Consultation in Corona Period-204
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"क्या दांतो को दोबारा उगाया जा सकता है" इस विषय पर मैंने आपका एक आलेख दिल्ली में पढ़ा था। उस समय मैं भारत में रहकर भारत के अध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी ले रहा था। मेरे गुरुजी ने कहा कि अब मुझे इसी विषय पर अपना जीवन लगा देना चाहिए। उनकी आज्ञा पाकर मैं आपसे मिलने की कोशिश करने लगा। एक बार मैं रायपुर भी आया पर आपसे मुलाकात नहीं हो सकी फिर मुझे आपके इस विषय पर बहुत सारे आर्टिकल मिलने शुरू हुए। उस आधार पर मैंने आरंभिक शोध आरंभ किया।
मैंने एक टीम बनाई और एक कंपनी की स्थापना की। बाद में जब आपने बॉटनिकल डॉट कॉम पर नियमित स्तंभ लिखना शुरू किया तब उस आधार पर मैंने भारत के पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने का क्रम शुरू किया। मुझे इस बात का एहसास था कि वे किसी अनजाने को इस महत्वपूर्ण विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं देंगे पर फिर भी मैंने कोशिश जारी रखी। जब भारत के पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने का क्रम खत्म हुआ तो मैं बांग्लादेश के पारंपरिक चिकित्सकों से मिला फिर नेपाल के और उसके बाद भूटान के। उसके बाद मैंने अपने देश का रुख किया। मेरा देश यानी दक्षिण अफ्रीका। वहां के पारंपरिक चिकित्सकों से मैंने बात की और इस तरह दुनिया भर में घूमते-घूमते इन वर्षों में मुझे इस विषय में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त हुई। इस आधार पर मैंने अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट लेकर इस पर क्लिनिकल ट्रायल शुरू किए। हमें लगातार असफलता मिलती रही पर हमने हार नहीं मानी।
आखिर एक फार्मूला हमें मिला जिसका प्रयोग मुंह में करने से दांत के कुछ हिस्से फिर से उग आते हैं। कोई हमारी बात मानने को तैयार नहीं था इसलिए हमने इस खोज के बारे में आम लोगों को बताने की बजाय उस फार्मूले से दवा के निर्माण का काम शुरू किया। अब निर्माण का काम अंतिम चरण में है और हम उसकी मार्केटिंग करने वाले हैं। हम बाजार में यह जानकारी बिल्कुल नहीं देंगे कि इससे दांत फिर से उगाए जा सकते हैं बल्कि इसे मुंह के लिए सेहतमंद फार्मूले के रूप में बेचेंगे। जब इससे दांत फिर से उगने लग जाएंगे, हमें थोड़ी भी सफलता मिलेगी तब हम वैज्ञानिकों को बता सकेंगे कि यह फार्मूला कितना कारगर है।
मैंने आपसे परामर्श के लिए समय अपने गले के कैंसर के लिए लिया है। यह कैंसर मुझे पिछले 3 सालों से है और सभी तरह के उपायों के करने के बाद भी यह तेजी से फैलता जा रहा है। मुझे नहीं लगता कि मेरे फार्मूले को जब दुनिया जानेगी तब तक मैं जीवित रह पाऊंगा। जब मैंने इंटरनेट पर कैंसर के विषय में जानकारी एकत्र करना शुरू की तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि आपने इस बीमारी पर विशेष अनुसंधान किया है। मैंने बिना किसी देरी के आपकी फीस जमा की और आपसे मिलने के लिए रायपुर आ गया। आप मेरा मार्गदर्शन करें।" दक्षिण अफ्रीका से आए इस शख्स को देखकर मैंने उनका स्वागत किया और उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।
मैंने उनकी पूरी रिपोर्ट देखी। मैंने उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही दवाओं के बारे में जानकारी एकत्र की। उनके द्वारा लिखी गई विशेष टिप्पणियों पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया। सभी विशेषज्ञों ने दवा देने पर जोर दिया था पर किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की थी कि यह कैंसर क्यों हुआ है और इसके पीछे कौन सा कारण जिम्मेदार है? अनुमति मिलने के बाद मैंने उन सज्जन के पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाया और प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा। जब प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई तो मुझे उनके बारे में बहुत सारी जानकारी मिलने लगी जिनके बारे में उन्होंने कुछ भी नहीं बताया था पर परीक्षण पूरी तरह से सफल नहीं हो रहा था।
उन्होंने बताया कि वे लंबा समय लेकर रायपुर आए हैं और कम से कम 1 सप्ताह तक रुक सकते हैं तब मैंने उनसे कहा कि आप विशेष तरह के मेडिसनल राइस का भोजन के रूप में प्रयोग करें 3 दिनों तक और उसके बाद फिर से परीक्षण कराए जिससे कि परिणाम अधिक स्पष्ट हो सके। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और उन्होंने मेडिसिनल राइस का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
3 दिन बाद जब उनका फिर से परीक्षण हुआ तो प्रतिक्रिया न केवल जल्दी आई बल्कि बहुत अधिक स्पष्ट थी। इस परीक्षण के परिणामों के बारे में मैंने उन्हें बताना शुरू किया। मैंने कहा कि आप दांतो को फिर से उगाने के लिए एक विशेष फार्मूले का प्रयोग कर रहे हैं। आपको लगता है कि इस फार्मूले को आपने विकसित किया है पर सच यह है कि यह देश के उत्तरी भागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं पारंपरिक चिकित्सकों का पारंपरिक ज्ञान है। इस फार्मूले के बारे में वे पीढ़ियों से जानते हैं पर सब कुछ जानने के बाद भी इसका प्रयोग दांतो को उगाने के लिए नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि इसमें बहुत अधिक विषाक्तता है और अगर इसका गलत प्रयोग किया गया तो प्रयोग करने की जान भी जा सकती है।
मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि इस फार्मूले में जिन तीन कन्दों का प्रयोग आप कर रहे हैं। उनमें से एक कन्द आप छत्तीसगढ़ से एकत्रित करते हैं या छत्तीसगढ़ के किसी पारंपरिक चिकित्सक से मंगाते हैं। उस कंद का नाम है भोकली कंद। इस कन्द का पारंपरिक चिकित्सा में बहुत ही कम उपयोग किया जाता है क्योंकि यह बहुत अधिक विषाक्त है। जब इसका ठीक से शोधन नहीं किया जाता है तो इसकी विषाक्तता के वैसे ही लक्षण आते हैं जैसे कि आपके गले में आ रहे हैं। ये लक्षण बता रहे हैं कि आपको गले का कैंसर इस वनस्पति के गलत प्रयोग के कारण हुआ है।
इसका शोधन बहुत कठिन है। साल में ज्यादातर दिन इसका शोधन किया जाता है और उसके बाद इसे मिट्टी के एक घड़े में बंद कर जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता है। 2 साल के बाद जब इसे निकाला जाता है तो फिर 1 साल तक इसके शोधन की प्रक्रिया चलती है। इतना समय और इतना धैर्य किसी के पास नहीं है कम से कम आज के युग में इसलिए भोकली कंद का प्रयोग आज की पारंपरिक चिकित्सा में बहुत कम होता है। आपने संभवत: इसके साथ दो और कन्दों का प्रयोग किया होगा। फिर एक लेप बनाया होगा। उस लेप को दांतों में या मुंह में लगाया होगा। इससे निश्चित ही दांतों के कुछ हिस्से उग जाते हैं पर कालांतर में कई तरह के कैंसर उत्पन्न हो जाते हैं।
आधुनिक चिकित्सकों को इस बात की खबर नहीं होती है क्योंकि उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा का अध्ययन नहीं किया होता है। वे इसे साधारण केस समझ कर इसका उपचार करते रहते हैं। उन्हें यह भी नहीं मालूम होता है कि उनकी कीमोथेरेपी की दवाएं इस फॉर्मूलेशन के साथ कैसे रिएक्ट करेंगी। अधिकतर मामलों में इनके बीच नकारात्मक रिएक्शन होता है और कैंसर कम होने की बजाय बहुत तेजी से फैलने लग जाता है। आपने मुझे नहीं बताया पर मुझे आपको देखकर ऐसा लगता है कि आप इस कंद का प्रयोग कम से कम 4 सालों से कर रहे हैं बिना किसी अंतराल के। यदि आप इस कन्द का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दें और फार्मूले को भी त्याग दें तो आप के कैंसर का तेजी से फैलना रुक सकता है और यदि आपको लंबे समय तक इसका एंटीडोट दिया जाए और आपकी जीवनी शक्ति को बढ़ाया जाए तो संभव है कि आप इस कैंसर से पूरी तरह से मुक्त हो जाएं।
वे सज्जन बड़े धैर्य से मेरी बातें सुनते रहे। उन्हें खुशी भी हो रही थी और दुख भी। खुशी इस बात की कि अब उनका कैंसर ठीक हो सकता था और दुख इस बात का कि जिस फार्मूले के पीछे उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया वह फार्मूला कैंसर जैसे घातक रोगों का कारण बनने वाला था। यह तो अच्छा हुआ जो उन्होंने किसी विशेषज्ञ से सलाह ले ली नहीं तो एक बार यदि यह फार्मूला बाजार में आ जाता और असंख्य लोग इससे प्रभावित हो जाते तो वे कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाते।
उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया और आश्वस्त किया कि वे अब इस फार्मूले का प्रयोग नहीं करेंगे और उनकी टीम के सदस्यों को भी इस बात की जानकारी देंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें इसके शोधन की विधियों में रुचि है और इसके लिए वे मुझसे अलग से परामर्श लेना चाहते हैं। मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और मेडिसिनल राइस पर आधारित कुछ व्यंजन उन्हें समझाये ताकि भोकली कंद का बुरा प्रभाव उनके शरीर से पूरी तरह से समाप्त हो सके। उन्होंने धन्यवाद दिया।
मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी।
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