Consultation in Corona Period-182

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हर साल जनवरी का महीना मेरे लिए नर्क तुल्य हो जाता है विशेषकर 10 जनवरी से लेकर 25 जनवरी तक का समय। इस समय इतनी सारी स्वास्थ समस्याएं होती हैं कि मेरी हालत बहुत खराब हो जाती है। सबसे बड़ी समस्या पेशाब करने में होती है। पेशाब रुक-रुक कर आने लग जाती है और पेशाब करते समय बहुत दर्द भी होता है। जब पिछली बार मैंने इस समय अपनी जांच करवाई तो विशेषज्ञों ने बताया कि आपकी किडनी में सूजन है और इसकी स्थिति बहुत खराब होती जा रही है पर आश्चर्यजनक रूप से फरवरी के आने पर जब मैंने फिर से परीक्षण कराया तो किडनी पूरी तरह से ठीक थी और पेशाब की मुझे कोई भी समस्या नहीं हो रही थी। इसका मतलब यही है कि जनवरी में ही मेरी तबीयत खराब होती है और फिर साल भर पूरी तरह से ठीक रहती है।

 मुझे किसी भी प्रकार की पुरानी बीमारी नहीं है। मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं। योगासन करती हूं और अपने खानपान का पूरा ध्यान रखती हूं। किसी भी तरह के आयोजनों से मैं पूरी तरह से दूर हूं। मैं अविवाहित हूं और एक आईटी प्रोफेशनल हूं। मेरा जन्म बंगलुरु में हुआ पर मैं अभी अपने जॉब के सिलसिले में मध्य भारत में रहती हूं और पिछले 8 सालों से मध्य भारत में ही रह रही हूं। मैंने आपके बारे में इंटरनेट पर पढ़ा इसलिए मैंने परामर्श के लिए आपसे समय लिया है। अगले कुछ दिनों में फिर जनवरी का महीना शुरू होने वाला है और मैं बुरी तरह से घबराई हुई हूँ। कहीं मेरी हालत फिर से वैसी हो गई तो मैं क्या करूंगी?" दिसंबर 2019 में एक 30 वर्षीय युवती ने मुझसे संपर्क किया और परामर्श के लिए समय मांगा। 

उसकी समस्या बड़ी ही विचित्र थी जो कि साल में केवल जनवरी के महीने में ही उग्र हो जाती थी। जब उसने अपनी रिपोर्ट भेजी तो मैं आश्चर्य में पड़ गया। उसने दसों स्थानों पर अपनी जांच करवाई थी और करीब 50 से अधिक चिकित्सकों से मुलाकात की थी और उनसे दवाईयाँ ली थी पर जनवरी माह में होने वाली समस्याओं को या कहें इस समस्या के मूल कारण को कोई भी नहीं जान पा रहा था। मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा। मुझे अपने खानपान के बारे में विस्तार से जानकारी दो विशेषकर उस खानपान के बारे में जो कि जनवरी में विशेष तौर पर लिया जाता है। मैंने उसके द्वारा ली जा रही दवाओं के बारे में भी अध्ययन किया पर मुझे पता चला कि वह केवल जनवरी के महीने में ही दवाओं का सेवन करती है फिर साल भर उसे समस्या नहीं रहती है इसलिए वह इन दवाओं का सेवन पूरी तरह से रोक देती है। इसलिए लंबे समय के ड्रग इंटरेक्शन का कोई मामला नहीं बनता था।

 मैंने उससे रायपुर आने को कहा और फिर जब मैंने जड़ी बूटियों का लेप उसके तलवों पर लगाकर परीक्षण किया तो स्थिति कुछ-कुछ साफ होने लगी।

 मैंने उसे बताया कि विशेष तरह का परहेज करने से उसकी स्थिति पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। उसमें साफ शब्दों में कहा कि वह किसी भी तरह का परहेज नहीं कर सकती है। भोजन में उसे विशेष रूचि है। बाकी कुछ और कहे तो वह करने को तैयार है पर वह भोजन में कटौती नहीं कर सकती है। 

मैंने प्रश्न किया कि क्या जनवरी में केवल पेशाब की समस्या होती है या जीभ में भी छाले हो जाते हैं? उसने बताया कि हां, जीभ में छाले हो जाते हैं जो किसी भी तरह से ठीक नहीं होते हैं। उसने विटामिन बी से लेकर शहद तक का प्रयोग किया पर किसी भी तरह से ये छाले ठीक नहीं होते हैं। फरवरी के बाद यह छाले अपने आप ठीक हो जाते हैं।

 मैंने पूछा कि क्या जनवरी में पेट भी बहुत गड़बड़ रहता है बार-बार मरोड़ होती है और दस्त होते हैं तो उसने कहा कि हां, ऐसा ही होता है। 

मैंने पूछा कि जनवरी के महीने में Urticaria जैसे लक्षण भी आते हैं और शरीर में बहुत ज्यादा खुजली होती है तो उसने सहमति जताई। 

मैंने कहा कि क्या उस दौरान दोनों आंखों से दिखना थोड़ा कम हो जाता है या आंखों से धुंधला दिखाई देने लग जाता है। तब उसने कहा कि उसने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। इसका मतलब यह था कि यह समस्या उतनी विकट नहीं थी जितनी कि मैं समझ रहा था। 

मैंने उसे एक विशेष प्रकार का मेडिसिनल राइस दिया और कहा कि वह जनवरी के महीने में इसका प्रयोग करें और फिर मुझे बताएं कि इस बार उसकी हालत कैसी रही? 

उससे साफ शब्दों में कहा कि इसके साथ किसी तरह के परहेज करने की आवश्यकता नहीं है पर उसे काले तिल के लड्डू का प्रयोग पूरी तरह से रोकना होगा। अगर वह काले तिल के लड्डू का प्रयोग करेगी तो इस मेडिसिनल राइस का असर कम हो जाएगा और उग्र लक्षण फिर से उभर जायेंगे। इससे उसका जीना हराम हो जाएगा पिछले सालों की तरह। 

उसने कहा कि काले तिल के लड्डू उसे विशेष रूप से पसंद है और इसके लिए वह मकर संक्रांति का साल भर इंतजार करती है पर इस बार उसने मुझे आश्वस्त किया कि वह किसी भी हालत में काले तिल के लड्डू का प्रयोग नहीं करेगी और हो सकेगा तो तिल के लड्डू का ही प्रयोग नहीं करेगी। 

मैंने उससे कहा कि मैंने काले तिल की बात की है सफेद तिल की नहीं। सफेद तिल के लड्डू का प्रयोग वह काले तिल के लड्डू के स्थान पर कर सकती है। इससे मेडिसिनल राइस के असर पर किसी भी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उसने कहा कि यह तो अच्छी बात है। कम से कम मुझे लड्डू खाने को तो मिलेंगे।

 फरवरी 2020 में उसने फिर से संपर्क किया और परामर्श के लिए समय मांगा। जब उससे फोन पर बात हुई तो उसने बताया कि इस साल बहुत सालों के बाद उसे किसी भी तरह की समस्या नहीं हुई। न ही किडनी में किसी तरह की समस्या हुई न ही खुजली की समस्या। पूरी जनवरी वह वैसे ही रही जैसे कि वह साल भर रहती है।

 उसने पूछा कि क्या उसे मेडिसिनल राइस का प्रयोग अब साल भर करना चाहिए ताकि पूरे जीवन में कभी इस तरह के लक्षण न आए? 

मैंने खुलासा किया कि तुम्हारी तबीयत को ठीक करने के लिए मेडिसिनल राइस ने कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई है। इसके साथ जो तुमने परहेज किया था उसने तुम्हें इस तरह के उग्र लक्षणों से बचा कर रखा। 

मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि सफेद तिल की तुलना में काले तिल को अधिक अच्छा माना जाता है और यही कारण है कि काले तिल की बाजार में बहुत मांग है। इस मांग की पूर्ति करना बाजार के लिए संभव नहीं है इसलिए सफेद तिल को काले रंग से रंगा जाता है और सफेद तिल को ही काला तिल बताकर ऊंची कीमत पर बेचा जाता है।

 अगर तुम काले तिल को पानी में डुबोकर रातभर रखोगी तो तुम्हें काली स्याही जैसा पदार्थ पानी में तैरता हुआ दिखेगा। यह एक तरह का केमिकल डाई है। इसका लंबे समय तक उपयोग करने से कैंसर जैसे विकट रोग हो सकते हैं। रंगा हुआ काला तिल खुलेआम बाजार में मिलता है और कोई भी इस भ्रष्टाचार की जांच नहीं करता है। जब यह रसायन जनवरी के महीने में विशेषकर मकर संक्रांति के आसपास लोगों के शरीर में अधिक मात्रा में पहुंचता है तो उसी तरह के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिस तरह के लक्षणों तुम्हें आ रहे थे। उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं होता कि ये सारे लक्षण काले तिल के लड्डू के कारण आ रहे हैं। वे सोचते हैं कि काले तिल से बहुत अधिक लाभ होता है इसलिए वे पूरा दोष किसी दूसरी खाद्य सामग्री पर डाल देते हैं। अगर बाजार से काले तिल के लड्डू न खरीदे गए तो भी जो काला तिल बाजार से खरीदा जाता है उसमें भी काला रंग होता है और यदि उस काले तिल से घर में ही लड्डू बनाए जाए तो वे भी वैसे ही नुकसान करते हैं। 

 तुमने इस बार काले तिल का प्रयोग नहीं किया इसलिए तुम्हें घातक लक्षण नहीं आए। आजकल कोल्ड प्रेस्ड ऑयल का फैशन चल पड़ा है। हर कोई काले तिल के तेल का उपयोग करना चाहता है। इस तेल की भी अगर सूक्ष्मता से जांच की जाए तो इसमें भी काले रंग की केमिकल डाई का उपयोग किया जाता है और लोग निश्चिंत रहते हैं कि यह ऑर्गेनिक विधि से उगाई गई काले तिल की फसल का उत्पाद है। 

चीन में जब लोग बड़ी संख्या में काले तिल के सेवन से बीमार पड़ने लगे तब वहां की सरकार का ध्यान इस ओर गया और उसने कड़े कदम उठाए ताकि तिल में काले रंग की मिलावट न की जा सके। हमारी सरकारें अभी तक जागी नहीं है। यह जन स्वास्थ के लिए बहुत बड़ा खतरा है जिसे सब कुछ जान कर भी अनदेखा किया जा रहा है और हर साल तुम्हारे जैसे असंख्य  लोग इस मिलावट के शिकार हो रहे हैं। 

उसने मुझे धन्यवाद दिया। उसे यह जानकर आश्चर्य हो रहा था कि कैसे काले तिल के लड्डू के प्रयोग से उसकी इतनी बुरी हालत हो रही थी कि उसे लग रहा था कि वह अब ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है।

 मैंने उसे कहा कि मेरे संपर्क में बहुत सारे किसान हैं जो कि काले तिल की खेती करते हैं और उन्हें सही कीमत नहीं मिल पाती है। यदि तुम चाहो तो तुम सीधे ही उनके पास से काले तिल एकत्र कर सकती हो और फिर घर में लड्डू बना सकती हो। उसने इस बात पर खुशी व्यक्त की और कहा कि उसे किसानों से सीधे काले तिल लेने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं है। 

मैंने उसे एक सामान्य सा सिद्धांत समझाया कि देश में ज्यादातर लोग जिस सामग्री का प्रयोग करें विशेषकर खाद्य सामग्री का उस खाद्य सामग्री के प्रयोग से पूरी तरह से बचना चाहिए क्योंकि उसकी पूर्ति बाजार नहीं कर पाता है और इसीलिए फिर वह उसमें मिलावट करना शुरू करता है जिससे जन स्वास्थ को बहुत बड़ी हानि होती है। मिलावटी शहद का उदाहरण हम सब के सामने है।

इस तरह एक और जटिल समस्या का समाधान हो गया।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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