कैंसर में तेजनी बूटी , भ्रमरमार के सत्व से बन जाती है अनूठी

कैंसर में तेजनी बूटी , भ्रमरमार के सत्व से बन जाती है अनूठी
पंकज अवधिया

हाँ, ,मुझे आपके द्वारा भेजी गयी बूटी मिल गयी है. ताजी अवस्था में होने के कारण इसकी पहचान भी हो गयी है. आपने इसका नाम तेजनी बताया है. मैं इसे मधुलिका के नाम से जानता हूँ.

आप तेलंगाना के प्रसिद्ध वैद्य हैं और कैंसर की चिकित्सा में महारत रखते हैं. आपकी लोकप्रियता इतनी अधिक है कि आपले घर के सामने कैंसर रोगियों की लम्बी कतार हमेशा देखी जा सकती है.

इसी कारण से आप मुझसे मिलने नही आ सके पर मेरे लेखों को पढकर आपने तेजनी बूटी मेरे पास बतौर उपहार भेजी है. साथ में इसके कैंसर में उपयोगों पर भी विस्तार से जानकारी भेजी है.  आप चाहते हैं कि इस उपहार के बदले मैं भी आपको कुछ जानकारी भेजूं.

आपने बताया कि आप इसका प्रयोग कई दशकों से मुँह के कैंसर की चिकित्सा में करते आ रहे हैं. आप इसका आंतरिक प्रयोग करते हैं और आपका दावा है कि बहुत से मामलों में यह अकेले ही रोगियों को बहुत लाभ पहुंचाती है. पर कैंसर की अंतिम अवस्था में इसका प्रभाव अधिक नही रहता है.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हमारे पारम्परिक चिकित्सक इसका प्रयोग डायबीटीज के रोगियों को होने वाले नासूर की सफल चिकित्सा में करते हैं. जब सभी औषधीयाँ असफल हो जाती हैं तब इसका प्रयोग किया जाता है. कुछ पारम्परिक चिकित्सक पेट के कैंसर की चिकित्सा में इसका प्रयोग करते हैं.

हल्दी, काली हल्दी और आम्बा हल्दी को इसके साथ नही दिया जाता है. मैंने अपने अनुभवों से यह जाना है कि मुँह के कैंसर में विशेषकर गुटखे के कारण होने वाले मुँह के कैंसर की चिकित्सा में तीनो प्रकार की हल्दी अहम भूमिका निभाती है पर जब तेजनी का प्रयोग किया जाता है तो रोगियों को इन तीनो हल्दी के प्रयोग से पूरी तरह से बचने की सलाह दी जाती है. यहाँ तक कि खाने में भी हल्दी का प्रयोग बंद कर दिया जाता है.

यदि गलती से किसी रोगी ने इन तीनो में से किसी एक प्रकार की हल्दी का भी सेवन कर लिया तो कैंसर का फैलाव तेजी से होने लगता है.

मुँह के कैंसर के रोगियों को होने वाले रक्तस्त्राव के लिए आधुनिक चिकित्सक खून के प्रवाह को बंद करने के लिए जिस इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं उसके साथ भी तेजनी का प्रयोग हानिकारक हो सकता है.

तेजनी को जंगल से एकत्र करने से एक सप्ताह  पहले उसे भ्रमरमार नामक बूटी के ताजे घोल से सींचा जाता है और फिर अगले सप्ताह अल सुबह उसका एकत्रण किया जाता है. इस उपचार से तेजनी के प्राकृतिक रसायन सक्रिय हो जाते हैं और कैंसर के रोगियों को अधिक लाभ मिलता है. उपचारित बूटी को एक सप्ताह के भीतर ही उपयोग कर लेना होता है.

मुझे इस बात का भान है कि भ्रमरमार एक दुर्लभ बूटी है और आपके क्षेत्र में यह नही मिलती है. मैं आपको यह बूटी भेज रहा हूँ. आप  अपने बागीचे में इसे लगा लीजिएगा ताकि समय-समय पर आप इसे उपयोग कर सकें.

आशा है मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी.  

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.    

सर्वाधिकार सुरक्षित

कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 

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