Consultation in Corona Period-199
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"मेरे मित्र को लगता है कि जैसे उन्हें कोई धीमा जहर देकर मारना चाहता है। उनकी आंखों की रोशनी तेजी से कम होती जा रही है और उन्हें दिन में कई बार बुखार आ जाता है। मैं चाहता हूं कि एक बार आप आकर उनका परीक्षण कर ले। आपके आने जाने की व्यवस्था कर दी है। मित्र आपको अच्छे से जानते हैं। वे एक बड़े व्यापारिक घराने से संबंध रखते हैं और उन्हें लगता है कि उनके बेटे और उनकी पत्नी उनकी जान लेना चाहते हैं जबकि मैं उस परिवार को कई सालों से जानता हूं, मुझे नहीं लगता कि उनके बेटे और उनकी पत्नी को उनकी मृत्यु से किसी तरह का लाभ होने वाला है पर फिर भी उनके मन में यह बात बैठी हुई है इसलिए एक बार आप तसल्ली के लिए उनकी जांच कर ले और मुझे बता दें कि उन्हें किसी तरह का धीमा जहर तो नहीं दिया जा रहा है।" मेरे फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र ने जब फोन पर मुझसे यह अनुरोध किया तो मैंने उनसे कहा कि मैं जल्दी से ही समय निकालकर आपके शहर पहुंच जाऊँगा और फिर वहां आकर परीक्षण कर लूंगा।
जब मैंने उनके मित्र के पैरों के तलवों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर परीक्षण किया तो मुझे धीमे जहर के किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई दिए।
हां, यह बात जरूर थी कि उनकी आंखों की रोशनी तेजी से कम हो रही थी और उन्हें दिन में बुखार आता रहता था। अमेरिका के डॉक्टरों ने इसे अनएक्सप्लेंड फीवर बताया था अर्थात ऐसा बुखार जिसके कारण के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। उन्होंने अमेरिका में रहकर लंबे समय तक इस बुखार की चिकित्सा करवाई थी पर जब यह किसी भी तरह से ठीक नहीं हुआ तो उनके चिकित्सकों ने कहा कि चिंता करने की जरूरत नहीं है। उनके शरीर की हालत ठीक है। कई बार ऐसा बुखार आता रहता है। उन्हें अपना सामान्य जीवन जीना चाहिए।
उनकी आंखों की रोशनी के बारे में बताया गया कि उम्र के कारण ऐसा हो रहा है। उन्हें कई तरह की दवाएं दी गई बुखार को नियंत्रित करने के लिए भी और आंखों को शक्तिशाली बनाने के लिए भी पर इसके बावजूद भी उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा था और उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी।
उन्हें बार-बार यही शक होता था कि जैसे उन्हें खाने के साथ किसी तरह का जहर दिया जा रहा है। वापस भारत लौट कर जब उन्होंने होम्योपैथी का सहारा लिया तो चिकित्सकों ने सोचा कि किसी तरह का मानसिक रोग है जिसके कारण उन्हें लग रहा है कि उन्हें जहर दिया जा रहा है। होम्योपैथी में ऐसी बहुत सी दवाएं हैं जिनमें इस तरह के लक्षण पाए जाते हैं। होम्योपैथिक दवा के साथ में आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग शुरू हुआ। आयुर्वेदिक दवाएं शक्ति बढ़ाने वाली थी और साथ ही बुखार को कम करने वाली भी। बुखार तो कम हो जाता था लेकिन फिर से वही स्थिति हो जाती थी। परीक्षण के बाद जब मैंने उनके मित्र को बताया कि आपको किसी भी तरह का जहर नहीं दिया जा रहा है पर परीक्षण से यह तो पता चलता है कि आपके शरीर के विभिन्न स्रोत खुले हुए नहीं हैं और आपकी जीवनी शक्ति प्रभावित हो रही है। इसका कारण खोजना जरूरी है। जब एक बार इसका कारण मिल जाएगा तो आपका बुखार भी पूरी तरह से ठीक हो जाएगा। उनके अनुरोध पर मैंने उनके द्वारा प्रयोग की जा रही खानपान की सामग्रियों और दवाओं का अध्ययन किया। इनमें मुझे कोई विशेष प्रकार का दोष नजर नहीं आया। वे किसी जटिल फॉर्मूलेशन का प्रयोग नहीं कर रहे थे अश्वगंधा, गिलोय और इन जैसी साधारण औषधियों का प्रयोग कर रहे थे। उनकी अंग्रेजी दवाएं भी जटिल नहीं थी और उनकी देसी दवाओं के साथ किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी।
अपने फॉरेंसिक मित्र से मिलने के बाद फिर मैं वापस आ गया। वे संतुष्ट थे क्योंकि उन्हें इस बात की पुष्टि हो गई थी कि उनके मित्र को आने वाले लक्षण किसी जहर के कारण नहीं आ रहे थे। कुछ हफ़्तों बाद फिर से फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र का फोन आया और उन्होंने कहा कि उनके मित्र ने दुनियाभर के चिकित्सकों को बुलाया है ताकि वे एक स्थान पर बैठकर उनकी समस्या पर एक राय बना सके और समस्या की जड़ जान सके। उनके मित्र चाहते हैं कि मैं भी उस कार्यक्रम में शामिल होऊं और अपने विचार चिकित्सकों के साथ बाँटू।
एक बार फिर मैं उनके शहर पहुंच गया। वहां चिकित्सकों का जमावड़ा लगा हुआ था। सभी एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ थे और एक दूसरे की बात को काटने में लगे हुए थे। सबको अपनी विशेषज्ञता बतानी थी। इनकी तबीयत से किसी को कोई लेना देना नहीं था ऐसा प्रतीत होता था। नतीजा सिफर ही रहा। जब मुझसे पूछा गया कि क्या आप पारंपरिक चिकित्सा के आधार पर ऐसी दवा का नाम बता सकते हैं जिससे कि बुखार उतर जाए तो मैंने कहा कि तरह-तरह के बुखारों के लिए पारंपरिक चिकित्सा में असंख्य दवाएं हैं पर उन दवाओं का प्रयोग तभी किया जा सकता है जबकि रोग का कारण मालूम हो। हमें सबसे पहले रोग का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। उसके बाद समस्या का अपने आप समाधान हो जाएगा पर कोई भी विशेषज्ञ इस विषय पर बात करने को तैयार नहीं था। सभी एक से बढ़कर एक दवाओं का सुझाव दे रहे थे और दावा कर रहे थे कि इन दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग करने से उनको बुखार आना पूरी तरह से बंद हो जाएगा। मैं वापस लौट गया।
मैंने अपने फोरेंसिक विशेषज्ञ मित्र से कहा कि आप मुझे उन सज्जन की पूरी दिनचर्या का एक वीडियो बनाकर भेजें। हो सकता है इससे कुछ समस्या का पता चले। जब वीडियो मेरे पास आया और मैंने इस वीडियो का अध्ययन किया तब भी मुझे किसी भी तरह का कोई सुराग नहीं मिला। उनकी आंखों की समस्या के लिए मैंने 7 तरह के मेडिसिनल राइस की व्यवस्था कर दी जिनका प्रयोग में नियमित रूप से करने लगे। उन्होंने बताया कि इससे लाभ तो हो रहा है पर आंखों की रोशनी अभी भी कम ही है। इस बीच लगातार उनसे बात होती रही और मैं अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त हो गया।
एक दिन बस्तर के एक वयोवृद्ध पारंपरिक चिकित्सक मुझसे मिलने आए। उनकी उम्र 95 वर्ष थी और 30 वर्षों पहले उन्होंने मुझे पारंपरिक चिकित्सा के बारे में बहुत कुछ बताया था। मैंने उनके साथ कई महीने गुजारे थे। उन्हें पेशाब की समस्या हो रही थी इसलिए उनके परिजन मुझसे समय लेकर रायपुर आ गए थे।
उनसे लंबी चर्चा होती रही। अपने विषय पर लंबी चर्चा के दौरान वे बड़े सक्रिय रहे और अपने रोग को भूल गए। मैंने उन्हें कई तरह के फार्मूले बताएं। उन्होंने कहा कि वे इन फार्मूलों को आजमाएंगे और उन्हें विश्वास है कि इनके प्रयोग से उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा।
बातों ही बातों में मैंने उन सज्जन का वीडियो दिखाया जो कि अनएक्सप्लेंड फीवर के शिकार थे। पारंपरिक चिकित्सक ने वीडियो देखकर तुरंत ही इस समस्या के मूल कारण को जान लिया। उन्होंने पूछा कि क्या ये व्यक्ति गिलोय का किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं तो मैंने उन्हें बताया कि वे गिलोय का साधारण प्रयोग कर रहे हैं। कोई विशेष प्रयोग नहीं कर रहे हैं। इस पर उन पारंपरिक चिकित्सक ने कहा कि संभवत: ये व्यक्ति एक ऐसे फार्मूले का प्रयोग कर रहे हैं जिसमें गिलोय को सप्तम या अष्टम घटक के रूप में प्रयोग किया गया है और अनुमोदित मात्रा से अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि संभवत: इस फार्मूले में गिलोय की जड़ का प्रयोग किया जा रहा है जिसका प्रयोग अधिकतर नहीं किया जाता है।
उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि देश के उत्तरी भाग के बहुत से पारंपरिक चिकित्सक गिलोय की जड़ का उपयोग करते हैं पर उसके साथ वे दूसरी तरह की वनस्पतियों का प्रयोग करते हैं ताकि गिलोय की जड़ का लाभ तो मिले पर उससे किसी भी प्रकार की हानि न हो। वयोवृद्ध पारम्परिक चिकित्सक ने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी थी। मैंने बिना किसी देरी के फॉरेंसिक विशेषज्ञ को फोन लगाया और उन्हें इस बारे में जानकारी दी। जल्दी ही विशेषज्ञ मित्र ने उन वैद्य को खोज निकाला जिनकी दवाओं का प्रयोग लंबे समय से उनके मित्र कर रहे थे।
अगले ही दिन हम दोनों उन वैद्य के सामने बैठे हुए थे और उनसे पूछ रहे थे उनके गुप्त फार्मूले के बारे में। उन्होंने बार-बार यही बताया कि वे गिलोय का प्रयोग कर रहे हैं पर वे इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि उन्होंने गिलोय की जड़ का प्रयोग किया था और वह भी अनुमोदित मात्रा से अधिक मात्रा में। उन्होंने कहा कि यह उनका पारंपरिक ज्ञान है और इस बारे में वह किसी भी तरह का खुलासा नहीं करना चाहते हैं। यदि उन्हें दवा नहीं लेनी है तो वह दवा न लें।
हम वापस आ गए और हमने उन सज्जन से कहा कि आप वैद्य द्वारा दी जा रही गिलोय का प्रयोग करना कुछ समय तक के लिए रोक दीजिए और देखिए क्या इससे आपकी समस्या का समाधान होता है?
वे इस बात के लिए तैयार हो गए। कुछ ही दिनों में सचमुच वयोवृद्ध पारंपरिक की बात सही निकली। उन्हें लंबे समय से आने वाला बुखार आना बंद हो गया और धीरे-धीरे उनकी आंखों की समस्या का भी समाधान होने लगा।
उनकी सारी दवाईयाँ बंद हो गई और वे अच्छा महसूस करने लगे।
मैंने वयोवृद्ध पारंपरिक चिकित्सक से फिर से मुलाकात की और उन्हें धन्यवाद दिया। उन पारंपरिक चिकित्सक ने मुझे याद दिलाया कि जब मैं उनके पास पारंपरिक चिकित्सा का ज्ञान ले रहा था तब भी एक ऐसा केस आया था। संभवत: उस समय मुझे उस केस के बारे में जानकारी नहीं रही अन्यथा मैं ऐसी गलती नहीं करता। मैंने इस घटना की याद दिलाने के लिए पारंपरिक चिकित्सक को धन्यवाद दिया और उनसे कहा कि अब आगे से कभी भी मैं किसी फार्मूले में गिलोय का नाम देखूँगा या ऐसी ही किसी वनस्पति का नाम देखूँगा तो यह नहीं समझ लूंगा कि उस फार्मूले में उस वनस्पति के उसी भाग का उपयोग किया गया है जिसके प्रयोग का अनुमोदन शास्त्रीय ग्रंथों में किया गया है।
पारंपरिक चिकित्सक ने शुभकामनाएं दी। इस मामले का समाधान हो गया बिना किसी दवा के।
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