जापानी तेल हो या हिन्दुस्तानी, सभी सेक्स तेलों की यही कहानी
जापानी तेल हो या हिन्दुस्तानी, सभी सेक्स
तेलों की यही कहानी
पंकज अवधिया
ये हुयी न मर्दों वाली बात. आखिर ले ही
आये न वह तेल जो आपके आत्म-विश्वास को आसमान तक ले जाएगा. बहुत बढिया. अब तेल लगाओ
और पिल पड़ो.
अब तो “वह” इतनी तेजी से बढ़ेगा जितनी
तेजी से आजकल महंगाई भी नही बढ़ती है. सारे रिकार्ड ध्वस्त हो जायेंगे. अब कोई
तुम्हारे टक्कर में खड़ा नही होगा. पहले क्यों न खरीदा इसे –ऐसा सोच रहे होगे. कोई
बात नही. देर आयद दुरुस्त आयद. जापानी तेल हो या हिन्दुस्तानी, सभी की यही कहानी.
पर उन लोगों का क्या जो तुम्हे इसके
इस्तमाल से बरसों से रोकते रहे. शायद वे तुम्हारे दुश्मन थे. सच्चा साथी तो सुबह
का अखबार निकला जिसमे मुख पृष्ठ पर जापानी तेल का विज्ञापन दिया जैसे कि उस दिन का
अखबार केवल तुम्हारे लिए ही निकला हो.
अखबार ने तुम्हारे लिए सारी मर्यादाओं को
ताक में रख दिया. यह भी भुला दिया कि अखबार बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी पढ़ते
हैं. शायद उसे लगा है कि मुख पृष्ठ पर जापानी तेल का विज्ञापन सभी आयु वर्ग के
लोगो के लिए रुचिकर है और अकेले में ही सही सभी इसे पढ़ते हैं.
देश के अखबारों को देश की गिरती साख की बड़ी
चिंता है पर घर के ड्राइंग रूम तक पहुंचकर सेक्स परोसने में जरा भी गुरेज नही है.
कोई नही. ये तो अब आम हो गया है.
सर्षपिका, ग्रंथित, अलजी, अष्ठिलिका,
मृदित, कुम्भिका, सम्मूढ़पीडिका, पुष्कारिका, स्पर्श हानि, उत्तमा, अवग्रंथ,
शतायोनक, त्वकपाक, शोणितार्बुद, मांसापाक, मांसार्बुद, विद्रधि और तिलकालक.
उफ़.ये क्या लिख दिया. लगता है किसी और
लेख से कापी पेस्ट हो गया. कितनी मजेदार बातें हो रही थी.
नही जनाब ये सब आपके लिए ही है जो तेल का
विज्ञापन करने वाले अखबार शायद कभी न बताएं.
ये १८ तरह के रोग हैं जिन्हें कि शूकरोग
कहा जाता है और ये रोग लिंग पर इस तरह के तेल लगाने पर उत्पन्न होते हैं और यह बता
दें कि इन रोगों की कोई दवा नही है. जैसे मांसपाक रोग में लिंग का मांस गल गल कर
गिरता है.
रोगों के सभी नाम संस्कृत में है. अब तो
आप जान गये होंगे कि इन रोगों के बारे में पीढीयों से जानकारी है. पर हमने कभी अपने
बुजुर्गों की बात नही सुनी और विज्ञापनों में फंसकर इन तेलों को लगाते रहे और नये
रोगों के शिकार होते रहे. प्रकृति से खिलवाड़ या कहें ईश्वर प्रदत्त “उपहार” से
छेड़छाड़ करते रहे.
तो मित्र तुम्हारी चिंता जायज है. एक ओर
इतने सारे शूक रोग हैं जो दरवाजे पर अंदर आने की प्रतीक्षा में खड़े हैं और एक ओर
तुम्हारा वो महंगा तेल है जो तुम्हे स्वप्नलोक में उडाये जा रहा है. फैसला तुम्हे
ही करना है.
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