कैंसर के मिलते हैं निशान, जहरीले कृषि रसायनों के बीच जब काम करते हैं किसान
कैंसर के मिलते हैं निशान, जहरीले कृषि
रसायनों के बीच जब काम करते हैं किसान
पंकज अवधिया
आपने अपने शोध के लिए बहुत अच्छा विषय
चुना है. इस विषय पर भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया में बहुत कम शोध हो रहे हैं.
मुझे अपने अनुभव बताने में खुशी हो रही हैं.
आप सब भारत के जाने-माने कैंसर अनुसन्धान
संस्थान के शोधार्थी हैं और कृषि रसायनों से होने वाले कैंसर पर व्यापक शोध कर रहे
हैं. आपके मार्गदर्शकों में दुनिया भर के कैंसर विशेषज्ञ शामिल हैं. तीन साल बाद
जब आपके शोध परिणाम दुनिया के सामने आयेंगे तो इससे असंख्य लोगों की आँखें खुलेंगी
और वे जैविक खेती की ओर रुख करेंगे.
मैंने आपके द्वारा चुने हुए कीटनाशकों Insecticides और रोगनाश्कों Fungicides की सूची देखी है. मैं आपको सलाह देना चाहूंगा कि आप इनमे
खरपतवारनाशियों Weedicides को भी सम्मलित करें.
कुछ वर्ष पूर्व पंजाब के एक कैंसर रोगी
मेरे पास आये थे. उन्हें प्रोस्टेट कैंसर था.
उन्होंने बताया कि वे जीवन भर कभी बीमार
नही पड़े और फिट रहे पर बुढापे में उन्हें अचानक ही कैंसर ने धर दबोचा. उन्होंने
बताया कि वे जब भी अपने खेतों में Metribuzin नामक खरपतवारनाशी का प्रयोग करते थे उनके कैंसर की समस्या
बढ़ जाती थी.
उन्होंने अपने चिकित्सक को यह बात बताई
तो इस विषय में कम ज्ञान होने के कारण वे ज्यादा कुछ बता नही पाए. पंजाब से आये
सज्जन का दावा था कि Metribuzin के कारण ही उन्हें कैंसर हुआ था. उन्होंने बहुत से ऐसे किसानो
के नाम गिनाये जिन्हें Metribuzin के कारण कैंसर हुआ
था.
Metribuzin का प्रयोग गेहूं ,
गन्ना और आलू जैसी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए होता है. इसका प्रयोग किसानो
के बीच लोकप्रिय है. यह खरपतवारनाशी के रूप में निश्चित ही प्रभावी है पर इससे
कैंसर होने और कैंसर के फैलने की बात बहुत कम लोग जानते हैं.
Metribuzin की विषाक्तता के
विषय में दुनिया भर में शोध हुए हैं और बहुत से मामलों में इसे सीधे ही कैंसर के
लिए दोषी माना गया है पर आज भी हमारे देश में इस कडवे और नग्न सत्य को अनदेखा करते
हुए इस रसायन पर शोध जारी हैं.
इंडियन जर्नल आफ वीड साइंस के ताजा अंक
को यदि आप पढ़े तो आपको पता चलेगा कि हमारे कृषि वैज्ञानिक अभी भी इस खतरनाक
खरपतवारनाशी पर शोध कर रहे हैं और इसके प्रयोग को आम किसानो के बीच लोकप्रिय बनाने
में जुटे हुए हैं.
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि देश में
बहुत से भागों में भूमिगत जल में इस रसायन की खतरनाक मात्रा पायी गयी है. इसके बाद
भी कोई आँखें खोलने को तैयार नही हैं.
हमारे देश में यह विडम्बना है कि भले ही
कैंसर विशेषज्ञ और कृषि वैज्ञानिक पास-पास
रहते हों पर कभी भी वे मिलकर काम नही करते हैं और न ही एक-दूसरे के विषय को समझना
चाहते हैं. यही कारण है कि एक ओर कृषि वैज्ञानिक रसायनों के नुक्सान को जाने बिना
किसानो को अनुमोदित करते हैं और फिर कैंसर विशेषज्ञ रसायनों से होने वाले कैंसर को
उपचारित करने का प्रयास करते हैं. किसान
बेवजह ही पिस जाता है.
आप को अपने शोध में Metribuzin को अवश्य शामिल करना
चाहिए. मालवा और बुंदेलखंड के वे किसान जिन्हें कैंसर हुआ है उनके बीच Metribuzin के प्रयोग में समरूपता देखी गयी है. इससे होने वाले
नुकसानों पर विधिवत शोध नही होने के कारण
कृषि वैज्ञानिक इस पर शोध जारी रखे हुए हैं.
एक बार फिर आपका सबका धन्यवाद. मेरी
शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
-=-=-
कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज
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सर्वाधिकार सुरक्षित
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