Consultation in Corona Period-190

Consultation in Corona Period-190 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "आप तो जानते ही हैं कि आयुर्वेद उत्पादों के क्षेत्र में दुनिया भर में हमारा नाम है और हम पीढीयों से आयुर्वेद के अलग-अलग उत्पाद बना रहे हैं। हमारे उत्पाद नाम से ही बिकते हैं और इन पर पूरी दुनिया की जनता का बहुत अधिक विश्वास है। हमारे उत्पादों पर दुनिया भर के चिकित्सकों का भी बहुत अधिक विश्वास है और वे पूरी दृढ़ता से हमारे उत्पादों का अनुमोदन करते हैं। हमारी कंपनी से बहुत सारे विशेषज्ञ जुड़े हुए हैं। पिछले दिनों हमने न्यूरोलॉजिस्टों का एक सम्मेलन किया। सम्मेलन के दौरान एक वयोवृद्ध न्यूरोलॉजिस्ट ने कहा कि वे आजकल हमारे एक उत्पाद का प्रयोग नहीं करते हैं क्योंकि उस उत्पाद के प्रयोग करने से दिमाग की कई तरह की समस्याएं उग्र हो जाती हैं। उन्होंने उस उत्पाद का नाम बताया त्रयोदशांग गुग्गुलु। उन्होंने विस्तार से हमें समझाया कि पीएसपी और पार्किंसन रोग से प्रभावित रोगी जब आपके इस उत्पाद का प्रयोग करते हैं तो उस उत्पाद की न केवल आधुनिक दवाओं से विपरीत प्रतिक्रिया होती है बल्कि उनके लक्षण भी उग्र हो जाते हैं। इन लक्षणों को शांत करना फिर किसी भी तरह से संभव नहीं होता है। यह हमारे लिए चौंकाने वाली बात थी और आश्चर्य पैदा करने वाली भी। जब उन्होंने बताया कि जब वे दूसरी कंपनी के इसी उत्पाद का प्रयोग करते हैं तो उनके मरीजों को किसी भी तरह की समस्या नहीं होती है। यह तो सचमुच बड़े जोर का झटका था। ये चिकित्सक हमसे कई सालों से जुड़े हुए थे और कई दवाओं के निर्माण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी उनकी बात का दूसरे न्यूरोएक्सपर्ट्स ने जब समर्थन किया तो हमने सोचा कि अब हमें अपने उत्पाद की जांच करनी होगी कि गड़बड़ी कहां हो रही है? इससे पहले इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई थी। हमने पूरी प्रक्रिया का फिर से अवलोकन किया और विशेषज्ञों की टीम बनाई जो कि यह पता लगा सके कि उत्पाद में किस स्तर पर गड़बड़ी हो रही है। लंबे अध्ययन के बाद भी हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए इसलिए हमने कुछ समय के लिए इस उत्पाद को बाजार से हटा लिया। किसी भी उत्पाद को बाजार से हटाने का मतलब है बहुत बड़ा खतरा मोल लेना। एक बार इसके खरीदार दूसरी कंपनी की तरफ मुड़ गए तो फिर उनको वापस बुलाना एक कठिन काम है। हमारे लिए हर पल पहाड़ के समान है और हमें जल्दी से जल्दी इस समस्या का समाधान करना है। जिन वयोवृद्ध चिकित्सक ने यह समस्या उठाई थी जब हमने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने सलाह दी कि हम एक बार आपसे मिले और इस समस्या के बारे में बताएं। हो सकता है कि आप इस बारे में सही मार्गदर्शन दे सके। दुनिया में सभी लोगों की तरह हम भी आपको जानते हैं पर हम आपको कृषि वैज्ञानिक के रूप में अधिक जानते हैं क्योंकि 20 साल पहले सफेद मूसली की खेती के लिए हमने आपसे तकनीकी मार्गदर्शन लिया था। अब हमें पता चल रहा है कि आप कैंसर पर विशेष अनुसंधान कर रहे हैं और ड्रग इंटरेक्शन पर आपका बहुत अधिक शोध कार्य है। जब भी आप हमें समय देंगे हम आपसे मिलकर इस समस्या के बारे में विस्तार से बात करना चाहते हैं।" दुनिया की एक नामी-गिरामी आयुर्वेद कंपनी ने जब मुझसे संपर्क किया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। जब वे मुझसे मिलने आए तो अपना उत्पाद साथ लेकर आए थे और साथ में उन अधिकारियों को भी लेकर आये थे जो कि इन उत्पादों को बनाते समय पूरी निगरानी रखते हैं। हमारी चर्चा कई घंटों तक चलती रही और इस चर्चा के आधार पर मैंने उन रोगियों की रिपोर्ट मंगाई जिन्हें इस उत्पाद के प्रयोग से समस्या हो रही थी। उनके लक्षण देखने के बाद मैंने 5 तरह की वनस्पतियों का चुनाव किया और कंपनी के मालिक को बताया कि इन 5 तरह की वनस्पतियों में दोष होने से इस तरह के लक्षण आते हैं। अब सभी का ध्यान इन 5 तरह की वनस्पतियों पर केंद्रित हो गया और जल्दी ही हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस उत्पाद में प्रयोग किए जा रहे अश्वगंधा में दोष है। मैंने कंपनी के मालिक से कहा कि जबसे कोविड-19 के समाधान के रूप में अश्वगंधा का प्रचार प्रसार हुआ है तब से अश्वगंधा का बाजार में टोटा हो गया है और यही कारण है कि बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए बहुत सारी दवा कंपनियां मिलावट का सहारा ले रही है। इससे अश्वगंधा से लाभ होने के स्थान पर कई तरह की हानि हो रही है। संबंधित विभाग को इस बारे में खबर नहीं है या हो सकता है कि उन्हें खबर हो और वे जानबूझकर इसे अनदेखा कर रहे हो। क्या आप भी अश्वगंधा के लिए बाजार पर निर्भर है? तब कंपनी के मालिक ने कहा कि अश्वगंधा के लिए हम पहले बाजार पर निर्भर थे पर पिछले 10 सालों से हम अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं अपने खुद के फार्म में ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की संभावना न हो। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपके साथ वे विशेषज्ञ आए हैं जो कि अश्वगंधा की खेती का कार्य संभालते हैं? कोई एग्रोनॉमिस्ट₹ तो उन्होंने कहा कि हम कल सुबह ही उन विशेषज्ञ को बुलवा लेंगे। मैंने उनसे कहा कि जब वे आएं तो अपने साथ में अश्वगंधा के खेत की पूरी तस्वीर लेकर आए और जड़ सहित अश्वगंधा का पौधा भी लेकर आएं। इस तरह हमारी मीटिंग समाप्त हुई और दूसरे दिन सुबह फिर बैठकर चर्चा करने का निश्चय कर सब वापस लौट गए। अश्वगंधा के खेतों का वीडियो तो रात को ही मेरे पास आ गया था जिससे समस्या का समाधान नजर आने लगा था पर समस्या के कारण की पुष्टि उस समय हुई जब मैंने अश्वगंधा के पौधों को देखा जो कि देखते ही बीमार नजर आते थे। उनमें किसी तरह के रोग का आक्रमण तो नहीं था पर ऐसा लगता था कि किसी पोषक तत्व की अधिकता के कारण ऐसे लक्षण आ रहे हैं। ये लक्षण पत्तियों पर साफ दिख रहे थे और जड़ों को देखने से इस बात की पुष्टि हो गई कि ये किसी पोषक तत्व की विषाक्तता के लक्षण है। जब मैंने इन पौधों से तैयार अश्वगंधा के चूर्ण को चखा तो लगा कि इसमें विकृति आ गई है। जब कंपनी के मालिक और उनकी टीम मुझसे मिलने आई तो मैंने उनसे कहा कि मुझे ये जिंक टाक्सीसिटी के लक्षण दिखते हैं। अब आपको यह पता करना होगा कि जिंक पौधों तक इतनी अधिक मात्रा में किस रूप में पहुंच रहा है? क्या जमीन से जिंक इतनी अधिक मात्रा में आ रहा है या किसी विशेष माइक्रोन्यूट्रिएंट उत्पाद का अधिकता से प्रयोग कर रहे हैं जिसके कारण ऐसे लक्षण आ रहे हैं। मैंने उन्हें कहा कि यदि आप जिंक का प्रयोग संतुलित कर देंगे तो आपके अश्वगंधा का यह दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। फिर आप स्वतंत्र होकर अपने उत्पाद में इसका प्रयोग कर सकेंगे। मुझे विश्वास है कि इससे रोगियों को किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होगी। उन्होंने आभार व्यक्त किया और उनकी टीम वापस लौट गई। वापस जाकर उन्होंने अपने फॉर्म के सभी खेतों की जांच कराई और पौधों की भी अलग से जांच कराई तो उन्हें जिंक टॉक्सिसिटी का पता चला। जब उन्होंने यह जानने गहन जांच करवाई कि उनके फॉर्म में जिंक इतनी अधिक मात्रा में कैसे पहुंच रहा है तो पता चला कि किसी कंपनी वाले ने मैनेजर को पैसे देकर यह बताया था कि माइक्रोन्यूट्रिएंट का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से फसल का उत्पादन बढ़ जाएगा। मैनेजर को इस बात की खबर नहीं थी कि जिंक टॉक्सिसिटी जैसी भी कोई बात होती है। कंपनी के मालिक ने यह निश्चय किया कि वे पूरी फसल को ही नष्ट कर देंगे और फिर से अश्वगंधा की बुवाई करेंगे। इस बार मैनेजर को हटाकर दूसरे विशेषज्ञों की निगरानी में खेती की जाएगी। उन्होंने इन सब जानकारियों के साथ मुझसे संपर्क किया और पूछा कि क्या आपके संपर्क में कोई ऐसे किसान हैं जो कि जैविक तरीके से बिना किसी रसायन के प्रयोग से अश्वगंधा की खेती करते हैं। यदि आपके पास ऐसे किसानों के बारे में जानकारी है तो वह जानकारी हमें दें ताकि जब तक हमारी फसल तैयार नहीं होती है तब तक हम अपने उत्पाद में उन किसानों द्वारा उगाए गए अश्वगंधा का प्रयोग कर सकेंगे। मैंने उन्हें अपने किसानों का पता दिया। इस तरह एक जटिल समस्या का समाधान हुआ। सबसे अच्छी बात यह रही कि कंपनी के मालिक ने खुद पहल कर इस समस्या का पता लगाया अन्यथा आज बाजार में बहुत से ऐसे आयुर्वेद उत्पाद है जिनमें कई तरह के दोष है पर कंपनियों को इसकी कोई चिंता नहीं है और यही कारण है कि आयुर्वेद पर विश्वास करने वालों के साथ बड़ा धोखा हो रहा है। सर्वाधिकार सुरक्षित

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