Consultation in Corona Period-198
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"मेरे कैंसर सर्जन और आपकी जुगलबंदी के चलते मेरी ब्रेस्ट कैंसर की समस्या अब काफी हद तक नियंत्रण में है। मैंने इस समस्या के लिए आपसे परामर्श का समय नहीं लिया है बल्कि मुझे एक दूसरी समस्या के बारे में बात करना है जोकि गर्ल्स हॉस्टल से संबंधित है।
मैं अपने महाविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन हूं और हमारे हॉस्टल में बच्चियों की तबीयत तेजी से बिगड़ती जा रही है। उन्हें कुछ विशेष तरह के लक्षण आ रहे हैं। शुरू में कुछ बच्चियों को ऐसे लक्षण आ रहे थे तब हमने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उन्हें चिकित्सालय भेज दिया। पर जब ऐसे लक्षण वाली बच्चियों की संख्या बढ़ने लगी तब हमें लगा कि यह गंभीर मामला हो सकता है इसलिए हम चीफ मेडिकल ऑफिसर से मिलने गए और उन्हें इन लक्षणों के बारे में बताया। उन्होंने कई तरह की दवाएं बताईं पर उससे बच्चियों की समस्या का समाधान नहीं हुआ।
बच्चियों को सिर में दर्द होता है। उनकी त्वचा का रंग काला होता जा रहा है। उन्हें पेशाब संबंधी समस्याएं हो रही है। शाम को उनको हल्का बुखार आ जाता है सप्ताह के कुछ दिनों में। हमने उनके खाने-पीने की जांच की और उसके बाद पीने के पानी की भी पर सब कुछ सही है। पूरा हॉस्टल एक ही तरह के खाने का इस्तेमाल कर रहा है। मैं आपके साथ सभी बच्चियों की रिपोर्ट लेकर आई हूं। आप इन्हें ध्यान से पढ़ें और बताएं कि क्या इस दिशा में आप कुछ मदद कर सकते हैं?" उत्तर भारत से आई एक प्रोफेसर साहिबा ने अपनी व्यथा बताई तब मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।
मैंने उनके द्वारा दी गई सभी रिपोर्ट का अध्ययन किया और फिर बच्चियों को आ रहे लक्षणों का भी। और स्पष्टता के लिए मैंने उन बच्चियों से बात भी की पर कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ। तब मैंने प्रोफेसर साहिबा से कहा कि अभी यदि संभव हो तो आप एक-दो बच्चियों को लेकर आ जाए ताकि मैं उनके पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर कुछ तरह के परीक्षण कर सकूं। वे इस बात के लिए तैयार हो गई और उन्होंने अपने एक साथी के माध्यम से उन बच्चियों को तत्काल बुलवा लिया और अगले दिन का अपॉइंटमेंट ले लिया। जब मैंने बच्चियों के पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर परीक्षण किया तो परीक्षणों ने बताया कि किसी विशेष दवा की विषाक्तता के कारण ऐसे लक्षण आ रहे हैं। इससे अधिक और जानकारी नहीं मिली।
मैंने बच्चियों के द्वारा ली जा रही दवाओं का अध्ययन किया पर उनमें एक भी ऐसी दवा नहीं मिली जिसकी विषाक्तता के लक्षण इस तरह आते हैं।
मैंने प्रोफेसर साहिबा से पूछा कि क्या आपके महाविद्यालय में कोई होम्योपैथिक डॉक्टर है तो उन्होंने कहा कि हमारे महाविद्यालय के चिकित्सालय चार तरह के डॉक्टर हैं। उनमें से एक होम्योपैथिक डॉक्टर भी है। मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि यदि संभव हो तो वह क्या होम्योपैथी के उस डॉक्टर से मेरी बात करवा सकती हैं?
जब उनसे मेरी बात हुई तो मैंने उन्हें कहा कि आप यदि बच्चियों को इस होम्योपैथिक दवा की खुराक दें तो मुझे लगता है कि इन सब की समस्याओं का समाधान हो जाएगा पर निर्णय आपको लेना है। लक्षणों के आधार पर मैं आपको इस दवा का प्रयोग करने की राय दे रहा हूं। वे मेरी बातों से सहमत हो गया और उन्होंने जब बच्चों पर होम्योपैथिक दवा का प्रयोग किया तो उनकी समस्या का समाधान होता नजर आया। प्रोफेसर साहिबा ने जब धन्यवाद दिया तो मैंने कहा कि अभी धन्यवाद देना जल्दीबाजी होगी। अभी हमें समस्या के मूल तक जाना होगा।
मैंने होम्योपैथी डॉक्टर से कहा कि आप इस दवा का प्रयोग अब रोक दें और बच्चियों को हॉस्टल में जो पानी दिया जाता है उससे बचने के लिए कहा जाए। उनके लिए इसकी वैकल्पिक व्यवस्था की जाए और फिर मुझे 3 से 4 दिनों के बाद बताया जाए।
3 दिन बाद जब प्रोफेसर साहिबा का फिर से फोन आया तो उन्होंने बताया कि पानी का प्रयोग रोक देने से भी बच्चियों की समस्या समाधान पूरी तरह से हो जाता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने टंकी की पूरी तरह से सफाई करवाई है और उन्हें अब उम्मीद है कि इस टंकी का पानी पीने से बच्चियों को किसी भी प्रकार की स्वास्थ समस्या नहीं होगी।
कुछ समय बाद प्रोफेसर साहिबा का फिर से फोन आया और उन्होंने बताया कि टंकी में सफाई के बाद जब फिर से पानी भरा गया और उस पानी का प्रयोग हॉस्टल की बच्चियों ने किया तो उन्हें फिर से वैसे ही समस्या होने लगी। उन्होंने नगर निगम को शिकायत की और पानी की जांच कराई पर उसमें किसी भी तरह का कोई दोष नहीं पाया गया, न ही पाइपलाइन कहीं से कटी फटी है। वैकल्पिक तौर पर उन्होंने जब ट्यूबवेल के पानी का प्रयोग किया उसी टंकी में भरकर तब भी वैसे ही समस्या बच्चियों को होने लगी।
पूरी जानकारी होने के बाद मैंने प्रोफेसर साहिबा से कहा कि आपको इस मामले की शिकायत पुलिस को करनी चाहिए और यदि संभव हो तो पुलिस अधिकारियों से आप मेरी बात करवा सकती हैं। जब पुलिस अधिकारी से बात हुई तो मैंने अपना संशय उन्हें बताया। उस आधार पर उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने टंकी के पास एक कैमरा लगा दिया जो कि गोपनीय था और फिर टंकी के पास जाने वाले लोगों की सूची बनाने लगे।
रात एक बजे उनका फोन आया कि उन्होंने एक व्यक्ति को पकड़ा है जो कि स्टाफ का ही व्यक्ति है। वह एक विशेष प्रकार का तरल पानी में मिला रहा था। हमने उसे गिरफ्तार कर लिया है और उससे पूछताछ जारी है। हमने उसका रिकॉर्ड चेक किया है। उसके खिलाफ कई मामले दर्ज है छेड़छाड़ के। बाद में प्रोफेसर साहिबा ने बताया कि जिस व्यक्ति को पकड़ा गया है वह चरित्र से अच्छा नहीं है पर प्रिंसिपल साहब के दबाव के चलते उसे हॉस्टल में जबरदस्ती रखा गया है। बच्चियाँ पहले ही उसकी कई शिकायतें कर चुकी है पर उस पर किसी भी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हुई है। पुलिस अधिकारी ने पूछा कि क्या आप ऐसी लैब का नाम बता जा सकते हैं जहां पर हम इस तरल का परीक्षण करा सके।
मैंने उन्हें अपने फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र का पता दिया और मित्र को बताया कि वह होम्योपैथी की वे**** नामक दवा का परीक्षण करें। मुझे पूरा विश्वास है कि इस तरल में यह दवा उपलब्ध होगी। जांच के परिणाम आने में 1 सप्ताह का समय लग गया तब तक उस व्यक्ति को हिरासत में रखा गया। जब तक वह व्यक्ति हिरासत में रहा तब तक हॉस्टल में किसी की भी तबीयत खराब नहीं हुई। अब समस्या का समाधान सबको नजर आ रहा था और सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि रिपोर्ट में आखिर क्या पता चलता है? मेरा शक सही था। रिपोर्ट में उसी होम्योपैथिक दवा का नाम आया जिसके बारे में मैंने आशंका व्यक्त की थी।
उस आधार पर पुलिस ने उस व्यक्ति को अपराधी घोषित कर दिया और इस तरह मामले का पटाक्षेप हुआ।
एक सप्ताह बाद प्रोफेसर साहिबा, पुलिस अधिकारी और उनके साथ में उनके महाविद्यालय के होम्योपैथी डॉक्टर मुझसे मिलने आए और पूछने लगे कि आखिर रिपोर्ट में ऐसा क्या लिखा था और आपको कैसे यह शक हुआ कि वह व्यक्ति किसी होम्योपैथिक दवा का प्रयोग कर रहा था।
मैंने विस्तार से उन्हें बताया कि होम्योपैथी में कई दवाएं यौन उत्तेजना बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है और यदि आप होम्योपैथी के संदर्भ साहित्य को देखें तो उनमें एक केस के बारे में विशेष तौर पर लिखा हुआ होता है जो कि इससे मिलता-जुलता केस है। उस केस में बताया गया है कि कैसे जर्मनी के एक गर्ल्स हॉस्टल में शरारती तत्व एक विशेष तरह की होम्योपैथी दवा मिला दिया करते थे पानी की टंकी में और फिर पूरे हॉस्टल में अफरा-तफरी मच जाती थी। भले ही होम्योपैथी के साहित्य में इस केस को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि पानी की टंकी में दवा डाल देने से ही यौन उत्तेजना का परिणाम दिखने लग जाता था पर वास्तव में ऐसा नहीं होता है।
इस कार्य के लिए जिस दवा का प्रयोग किया जाता है वह एक अमूल्य औषधि है और बहुत तरह के रोगों की चिकित्सा में काम आती है यदि उसका सही ढंग से उपयोग किया जाए।
जिस व्यक्ति ने यह प्रयोग किया होगा वह जरूर किसी होम्योपैथिक डॉक्टर या छात्र के संपर्क में होगा जिसने उसे यह काम करने की सलाह दी होगी। जितनी मात्रा में यह दवा सुरक्षित है उससे कई गुना अधिक मात्रा में इसे टंकी में प्रयोग किया जा रहा था जिससे कि इसकी विषाक्तता के लक्षण बच्चियों में दिखाई दे रहे थे। यदि मात्रा और बढ़ाई जाती तो बच्चियों की मृत्यु भी संभावित थी।
वह तो अच्छा हुआ कि प्रोफेसर साहिबा का ध्यान इस ओर गया और उन्होंने इस ओर कार्रवाई करना शुरू कर दिया अन्यथा कोई बड़ी घटना हो जाती और जानकार ही केवल बता पाते कि यह घटना क्यों हुई?
मुझे लक्षणों के आधार पर ही इस बात की आशंका हो गई थी इसलिए मैंने होम्योपैथी के डॉक्टर से कहा था कि आप इसके एंटीडोट का प्रयोग करें। जब एंटीडोट का प्रयोग किया गया तो उस दवा का असर पूरी तरह से खत्म हो गया और बच्चियों की समस्याएं पूरी तरह से ठीक हो गई। जब मुझे यह खबर मिली तो मेरा शक सही साबित हुआ और मैंने इस दिशा में खोज करने की कोशिश की। यह सबसे अच्छी बात रही कि समस्या के मूल का पता चल गया।
मैंने उन्हें यह भी बताया कि यह मेरा पहला मामला नहीं है। ऐसे मैंने 50 से अधिक मामले सुलझाए हैं जिसमें इस दवा का ऐसा दुरुपयोग किया गया इसलिए मैंने कई बार अलग-अलग माध्यमों से इस बात को कहने की कोशिश की है कि इस दवा को केवल डॉक्टरी अनुमोदन पर ही दुकानों में बेचा जाए। ऐसे ही किसी भी व्यक्ति को इसे न दिया जाए।
फिर मैंने पुलिस अधिकारी से कहा कि आप घटना की और विस्तार से जांच करें और पता करें कि यह दवा उस व्यक्ति तक कहां से पहुंची। हो सकता है कि कोई जानकार इसे बेच रहा हो और उसने इसे कई लोगों को दिया हो।
अगर यह बात सच निकलती है तो बहुत सारी बच्चियां बेकार में ही स्वास्थ्य समस्याओं में पड़ने से बच जायेंगी। सभी ने राहत की सांस ली।
इस तरह एक और मामले का पटाक्षेप हुआ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
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