Consultation in Corona Period-183

 Consultation in Corona Period-183

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"स्थानीय विश्वविद्यालय में मैं केमिस्ट्री की प्रोफ़ेसर थी। अब रिटायर हो चुकी हूं। मेरी उम्र 65 वर्ष है और मुझे कैंसर ने घेर लिया है। कैंसर पूरे शरीर में फैल चुका है और मेरे बचने की बहुत कम उम्मीद है। मेरे पति बहुत पहले ही गुजर चुके हैं और हमारे बच्चे नहीं थे इसलिए मैं अकेले ही यहां पर एक वृद्ध आश्रम में रहती हूं। मेरे पास अब गिनती के दिन ही बचे हैं इसलिए मैं अपनी जिंदगी के बचे हुए दिन आपके साथ गुजारना चाहती हूं।

 मैं चाहती हूं कि मैं रायपुर में आकर आपके साथ रहूं और आपके शोध कार्य में मदद करूँ। मैं आपकी दवाओं को बनाने में भी अपना योगदान दे सकती हूं और मरीजों की सेवा में भी। मुझे एक अलग से कमरा दे दीजिएगा। मैं वहां पड़ी रहूंगी और अपने दिन काटती रहूंगी। मेरी जो जमा पूंजी है वह मेरे मरने के बाद आपकी संस्था को मिल जाएगी। इससे आपकी आर्थिक मदद भी हो जाएगी।" लंदन से जब इस तरह का विचित्र संदेश प्राप्त हुआ तो मुझे शक हुआ क्योंकि बहुत से लोग मुझसे इसी तरह से संपर्क करते हैं और फिर कुछ समय तक मेरे साथ काम करने के बाद दुनिया भर में कहने लग जाते हैं कि वे मेरे शिष्य है और उन्होंने मेरे साथ कई साल बिताए हैं। ऐसे आपको दुनिया भर में बहुत से वैज्ञानिक मिल जाएंगे जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने मेरे मार्गदर्शन में अपना शोध कार्य किया है या मैंने उनके शोध कार्यों को मान्यता दी है। बहुत से नीम हकीम भी मिल जाएंगे जो पकड़े जाने पर कहते हैं कि उन्होंने पंकज अवधिया से जड़ी बूटियों का ज्ञान लिया है। इन पर विश्वास करने वाले एक बार भी यह नहीं सोचते कि सामने वाला झूठ बोल सकता है और एक बार सीधे वैज्ञानिक से संपर्क कर यह पूछ लिया जाए कि क्या वास्तव में यह आपके शिष्य हैं?

 वैसे मैंने आज तक अपना एक भी शिष्य नहीं बनाया है क्योंकि मैं खुद ही शिष्य की श्रेणी में हूं और अभी ज्ञान अर्जन कर रहा हूं। मुझमें अभी इतनी क्षमता नहीं है कि मैं किसी का गुरु बन सकूं। 

बहरहाल मैंने संदेश भेजने वाली प्रोफेसर से कहा कि आप अपनी पूरी रिपोर्ट मुझे भेजें ताकि मुझे तसल्ली हो सके कि आप सही में कैंसर की रोगी है और मेरे शोध कार्य के बारे में जानने के लिए रायपुर नहीं आ रही है। जब उन्होंने अपनी रिपोर्ट भेजी और मैंने उसका अध्ययन किया तो लगा कि सचमुच उनकी हालत बहुत खराब है और उनके पास गिनती के ही दिन है।

 मैंने उन्हें जवाब दिया कि मैं अविवाहित हूं और अपने माता-पिता के साथ रायपुर में रहता हूं। जहां तक दवा बनाने का सवाल है तो मेरा कोई अस्पताल नहीं है और मेरे पास मरीजों की ऐसी कोई भीड़ भी नहीं है।

 मैं देश के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डॉक्यूमेंटेशन कर रहा हूं। फिलहाल मैं कैंसर ड्रग इंटरेक्शन पर शोध ग्रंथ लिखता हूं इसलिए आपके यहां आने से मेरे कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी। आप चाहे तो मैं आपको किसी पारंपरिक चिकित्सक के पास ठहरा सकता हूं अगर वे तैयार हो तो। इससे आपकी अच्छी देखभाल भी हो जाएगी और हो सकता है कि आपकी हालत में कुछ सुधार हो जाए। आप अपनी जमा पूंजी उन पारंपरिक चिकित्सक को दे दीजिएगा जो इसे परमार्थ के कार्य में लगा सकेंगे। 

उन्होंने इस पर अपनी सहमति दी और निश्चित समय पर लंबी यात्रा करके अपने एक भारतीय मित्र के साथ मुझसे मिलने रायपुर आ गई। मैंने पारंपरिक चिकित्सक से पहले ही संपर्क कर लिया था। उन्होंने कहा था कि वे बीच-बीच में उस महिला को जाकर देख लिया करेंगे पर उनको साथ रखना संभव नहीं है क्योंकि उनके पास मरीजों की लंबी कतार होती है और ऐसे में दिन में उनके पास दम मारने को भी फुर्सत नहीं होती है। उन्होंने पास के गांव में किसान के पास उनके रहने की व्यवस्था कर दी थी। 

जब मैं उन प्रोफेसर साहिबा को लेकर किसान के पास पहुंचा तो किसान ने तहे दिल से उनका स्वागत किया। मैंने प्रोफेसर साहिबा से कहा कि यहां पर आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। सारा माहौल प्राकृतिक है और किसान जैविक तरीके से यानी प्राचीन विधियों से खेती करते हैं। मैंने उनसे यह भी कहा कि यहां आपको अपने कैंसर के लिए बहुत सारी प्राकृतिक औषधियां मिलेंगी जिनका प्रयोग आप नियमित करती रहेंगी तो आपकी स्थिति और अधिक नहीं बिगड़ेगी। उस समय ठंड का मौसम था और चने की फसल लगी हुई थी। चने की फसल के ऊपर सफेद रंग की चादर डली हुई थी। ऐसा लगता था जैसे इतनी तेज ठंड में चने को बचाने के लिए उस पर चादर डाल दी गई है पर वास्तव में जानकार किसान चने की फसल पर पड़ी ओस को एकत्र करना चाहते थे जिसमें चने के एसिड के गुण भी आ जाते हैं। फिर इस चादर को निचोड़ कर एक विशेष तरह का तरल एकत्र कर लिया जाता है। 

किसान कहते हैं कि इस तरल को सुबह खाली पेट पीने से पेट के किसी भी प्रकार के रोग साल भर नहीं होते हैं। आप यहां रहेंगी तो आपको पूरी ठंड यह विशेष प्रकार का पेय पीने को मिलेगा जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी और शरीर कैंसर से लड़ने के लिए फिर से तैयार हो जाएगा।

 मैंने खेत में टहलते हुए उन्हें जिल्लो के पौधे दिखाए जो कि चने की फसल में खरपतवार की तरह होते हैं और उन्हें बताया कि यदि आप नाश्ते में जिल्लो का लगातार प्रयोग करेंगी तो आपके कैंसर का फैलना पूरी तरह से रुक जाएगा। यह एक तरह का नाश्ता भी है और दवा भी। यह दवा आपको कंक्रीट के जंगल में नहीं मिलेगी केवल किसानों के पास ही मिलेगी और वे भी ऐसे किसान जो कि जैविक विधि से खेती करते हैं अर्थात किसी भी प्रकार से रसायन का उपयोग नहीं करते हैं। आगे बढ़ते हुए मैंने उन्हें छोटे अकरकरा के पौधे दिखाये जो कि किसान के खेत में जिल्लो की तरह ही खरपतवार की तरह उगते हैं और उन्हें बताया कि यदि आप इन्हें सुबह मुंह में रख लेंगी तो आपके मुंह से अधिक मात्रा में लार निकलेगी और आपका मुंह एकदम साफ लगने लगेगा। जब यह लार शरीर के भीतर जाएगी तो आपका शरीर शुद्ध होने लगेगा और कैंसर के जख्मों के कारण जो आपके आसपास बदबू फैली रहती है वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। यह प्रकृति की भेंट है बिना किसी मूल्य के आपको किसान के पास मिल जाएगी। आधुनिक चिकित्सक तो आपको कैंसर के जख्मों की ड्रेसिंग करने के ज्यादा उपाय नहीं बता पाते हैं और उनकी दवाओं से ड्रेसिंग करने के बाद भी बदबू पूरी तरह से खत्म नहीं होती है इसलिए आप यहां रहकर गुडरिया नामक इस खरपतवार का उपयोग कर सकती हैं जो चने के खेत में आपको आसानी से मिल जाएंगे।

 इस खरपतवार के पूरे पौधे को पानी में उबालकर काढ़ा बना लीजिएगा और फिर उससे अपने जख्मों को साफ करिएगा। इससे न केवल जख्म भरने लगेंगे बल्कि उनकी बदबू भी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। मैंने उन्हें खेत की मेड़ों में उगे हुए बबूल के पेड़ दिखाए और उन्हें बताया कि इसकी जड़ से किसान आपको एक विशेष तरह का पेय बना कर देंगे जिसमें कई तरह की जड़ी बूटियां होंगी। इससे आपको कैंसर के कारण आने वाला हल्का बुखार नहीं आएगा और आपकी कमजोरी पूरी तरह से दूर हो जाएगी। 

आपने बताया कि आपको रात को बहुत अधिक पसीना आता है। शरीर बहुत अधिक गर्म हो जाता है और इस बेचैनी में आप ठीक से सो नहीं पाती है तो ऐसे में किसान आपको रोज कोल्ही केकड़ी खिलाएंगे जिससे कि आपके शरीर की गर्मी शांत हो जाएगी और रात को आपको अच्छे से नींद आ सकेगी।

 पूरी ठंड आप चने के विभिन्न भागों का प्रयोग करिएगा जिससे आपकी कमजोरी दूर होगी और फिर उसके बाद जब किसान मेडिसिनल राइस की खेती करेंगे तो फिर आपको साल भर मांड पीने को मिलेगा जो आपको कैंसर के अलावा दूसरे रोगों से बचने में मदद करेगा।

 दिन भर में मैंने उन्हें 100 से अधिक प्रकार की वनस्पतियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बड़े ध्यान से इन वनस्पतियों के बारे में सुना और बीच-बीच में नोट बनाती रही। उन्हें किसान के पास छोड़कर मैं वापस आ गया और अपने शोध कार्य में व्यस्त हो गया।

 यह घटना 3 साल पहले की है। 6 महीने बाद उन्होंने फिर से मुझसे संपर्क किया और बताया कि एक बार वह मुझसे मिलना चाहती हैं। जब वे मुझसे मिली तो उनके चेहरे में बहुत रौनक आ गई थी। वे एक बार मुंबई जाकर अपनी जांच करा लेना चाहती थी ताकि पता चल सके कि कैंसर और अधिक तो नहीं फैला है।

 जब उनकी जांच रिपोर्ट आई तो पता चला कि कैंसर का फैलाव रुक गया है और वहां के अस्पताल अब फिर से तैयारी कर रहे हैं उनकी चिकित्सा करने की पर उन्होंने चिकित्सा करवाने से साफ इंकार कर दिया और वापस किसान के पास आ गई और प्राकृतिक जीवन जीने लगी।

 मैंने उनकी सुधरती स्थिति को देखकर संतोष प्रकट किया और उन्हें शुभकामनाएं दी। 

एक साल बाद ठंड के मौसम में फिर से जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि उनकी सेहत में बहुत अधिक सुधार हुआ है और वह अब फिर से मुंबई जा रही है एक बार फिर से टेस्ट कराने के लिए। इस बार की रिपोर्ट भी बहुत सकारात्मक थी और अस्पताल के चिकित्सक बार-बार कह रहे थे कि वे अब इस कैंसर को नियंत्रित कर सकते हैं। उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है पर इस साहसी महिला ने किसान के पास रहकर ही अपना प्राकृतिक उपचार करने का मन बनाया। जैसे-जैसे उनकी हालत में सुधार होता गया वे बीच-बीच में लंदन जाने लगी और वहां अपनी संपत्ति को बेच कर पैसे पारंपरिक चिकित्सक और किसान को देने लगी। पारंपरिक चिकित्सक ने तो पैसे लेने से मना कर दिया फिर बहुत जोर देने पर उन्होंने कहा कि वह दवा के लिए पैसा दे सकती हैं जो कि वह अपने मरीजों को निशुल्क रूप से देते हैं। वे इस बात के लिए तैयार हो गई।

हाल ही में 3 सालों के बाद इस ठंड में मुझे फिर से उनका संदेश आया कि अब उनकी हालत पूरी तरह से सुधर गई है और वह गांव से मेडिसिनल राइस यूरोप के देशों में भेजने का प्रयास कर रही है ताकि इस तरह के मेडिसनल राइस को बढ़ावा मिल सके और किसानों को आर्थिक रूप से मदद मिल सके।

 यह तो बहुत ही उत्साहवर्धक समाचार था। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया। 


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