Consultation in Corona Period-194

Consultation in Corona Period-194 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "50 की उम्र के बाद सेक्स की आवृत्ति बहुत कम कर देने के कारण भी प्रोस्टेट का कैंसर हो जाता है। इस बात को आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सा दोनों ही के विशेषज्ञ मानते हैं।" मैं मुंबई के एक शोध संस्थान में व्याख्यान दे रहा था। मेरा विषय था हर बार की तरह प्रोस्टेट कैंसर और इससे बचने के पारंपरिक तरीके। यह व्याख्यानमाला पिछले 20 सालों से चल रही है। मुझे साल में दो बार मुंबई जाना होता है और उन लोगों को संबोधित करना रहता है जो कि स्वस्थ होते हैं और जिनकी उम्र 40 से 45 के बीच होती है। इसी समय उन लोगों को बताया जाता है कि कैसे वे अपने स्वास्थ की थोड़ी सी देखभाल करके एक कठिन बुढ़ापे से बच सकते हैं। प्रोस्टेट की समस्या बुढ़ापे की एक गंभीर समस्या है और इसके कारण बुढ़ापा एक अभिशाप की तरह लगने लग जाता है। देर सबेर सभी को प्रोस्टेट की समस्या होनी ही है इसलिए जरूरी है कि समय रहते इसकी देखभाल की जाए ताकि उम्र बढ़ने पर किसी भी प्रकार की समस्या न हो और जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके। इस व्याख्यानमाला में देश के अलग-अलग हिस्सों के विशेषज्ञ आते हैं। उन्हें 1 घंटे का व्याख्यान देना होता है और फिर 1 घंटे जमकर चर्चा होती है प्रोस्टेट कैंसर के अलग-अलग पहलुओं पर मुझे इसके बाद एक अस्पताल जाना होता है जहां कि प्रोस्टेट कैंसर की अंतिम अवस्था में इससे जूझ रहे मरीजों से मिलना होता है फिर वहां की रिसर्च टीम को 2 घंटों तक संबोधित करना होता है। फिर वापसी उन श्रोताओं के बीच होती है पिछले साल जिन्होंने पारंपरिक चिकित्सा पर आधारित उपचार लेना शुरू किया था। उनकी प्रगति के बारे में बात होती है। इस व्याख्यानमाला में भाग लेने से इस बात की खुशी मिलती है कि नई पीढ़ी को प्रोस्टेट में रुचि है और सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें जो भी उपाय बताए जाते हैं वे नियमित रूप से करते हैं। श्रोता मुख्यत: व्यापार जगत से जुड़े हुए होते हैं और उनका एक ही प्रश्न रहता है कि बिजनेस के टेंशन के कारण उनके पास इतना अधिक समय नहीं होता है कि वे प्रोस्टेट के स्वास्थ के लिए विशेष तौर पर ध्यान दे सकें इसलिए उन्हें ऐसे भोजन की आवश्यकता है या कुछ समय के लिए ऐसी दवाओं की आवश्यकता है जिनकी सहायता से प्रोस्टेट की समस्या से साल भर बचा जा सकता है। वे चाहते हैं कि उन्हें 15 से 20 दिन का कोई शेड्यूल बताया जाए जिसे अपनाकर वे साल भर प्रोस्टेट की समस्या से बचे रहें। भारत की पारंपरिक चिकित्सा में ऐसे बहुत सारे शेड्यूल बनाए जाते हैं जो कि व्यक्ति विशेष के लिए होते हैं। एक शेड्यूल सभी लोगों के लिए काम नहीं आ पाता है। पारंपरिक चिकित्सक पहले व्यक्ति विशेष की जांच करते हैं। उनके पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाते हैं। फिर उसके आधार पर वे शेड्यूल तैयार करते हैं पर इसमें सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि उनके शेड्यूल में स्थानीय वनस्पतियों का विशेष तौर पर स्थान रहता है। वे जंगली फलों का उपयोग करते हैं जो कि कंक्रीट जंगल में मिलना बहुत मुश्किल है। इसलिए बड़े शहरों में रहने वाले लोग इन शेड्यूल के फायदे को देखते हुए भी इनका प्रयोग नहीं कर पाते हैं। यही कारण है कि अब युवा पीढ़ी के पारंपरिक चिकित्सकों के साथ मिलकर मैंने ऐसे बहुत सारे शेड्यूल तैयार किए हैं जिनमें प्रयोग होने वाली सामग्रियां शहर में आसानी से मिल जाती हैं और उन्हें उतना ही लाभ होता है जितना कि पारंपरिक शेड्यूल से लाभ होता है। इनमें से ज्यादातर शेड्यूल 25 दिनों के होते हैं जिन्हें साल में एक बार अपनाना होता है और इससे साल भर प्रोस्टेट का स्वास्थ ठीक से बना हुआ रहता है। मधुमेह के रोगियों के लिए अलग शेड्यूल बनाया जाता है जबकि ब्लड प्रेशर से प्रभावित लोगों के लिए बिल्कुल अलग ही शेड्यूल होता है। शहरों में रहने वाले आधुनिक लोग आजकल प्रचुरता से स्टीविया का उपयोग करते हैं अपने दैनिक जीवन में। पारंपरिक चिकित्सक स्टीविया को बड़ी संदिग्ध नजरों से देखते हैं और कहते हैं कि यह प्रोस्टेट के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है पर अभी आधुनिक विज्ञान ने इस पर कोई भी शोध नहीं किया है इसीलिए शहरों में रहने वाले आधुनिक लोग पारम्परिक चिकित्सकों की बात पर कम ध्यान देते हैं। इसके लिए पारंपरिक चिकित्सकों ने एक नया उपाय निकाला है। उन्होंने अपने शेड्यूल में कुछ ऐसी वनस्पतियों का प्रयोग किया है जो कि स्टीविया के लंबे समय तक प्रयोग करने से होने वाले हानिकारक प्रभाव को बहुत हद तक के कम कर देती हैं जिससे यह शेड्यूल अपने स्वाभाविक रूप से काम करता रहता है। मैंने अपने 30 वर्षों के अनुभव से 5000 से अधिक किस्म के ऐसे शेड्यूल के बारे में जानकारी एकत्र की है जिनका प्रयोग देश के अलग-अलग भागों के पारंपरिक चिकित्सक करते हैं। ज्यादातर शेड्यूल में देसी दवाओं का प्रयोग होता है पर बहुत से ऐसे भी शेड्यूल हैं जिनमें केवल भोजन सामग्रियों का ही प्रयोग होता है और इस तरह के शेड्यूल को ही शहर के लोग अपनाना पसंद करते हैं। उन्हें कुछ विशेष भोजन सामग्रियों से परहेज करने के लिए कहा जाता है और भोजन में कई प्रकार के मेडिसिनल राइस का समावेश कर दिया जाता है। इन शेड्यूल का प्रयोग 45 वर्ष की उम्र से शुरू होता है और फिर आजीवन चलता रहता है। जैसा कि मैंने पहले ही लिखा कि साल में केवल 25 दिन ही इन शेड्यूल को अपनाना होता है और इससे ही प्रोस्टेट की सुरक्षा होती रहती है। जब पारंपरिक चिकित्सक इस बात पर जोर देते हैं कि प्रोस्टेट की सुचारू कार्यप्रणाली के लिए सेक्स की आवृत्ति पहले जैसी ही रखनी है तो बहुत से लोग आपत्ति करते हैं कि अब उनकी क्षमता ऐसी नहीं रह गई है और इस तरह की प्रक्रिया में भाग लेने से उनके व्यापार में बाधा पड़ती है। इसके लिए उन्हें सफेद मूसली जैसे साधनों का प्रयोग करना पड़ता है जिसके अपने साइड इफेक्ट हैं। ऐसे लोगों के लिए पारंपरिक चिकित्सकों ने एक नया रास्ता सुझाया है। उन्होंने शेड्यूल में ऐसी वनस्पतियों का प्रयोग करना शुरू किया है जिससे कि सेक्स की नियमित आवृत्ति होने पर भी उन्हें किसी भी प्रकार की कमजोरी न हो और साथ ही उन्हें सफेद मूसली जैसे साधनों का प्रयोग न करना पड़े। शुरू के 5 सालों में मुझे व्याख्यान के बाद उसे अमल में लाने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता था पर धीरे-धीरे जब लोगों ने अपनी समस्या बतानी शुरू की और मैंने पारंपरिक चिकित्सक और आम लोगों के बीच सेतु का काम किया तो मेरा अपना ज्ञान विशेषकर प्रैक्टिकल नॉलेज बढ़ता गया और आज मैं श्रोताओं के प्रश्न आने से पहले ही उनके जवाब दे देता हूं जिससे कि वे प्रसन्न हो जाते हैं और शेड्यूल को अपनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। बहुत से आधुनिक लोग आधुनिक दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग करते हैं। यह जानना जरूरी होता है कि इन दवाओं की पारंपरिक दवाओं से और पारंपरिक भोजन सामग्रियों से किस प्रकार की प्रतिक्रिया हो रही है? उस आधार पर शेड्यूल में परिवर्तन करना होता है और यह परिवर्तन हर साल करना होता है क्योंकि उनकी दवाएं बदलती रहती हैं। यह एक श्रमसाध्य कार्य है पर धैर्यपूर्वक करने से इसमें सफलता मिल जाती है। 20 साल पहले जिन सामग्रियों का अनुमोदन मैं करता था और उनमें से बहुत सारी सामग्रियां हटानी पड़ी है क्योंकि उनकी उपलब्धता एक कठिन कार्य है। जैसे कि इस शेड्यूल में कई प्रकार के वृक्षों के नीचे बैठने का अनुमोदन किया जाता है। मुंबई जैसे शहरों में यह संभव नहीं हो पाता है और अपना व्यापार छोड़कर व्यापारी 25 दिनों तक छत्तीसगढ़ में रहकर जंगलों में घने वृक्षों के नीचे बैठने का समय निकाल नहीं पाते हैं। वे आना तो चाहते हैं पर उनके पास समय नहीं होता है इसलिए वे नहीं आते हैं और शेड्यूल के बाकी घटकों को अपनाने के बाद भी उन्हें लगता है कि जैसे कि उनकी चिकित्सा अधूरी रह गई है। इसलिए मैंने इन अनुमोदनों को पूरी तरह से शेड्यूल से हटा दिया है। इस साल जो शेड्यूल मैंने तैयार किए हैं उनमें इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि व्याख्यानमाला में वे लोग आएंगे जिन्हें कि कोरोना ने जकड़ा होगा। कोरोना ने उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को पूरी तरह से प्रभावित किया होगा। साथ ही उन लोगों ने एचसीक्यू जैसी दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग किया होगा। इन लोगों पर पहले के शेड्यूल को लादना ठीक नहीं होगा इसलिए मैंने पारंपरिक चिकित्सकों से चर्चा करने के बाद नया शेड्यूल तैयार किया है जो विशेषकर कोरोना से प्रभावित लोगों के लिए है। प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े विशेषज्ञ इस बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि कोरोनावायरस का प्रभाव पूरे शरीर में होता है और शायद ही कोई अंग इससे अप्रभावित रहता है। प्रभावित अंगों में प्रोस्टेट भी शामिल है। एक्सपर्ट इस बात पर अध्ययन कर रहे हैं कि क्या कोरोनावायरस प्रभावित व्यक्तियों को प्रोस्टेट का कैंसर जल्दी जकड़ लेता है या वे सामान्य व्यक्तियों की तरह ही व्यवहार करते हैं। जब उनके शोध परिणाम सामने आएंगे तो उस आधार पर फिर से नए शेड्यूल का निर्माण करना होगा जो वास्तव में ऐसे रोगियों के लिए वरदान साबित होंगे। इस वर्ष इस व्याख्यानमाला को दूसरे शहर में स्थानांतरित किया गया है जहां कोरोना का असर कम है। फिर भी इस महामारी के समय ऐसी उपयोगी व्याख्यानमाला का प्रबंधन करना और लंबी कड़ी को जारी रखना एक चुनौती के समान है और मुझे इस बात की खुशी है कि आयोजक इस चुनौती को स्वीकार कर रहे हैं और हम अतिथि वक्ताओं से अनुरोध कर रहे हैं कि हम इस व्याख्यानमाला में जरूर भाग लें। मैंने अपनी सहमति प्रदान कर दी है। सर्वाधिकार सुरक्षित

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