करे

इस तरह यह प्रक्रिया साल भर चलती रहती है. यह बहुत समय लेने वाली प्रक्रिया है और इसमें असीम धैर्य की जरूरत पडती है.  इसलिए वे इस औषधि के लिए बहुत अधिक पैसे लेते थे पर गरीबो का खर्च स्वयं ही वहन कर लेते थे.

मैं आपको यही सलाह देना चाहता हूँ कि आप पूरे वर्ष मेरे साथ रहकर पूरी प्रक्रिया को समझें ताकि कारगर फार्मूला बन सके. मुझे नही लगता कि केवल लिखित जानकारी से इसे आप बना पायेंगे.

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

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कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 
सर्वाधिकार सुरक्षित
 E-mail:  pankajoudhia@gmail.com

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