कैंसर में साथ हो तांडीसुरा, तो यह महारोग नही कर सकता कुछ बुरा

कैंसर में साथ हो तांडीसुरा, तो यह महारोग नही कर सकता कुछ बुरा
पंकज अवधिया   

यह तो बड़े काम की बूटी है. मैंने कई बार इसका सफल प्रयोग देखा है और बहुत से रोगियों को ठीक होते देखा है. यह मुँह के कैंसर की पहली अवस्था में कैंसर को जड़ से समाप्त करने में अहम भूमिका निभाती है.

मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने जिस पारम्परिक चिकित्सक के पास आपको भेजा था वे सही बूटी का प्रयोग कर रहे हैं. आप जल्दी ही ठीक हो जायेंगे.

आप मुँह के कैंसर की पहली अवस्था में है. आधुनिक चिकित्सकों ने कहा है कि इस अवस्था में कैंसर को मैनेज किया जा सकता है. मेरा मानना है कि मैनेज से भी आगे बढकर क्योर किया जा सकता है. इसलिए सात महीने पहले जब आप मेरे पास आये थे तो मैंने आपको दक्ष पारम्परिक चिकित्सक के पास भेजा था.

ये पारम्परिक चिकित्सक नदी के किनारे उगने वाली जड़ी-बूटियों से ही मुँह के कैंसर की सफल चिकित्सा करते हैं. आज आपने चिकित्सा में प्रगति और अपनी कुछ समस्याओं पर चर्चा करने के लिए मुझसे समय लिया है.

तांडीसुरा नामक बूटी को सुखाकर पारम्परिक चिकित्सक ने आपको दिया है और कहा है कि इसे बीडी-सिगरेट की तरह आपको उपयोग करना है. इसका धुँआ जितना अधिक मुँह के कैंसर के सम्पर्क में आयेगा उतनी ही जल्दी दर्द से मुक्ति मिलेगी और कैंसर ठीक होगा.

उन्होंने आपको बहुत सी हर्बल सिगरेट बनाकर दी है ताकि आपको उपयोग में आसानी हो. आपने कभी धूम्रपान नही किया है इसलिए शुरू में आपको परेशानी हुयी पर जब इससे आपका असहनीय दर्द कम होने लगा तो आपने इसे नियमानुसार लेना शुरू कर दिया.

आपकी समस्या यह है कि धुँआ फेफड़े तक जाता है और पारम्परिक चिकित्सक जोर देते हैं कि धुँआ फेफड़े तक अवश्य जाना चाहिए.  आपको लगता है कि यह धुँआ फेफड़े को नुकसान करेगा. आप किसी तरह इस धूम्रपान से बचना चाहते हैं यदि सम्भव हो तो.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि तांडीसुरा का धुँआ फेफड़े के लिए लाभकारी है. फेफड़े में जमे कफ को यह कम करता है जिससे कैंसर फैल नही पाता.

तांडीसुरा फेफड़े की रक्षा करता है. इसलिए आपके पारम्परिक चिकित्सक ने ऐसा अनुमोदन किया है. वैसे मेरे पास एक दूसरा विकल्प भी है.

आप मुँह के कैंसर में तांडीसुरा का चूर्ण घी में मिलाकर भी लगा सकते हैं. इससे अधिक लाभ होगा और आपको धूम्रपान से मुक्ति मिलेगी.

मैंने अपने अनुभव से जाना है कि तांडीसुरा एकल औषधि के रूप में कम समय तक लाभ करती है. जैसे-जैसे अच्छे परिणाम आते हैं वैसे-वैसे इसके साथ नई बूटियाँ डाली जाती हैं.

हर तीसरे दिन में एक बूटी जोड़ी जाती है इस तरह २५० प्रकार की बूटियाँ तक पहुंचते- पहुंचते कैंसर पूरी तरह ठीक हो जाता है. उसके बाद भी यह क्रम जारी रहता है जिससे कैंसर फिर दोबारा इस जिन्दगी में न सताए.

मैंने आपके पारम्परिक चिकित्सक को बुलवाया है. मैंने उन्हें इन २५० से अधिक बूटियों के बारे में विस्तार से बता दूंगा ताकि आपको पूरी तरह से आराम मिल सके.

तांडीसुरा को गाय के घी के साथ लगाने से आपको तालु में खुजली हो सकती है. यदि ऐसा हो तो आप उसमे एक चुटकी हल्दी मिला सकते हैं.   
  
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
-=-=-
कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 

सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)