कैंसर के ज्वर के लिए त्रिफला, काकजंघा के साथ अपने घर का भला
कैंसर के ज्वर के लिए त्रिफला, काकजंघा
के साथ अपने घर का भला
पंकज अवधिया
त्रिफला निश्चित ही ज्वर में उपयोगी है.
पर कैंसर के रोगियों को होने वाले ज्वर में त्रिफला का प्रयोग अक्सर कारगर सिद्ध
नही होता है. आपका कहना सही है. कैंसर में ज्वर में त्रिफला की उपयोगिता पर चर्चा
करने के लिए आपने मुझसे समय लिया है.
त्रिफला में हर्रा , बहेड़ा और आंवला को
बराबर मात्रा में डाला जाता है और बाजार में उपलब्ध त्रिफला में तो ये तीनो घटक
बराबार मात्रा में होते हैं. पर पारम्परिक चिकित्सक इन तीनो घटकों को अलग-अलग
अनुपात में मिलाते हैं अलग –अलग रोगों की चिकित्सा के लिए.
मैंने अपने अनुभवों से जाना है कि कैंसर
के रोगियों को एक भाग हर्रा , चार भाग बहेड़ा और एक भाग आंवला मिलाकर तैयार किया
गया त्रिफला अधिक लाभ पहुंचाता है. ऐसा त्रिफला बाजार में व्यवसायिक उत्पाद के रूप
में नही मिलता है. इसे घर पर तैयार किया जा सकता है और कैंसर के रोगियों को दिया
जा सकता है.
ऐसे कैंसर के रोगी जिनकी जीवनी शक्ति कम
होती है उनको तो त्रिफला सोच-समझकर देना चाहिए. बहुत से पारम्परिक चिकित्सक ऐसे
रोगियों को त्रिफला के स्थान पर ज्वर के लिए काकजंघा देने के पक्ष में होते हैं और
कई बार तो वे त्रिफला के साथ काकजंघा दे देते हैं ताकि रोगी त्रिफला के बुरे
प्रभावों से बचा रहे.
बहुत से स्थानों में उगने वाले हर्रा के
वृक्षों में पत्तियों पर कीटों का आक्रमण हो जाता है. हर्रा एकत्र करने के लिए ऐसे
वृक्षों का प्रयोग पारम्परिक चिकित्सक नही करते हैं. इसी तरह वे शहरी आंवले के स्थान पर जंगली आंवले
का प्रयोग करते हैं.
कुम्ही नामक वृक्ष के पास उग रहा बहेड़ा
का वृक्ष फल एकत्र करने के लिए उपयुक्त नही माना जाता है. ऐसे फलों को प्रयोग करने
से रोगियों को कई प्रकार के मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं. त्रिफला जब
व्त्व्सायिक उत्पाद के रूप में तैयार किया जाता है तब इन बातों का ध्यान नही रखा
जाता है. इसलिए बाजार में उपलब्ध त्रिफला का प्रयोग कैंसर में कम ही किया जाता है.
आशा है मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपले
लिए उपयोगी सिद्ध होगी.
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
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