कैंसर में हाथा-थोर, तेज ठंड का चौबीसों घंटे जोर

कैंसर में हाथा-थोर, तेज ठंड का चौबीसों घंटे जोर

पंकज अवधिया  

आपको चौबीसों घंटे तेज ठंड लगती रहती है. ज्वर कभी-कभार आता है पर ठंड के बारे बुरा हाल है. कितने भी कम्बल आपके ऊपर डाल दिए जाएँ पर ठंड कम नही होती है.

आपने इसके लिए देश भर में परीक्षण करवाए पर इसका कारण आपको पता नही चला. आपने बताया कि आपको पेट का कैंसर है जो आरम्भिक अवस्था में है और जोधपुर के पास किसी वैद्य की दवाएं आप ले रहें है.

आपको उनकी दवाओं से पेट के कैंसर में तो लाभ हो रहा है. पर इस नई समस्या के कारण आपको मजबूरीवश इस इलाज को बीच में रोकना पड़ रहा है. वैद्य जी भी इस बारे में कुछ कर पाने में अक्षम है. इसलिए आपने इंटरनेट में मेरे आलेखों को पढकर मुझसे मिलने का निश्चय किया है.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कैंसर के मरीज को श्वसन तंत्र की समस्याएं होती रहती हैं विशेषकर कैंसर जब बहुत फैल जाता है. पर आपके मामले में तो कैंसर अभी भी आरम्भिक अवस्था में है. ऐसे में इस तरह के लक्ष्ण आश्चर्य का विषय हैं. यह कैंसर के कारण नही है यह सुनिश्चित करने के लिए मुझे कुछ परीक्षण करने पड़ेंगे.

ये बारह जड़ी-बूटियों को पीसकर बनाया गया चूर्ण है. इसे पानी में मिलाकर लेप का रूप दिया गया है. आप इसे अपने पैरों पर लगाये और बताये कि कितनी देर में आपको नाक में एक विशेष गंध महसूस होती है. इसमें आपको एक घंटे का समय भी लग सकता है.

आपने बताया कि आपको नाक में विशेष गंध का अनुभव बीस मिनट में हुआ है. धन्यवाद जो आपने इस परीक्षण में पूरी तन्मयता से भाग लिया.

इस परीक्षण के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि आपकी समस्या का मूल कैंसर नही है.

कुछ वर्ष पूर्व जब मैं राजस्थान के पारम्परिक चिकित्सकों से अहमदाबाद के एक संस्थान में मिल रहा था तब मेरी मुलाक़ात आपके वैद्य जी से हुयी थी. उन्होंने कैंसर के कई नुस्खों के बारे में मुझे बताया था. वे स्थानीय जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते हैं और राजस्थान की मरूस्थलीय वनस्पतियों से समस्त रोगों की चिकित्सा का दावा करते हैं. मैं उनके ज्ञान से अभिभूत हूँ.

आपने मुझे उनके द्वारा दी गयी जड़ी-बूटियों के बारे में बताया. यह भी बताया कि वे जड़ी-बूटियाँ मरीजों से मंगवाते हैं और फिर अपने सामने दवा तैयार करके देते हैं. यह अच्छी बात है कि आप उन जड़ी-बूटियों को लेकर आये हैं.

राजस्थान के पारम्परिक चिकित्सक जो कि कैंसर की चिकित्सा में महारत रखते हैं अधिक्तर औषधीय मिश्रणों में हाथा थोर नाम मांसल बूटी का प्रयोग करते हैं.

यह बूटी पेट के कैंसर के लिए बहुत उपयोगी है पर इसकी तासीर ठंडी होती है और यह ठंडापन सभी रोगियों पर एक समान असर नही करता है. बहुत से रोगियों पर इसका किसी तरह का बुरा असर नही होता है पर आप जैसे कुछ रोगियों पर यह घातक असर करती है. ऐसे रोगियों को लगातार ठंड लगती रहती है.

राजस्थान के पारम्परिक औषधीय मिश्रणों में सुधार करके उनके इस दोष को दूर किया जा सकता है. आप मुझे उन वैद्य का नम्बर दें. मैं उनसे बात करके उनके नुस्खे में दो बूटियाँ और डलवा देता हूँ जिससे उनका नुस्खा सही हो जाएगा और आपको इस विकट समस्या से मुक्ति मिल जायेगी.

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.  


सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)