कैंसर के फैलाव में न आत्मगुप्त और न ही स्वगुप्त, पहले इंद्रगुप्त और बाद में चन्द्रगुप्त

कैंसर के फैलाव में न आत्मगुप्त और न ही स्वगुप्त, पहले इंद्रगुप्त और बाद में चन्द्रगुप्त
पंकज अवधिया

आपको अपने पिताजी को सम्भालकर रखना चाहिए. वे मुँह के कैंसर की अंतिम अवस्था में है और इस तरह उनका गिरना और टयूमर पर चोट लगना  ठीक नही है.

आपने बताया कि गिरने के बाद टयूमर के कई टुकड़े निकले और बहुत खून बहा. बड़ी मुश्किल से हालत सुधरी.

आप जिस वैद्य से उनकी दवाएं ले रहे हैं उन्होंने भी चिंता जताई है और आत्मगुप्त नामक वनस्पति लाने को कहा है. आप इस वनस्पति की तलाश में मेरे पास आये हैं और मिलने का समय लिया है.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि टयूमर में इस तरह की चोट टयूमर को बहुत तेजी से बढ़ने में मदद देती है और ज्यादातर परिस्थितियों में इस कैंसर के फैलाव को रोक पाना मुश्किल होता है और कैंसर रोगियों की असमय ही मौत हो जाती है.

आपने बताया कि आपके पिताजी की हालत में काफी  सुधार हो रहा था . वे अकेले ही सुबह की सैर में निकल जाया करते थे.

ऐसे ही एक सुबह निकले तो वापस नही आये. बाद में आपने उन्हें रास्ते में गिरा पाया. उनका मुँह खून से लथपथ था. आगे से ऐसी घोर लापरवाही न करे.

मैंने आपके वैद्य से बात की है. उन्होंने आपको न तो आत्मगुप्त लाने को कहा और न ही स्वगुप्त. उन्होंने आपको इन्द्रगुप्त नामक वनस्पति लाने को कहा जो दुर्लभ है.

आत्मगुप्त केवांच का संस्कृत नाम है और यह आसानी से मिल जाती है. 

मैंने  गंधमर्दन पर्वत  पर जाने वाले अपने मित्र पारम्परिक चिकित्सकों से कह दिया है. आपको कल शाम तक इन्द्रगुप्त नामक वनस्पति मिल जायेगी.

इस तरह की जानलेवा चोट के बाद कैंसर को बढने से रोकने के लिए बंगाल के पारम्परिक चिकित्सक चन्द्रगुप्त नामक दुर्लभ वनस्पति का भी उपयोग करते हैं.

मैंने आपके वैद्य को सलाह दी है कि यदि इन्द्रगुप्त असर न करे तब आप चन्द्रगुप्त को भी आजमाइएगा.

यह बूटी उनके लिए नई है इसलिए उन्होंने इसके प्रयोग से पहले मुझसे मिलने की इच्छा जताई है. मैंने २०० से अधिक रोगियों पर इसका सफल उपयोग देखा है.

मैं अभी बंगाल के अपने संपर्कों को कह देता हूँ कि वे चन्द्रगुप्त बूटी का प्रबंध कर लें.  

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
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सर्वाधिकार सुरक्षित

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