Consultation in Corona Period-184

 Consultation in Corona Period-184

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"कुछ वर्षों पहले जब मैं आपसे अपनी समस्या के लिए मिला था तो आपने मेरा परीक्षण करने के बाद बताया था कि मैं किसी रूप में मरकरी का प्रयोग कर रहा हूं जिसकी विषाक्तता के लक्षण मेरे शरीर में दिखाई दे रहे हैं और इसलिए मेरे लिंग का द्वार चौड़ा होता जा रहा है। मैंने उस समय तो आपसे कहा था कि मैं किसी भी प्रकार की ऐसी दवा का प्रयोग नहीं कर रहा हूं जिसमें कि मरकरी है। 

इसके बाद जब मैं वापस लौटा और अपने मित्र से मैंने पूछताछ की तो उसने बताया कि वह जिन होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग कर रहा है वे दवाएं मरकरी से बनी हुई है। मैंने नौसीखिए होम्योपैथ से दवा लेकर बहुत बड़ी गलती की थी। आपका कहना सही था। 

जब मैंने इन दवाओं का प्रयोग करना पूरी तरह से बंद कर दिया तो मेरा लिंग फिर से सामान्य स्थिति में आ गया और मेरी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया।

 अभी पिछले कुछ महीनों से मेरे स्क्रोटम में एक गठान हो गई है। डॉक्टर कहते हैं कि यह एक तरह का कैंसर है पर यह कैंसर की शुरुआती अवस्था है और इस समय रेडिएशन और कीमोथेरेपी की सहायता से इसे नष्ट किया जा सकता है पर मैं आधुनिक उपचार नहीं कराना चाहता इसलिए मैंने आपसे परामर्श का समय लिया है। आप मुझे बताएं कि मैं क्या करूं जिससे कि मेरी ये गठान पूरी तरह से बैठ जाए और मुझे किसी भी तरह से आधुनिक चिकित्सा का सहारा न लेना पड़े।" महाराष्ट्र से आए एक युवक ने मुझसे परामर्श के लिए समय लिया और अपनी समस्या बताई। मैंने उसे पहचान लिया और उससे कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा। 

जब मैंने जड़ी -बूटियों की सहायता से उसका परीक्षण किया तो मुझे चिकित्सकों की बात सही लगी। उन्होंने कहा था कि यह शुरुआती अवस्था का कैंसर है जिसे दवाओं के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। मैंने उसे कहा कि मेरे जान पहचान के एक पारंपरिक चिकित्सक है जो कि ऐसी गठान के चिकित्सा करने में महारत रखते हैं। उनके पास पीढीयों पुराना पारंपरिक ज्ञान है। यदि वह उन पारंपरिक चिकित्सक से मिल ले तो उसकी समस्या का समाधान हो सकता है। वे 3 से 4 महीने का समय लेंगे और इसके बाद यह गठान पूरी तरह से बैठ जाएगी। उसने धन्यवाद दिया और मुझसे पारंपरिक चिकित्सक का पता लेकर वापस लौट गया। फिर कई महीनों तक उससे किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं हुआ। 

हाल ही में जब उसने फिर से संपर्क किया तो उसने बताया कि वह पारंपरिक चिकित्सक के पास गया था और पारंपरिक चिकित्सक ने कहा कि उसे 3 महीने तक उनके आसपास ही रहना होगा। हर दिन सुबह आकर उनसे दवा लेनी होगी। इस दवा का सुबह-शाम प्रयोग करना होगा। मैं वापस गया और अपने विभाग से छुट्टी लेकर आया। मैंने पहले पारंपरिक चिकित्सक से कहा कि मुझे दवा बांध कर दें दें ताकि मैं हर महीने उनके पास आकर फिर से जांच करा सकूं पर उन्होंने कहा कि दवा का नियमित प्रयोग जरूरी है और ताजी दवा रोज लेना जरूरी है। उसका सामने रहना इसलिए जरूरी है क्योंकि उसकी स्थिति के अनुसार ही पारंपरिक चिकित्सक दवा में परिवर्तन करते जाएंगे और दो से तीन महीनों में उसकी हालत में काफी सुधार हो जाएगा। 

जब मेरी चिकित्सा शुरू हुई तो मुझे तुलसी की पांच पत्तियां सुबह दी जाती थी और दस पत्तियां शाम को। बस यही इलाज था। मैं इस दिन का इंतजार करता रहा कि अब पारंपरिक चिकित्सक किसी नई तरह की दवा का प्रयोग करेंगे पर वह तो 1 महीने तक उसी का ही इस तरह प्रयोग करते रहे और रोज मेरा परीक्षण कर गठान को जांचने की कोशिश करते रहे। पुलिस की नौकरी में छुट्टी मिलना बहुत कठिन काम है। 1 महीने में उकता कर मैं वापस चला गया। यह सोच कर कि अगर मुझे तुलसी का ही प्रयोग करना है तो यह तो मैं अपने घर पर रहकर भी कर सकता हूं। मैंने उनके चेले से पूछा तो उसने बताया कि गुरु जी आपको पूरे समय तक इसी वनस्पति को देंगे और चमत्कारिक रूप से आपको लाभ होगा। चेले की बात से निश्चिंत होकर मैं वापस चला गया और घर में रहकर तुलसी का इस तरह से प्रयोग करने लगा। मैंने एक भी दिन का अंतराल नहीं किया और नियमपूर्वक तुलसी का उसी विधि से प्रयोग करना जारी रखा। 

जब मैं पारंपरिक चिकित्सक के पास था तो 1 महीने में ही गठान छोटी होने लगी थी पर जैसे ही मैं घर में यह प्रयोग करने लगा तो गठान छोटी होने की बजाय बढ़ने लगी और इससे मेरी चिंता भी बढ़ने लगी। कुछ दिनों तक यही क्रम चलता रहा फिर मैंने डॉक्टरी जांच कराई तो पता चला कि अब यह दूसरी स्टेज का कैंसर हो गया है अर्थात मेरे द्वारा ली जा रही दवा का किसी भी प्रकार से लाभ नहीं हो रहा था। मैं असमंजस में था इसलिए मैंने आपसे फिर से परामर्श लेने का समय लिया है। आप मेरा मार्गदर्शन करें। मैं पारंपरिक चिकित्सक की दवा लेना चाहता हूं पर वहां रहकर नहीं बल्कि अपने शहर में रहकर और अगर पारंपरिक चिकित्सक तुलसी के प्रयोग से ही मेरी गठान ठीक कर रहे थे तो फिर जब मैं तुलसी का प्रयोग कर रहा था तो मुझे इस तरह का लाभ क्यों नहीं हो रहा था? मैं यह जानना चाहता हूं।" मैंने उस युवक से कहा कि मैं तुम्हारी समस्या का समाधान करने की कोशिश करूंगा और तुम्हारे प्रश्नों का जवाब देने की भी।

 मैंने उसे विस्तार से बताया कि पारंपरिक चिकित्सक कुछ समय के अंतराल में घने जंगलों में जाकर 7 प्रकार के वृक्षों की जड़ों के पास से एकत्र की गई मिट्टी को लेकर आते हैं और फिर उस मिट्टी को एक साथ मिलाकर उस स्थान पर डालते हैं जहां पर उनके तुलसी के पौधे लगे हुए हैं। यह मिट्टी साधारण नहीं होती है। इस मिट्टी में उन पुराने वृक्षों की जड़ों से निकलने वाला एक विशेष प्रकार का रसायन होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में ऐलिलोरसायन कहा जाता है। ये ऐलिलोरसायन तुलसी के पौधों को दिव्य औषधि गुणों से परिपूर्ण कर देते हैं और जब उनका उपयोग इस तरह के रोगों में किया जाता है तो वे बहुत जल्दी लाभ प्रदर्शित करने लग जाते हैं। 

आम लोगों को लगता है कि पारंपरिक चिकित्सक साधारण तुलसी के पौधे से चिकित्सा कर रहे हैं और उनका धैर्य टूट जाता है। वे वही गलती कर बैठते हैं जो गलती आपने की और आधे में ही चिकित्सा छोड़ कर वापस चले जाते हैं जबकि उन्हें पारंपरिक चिकित्सक की चिकित्सा से लाभ होता रहता है। कौन से वृक्षों से कितनी मात्रा में जड़ के कौन के हिस्से के पास से मिट्टी एकत्र करनी है- इसका पूरा पारंपरिक ज्ञान पारंपरिक चिकित्सक के पास ही है। यदि उनके द्वारा लाई गई मिट्टी तुम अपने घर के गमले में डाल भी लो तो तुम्हें बहुत कम समय के अंतराल में उसे बदलना होगा जो कि पूरी तरह से श्रमसाध्य कार्य है। इस विधि से उगाई गई तुलसी के पत्ते बाजार में नहीं मिलते हैं न ही कोई कम्पनी इसकी आपूर्ति करती हैं इसलिए दवा के लिए तो तुम्हें पारंपरिक चिकित्सक पर ही निर्भर रहना होगा।

 मेरे पास एक और भी समाधान है पर वह पूरी तरह से स्थाई नहीं है पर अगर तुम चाहो तो मैं वह समाधान बता सकता हूं। महाराष्ट्र के जिस शहर में तुम रहते हो उसके पास में ही एक कृषि अनुसंधान केंद्र है। जहां मेरे एक वैज्ञानिक मित्र इस तरह की तुलसी पर प्रयोग कर रहे हैं। उनका शोध छात्र हर हफ्ते छत्तीसगढ़ आता है और फिर पारंपरिक चिकित्सक से नई मिट्टी लेकर जाता है। उस मिट्टी में वे तुलसी के पौधे उगाते हैं और फिर उसका रासायनिक विश्लेषण कर यह जानने की कोशिश करते हैं कि तुलसी के गुणों में किस तरह से परिवर्तन हो रहा है और इस गुण में परिवर्तन के लिए कौन सा रसायन जिम्मेदार है?

 उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट मिला हुआ है जो कि अभी कुछ महीने और चलेगा। जब तक यह प्रोजेक्ट चलेगा तब तक उन्हें लगातार पारंपरिक चिकित्सक से नई मिट्टी मिलती रहेगी। अगर तुम चाहो तो मेरे उस कृषि वैज्ञानिक मित्र से मिल सकते हो और उनसे अनुरोध कर सकते हो कि वे तुम्हें रोज पन्द्रह पत्तियां तुलसी की दे दे जिससे कि तुम्हें शहर में रहते हुए ही पारंपरिक चिकित्सक द्वारा तैयार की गई तुलसी मिलती रहेगी और अनावश्यक ही छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी। मेरी बात सुनकर उस युवक के चेहरे पर प्रसन्नता आ गई। उसने कहा कि यह तो बहुत आसान रास्ता है। मैं आपके उस वैज्ञानिक मित्र से मिलूंगा और उनसे अनुरोध करूंगा। अगर वे पैसे की मांग करेंगे तो मैं उन्हें पैसे भी देने को तैयार हूं। 

मैंने उस युवक को चेताया कि एक बार वह फिर से पारंपरिक चिकित्सक से मिले और अपनी समस्या बताए। यह भी बताए कि जो कृषि वैज्ञानिक उनके पास से मिट्टी लेकर जाते हैं क्या उनसे यह पत्ती ली जा सकती हैं और क्या उनसे इसी तरह का लाभ होगा जैसा कि उनकी दवा से होता है तो वह युवक थोड़ी सी ना नुकुर के बाद इस बात के लिए तैयार हो गया और पारंपरिक चिकित्सक से मिलने चला गया।

 बाद में उसका फोन आया कि पारंपरिक चिकित्सक ने कहा है कि वह उस तुलसी का प्रयोग कर सकता है और उससे उसी तरह का फायदा होगा जिस तरह से उनके द्वारा दी गई तुलसी से फायदा होता है।

 लंबे अंतराल के बाद पिछले हफ्ते ही उस युवक का फिर से फोन आया और उसने बताया कि अब उसकी गठान पूरी तरह से समाप्त हो गई है और उसे किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं है।

 इस तरह भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान की सहायता से एक और जटिल समस्या का सरल समाधान हो गया। 


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