Consultation in Corona Period-186

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मुझे यह बीमारी पिछले 5 सालों से है। शुरू में तो डॉक्टर इसे सोरायसिस कहते रहे और मेरा सोरायसिस का सभी तरह से इलाज चलता रहा पर जब इससे फायदा नहीं हुआ और मैंने एक दूसरे चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने कहा कि यह सोरायसिस नहीं है बल्कि एग्जिमा की समस्या है। जब मैंने एक्जिमा की दवाई शुरू की तो वह भी कई सालों तक चलती रही पर उससे भी किसी भी तरह का समाधान न होता देखकर मैंने दिल्ली की राह पकड़ी और दिल्ली में जब जांच कराई तो मुझे बताया गया कि मुझे लिचेनॉइड डर्मेटाइटिस की समस्या है। 

दिल्ली से लौटने के बाद इसकी चिकित्सा शुरू हुई जोकि कई सालों तक चलती रही। आखिर थक हार कर मैंने सारी चिकित्सा बंद करवा दी और प्राकृतिक उपायों की खोज करनी शुरू कर दी। जब मैंने होम्योपैथी का सहारा लिया तो चिकित्सक ने कहा कि होम्योपैथी में इसके लिए बहुत अच्छी दवा है और उन्होंने दवा शुरू कर दी। कुछ समय बाद यह रोग उग्र रूप धारण करने लगा तो चिकित्सक ने कहा कि होम्योपैथी में पहले रोग बढ़ता है उसके बाद फिर पूरी तरह से ठीक होता है। मैं इंतजार करता रहा पर मेरी समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हुआ। इसके बाद मैंने आयुर्वेद का सहारा लिया और उसके बाद तिब्बती दवाओं का पर मुझे किसी भी तरह से आराम नहीं मिला। मेरी उम्र 40 वर्ष है। मैं एक आईटी कंपनी में काम करता हूं।

 मुझे डायबिटीज और हाइपरटेंशन की समस्या है जिसके लिए मैं पिछले 5 सालों से दवाओं का प्रयोग कर रहा हूं। इन दवाओं के प्रयोग से मेरी दोनों समस्या नियंत्रण में है और मुझे किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होती है।" उत्तर भारत से आए एक सज्जन ने मुझसे परामर्श के लिए समय मांगा। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

उन्होंने कहा कि इंटरनेट में मैंने आपके बारे में पढ़ा और मुझे विश्वास है कि आप इस रोग की पहचान करके मुझे कोई रामबाण देंगे और एक ही खुराक में मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा। मैंने उन सज्जन द्वारा ली जा रही दवाओं के बारे में विस्तार से अध्ययन किया और उनके खानपान के बारे में पूछा। फिर उन्हें बताया कि उनकी समस्या का समाधान बिना किसी दवा के भी हो सकता है तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने कहा कि आप अपने चिकित्सक से फिर से मिले और उन्हें बताएं कि उन्हें उनकी दवाओं से समस्या हो रही है और समस्या का मूल कारण यही है।

 उन्होंने जवाब दिया कि मेरी डायबिटीज के लिए एक अलग चिकित्सक है और हाइपरटेंशन के लिए एक अलग दूसरे चिकित्सक। मैंने कहा इसमें कोई समस्या नहीं है। आप अपने दोनों चिकित्सकों से बात करें और उनसे कहे कि जो दवा आपको वे पिछले 5 सालों से दे रहे हैं उनमें परिवर्तन करें। उन दवाओं से समस्या हो रही है और यदि वे दवा बदलने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो आप किसी दूसरे चिकित्सक की सहायता लीजिए जो कि आपकी दवा बदल दें। मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी दवा बदलने से लिचेनॉइड डर्मेटाइटिस की समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। आपको और किसी दवा या चिकित्सा की जरूरत नहीं है। उनको एकाएक विश्वास नहीं हुआ फिर भी उन्होंने मेरी बात मानने का फैसला किया और वापस लौट कर अपने चिकित्सकों से मिले और जब उन्होंने दवाओं को बदला तो 15 से 20 दिनों में उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया।

 1 महीने बाद फिर उनका फोन आया कि उन्हें फिर से वैसे ही समस्या हो रही है पर यह इतनी उग्र नहीं है। मैंने उन्हें बताया कि वे डायबिटीज और हाइपरटेंशन की आधुनिक दवा जब तक लेते रहेंगे तब तक इस तरह की समस्या होती रहेगी क्योंकि विज्ञान कहता है कि लिचेनॉइड डर्मेटाइटिस का एक कारण दवाइयों में होने वाली प्रतिक्रिया भी है। आपके चिकित्सक आपको नई दवाओं को अधिक मात्रा में दे रहे हैं। हो सकता है कि इससे इस तरह की समस्या हो रही हो। 

उन सज्जन ने कहा कि क्या यह हो सकता है कि मैं उन दवाओं का भी प्रयोग करता रहूं और मुझे इस समस्या का सामना भी न करना पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि वे छत्तीसगढ़ में रहकर पारंपरिक चिकित्सकों से लगातार दवा भी ले सकते हैं। उनकी कंपनी उन्हें 6 महीने की छुट्टी देने को तैयार है।

 मैंने उनसे कहा कि अगर आपके पास इतना लंबा समय है तो मैं आपकी मदद करने को तैयार हूं। आप बिना किसी देरी के 6 महीने की तैयारी करके मेरे पास आ जाएं। मैं आपको उचित मार्गदर्शन दे दूंगा। 

जब वे मुझसे मिलने आए तो मैंने उन्हें कहा कि छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चिकित्सा में बहुत तरह के जंगली वृक्षों का प्रयोग होता है इस रोग की चिकित्सा के लिए। इसकी चिकित्सा बहुत सरल है और इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती है। इसमें जंगली वृक्षों का आलिंगन करना होता है और उससे ही समस्या का समाधान हो जाता है। वे सज्जन इस अनोखी चिकित्सा पद्धति के लिए तैयार हो गए। 

मैंने उन्हें एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजा और कहा कि जिन तीन प्रकार के वृक्षों से उन सज्जन को लाभ हो सकता है वे घने जंगल में होते हैं इसलिए पारंपरिक चिकित्सक और एक स्थानीय व्यक्ति के साथ ही उस स्थान पर जाना ठीक रहेगा। मैंने उन्हें यह भी बताया कि पारंपरिक चिकित्सक पहले दिन ही आपके साथ जाएंगे। वे कुछ वाक्यों का उच्चारण करेंगे और वृक्ष की जड़ में विशेष तरह के सत्वों का सिंचन करेंगे। इसके बाद के दिनों में आपको स्वयं ही स्थानीय व्यक्ति के साथ उन वृक्षों तक जाना होगा और विधि अनुसार प्रयोग करना होगा।

 सज्जन ने कहा कि मुझे तंत्र और मंत्र में विश्वास नहीं है इसलिए अगर पारंपरिक चिकित्सक न जाएं तो भी मेरा काम हो सकता है।

 मैंने उन्हें कहा कि यह तंत्र-मंत्र की बात नहीं है। दरअसल परंपरा के अनुसार पारंपरिक चिकित्सक उन वृक्षों तक जाएंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि वे आपकी चिकित्सा जल्दी से करें और प्रभावी रूप से करें। यह वृक्ष और पारंपरिक चिकित्सक के बीच की बात है। उन दोनों का संबंध कई पीढ़ियों का है। इस संबंध को हम शहर में रहने वाले लोग इतनी जल्दी नहीं जान पाएंगे। यदि यह कहा जाए कि इन वृक्षों में पारंपरिक चिकित्सकों की जान बसती है तो गलत नहीं होगा। अक्सर जब पुराने बड़े वृक्षों को काटा जाता है तो आसपास के क्षेत्र के बहुत से पारंपरिक चिकित्सक बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें देखकर लगता है कि उन्हें किसी तरह का सदमा हुआ है। भले ही उन्हें इस बात का प्रत्यक्ष अनुमान नहीं हुआ होता है कि किसी वृक्ष को काटा गया है।

जिन सत्वों को वे वृक्षों की जड़ों में डालेंगे वे सत्व वृक्षों को विशेष गुणों से परिपूर्ण करेंगे ताकि जब आप उनका प्रयोग करें तो आपको कम समय में अधिक लाभ हो। इसमें किसी भी तरह का तंत्र मंत्र शामिल नहीं है। मेरी बात पर उन्होंने सहमति जताई और कहा कि वे पहले दिन पारंपरिक चिकित्सक के साथ ही जाएंगे।

 मैंने उन्हें बताया कि उन्हें रोज 20 मिनट तीन वृक्षों का आलिंगन करना है पूरी तरह नंगे बदन होकर। मैंने उन्हें समय बता दिया और कहा कि दिन में तीन बार तीन अलग-अलग वृक्षों के पास जाकर उन्हें गले से लगाना है। 20 मिनट तक जब आप उनसे गले मिले तो यह अनुभव करें जैसे वृक्ष आपके माता-पिता हैं और वैसी ही भावना आप अपने मन में रखें। वृक्ष से प्रेमिका की तरह व्यवहार न करें।

 चूँकि आपको नंगे बदन जंगल में वृक्षों का आलिंगन करना है इसलिए स्थानीय व्यक्ति आपकी मदद करेंगे। यदि ये वृक्ष ऐसे स्थान पर मिलते हैं जहां आसपास कोई गाँव हो तो आप वहां के मुखिया को इस बात की जानकारी दे दे कि आप किसी तरह का तंत्र मंत्र नहीं कर रहे हैं बल्कि मेरे द्वारा बताई गई चिकित्सा का प्रयोग कर रहे हैं। 

अधिकतर गांव के लोग इस तरह की चिकित्सा को जानते भी हैं और मानते भी हैं। वे आपका सहयोग ही करेंगे। किसी प्रकार का विरोध नहीं करेंगे। उन सज्जन ने मेरी बात पूरी अच्छे से सुनी और फिर पारंपरिक चिकित्सक और स्थानीय व्यक्ति का पता लेकर वे रवाना हो गए।

 बाद में उनका फोन आया कि पारंपरिक चिकित्सक ने पहले दिन उनके साथ जाकर सारी प्रक्रिया को अच्छे से कर दिया है और एक बार खड़े होकर मेरे द्वारा अपनाई जा रही विधि को भी परख लिया है। उन्होंने कुछ सुधार बताएं जो कि मैंने अपना लिए हैं। मैंने 1 महीने के लिए एक जीप कर ली है। जब हम घने जंगल में जाते हैं तो हम तीन लोग रहते हैं अर्थात जीप का ड्राइवर भी हमारी मदद करता है।

 इसके बाद कई दिनों तक उनका फोन नहीं आया। 20 दिनों के बाद उन्होंने फिर से संपर्क किया और बताया कि उनकी समस्या का धीरे-धीरे समाधान हो रहा है और उन्हें लगता है कि 10 से 15 दिनों में वे पूरी तरह से इस रोग से मुक्त हो जाएंगे। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी और कहा कि जब उन्हें लगे कि रोग पूरी तरह से समाप्त हो गया है उसके बाद भी 10 दिन तक इस आलिंगन को करें और उसके बाद फिर वापस आ जाएं। 

वे फिर समर्पण के भाव से इस प्रक्रिया को करते रहे और 40 दिनों बाद वे वापस मुझसे मिलने आ गए। उनका शरीर पूरी तरह से शुद्ध हो चुका था और लिचेनॉइड डर्मेटाइटिस की समस्या का समाधान हो गया था। उन्होंने धन्यवाद दिया और फिर वापस लौट गए। कुछ महीनों के बाद उनका फिर से फोन आया कि जिन वृक्षों का आलिंगन उन्होंने किया था वे बहुत अधिक दुर्लभ थे और उन्हें खोजने के लिए घने जंगल में जाना पड़ता था। आम लोग तो इतने साधन संपन्न नहीं होते हैं कि वे लगातार इतने लंबे समय तक जंगल के आस-पास रहे और रोज आलिंगन करने के लिए वृक्षों के पास जाते रहे इसलिए उन्होंने सोचा है कि वे जमीन खरीदेंगे जो कि जंगल के पास हो और वहां इस तरह के वृक्षों को लगाएंगे ताकि भविष्य की पीढ़ी को ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े।

 उन्होंने इन तीनों वृक्षों के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी और मुझसे पूछा कि यदि हम इन्हें खेत में लगाना चाहे तो उसकी क्या विधि होगी और कितने वर्ष में ये वृक्ष तैयार होंगे?

मैंने उन्हें पूरी जानकारी दी और यह भी बताया कि उन्हें ये पौधे किस नर्सरी में मिल सकते हैं और कैसे वे इसे जैविक तरीके से उगा सकते हैं। उन्होंने धन्यवाद दिया और बीच-बीच में मुझसे संपर्क करते रहे।

 2 सालों के बाद उन्होंने बताया कि उनकी समस्या अब दोबारा फिर से नहीं हो रही है जबकि उनकी डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की दवा वैसे ही चल रही है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने अपनी कंपनी का जॉब छोड़ दिया है और अभी पूरी तरह से उस खेत में रहते हैं जहां पर उन्होंने इन वृक्षों को लगाया है। उन्होंने अपने व्याख्यानो का भी जिक्र किया जो कि वे देश भर में घूम-घूम कर लोगों के बीच दे रहे थे और इस पारंपरिक ज्ञान के बारे में उन्हें जानकारी दे रहे थे। लोग उनकी बात मान रहे थे क्योंकि उन्होंने खुद ही इन प्रयोगों को आजमा कर देखा था। 

इस तरह पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान की सहायता से एक और जटिल समस्या का समाधान हुआ।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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