कैंसर में वीर्य स्तम्भन की दवा, सम्भलें वरना सारी होशियारी हो जायेगी हवा

कैंसर में वीर्य स्तम्भन की दवा, सम्भलें वरना सारी होशियारी हो जायेगी हवा
पंकज अवधिया

सुआ का अर्थ होता है तोता.  छत्तीसगढ़ में जिस वनस्पति को सुआ घास कहा जाता है उसमे वे गुण नही होते जिनकी बात आप कर रहे हैं. मुझे लगता है कि आप राजस्थान की वनस्पति की बात कर रहे हैं.

आपकी आयु चालीस वर्ष है और आप पेट के कैंसर के रोगी हैं. आपने मेरे बारे इंटरनेट में पढ़ा और मिलने का मन बनाया.

आपने बताया कि कैंसर अभी आरम्भिक अवस्था में है और आप तरह-तरह की चिकित्सा करवा रहे हैं. इनमे पारम्परिक चिकित्सा भी शामिल है.

सुआ घास के बारे में आपने बताया कि आप लम्बे समय से इसका पयोग वीर्य स्तम्भन के लिए कर रहे हैं. आप इसकी ताजी जड़ को पानी में दिन भर भिगों देते हैं और फिर रात को संगम के समय इसे मुंह में रखकर चूसते रहते हैं.

इसके प्रभाव से लम्बे समय तक वीर्य स्खलन नही होता है और इस बूटी के कारण आप बहुत से दिलों पर राज करते हैं. इस अनोखे प्रयोग की जानकारी आपको किसी सिद्ध बाबा से प्राप्त हुयी है.

पेट का कैंसर होने के बाद आपको लगा कि कहीं पेट का कैंसर इसी बूटी के रस के कारण तो नही हुआ है. आपके सिद्ध बाबा ने कभी-कभार विशेष अवसरों पर इसके प्रयोग की बात कही थी पर आप दिन रात इसका उपयोग करते रहे.

मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि पेट के कैंसर के पीछे इसकी भूमिका नही है. पर अब आपको इसका प्रयोग कम करना होगा. बेहतर होगा कि आप इसे पूरी तरह से बंद कर दे क्योंकि किडनी और लीवर के कैंसर के रोगियों को पारम्परिक चिकित्सा में स्पष्ट कहा जाता है कि वे इस बूटी का प्रयोग नही करें. इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती है और कैंसर को फ़ैलाने में सहायता मिलती है.

बंगाल के पारम्परिक चिकित्सक तो सभी तरह के कैंसर में इसके प्रयोग पर अंकुश लगा देते हैं.

उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के बहुत से पारम्परिक चिकित्सक कहते हैं कि यदि सुआ घास का ठीक से शोधन किया जाए तो इसके हानिकारक गुण खत्म हो जाते हैं और कैंसर के रोगी पहले की तरह इसका प्रयोग कर सकते हैं. पर समस्या यह है कि वे शोधन विधि के बारे में कम ही जानकारी आम लोगों को देते हैं.

बीस वर्षों के लम्बे समय में मुझे विस्तार से इस विधि के बारे में जानकारी मिली है पर मेरा मानना है कि कैंसर रोगियों को संयम रखते हुए अनावश्यक की जोखिम नही उठाना चाहिए.

आपने इसके अलावा 55 और वनस्पतियों के बारे में भी जानकारी माँगी है. मैं आपको बताना चाहूंगा कि ये सभी वनस्पतियाँ आपके पेट के कैंसर के लिए सुरक्षित है. आप इनका प्रयोग कर सकते हैं पर अनुमोदित मात्रा से अधिक नही.

सर्वाधिकार सुरक्षित
कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 
https://archive.org/details/pankajoudhia?sort=-publicdate

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