Consultation in Corona Period-189
Consultation in Corona Period-189
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"Fulminant hepatitis का केस है। मेडिकल इमरजेंसी है। यह एक हाई प्रोफाइल केस है। हमारी टीम दिल्ली से 1 घंटे के अंदर रवाना हो रही है। हम आपको रायपुर से ले लेंगे। आप बारह बजे एयरपोर्ट पर पहुंच जाएंगे। वहां से हम उत्तर भारत की ओर से फिर से चलेंगे जहां कि मरीज की हालत बहुत नाजुक है। आप अपने साथ इमरजेंसी मेडिसिंस रख लीजिएगा। आपका पूरा यात्रा व्यय और आपकी फीस हमारा शोध संस्थान देगा।
रात को बारह बजे जब यह संदेश आया तो मैं गहरी नींद में था। जब मैं सुबह साढ़े तीन बजे उठा तब मैंने यह संदेश पढ़ा और उसी समय उनको जवाब दिया कि मैं आपके साथ जाने को तैयार हूं और ग्यारह बजे ही एयरपोर्ट पर पहुंच जाऊंगा। मैंने केस के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी ताकि मैं उसके हिसाब से आवश्यक सामग्री अपने साथ रख सकूं पर जिन्होंने संदेश भेजा था उन्होंने कहा कि अभी पूरी जानकारी उनके पास नहीं है। सारी जानकारी वही जाकर पता चलेगी।
उनका संदेश पाकर मैंने अंदाज से कुछ वनस्पतियां रख ली और 12-13 किस्म के मेडिसिनल राइस रख लिए। निश्चित समय पर उनका विमान आ गया और हम उत्तर भारत की ओर रवाना हो गए।
इस हाई प्रोफाइल केस में कई चिकित्सक अपनी सेवाएं दे रहे थे। हमारे वहां पहुंचते ही आरंभिक परिचय के बाद लंबी परिचर्चा शुरू हुई जिसमें इस केस के बारे में चिकित्सकों ने बताया। मैंने सभी रिपोर्ट देखी। फिर मरीज को सामने से देखा। अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ अलग-अलग सलाह दे रहे थे। वे एक मत नहीं थे।
इन विशेषज्ञों के सामने मैंने चुप रहना ही पसंद किया और परिचर्चा में भाग नहीं लिया। मुझे बताया गया कि मरीज को तीन चार महीने पहले कोविड-19 की समस्या हो चुकी है और बड़ी मुश्किल से उसकी तबीयत ठीक हुई है। उसके बाद एक बार फिर से जब कोविड-19 के लक्षण आने लगे तो उसने एक दवा का प्रयोग करना शुरू किया है। अभी उसे कोविड-19 नहीं है।
बहुत से चिकित्सक कह रहे थे कि लीवर की बिगड़ती हालत के लिए कोविड-19 जिम्मेदार है और लक्षणों के आधार पर चिकित्सा करने की जरूरत है। क्योंकि यदि यह कोविड-19 के कारण है तो इसकी कोई चिकित्सा नहीं है। लक्षण के आधार पर पहले ही चिकित्सक उस मरीज की चिकित्सा कर रहे थे पर उसकी हालत में किसी भी तरह का सुधार नहीं हो रहा था।
पहले उसके परिजन उसे दिल्ली शिफ्ट करना चाहते थे पर दिल्ली के डॉक्टरों ने जब कहा कि वे उनके शहर आने को तैयार हैं तो उन्होंने यह इरादा छोड़ दिया। उसके परिजनों ने यह भी बताया कि वे दुनिया भर के चिकित्सकों से संपर्क कर रहे हैं और दुनिया भर के चिकित्सकों ने उम्मीद जताई है कि मरीज की उम्र मात्र 30 वर्ष है इसलिए सुधार की प्रबल संभावनाएं हैं पर वे यह भी मान रहे थे कि समय बहुत कम है और जल्दी ही सही चिकित्सा शुरू करने की आवश्यकता है।
जब मुझसे मेरे विचारों के बारे में पूछा गया तो मैंने कहा कि मैं जड़ी बूटियों का लेप लगाकर परीक्षण करना चाहता हूं। उसके बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा। ज्यादातर चिकित्सक इस बात के लिए तैयार हो गए। पर कुछ चिकित्सकों ने कहा कि इस तरह का लेप लगाने से यदि मरीज को किसी तरह की समस्या हुई तो सब मुश्किल में पड़ जाएंगे। मैंने उन्हें दूसरा उपाय सुझाया और कहा कि यदि वे अनुमति दे तो केवल हाथ के अंगूठे में जड़ी बूटी का लेप लगाकर भी परीक्षण किया जा सकता है कि उसे इस तरह की समस्या क्यों हो रही है।
इस पर सभी एकमत हो गए और जब मैंने परीक्षण किया तो कुछ-कुछ स्थिति साफ होने लगी। परीक्षण से जिस कारक के कारण ऐसे लक्षण आ रहे थे उसका तो पता चला पर जब उसके खानपान और उसके द्वारा ली जा रही दवाओं का अध्ययन किया गया तो उसमें यह कारक मौजूद नहीं था इसलिए निश्चित तौर पर कह पाना मुश्किल था कि इसी कारक के कारण उसकी इस तरह की समस्या हो रही है।
जब मैंने चिकित्सकों के सामने यह खुलासा किया किया कि यह सोलेनेसी परिवार के किसी पौधे के कारण हो रही विषाक्तता है तो उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया और कहा कि सोलेनेसी परिवार के किसी पौधे का किसी भी रूप में इस युवक द्वारा प्रयोग नहीं किया जा रहा है। ऐसे में उसे इस तरह के लक्षण कैसे आ रहे हैं?
मेरा ध्यान उस दवा पर था जो कि उसे कोविड-19 के लिए दी जा रही थी। जब मैंने उस दवा पर अपना ध्यान केंद्रित किया तो मुझे बताया गया कि उनके शहर में एक युवा वैज्ञानिक है जिन्होंने इस दवा की खोज की है और अब वे इसका पेटेंट कराने की तैयारी में है। उसके परिजनों ने मुझे अखबारों की कटिंग भी दिखाई जिसमें कि छपा था कि शहर के एक वैज्ञानिक ने कोविड-19 की दवा खोज ली है और राष्ट्रीय स्तर पर उसे जल्दी ही मान्यता मिलने वाली है।
मैंने उन युवा वैज्ञानिक से बात करने में दिलचस्पी दिखाई और जब उन वैज्ञानिक से बात हुई तो उनने मुझे पहचाना पर साफ शब्दों में कहा कि अभी सारी प्रक्रिया पेटेंट पर अटकी हुई है इसलिए वे किसी भी हालत में इस दवा के घटकों के बारे में जानकारी नहीं दे सकते है।
मैंने उन वैज्ञानिक से यह कहा कि क्या आप भारत सरकार की अनुमति के बाद ही इस तरह की दवाएं अपने शहर के लोगों को दे रहे हैं तब उन्होंने कहा कि इस पर क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने वाले हैं पर यह फार्मूला इतना अधिक प्रभावी है कि मैं बिना अनुमति के ही इसे शहर के उन लोगों को दे रहा हूं जो कि कोविड से ग्रसित हो चुके हैं या जिन्हें इससे प्रभावित होने की संभावना है। मैंने उनसे कहा कि यह सही कदम नहीं है। पहले क्लिनिकल ट्रायल हो जाएं और जब यह पूरी तरह से सुरक्षित घोषित हो जाए उसके बाद ही किसी को देना सही होगा। यह नैतिक और कानूनी दोनों ही रूप से सही नहीं है।
मैंने उनसे कहा कि यदि आप इस फार्मूले के घटकों के बारे में नहीं बताना चाहते तो केवल यही बता दीजिए कि क्या इसमें सोलेनेसी परिवार की किसी वनस्पति का प्रयोग किया गया है तब उन्होंने कहा कि हां, इसमें मुख्य घटक के रूप में सोलेनेसी परिवार की एक वनस्पति है जोकि बहुत जहरीली है। जहरीली वनस्पति की बात सुनकर मेरे ध्यान में धतूरे का नाम आया और मैंने अनायास ही पूछ लिया कि क्या उन्होंने धतूरे का उपयोग किया है तब उनने स्वीकार किया कि यह फार्मूला धतूरे पर आधारित है और आप इसे किसी को भी नहीं बताएंगे। कोरोना का आकार माइक्रोस्कोप में धतूरे के फल की तरह दिखता है इसलिए उन्होंने धतूरे के प्रयोग से एक फार्मूला तैयार किया है जिसका प्रयोग वे मरीज पर कर रहे हैं।
इतनी बात पता चलने पर मैंने पूछ ही लिया कि धतूरा का उपयोग करने से पहले उनने किसी तरह के शोधन का सहारा लिया है? क्या उन्हें शोधन के बारे में कुछ जानकारी है? तब उन वैज्ञानिक ने कहा कि वे वनस्पति विज्ञान का छात्र हैं। उन्हें मेडिकल साइंस के बारे में जानकारी नहीं है। न ही इस बारे में जानकारी है कि धतूरे का शोधन कैसे किया जाता है? उनने तो धतूरे का रस निकाला और उसमें कुछ दूसरी वनस्पतियां मिलाकर एक फार्मूला तैयार कर लिया और उसे पेटेंट के लिए भेज दिया। उन्होंने यह भी बताया कि इस पेटेंट के लिए उनके प्रोफेसरों ने उनकी मदद की पर किसी ने भी इस फार्मूले को प्रयोग करके नहीं देखा। बस यह दावा करते रहे कि इससे कोविड-19 की समस्या का समाधान हो सकता है।
यह घोर लापरवाही का मामला था। मेरे बार-बार कहने पर उन युवा वैज्ञानिक ने कहा कि देश भर में बहुत सारे वैज्ञानिक ऐसे ही दवा बनाकर बिना किसी क्लिनिकल ट्रायल के कोरोनावायरस प्रभावितों को दे रहे हैं। उनकी देखा देखी मैंने भी यह किया। मुझे यह बिल्कुल भी नहीं मालूम था कि धतूरा का इस तरह से प्रयोग जानलेवा साबित हो सकता है।
उन युवा वैज्ञानिक की बात खत्म होने पर मैंने मरीज की चिकित्सा कर रहे चिकित्सकों को पूरी घटना का ब्यौरा दिया। मेरी बात सुनकर सभी उन वैज्ञानिक परीक्षणों में जुट गए जिससे कि यह सिद्ध हो सके कि उस मरीज पर धतूरे का बुरा प्रभाव हो रहा था। कुछ ही घंटों में इन परीक्षणों के परिणाम सामने आ गए और सभी इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि धतूरे की विषाक्तता के कारण ही लीवर की हालत बहुत तेजी से बिगड़ रही थी। दिल्ली के जिस शोध संस्थान ने मुझे आमंत्रित किया था उनके वैज्ञानिकों ने पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसा पारंपरिक उपाय है जिसकी सहायता से धतूरे के इस प्रभाव को घटाया जा सके बहुत कम समय में? मैंने कहा कि आपने मुझसे इमरजेंसी मेडिसिंस लेकर आने को कहा था पर इस युवक को जिस तरह के लक्षण आ रहे हैं उसके लिए मेरे पास एक ही प्रकार की वनस्पति है। इसके साथ एक और वनस्पति का प्रयोग होता है जो कि मेरे शहर में है। मेरे पास नहीं है पर मैं इसे आसपास के इलाकों में खोजने का प्रयास कर सकता हूं।
उनकी अनुमति मिलने के बाद मैंने गाड़ी ली और फिर शहर से बाहर निकल पड़ा। शहर से बाहर निकलते ही खाली मैदानों में मुझे काम की वनस्पति मिल गई और फिर मैंने चिकित्सकों को बताया कि इन दो तरह की वनस्पतियों को मिलाकर एक फार्मूला तैयार किया जा सकता है। इसमें मुख्य भूमिका भ्रमरमार नामक वनस्पति की होगी जबकि दूसरी वनस्पति भ्रमरमार के प्रभाव को बढ़ाने में सक्षम होगी।
50 एमजी की खुराक देने के 3 से 4 घंटे के अंदर ही सुधार दिखने लगेगा और 2 से 3 दिनों में इस युवक की हालत पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
मैंने उन चिकित्सकों से कहा कि लक्षणों के आधार पर उस युवक को जो चिकित्सा दी जा रही है उसे रोकना होगा। केवल प्राण बचाने के लिए किए जा रहे उपायों को ही जारी रखना होगा। काफी बहस के बाद चिकित्सक इस बात के लिए तैयार हो गए और जल्दी ही इस फार्मूले की मदद से धतूरे का जहरीला प्रभाव कम होता गया और लीवर ने ठीक से काम करना शुरू कर दिया।
जब मैं वापस लौट रहा था तब उस शहर के पुलिस अधीक्षक ने मुझसे संपर्क किया और बताया कि उस युवा वैज्ञानिक ने बिना किसी अनुमति के जिस दवा का प्रयोग किया था उससे शहर के बहुत लोग प्रभावित हुए हैं और उन्हें उसी तरह की समस्या हो रही है जो कि इस युवा मरीज को हो रही थी।
आम लोगों को इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि वैज्ञानिक द्वारा दी जा रही दवा के कारण उनकी ऐसी हालत हो रही थी। अधीक्षक साहब ने यह भी कहा कि वे अपनी ओर से कानूनी कार्रवाई कर रहे हैं पर उन्हें मेरी मदद की जरूरत है ताकि मैं उन प्रभावित लोगों की जान भी बचा सकूं।
मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। मैंने स्थानीय चिकित्सकों को दिशा निर्देश दिए और अपने शहर वापस आ गया।
यह मेरे लिए पहला मामला नहीं था। जनवरी 2019 से भारत में कोविड-19 की चिकित्सा करने का दावा करने वाले इतने लोग सामने आ गए हैं कि सोशल मीडिया इनके द्वारा बताए गए उपायों से भरा पड़ा है। किसी को इस बात की चिंता नहीं है कि उपाय कितने कारगर है और इनसे आम नागरिकों को कितना नुकसान हो रहा है। पहले के जमाने में जब सोशल मीडिया नहीं था तब ऐसी बातें अखबारों के माध्यम से सामने आती थी और अखबारनवीस बहुत सतर्क रहते थे। पूरी छानबीन के बाद ही ऐसी खबरों को प्रकाशित करते थे।
आज इस सोशल मीडिया के युग में जानकारी जंगल में आग की तरह फैल जाती है। आम लोग इन जानकारियों को सही मानकर तरह-तरह की दवाई लेते रहते हैं और अपनी जान को जोखिम में डालते रहते हैं। ये अच्छे लक्षण नहीं है।
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