Consultation in Corona Period-205
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"सबसे पहले मुझे मुंह सूखने की समस्या से हुई। जब मैंने चिकित्सकों से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि यह डायबिटीज के कारण हो सकता है। मैंने अपनी पूरी जांच कराई पर मुझे डायबिटीज नहीं निकला। मुँह के सूखने के दूसरे कारणों के लिए उन्होंने बहुत सारी दवाएं सुझाई पर किसी भी दवा से कोई लाभ नहीं हुआ। इस बीच मैंने पारंपरिक चिकित्सा का सहारा लिया और एक वैद्य से दवा लेनी शुरू की। यह उनका ही बनाया हुआ फार्मूला था जिसमें कि बहुत सारी जड़ी बूटियों को मिलाया गया था। इस फार्मूले का प्रयोग करते ही मेरे मुंह सूखने की समस्या का तुरंत ही समाधान हो गया और मैं आज तक इस दवा का प्रयोग कर रहा हूं।
कुछ सालों तक मेरी तबीयत पूरी तरह से ठीक रही। उसके बाद फिर मुझे चलने में दिक्कत होने लगी। मैं लंगड़ा कर चलने लगा और कुछ दिनों के बाद चलना फिरना पूरी तरह से बंद हो गया। पैरों की जांच जब मैंने कराई तो पैरों में किसी भी तरह का दोष नजर नहीं आया। इसे वात की समस्या माना गया और उस हिसाब से इसकी चिकित्सा की गई। थोड़े ही दिनों में मेरी जबान में लड़खड़ाहट पैदा हो गई और हाथों और पैरों में सुन्नता आने लगी। उसके बाद मुझे पेशाब की समस्या होने लगी और अनजाने में ही पेशाब होने लगी। इन सभी समस्याओं के लिए मैं अलग-अलग चिकित्सकों से मिला। ये विशेषज्ञ चिकित्सक थे। उन्होंने अपनी समझ के अनुसार दवाएं दी। कुछ समस्याओं का समाधान कुछ समय के लिए होता रहा उसके बाद फिर वे समस्याएं उभर कर आती रही। उसके बाद मुझे मिर्गी जैसे झटके आने लगे। मेरे दिमाग की जांच की गई। उसके बाद मुझे कई तरह की दवाएं दी गई जिससे झटके तो कम हो गए पर बाकी समस्याएं यथावत जारी रहीं। ये समस्याएं 10 वर्ष तक चलती रही।
इसके बाद जब मैंने भारत आकर यहां के डॉक्टरों से जांच करवाई तो मुझे बताया गया कि इन सभी समस्याओं का कारण दिमाग की कोई तकलीफ है। उन्होंने विस्तार से सभी कष्टों के बारे में पूछा और फिर कई तरह की दवाएं दी। जब मैंने चिकित्सकों से पूछा कि मुझे कौन सी बीमारी है तो वे इसे स्पष्ट नहीं कर पाए पर उन्होंने कहा कि जितने भी लक्षण आ रहे हैं वे दिमाग में गड़बड़ी के कारण आ रहे हैं। मैं बहुत परेशान रहा फिर मैंने निश्चय किया कि अब मैं अमेरिका की यात्रा करूंगा और वहां के चिकित्सकों से मिलकर अपनी समस्या का कारण जानने की कोशिश करूँगा।
वहां जब मैं एक चिकित्सक से मिला तो उन्होंने तुरंत ही मेरे खून की जांच कराने को कहा और फिर रिपोर्ट आने पर उस आधार पर उन्होंने कहा कि मुझे न्यूरोसिफीलिस है और समस्या का मूल कारण यही है। मैं बड़ा प्रसन्न हुआ कि कम से कम मुझे अपनी बीमारी का नाम तो पता चला पर मुझे इस बात का भी दुख हुआ कि युवा अवस्था में की गई गलती के कारण मुझे न्यूरोसिफीलिस हो गया था जिसके कारण मैं पिछले कई सालों से कष्ट झेल रहा था।
उन्हीं चिकित्सक के मार्गदर्शन में न्यूरोसिफीलिस की दवा शुरू हुई जो कि 10 सालों तक चलती रही समस्या ठीक होने की बजाय और अधिक उग्र होती गई। थक हार कर मैंने उनकी दवा लेना बंद कर दिया और वापस अपने देश नेपाल आ गया। मैं मूलतः दक्षिण अफ्रीका का हूं पर नेपाल की नागरिकता मैंने ले ली है।
यहां पर मैं एक अध्यात्मिक संस्थान से जुड़ा हुआ हूं जो कि तरह-तरह के यज्ञ करती है। हमारे संस्थान के एक चिकित्सक ने मुझे सलाह दी कि मैं आपसे मिलूं और अपनी समस्या के बारे में बताऊँ। हो सकता है कि आपके पास मेरी समस्या का किसी तरह का समाधान मिल जाए।" नेपाल से आए एक सज्जन ने जब मुझसे संपर्क किया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।
वे अपनी समस्या से 20 वर्षों से भी ज्यादा समय से परेशान थे। मैंने उन्हें रायपुर बुलवा लिया और जब उनके पैरों के तलवों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर परीक्षण किया तो मुझे न्यूरोसिफीलिस के उग्र लक्षण नही दिखाई दिए। यह परीक्षण कुछ और ही बता रहा था। मैंने उनसे उन दवाओं की सूची मांगी जिनका प्रयोग वे पिछले 20 वर्षों में कर चुके थे और ऐसी दवाओं की भी जिनका प्रयोग वे 20 वर्षों से कर रहे थे। जब उन्होंने मुझे सूची दी तो मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अपने जीवन में 150 से भी अधिक प्रकार की दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग किया था। आश्चर्य इस बात का भी था कि उन्हें अपनी समस्या से छुटकारा नहीं मिल पाया था। दवाओं के बाद मैंने उनके द्वारा प्रयोग की जा रही खाद्य सामग्रियों के बारे में जानकारी ली। यह भी पूछा कि वे शराब पीते हैं या नहीं। यदि हां, तो कितनी मात्रा में और हफ्ते में कितने बार पीते हैं। और भी दूसरे प्रकार के नशे के बारे में मैंने उनसे जानकारी ली। फिर उनसे विस्तार से बात कर ऐसे विशेष लक्षणों की पहचान की जो कि उन्हें आ रहे थे। इस बातचीत का फायदा हुआ और सारा ध्यान एक विशेष तरह की वनस्पति पर जाकर केंद्रित हुआ। अब यह पता करना था कि इस वनस्पति का प्रयोग किस फार्मूले में हो रहा था जिसका प्रयोग लंबे समय से यह सज्जन कर रहे थे।
शुरुआत वैद्य जी के फार्मूले से हुई जिसे मुंह सूखने पर दिया गया था और जिसका प्रयोग यह सज्जन 20 वर्षों से कर रहे थे। जब उन वैद्य जी से बात हुई तो उन्होंने बिना किसी संकोच के फार्मूले के बारे में सब कुछ बता दिया। उन्होंने बताया कि उनका फार्मूला सोम लता पर आधारित है। इस फार्मूले में 25 प्रकार के घटक हैं पर मुख्य भूमिका सोम लता की ही होती है। जब मैंने उनसे पूछा कि आप किस वनस्पति को सोम लता कहते हैं तो उन्होंने कहा कि यह वही सोम लता है जिसका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है और जिसका इस्तेमाल सोम यज्ञ में किया जाता है।
मैंने उनसे अनुरोध किया कि आप क्या उस वनस्पति को मेरे पास भिजवा सकते हैं। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और जब वनस्पति जल्दी ही मेरे पास आई तो मुझे समस्या का कारण समझ में आने लगा।
मैंने उन सज्जन से कहा कि आप 1 महीने के लिए वैद्य जी की दवा पूरी तरह से बंद कर दें और फिर देखें कि आपको किसी तरह का लाभ होता है कि नहीं। आपका मुंह यदि अभी भी सूखता हो तो मैं आपके लिए एक मेडिसिनल राइस दे देता हूं। इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और वापस लौट गए।
कुछ दिनों के बाद ही उनका फोन आया कि अब उनकी समस्या काफी हद तक सुलझ गई है। उनकी चाल ढाल सुधर रही है। अब बोलने में दिक्कत नहीं हो रही है। मिर्गी जैसे दौरे नहीं आ रहे हैं। पेशाब पर पर्याप्त नियंत्रण आ गया है और वे अच्छा महसूस कर रहे हैं। उनकी बातें सुनकर राहत महसूस हुई। और यह राज भी खुला कि वैद्य जी के फार्मूले में ही दोष था जिसके कारण वे बेकार ही पिछले 20 सालों से परेशान हो रहे थे। उनके सभी लक्षण न्यूरोसिफीलिस से मिलते जुलते थे पर उनकी समस्या न्यूरोसिफीलिस के कारण नहीं हो रही थी। यह वैद्य जी के फार्मूले में उपस्थित सोम लता के कारण हो रही थी। सोम लता के नाम पर दसों तरह की वनस्पतियां बाजार में मिलती है। इन सभी वनस्पतियों की वानस्पतिक संरचना प्राचीन ग्रंथों में लिखी बातों से मेल नहीं खाती है फिर भी सभी अपने अपने विश्वास के अनुसार सोम लता का प्रयोग करते हैं। वैद्य जी जिस सोम लता का प्रयोग कर रहे थे वह वास्तव में मून प्लांट था जिसे सोम लता के नाम पर बेचा जाता है और यज्ञ में प्रयोग किया जाता है। जब उसका आंतरिक प्रयोग किया जाता है तो उसी तरह से लक्षण आते हैं जैसे कि उन सज्जन को आ रहे थे। यह निश्चित ही प्राचीन ग्रंथों में लिखी हुई सोम लता नहीं थी। यह एक विषाक्त वनस्पति थी जिसके संभलकर उपयोग किए जाने की आवश्यकता थी।
भारत के पारंपरिक चिकित्सक इसका कम ही उपयोग करते हैं और जब उपयोग करते हैं तो पर्याप्त शोधन के बाद उपयोग करते हैं। इस वनस्पति को लंबे समय तक कभी भी नहीं दिया जाता है पर जब इसे सोम लता का नाम दे दिया जाता है तो यह मान लिया जाता है कि यह देवताओं की बूटी है और इसके प्रयोग से किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा। यह एक तरह की गलतफहमी है।
मैंने उन सज्जन को पूरी बात बताई तो वे बड़े दुखी हुए। मैंने उनसे कहा कि आप जीवन में यह सबक याद रखें कि किसी भी दवा को लगातार कई सालों तक न लें।
दवा का काम है किसी भी रोग को ठीक करना। लंबे समय तक दवा का प्रयोग यदि आपके ऊपर किया जा रहा है तो समझिए कि आपके चिकित्सक को आपके रोग के कारण का पता नहीं है या वे इसका उपचार नहीं जानते हैं। केवल नियंत्रण करना जानते हैं।
उनके अनुरोध पर मैंने उनके वैद्य जी से भी बात की और उन्हें बताया कि आप जिस फार्मूले का उपयोग कर रहे हैं वह लोगों के लिए अभिशाप बन गया है। न जाने कितने लोग इस फार्मूले से अभी तक प्रभावित हो चुके होंगे और उन्हें न्यूरोसिफीलिस जैसे लक्षण आ रहे होंगे। और उस आधार पर चिकित्सक पता नहीं कौन-कौन सी दवाएं उन्हें दे रहे होंगे? आपसे अनुरोध है कि इस चंद्र बूटी को आप अपने फार्मूले से हटायें। उसके बाद आप का फार्मूला पूरी तरह से ठीक है। उसमें किसी भी तरह का दोष नहीं है।
उन्होंने अपनी गलती मानी और फार्मूले में सुधार का आश्वासन दिया। इस तरह एक और मामले का समाधान हो गया।
सब ने राहत की सांस ली।
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