Consultation in Corona Period-196
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"मेरे बड़े भाई कोविड-19 के मरीज रहे हैं। बड़ी मुश्किल से उनकी जान बची। उसके बाद उन्होंने कॉलेज से छुट्टी ले ली है और वह घर पर ही रहते हैं। हाल ही में उन्हें नर्वस सिस्टम की समस्याएं होनी शुरू हुई। जब मैंने अपने साथी चिकित्सकों से बात की तो उन्होंने जांच करके बताया कि कोविड-19 के बाद ऐसे ही लक्षण आते हैं और कोविड-19 से सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि भाई कोविड-19 प्रभावित है इसलिए अभी उनके पास ऐसे उपाय नहीं है जो कि कोविड-19 द्वारा किए गए नुकसानो की कैसे भरपाई की जाए इसकी जानकारी दे सकें। उन्होंने बड़े भाई को लक्षणों के आधार पर राहत पहुंचाने की कोशिश शुरू कर दी है पर उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। आपने कोविड-19 पर बहुत कुछ लिखा है और उन फाइटोमेडिसिंस के बारे में अनुसंधान किया है जो कि इस महामारी को रोकने में सक्षम है। आपके द्वारा सुझाए गए कई ट्रायल हमारे अस्पताल में चल रहे हैं और हमें अच्छे परिणाम मिल रहे हैं इसलिए मैंने सोचा कि एक बार बड़े भाई का केस आपके पास भेजा जाए और आपकी राय ली जाए।
आपके परामर्श अनुसार मैं अपने बड़े भाई को उनके एक चिकित्सक के साथ रायपुर भेज रहा हूं ताकि आप उनका परीक्षण कर उनकी समस्या का कोई कारगर उपाय बता सकें।" पश्चिम भारत के एक प्रसिद्ध कैंसर सर्जन ने जब यह संदेश भेजा तो मैंने उन्हें तुरंत ही पहचान लिया और उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। मैंने उनके भाई को अपॉइंटमेंट दे दिया और निश्चित समय पर वे मुझसे मिलने आ गए।
मैंने पहले ही जड़ी बूटियों का लेप तैयार रखा हुआ था। यह जड़ी बूटी का लेप उन मरीजों की जांच करने के लिए तैयार किया जाता है पारंपरिक चिकित्सा में जिन्हें कि वायरस रोगों के बाद होने वाली समस्याएं रहती हैं। इसी की सहायता से पारंपरिक चिकित्सक कुछ पलों में ही जान जाते हैं कि समस्या का मूल कारण क्या है और कौन सा अंग प्रभावित हुआ है। वहीं यह भी जान जाते हैं कि अभी मरीज की जीवनी शक्ति कैसी है और उसके विभिन्न स्रोत कितने खुले हुए हैं। उस आधार पर वे फंक्शनल फूड का अनुमोदन करते हैं और इस तरह समस्या का समाधान हो जाता है।
यही प्रक्रिया मैंने भी अपनाई। जब परीक्षण समाप्त हुआ और उनके शरीर में प्रतिक्रिया आने लगी तो यह बात स्पष्ट हो गई कि उनको आने वाले लक्षण किसी वायरस के कारण नहीं आ रहे थे अर्थात उनकी समस्या का मूल कारण कोविड-19 के बाद आने वाली समस्या नहीं थी। जिस तरह की प्रतिक्रिया शरीर व्यक्त कर रहा था उससे लग रहा था कि शरीर में किसी तरह का विष मौजूद है। यह आश्चर्य में डालने वाली बात थी क्योंकि सर्जन महोदय ने उनके द्वारा प्रयोग की जा रही दवाओं की जो सूची मुझे भेजी थी वह पूरी तरह से सुरक्षित थी। उसमें कोई ऐसी दवा नहीं थी जिससे कि विषाक्तता हो और शरीर को इस तरह से नुकसान हो।
मैंने उनके बड़े भाई की अनुमति से फिर से एक और परीक्षण किया यह जानने के लिए कि उनके शरीर में कौन सा विष मौजूद है। परीक्षण से जल्दी ही उस विष का पता चल गया और मैंने सर्जन महोदय को फोन कर कहा कि आपके बड़े भाई के शरीर में पारे की उपस्थिति है। पारा यानी मरकरी और ऐसा लगता है कि पारा सल्फर के साथ मिलकर उनके शरीर में मरक्यूरिक सल्फाइड के रूप में भी फैल रहा है। मैंने उनसे यह भी कहा कि क्या आपने मुझे सभी दवाओं की सही सूची भेजी है या किसी तरह की जानकारी आप मुझसे छुपा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जानकारी छुपाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। जब मैंने उनसे कहा कि मरक्यूरिक सल्फाइड का प्रयोग आयुर्वेद की दवाओं में और चीनी दवाओं में किया जाता है पीढ़ियों से। तब आयुर्वेद की दवाओं का नाम सुनकर उन्होंने झट से कहा कि मैंने आपको जो सूची भेजी है वह आधुनिक दवाओं की है। बड़े भाई न केवल आयुर्वेदिक बल्कि कुछ तिब्बती दवाओं का प्रयोग भी कर रहे हैं। मैं जल्दी ही आपको उन दवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी भेजता हूं। मैंने उनसे कहा कि आपको पूरी सूची भेजने की जरूरत नहीं है। मैं आयुर्वेदिक दवाओं और चीनी दवाओं की एक सूची भेज रहा हूं। आप ही यह चेक करके बताएं कि इनमें से कोई दवा आपके बड़े भाई तो नहीं ले रहे हैं। जल्दी ही सर्जन महोदय का फिर से फोन आया और उन्होंने बताया कि आपके द्वारा भेजी गई सूची में से एक दवा ऐसी है जिसका प्रयोग बड़े भाई कर रहे हैं लंबे समय से।
उन्होंने बताया कि जब से चीन में कोविड-19 शुरू हुआ तब से लगातार बिना किसी अंतराल के बड़े भाई इस दवा का प्रयोग कर रहे हैं।
उस दवा का नाम था श्वास कुठार रस जो आयुर्वेद की एक प्रसिद्ध दवा है और श्वास रोगों के लिए रामबाण की तरह काम करती है। इसमें मरकरी के अलावा सल्फर का भी प्रयोग किया जाता है पर पीढ़ियों से इसका उपयोग सुरक्षित औषधि के रूप में किया जा रहा है फिर इसके उपयोग से सर्जन के बड़े भाई को इतने घातक लक्षण क्यों आ रहे थे? यह विचारणीय विषय था। भारत के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि श्वास कुठार रस का प्रयोग करने से इस बात की संभावना है कि कोरोनावायरस का प्रभाव उन पर अधिक न हो। इस घोषणा के बाद से अचानक ही इस आयुर्वेद उत्पाद की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। बड़ी कंपनियां दशकों से इस फार्मूले को बना रही है और उन्हें मालूम है कि इसके शोधन की सही विधि क्या है पर बहुत सी ऐसी नई कंपनियां भी है जिन्हें इस दवा को बनाने के दौरान अपनाई जाने वाली शोधन पद्धतियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
जब बाजार में इस दवा की मांग बढ़ती गई और उन पर दबाव बढ़ता गया तो उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और बिना सही शोधन के इस दवा को बाजार में पहुंचा दिया। दुर्भाग्य से सक्षम अधिकारियों ने इसकी जांच नहीं की। इस ओर ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा बहुत से वैद्य भी बाजार में बढ़ती हुई मांग को देखते हुए अपने स्तर पर इस दवा का निर्माण करने लगे और अपने मरीजों को देने लगे। इससे बहुत तरह की समस्याएं आम लोगों को होने लगी पर सबने यही सोचा कि यह कोरोनावायरस के कारण हो रहा है। सारा दोष इसी वायरस पर मढ़ दिया गया जबकि लक्षणों की जब सूक्ष्मता से जांच की जाती है तो पता चलता है कि यह मर्करी की विषाक्तता के कारण हो रहा है।
यह असर उन लोगों पर अधिक दिखा जो कि बिना किसी अंतराल के लंबे समय तक बिना किसी चिकित्सकीय सलाह के इस दवा को सुरक्षित मानकर प्रयोग कर रहे हैं। आयुर्वेद के शास्त्रीय ग्रंथों में यह लिखा है कि इसका कितने समय तक प्रयोग करना है और कितनी मात्रा में करना है। इसके लंबे प्रयोग का अनुमोदन तो पारंपरिक चिकित्सक भी नहीं करते हैं। उन्हें मालूम है कि इसकी अधिक मात्रा शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकती है।
बहुत से विशेषज्ञ इस दवा के साथ दूसरी दवाओं का सहारा लेते हैं जिससे कि शरीर के महत्वपूर्ण अंग खराब न हो और उन पर इस दवा का बुरा असर न पड़े। मेरी बात सुनकर सर्जन बड़े आश्चर्य में पड़ गए और उन्होंने पूछा कि इतने लंबे समय तक बड़े भाई ने इस दवा का प्रयोग किया है बिना किसी डॉक्टर की सलाह के, केवल इंटरनेट पर पढ़कर। क्या आपके पास इस विषाक्तता को दूर करने का कोई उपाय है?
मैंने उनसे कहा कि सबसे जरूरी तो यह है कि आपके बड़े भाई तुरंत ही इसका प्रयोग करना बंद कर दें और किसी सक्षम आयुर्वेद चिकित्सक के पास जाकर उनकी सलाह के अनुसार उनके द्वारा बताई गई मात्रा में ही इस दवा का प्रयोग करें यदि जरूरी हो तो। आधुनिक और पारंपरिक दोनों ही चिकित्सा पद्धतियों में ऐसे बहुत सारे उपाय हैं जिनके प्रयोग से शरीर में पारे की उपस्थिति को धीरे-धीरे ही सही पर कम किया जा सकता है।
आपको इन उपायों को आजमाना होगा। इससे आपके भाई कुछ समय में ही नर्वस सिस्टम की सभी समस्याओं से पूरी तरह से मुक्त हो जाएंगे।
मैंने उन्हें यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक कई तरह के मेडिसनल राइस से बने व्यंजनों का प्रयोग करते हैं। मैं इन व्यंजनों की सूची और मेडिसनल राइस आपके पास भेज रहा हूं। आप अपने भाई को कहे कि वे अपने नियमित भोजन में इन व्यंजन को शामिल कर लें। इससे भी उन्हें पारा और सल्फर की विषाक्तता को दूर करने में मदद मिलेगी। उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।
मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी।
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