कैंसर में झाऊ, बड़े काम की चीज है भाऊ
कैंसर में झाऊ, बड़े काम की चीज है भाऊ
पंकज अवधिया
ये १०५ और ये बीस आपके पिताजी १३५ प्रकार
की जड़ी-बूटियाँ ले रहे हैं.
आपने दुनिया भर के सात जाने-माने वैद्यों
को सेवा में लगा दिया है. वे भी यहाँ डेरा लगाकर जडी-बूटियाँ कूट पीस रहे हैं. एक ओर
आधुनिक चिकित्सक बैठे है और कीमोथेरेपी के बाद दी जाने वाली आधुनिक दवाओं पर चर्चा
कर रहे हैं. तिस पर आपने मुझे मुम्बई बुला लिया कि मैं भी कुछ कर सकूं. मैं असमंजस
में हूँ.
आपके पिताजी किडनी के कैंसर की अंतिम
अवस्था में है. कैंसर अब शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने लगा है. आप अपना सारा
कुछ उनकी चिकित्सा में खर्च करना चाहते हैं. इसलिए आपने वैद्यों और चिकित्सकों की फ़ौज
लगा दी है. पर पिताजी की हालत में सुधार नही हो रहा है.
मैंने सातों वैद्यों से विस्तार से चर्चा
की है. वे सभी पारंगत है और श्रेष्ट दवाएं दे रहे हैं . पर मुझे लगता है कि उनकी
दवाएं कैंसर से लड़ने की बजाय आपस में लड़ रही हैं. एक कमजोर पड़ चुके तन में १३५
प्रकार की दवाएं और फिर आधुनिक दवाएं. ऐसा लगता है जैसे दवाओं ने भोजन का स्थान ले
लिया है और भोजन ने दवाओं का. हर मिनट में दवा दी जा रही है.
मैं अपने साथ वृक्षों की छाल लेकर आया
हूँ. पर इनमे से कुछ छाल तो गुजरात से आये वैद्य के मिश्रण में है. मैंने उनसे
चर्चा की है और अपने साथ लाई छालें उनके पास छोड़ दी हैं.
मैं किडनी के कैंसर के रोगियों के लिए
उपयोगी एक पाटा अपने साथ लेकर आया हूँ. यह
पाटा झाऊ की पुरानी लकड़ी से बना है. आप अपने पिताजी को कहिये कि जितना हो सके इस पाटे
पर पैर रखें. इससे उनकी जीवनी शक्ति बढ़ेगी और कैंसर का फैलाव भी रुकेगा. आमंत्रित
वैद्य भी इस पाटे को देखकर उत्साहित हैं. मैं और कोई दवा नही दे रहा हूँ.
मेरा फोन चौबीसों घंटे चालू रहता है. आप
चाहें तो मेरे वापस लौटने पर मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं.
मुझे आपके पिताजी की मदद करने में खुशी
होगी.
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