कैंसर में अश्वगंधा, विवेकपूर्ण प्रयोग ही रोगियों को कर सकता है चंगा

कैंसर में अश्वगंधा, विवेकपूर्ण प्रयोग ही रोगियों को कर  सकता है चंगा
पंकज अवधिया




साधारण रोगों में आम तौर पर प्रयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों को आजमाया जा सकता है पर जब कैंसर जैसे जटिल रोगों की चिकित्सा करनी हो तो जड़ी-बूटियों का प्रयोग कठिन हो जाता है. उन्हें औषधीय गुणों से परिपूर्ण करना होता है और फिर कई प्रकार की शोधन प्रक्रिया करनी होती है.

मैंने आपका बहुत नाम सूना है. आपका परिवार पीढीयों से पारम्परिक चिकित्सा कर रहा है. भगन्दर की चिकित्सा में आपको महारत हासिल है.

आपके पिताजी के निधन के बाद अब आप पारम्परिक चिकित्सा करते हैं. आपके पास हजारों की संख्या में जब कैंसर के रोगी आने लगे तो आपने  निश्चय किया कि आप कैंसर के रोगियों को भी राहत पहुंचाने का प्रयास करेंगे.

आपके पिताजी कैंसर को लाइलाज मानते रहे और कहते रहे कि इस रोग में दवा देने से बदनामी अधिक होती है. पर आप इस विचार के नही है.

आपके पिताजी से आपको अश्वगंधा  पर आधारित एक फार्मूला मिला है जिसकी सहायता से आप कैंसर के रोगियों का इलाज कर रहे हैं पर आपको अधिक सफलता नही मिल रही है. इसलिए आपने मुझसे मिलने का समय लिया है.

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैंने अब तक 13000  से अधिक ऐसे फार्मूलों के बारे में जानकारी एकत्र की है जिनमे अश्वगंधा का प्रयोग मुख्य घटक के रूप में होता है. इनमे से ज्यादातर फार्मूलों का मैंने जमीनी स्तर पर सफल प्रयोग देखा है. इन फार्मूलों में आपके पिताजी द्वारा बताया गया फार्मूला भी है.

आपने बताया कि आप अश्वगंधा बाजार से  खरीदते हैं. मै आपको  अश्वगंधा की खेती की विधियां बता देता हूँ ताकि आप मिलावट और रोग रहित अश्वगंधा की जड़  अपने फार्मूले में उपयोग कर सकें.

अश्वगंधा की खेती वैदिक विधि से तो होती ही है पर कैंसर के लिए जब इसका उपयोग करना होता है तो अंकुरण के बाद हर सात दिन में अश्वगंधा के खेतों को  जड़ी-बूटियों के घोल से सींचा जाता है.

ये सभी जड़ी-बूटियाँ आस-पास ही मिलती हैं और आमतौर पर खरपतवार की तरह उगती हैं. इनका प्रयोग आसान है. ये जड़ी-बूटियाँ न केवल अश्वगंधा को दिव्य औषधीय गुणों से परिपूर्ण करती है बल्कि इसकी रोगों और कीटों से रक्षा भी करती हैं.

अश्वगंधा की जड़ एकत्र करने के बाद और फार्मूले में प्रयोग करने से पहले उसे बारह दिन तक लगातार पचास से अधिक जड़ी-बूटियाँ के सत्व से शोधित करना होता है.  यह श्रम साध्य प्रक्रिया है और आम लोगों के बस की बात नही है.

बहुत से पारम्परिक चिकित्सक और वैद्य भी इसे करने से बचते हैं. यही कारण है कि उनके फार्मूले कारगर नही होते हैं. मैं आपको विस्तार से इसके बारे में बता देता हूँ और साथ ही इस पर तैयार की गयी दस घंटों की एक फिल्म भी दे देता हूँ. यह फिल्म इंटरनेट पर भी उपलब्ध है.

आपने बताया कि आप फार्मूले में अश्वगंधा को मुख्य घटक के रूप में उपयोग करते है और बीस तरह की जड़ी-बूटियों को अन्य घटक के रूप में.

आप इस फार्मूले को १० सप्ताह तक लगातार रोगियों को देते हैं और फिर लाभ की आशा करते हैं.

मैं आपको यह सलाह देना चाहता हूँ कि आप पहले सप्ताह इसे मुख्य घटक के रूप में. दूसरे सप्ताह तृतीयक, फिर सप्तम, फिर दशम, फिर षष्ठम, फिर मुख्य घटक, फिर द्वितीयक, फिर अष्टम, फिर पंचम और दसवे सप्ताह चतुर्थक घटक के रूप में इसका प्रयोग करें. तीसरे सप्ताह से ही रोगियों को लाभ होने लगेगा और फिर वे पूरे मन से आपकी दवाओं को लेने लगेंगे.  

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
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कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 
सर्वाधिकार सुरक्षित

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