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Showing posts from February, 2017

भगन्दर (Anal Fistula) की सफल पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख

भगन्दर (Anal Fistula) की सफल पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख नीम की कोपल और हल्दी की सहायता से भगंदर की चिकित्सा की बात प्राचीन ग्रंथों में लिखी हुई है . इस छोटे से फार्मूले के बारे में देशभर के पारंपरिक चिकित्सकों की राय जानने के लिए मैं सन 1990 से लगातार पारंपरिक चिकित्सा से मिल रहा हूं और उनके विचारों का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ . अब तक मैंने 18000 से भी अधिक पारंपरिक चिकित्सकों से इस सरल से फार्मूले के बारे में पूछा है. मैंने इसे बहुत से रोगियों पर भी आजमाया है और इस तरह इस फार्मूले के विषय में विस्तार से अनुभव हासिल किए हैं. इनमें से कुछ अनुभव इस लेख के माध्यम से मैं आपसे बांटना चाहता हूं. बस्तर के बहुत से पारंपरिक चिकित्सक नीम की कोपल और हल्दी की सहायता से भगंदर की सफल चिकित्सा करते हैं पर वे अपने फार्मूले में 18 से लेकर 200 प्रकार की जड़ी बूटियां मिलाते हैं. उसके बाद ही फार्मूले का प्रयोग करते हैं. बस्तर के एक बुजुर्ग पारंपरिक चिकित्सक ने बताया कि हल्दी के स्थान पर यदि जंगली हल्दी का प्रयोग किया जाए तो यह फॉर्मूला ज्यादा प्रभावी हो

बालों को झड़ने से रोकने में कारगर पारम्परिक फार्मूले पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख

बालों को झड़ने से रोकने में कारगर पारम्परिक फार्मूले पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख बालों के झड़ने के लिए मुस्कैनी और तिल के पुष्प पर आधारित बहुत से पारंपरिक औषधि मिश्रणों का उल्लेख भारत की पारंपरिक चिकित्सा में मिलता है. इन दोनों वनस्पतियों का प्रयोग दूसरी उपयोगी वनस्पतियों के साथ शहद और घी मिलाकर किया जाता है. इन दोनों वनस्पतियों को बाहरी तौर पर उन भागों में लगाया जाता है जहां के बाल झड़ रहे हैं. अधिकतर सिर के बालों के झड़ने पर इनका प्रयोग किया जाता है. हमारे पारंपरिक ग्रंथ बताते हैं कि इससे बालों का झड़ना रुक जाता है और बहुत से मामलों में बाल दोबारा उगने लग जाते हैं. शहरी इलाकों में इन दोनों वनस्पतियों का मिलना आसान नहीं है. यदि आप पंसारी की दुकान में जाएं तो इन वनस्पतियों के नाम पर आपको कुछ भी दिया जा सकता है. कुछ भी का अर्थ वे वनस्पतियां भी है जो आपके सिर में उग रहे बालों को भी खत्म कर सकती है और आपको स्थाई तौर पर गंजा बना सकती है. ग्रामीण इलाकों में ये दोनों वनस्पतियां आसानी से मिल जाती है पर इनकी उपलब्धता साल भर नहीं रहती ह

अरहर या तुअर और कैंसर पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख

अरहर या तुअर और कैंसर पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख  दुनिया भर की पारंपरिक चिकित्सा में अरहर के पत्तों को पानी में उबालकर उसके काढ़े से गरारा करने या कुल्ला करने की बात कही गई है. भारत में भी यह प्रयोग आम है. 2 वर्ष पूर्व मेरे पास मुंह के कैंसर से प्रभावित एक व्यक्ति आया. उस का कैंसर दूसरी अवस्था में था. आधुनिक चिकित्सक उसे जवाब दे चुके थे और वह पारंपरिक चिकित्सा के सहारे था. मुझे बताया गया कि उसका कैंसर बहुत तेजी से फैल रहा है और किसी भी तरह से दवाओं से काबू में नहीं आ रहा है. मैंने विस्तार से उससे जानकारी ली कि वह कौन कौन सी दवाई ले रहा है बाहरी दवाएं भी और आंतरिक दवाएं भी. सारी जानकारी लेने के बाद मुझे सब कुछ ठीक लगा. मुझे बताया गया कि वैद्य ने उस व्यक्ति को अरहर की पत्तियों के काढ़े से कुल्ला करने को कहा है. वह व्यक्ति रायपुर से था. उसने बताया कि वह पास के खेतों में जाकर अरहर की पत्तियां ले आता है और फिर पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करता है. मुझे कुछ शक हुआ. मैंने उसे निर्देशित किया कि वह कुछ समय तक अरहर की पत्तियों का ऐसा प्रयोग रोक द