कैंसर से बूटी बचाए, पर जब बूटी से ही कैंसर फैले तो कौन पार लगाये

कैंसर से बूटी बचाए, पर जब बूटी से ही कैंसर फैले तो कौन पार लगाये 
  
पंकज अवधिया

मैं क्षमाप्रार्थी हूँ जो कैंसर की असहनीय पीड़ा के बावजूद आपको मुझसे मिलने के लिए इतना इन्तजार करना पडा.  कृपया आराम से बैठिये.

आपने बताया कि आपको पेट का कैंसर है और आप उत्तराखंड के किसी शास्त्रीय वैद्य से इलाज करवा रहे थे. आपको इससे बहुत ज्यादा आराम भी मिल रहा था.

वैद्य जी केवल एक ही प्रकार की बूटी का प्रयोग करते थे और इसके लिए बहुत अधिक फीस लेते थे. आपने इस महंगी फीस से बचने का रास्ता निकाला और उनके सहायक को मोटी रकम देकर बूटी का नाम जान लिया. आप बाजार से सस्ते में उस बूटी को खरीदकर उपयोग करते रहे और आपने वैद्य जी के पास जाना छोड़ दिया.

अब आपको लगता है कि पेट का कैंसर मूत्र मार्ग में भी फैल गया है. इसके लिए आपने आधुनिक चिकित्सकों की भी मदद ली जिन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि कैंसर दूसरे स्थान में भी फ़ैल गया है. आप अचरज में है कि ऐसे कैसे हो गया.

आपने बताया कि आप दोबारा वैद्य जी के पास गये और फिर से उनकी दवा शुरू कर दी. इससे पहले ही की तरह आपको पेट के कैंसर में आराम मिला पर मूत्र मार्ग की तकलीफ बढ़ रही है.
आपको इंटरनेट से मेरे बारे में जानकारी मिली और आप समय लेकर मिलने चले आये.

आपने बताया कि वैद्य जी इसरमूल नामक बूटी का प्रयोग करते हैं. वही बूटी आपने बाजार से भी खरीदी. आपने इसका एक टुकड़ा मेरे पास भी भेजा था. यह इसरमूल ही है.

इसरमूल एक उपयोगी औषधीय वनस्पति है पर  इसके उपयोग में बेहद सावधानी की जरूरत है. यह भारत के अलावा चीनी चिकित्सा पद्धतियों में भी अक्सर प्रयोग होती है. अमेरिका में जब किडनी के रोगों विशेषकर किडनी के कैंसर के रोगियों की संख्या बढी तो वहां के वैज्ञानिकों ने इसके कारणों की पड़ताल की.

उन्हें चौकाने वाली बात पता चली कि इसरमूल में पाया जाने वाला एरिस्टोलोकिक एसिड कैंसर कारक है. इस खोज के बाद विश्व स्वास्थ सन्गठन ने ऐसी चीनी औषधीयों पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसमे इसरमूल महत्वपूर्ण घटक के रूप में डाला जाता था.

हमारे पारम्परिक चिकित्सक अनंत काल से इसरमूल की इन सीमाओं को जानते हैं. यही कारण है कि वे इसका प्रयोग बहुत ही सम्भलकर करते हैं.

वे इसरमूल को एकत्र करने के बाद छाँव में सुखा देते हैं और फिर गो मूत्र में सात दिनों तक डुबोकर रखते हैं. रोज सुबह गो मूत्र बदला जाता है. फिर सात दिनों तक कडवी जड़ी-बूटियों के घोल में डुबोकर रखते हैं और उसके बाद फिर सात दिनों तक गो मूत्र में डुबोकर रखा जाता है.
इन इक्कीस दिनों में उसका पूरी तरह से शोधन हो जाता है. इस पर भी उन्हें संतुष्टि नही होती है तो वे एक बार फिर पूरी प्रक्रिया को दोहराते हैं. उसके बाद ही इसे रोगी को दिया जाता है बहुत कम मात्रा में. यह निश्चित ही पेट के कैंसर की एक अच्छी दवा है.

आपने जो इसरमूल बाजार से खरीदा वह शोधित नही था और न ही आपने उपयोग से पहले इसे शोधित किया. यही कारण है कि यह अमृत के सामन बूटी आपके लिए जानलेवा साबित हुयी.
मैं दावे के साथ तो नही कह सकता कि आपको किडनी का कैंसर इसरमूल के कारण हुआ पर आपकी मेडीकल रिपोर्ट बताती है कि दोनों स्थान का कैंसर एकदम भिन्न है और किडनी के कैंसर का पेट के कैंसर से सम्बन्ध नही दिखता है.

मैं तो आपको यही सलाह दूंगा कि आप उत्तराखंड के वैद्य के पास वापस जाएँ और उनके सामने सच का खुलासा करें. हो सके तो उनसे क्षमा मांगे.

मुझे पूरा विश्वास है कि जब वे पेट के कैंसर की सफल चिकित्सा करते हैं तो निश्चित ही वे किडनी के कैंसर की चिकित्सा करने का माद्दा भी रखते होंगे.

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है.   


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