कैंसर में मोर पंख और बगुले की हड्डी का धूम, बूटियाँ है विकल्प ज्ञानियों से कर लो मालूम

कैंसर में मोर पंख और बगुले की हड्डी का धूम, बूटियाँ है विकल्प ज्ञानियों से कर लो मालूम
पंकज अवधिया

मोर का पंख, बगुले की हड्डी, पीली सरसों और चन्दन के चूर्ण से रोगी के कमरे में धुँआ करने से कैंसर पर सीधे असर तो कम ही होता है पर कमरे से बदबू चली जाती है. रोगी और उसके  परिजन को अच्छा लगता है.

आप इसे किसी तरह की तांत्रिक क्रिया नही माने क्योंकि घर से सभी प्रकार के विष को दूर करने की यह प्राचीन विधि है जो प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित है. अच्छा हुआ जो आपने मुझसे इस बारे में पूछकर अपनी शंका का समाधान कर लिया.

आप मुँह  के कैंसर से प्रभावित है और किसी पारम्परिक चिकित्सक से चिकित्सा करवा रहे हैं. आपके पारम्परिक चिकित्सक दिन में तीन बार आपके कमरे में इस तरह का धुँआ करने को कहते हैं. चूंकि इसमें मोर का पंख और बगुले की हड्डी है इसलिए आपको लगा कि आप पारम्परिक चिकित्सक नही बल्कि किसी तांत्रिक से चिकित्सा करवा रहे हैं. इसलिए आपने मुझसे मिलने का समय लिया है.

इस उपचार के बारे में मैं यह कहना चाहूंगा कि मोर के पंख और बगुले की हड्डी के सशक्त विकल्प उपलब्ध है. बहुत सी वनस्पतियाँ हैं जो इनसे ज्यादा प्रभावी है और उनके उपयोग से मोर के पंख और बगुले की हड्डी के प्रयोग से बचा जा सकता है.

हमारे देश के पारम्परिक चिकित्सक अलग-अलग प्रकार के कैंसर के लिए अलग-अलग प्रकार के चूर्ण तैयार करते हैं. इन्हें कोयले की सहायता से रोगी के कमरे में जलाया जाता है. ये चूर्ण कैंसर पर अपना सीधा असर डालते हैं.

मुश्किल यह है कि ये चूर्ण व्यवसायिक उत्पाद के रूप में बाजार में नही मिलते हैं. इन्हें या तो पारम्परिक चिकित्सक अपने हाथों से बनाते हैं या फिर चूर्ण बनाने की सामग्री की सूची बनाकर रोगियों को सौंप देते हैं ताकि इन्हें वे पंसारी की दुकान से खरीदकर उपयोग कर सकें. जब ऐसे किस्सी चूर्ण में बगुले की हड्डी जैसी सामग्री होती है तो रोगी चिंता और परेशानी में पड़ जाते हैं.

आमतौर पर जब रोगी के कमरे में धुँआ करने की बात होती है तो हमारा ध्यान नीम पर चला जाता है पर आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि बहुत कम पारम्परिक चिकित्सक नीम के धुंएँ की बात करते हैं, वे भिरहा जैसी जंगली वनस्पतियों से तैयार किये गये चूर्ण को प्राथमिकता देते हैं. यहाँ कैंसर के लिए चूर्ण बनाने की बात हो रही हैं, घर को शुद्ध करने और मच्छर मख्खी भगाने के लिए नीम का धुँआ फायदेमंद है इसमें कोई दो राय नही है.

मैंने अपने अनुभव से जाना है कि रक्तचंदन और केऊकंद जैसी वनस्पतियों पर आधारित औषधीय मिश्रण जब कैंसर के रोगियों को दिया जाता है तब बहुत से पारम्परिक चिकित्सक नीम का  धुँआ करने से साफ़ मना कर देते हैं. इससे मिश्रणों का असर कम हो जाता है.

मैं  आपको तीस ऐसी जड़ी-बूटियों के नाम बता देता हूँ जिन्हें आप चूर्ण में मोर के पंख और बगुले की हड्डी के स्थान पर डाल सकते हैं.  ये तीस जड़ी-बूटियाँ आपके कैंसर को ठीक करने में भी अहम भूमिका निभाएंगी.

बस इतना ध्यान रखियेगा कि हमेशा औषधीययुक्त धुँआ कमरे में फैले ताकि सही मायने में लाभ हो सके.

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
-=-=-
कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 

सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)