कैंसर में बेअसर बीमार नीम, रोगीली वनस्पतियों से काँपे हकीम

कैंसर में बेअसर बीमार नीम, रोगीली वनस्पतियों से काँपे हकीम

पंकज अवधिया

तो आप पूरा ज्ञान लिए बिना ही गुरु का साथ छोडकर वापस आ गये और विदर्भ में ही कैंसर की चिकित्सा शुरू कर दी. अब गुरु का साथ छोड़कर पछता रहे हैं.

आप विदर्भ के कैंसर विशेषज्ञ है. आप वैसे तो आधुनिक चिकित्सक हैं पर आपने लम्बे समय तक विदर्भ के जाने-माने पारम्परिक चिकित्सक के साथ रहकर कैंसर की चिकित्सा के गुर सीखें हैं. पर आप पूरा ज्ञान लेकर नही लौटे हैं.

आपको लगा कि आपने काफी कुछ पा लिया है और इससे आप जिन्दगी भर कैंसर की चिकित्सा करके काफी धन कमा सकते हैं. पर बाद में जब आप रोगियों पर अपने ज्ञान का प्रयोग करने लगे तो आपको कठिनाइयों का समाना करना पड़ा और इन समस्याओं का समाधान बताने वाला कोई नही था. आप असमंजस में रहे और फिर इंटरनेट पर मेरे लेखों को पढकर मुझसे मिलने का समय लिया है.

आपने बताया कि विदर्भ के कैंसर विशेषज्ञ कैंसर के घाव को कम समय में पूरी तरह से ठीक करने में महारत रखते हैं. इसलिए  विदेशों से भी उनसे मिलने वालों की लम्बी कतार लगी रहती है. 

वे पच्चीस बूटियों से एक औषधीय लेप तैयार करते थे. इस लेप को कई बार घाव में लगाया जाता था. कुछ ही घंटों में रोगियों को आराम मिलने लगता था और सप्ताह भर में उनकी हालत में काफी सुधार हो जाता था.

आपको इस फार्मूले के बारे में विस्तार से पता है. जंगल से जड़ी-बूटियाँ दूसरे चेले लाते थे पर उनसे औषधि तैयार करने का काम आपका था इसलिए आपको इसके बारे में पूरी जानकारी है.

अब आपकी समस्या यह है कि आप उसी विधि से औषधि तैयार करते हैं पर रोगियों पर वे वैसा असर नही करती हैं जैसा कि पारम्परिक चिकित्सक के रोगियों पर होता था. आप फार्मूले में प्रयोग की जाने वाली वनस्पतियों को साथ लेकर आये हैं ताकि उन पर मेरे विचार आप जान सकें.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह फार्मूला बेहद कारगर है. मैंने असंख्य रोगियों पर इसके प्रभाव को देखा है. देश के दूसरे भागों के पारम्परिक चिकित्सक भी इसका प्रयोग करते हैं.

आपने बताया कि जब आप इस फार्मूले  से लेप तैयार करके अपने रोगियों को देते हैं कैंसर के घाव का फैलना शुरू हो जाता है. बहुत बार तो इसका बिलकुल भी असर नही होता है.

मैंने आपके द्वारा लाई गयी वनस्पतियों को देखा है. मुझे लगता है कि विधि विधान से इनका  एकत्रण नही किया गया है. नीम का ही उदाहरण लें.

आप जो नीम की पत्तियाँ लेकर आयें हैं इसमें Pseudocercospora subsessilis नामक रोगकारक का प्रकोप है. यह प्रकोप आपके क्षेत्र में बहुत होता है. आपने बताया कि आपने कभी इस ओर ध्यान ही नही दिया. आप रोगीली पत्तियों का एकत्रण करते रहे और उससे दवा तैयार करते रहे.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि इस रोग के कारण नीम की पत्तियों के औषधीय गुणों में परिवर्तन हो जाता है. ऐसी पत्तियों के प्रयोग से लाभ के स्थान पर नुकसान होने लगता है.

जब पारम्परिक चिकित्सक नीम का प्रयोग कैंसर के लिए करते हैं तो वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि नई पत्तियाँ लेनी है या पुरानी. नये वृक्ष से लेनी है कि पुराने वृक्ष से. जब नीम से मद निकलता है तो ऐसे समय नीम की पत्तियाँ बहुत सावधानी से इस्तमाल की जाती हैं.

ऐसे ही आपके द्वारा लाई गयी दूसरी वनस्पतियों में कई तरह के दोष हैं. यही कारण है कि फार्मूला लाभ पहुंचाने की बजाय नुकसान पहुंचा रहा है.

मैं तो यही सलाह दूंगा कि आप अपने गुरु के पास वापस जाएँ और उनसे पूरा ज्ञान लें. उन्हें जिन्दगी भर गुरु का दर्जा दें ताकि चिकित्सा के दौरान समस्या आने पर आप उनसे राय ले सकें.

जिन्दगी में शार्ट कट ठीक नही है.   

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
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कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 
सर्वाधिकार सुरक्षित

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