Consultation in Corona Period-264 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-264






Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"वैसे तो रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी अभी भी चल रही है पर चिकित्सक ज्यादा आशान्वित नहीं है और इस तरह की चिकित्सा के बाद बेटे को भी बहुत तकलीफ होती है इसलिए वह अस्पताल नहीं जाना चाहता है। हम उसे घर में ले आए हैं और अब उसका ओरल कैंसर लाइलाज हो चुका है। 

पिछले 8 सालों से हमने दुनिया का कोई भी कोना नहीं छोड़ा और सभी विशेषज्ञों से मिले पर ईश्वर को शायद यही मंजूर था। अब हम उसे घर में लेकर आ गए हैं और केवल चिकित्सा के लिए ही एंबुलेंस की सहायता से पास के शहर में ले जाते हैं जहां उसकी कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी होती है। आपने कैंसर पर बहुत अधिक शोध किया है। हमें मालूम है कि आप चिकित्सक नहीं है पर एक बार यदि आप हमारे साथ चलकर बेटे को देख लेते और कुछ सुझाव दे देते तो बहुत अच्छा होता। आपकी फीस मैंने जमा कर दी है और जब आप मुझे समय देंगे मैं अपनी गाड़ी लेकर आपके सामने हाजिर हो जाऊंगा।" पड़ोसी राज्य से जब एक सज्जन का ऐसा संदेश आया तो मैंने उन्हें समय दे दिया और नियत समय पर उनकी गाड़ी से उनके बेटे से मिलने पहुंच गया। उनके बेटे का और कैंसर सचमुच बड़ा उग्र था। पूरे घर में अजीब सी बदबू फैली हुई थी और घर वाले बेटे को घेर कर बैठे हुए थे। रिश्तेदारों का आना निरंतर जारी था। सभी निराश दिख रहे थे। बेटे को देखने के बाद और सारी रिपोर्ट पढ़ने के बाद मुझे भी लगा कि अब यह केस हाथ से निकल चुका है इसलिए मैंने अपने साथ लाए गए एक विशेष तरह के लेप को देते हुए उनके बेटे से कहा कि वह इस लेप को पानी में घोलकर अपने कैंसर के जख्मों में लगाए। इससे जख्मों से आ रही बदबू धीरे-धीरे ही सही पर पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। हो सकता है कि इससे जख्म को भरने में भी मदद मिले। उसके बाद मैं वापस अपने शहर में आ गया।

 अगले हफ्ते ही उन सज्जन का फिर से फोन आया और उन्होंने बताया कि अब बदबू पूरी तरह से खत्म हो गई है और जख्म भी भरने लगा है। इसका मतलब यही था कि उस युवक की जीवनी शक्ति बहुत अच्छी थी जो साधारण से लेप के प्रयोग से ही उसका शरीर सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया कर रहा था। इससे उम्मीद की किरण जग रही थी। अगली बार जब मैं उनके बेटे से मिलने पहुंचा तो उनके घर में दूसरे लोगों की भीड़ लगी हुई थी।

 मुझे बताया गया कि पारंपरिक रूप से वे एक विशेष तरह के मंजन का निर्माण करते हैं और बिना किसी शुल्क के इसे जरूरतमंद लोगों को बांटते हैं। मैंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और युवक के जख्मों का मुआयना करने लगा। उस आधार पर मैंने उसे एक और लेप दिया जो कि पहले वाले लेप से अधिक शक्तिशाली था। इस तरह आने वाले दो-तीन महीनों में मैं उसे लेप देता रहा जो कि पिछले लेप से अधिक शक्तिशाली था धीरे-धीरे उसके कैंसर का फैलाव कम होने लगा। पहले वह नाक से भोजन करता था नली के माध्यम से अब वह मुंह से भोजन कर पा रहा था।

 एक दिन अचानक ही उन सज्जन का फोन आया और उन्होंने कहा कि हम लोगों ने निश्चय किया है कि अब हम रेडिएशन थेरेपी पूरी तरह से बंद कर देंगे जबकि कीमोथेरेपी के विशेषज्ञ ने कहा है कि अब वे कीमोथेरेपी करने को तैयार नहीं है इसलिए हम चाहते हैं कि आप अब बेटे की देखभाल करें और अपने मार्गदर्शन में उसे कैंसर से मुक्त कराएं। मैंने इस पर काफी सोचा विचारा क्योंकि यह एक कठिन केस था और ऐसे केस में अपनी भागीदारी निभाने का मतलब था बहुत अधिक तनाव अपने सिर पर ले लेना क्योंकि ऐसे मरीजों की हालत चौबीसों घंटे बिगड़ती रहती है और दिन में कभी भी इमरजेंसी कॉल आ सकती है। मैंने उन सज्जन से कहा कि मैं आपको एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजता हूं जो कि इस तनाव को झेलने में सक्षम है। हो सकता है वे इस केस को लेने के लिए तैयार हो जाए। जब वे पारंपरिक चिकित्सक से मिलने गए तो पारंपरिक चिकित्सक ने बेटे को देखने के बाद साफ शब्दों में उसकी चिकित्सा करने से इंकार कर दिया। फिर मुझे फोन कर बताया कि अब उसके बचने की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि कैंसर बहुत अधिक फैल चुका है। उन्होंने मुझे भी हिदायत दी कि मैं इस केस में न पड़ूँ क्योंकि इसमें केवल अपयश ही मिलेगा। यश मिलने का कोई मार्ग नहीं बचा है।

मैंने निश्चय किया कि विशेष तरह के फंक्शनल फूड के प्रयोग से यदि उसकी जान बच जाती है तो मैं कोशिश करूंगा और इस आधार पर मैंने उसे कई तरह के फंक्शनल फूड सुझाये। इस बीच जब मेरा वहां फिर से जाना हुआ तो उन सज्जन ने मुझे उस मंजन के बारे में बताया जो कि वे मुफ्त में लोगों को दिया करते हैं। मैंने मंजन में रुचि ली। उन्होंने साथ में एक पत्र भी दिया जिसमें कि उन लोगों की लंबी सूची थी जिन्होंने इस मंजन का प्रयोग किया था। बिना किसी संकोच के उन सज्जन ने मंजन के घटकों के बारे में बताया और उसे बनाने की सरल विधि के बारे में भी।

 मंजन के घटकों को देखकर मैंने निश्चय किया कि मैं उन 20-25 लोगों से बात करूंगा जिनके नाम सूची में दिए हुए थे और जिन्होंने इस मंजन का प्रयोग किया था।

 जब मैंने उन लोगों से विस्तार से बात की तो मैंने पाया कि उनमें से अधिकतर लोग मुँह के रोगों से प्रभावित थे और उन्होंने मंजन का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया था। 25 में से 12 लोग ऐसे निकले जिन्हें कि ओरल कैंसर था और उनका कहना था कि मंजन के प्रयोग के बाद ही उन्हें ओरल कैंसर का पता चला। अब मेरा माथा ठनका और मैंने एक बार फिर से उन सज्जन से इस फार्मूले के बारे में गहनता से जानकारी ली और बनाने की विधियों के बारे में पूछा।

जब मैंने इस आधार पर अपने डेटाबेस का अध्ययन किया तो चौंकाने वाले परिणाम मिले। मैंने उनसे पूछा कि इस मंजन को बनाने के बाद इसे 2 दिनों तक बबूल के रस में खरल करना होता है फिर 2 दिनों तक जामुन के रस में खरल करना होता है। इसके बाद 2 दिनों तक महुआ के रस में खरल करना होता है। यह आप कैसे करते हैं तब उन्होंने कहा कि उन्हें जो विधि बताई गई है उसमें खरल शब्द का उल्लेख तो है पर उसके बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है इसलिए वे इस प्रक्रिया को नहीं करते हैं। अब सारी समस्या की जड़ का पता लगने लगा था।

 मैंने उन्हें बताया कि आपके मंजन में हीरा कशिश और मुर्दारसिंग जैसे घटक है जो कि शरीर में कैंसर जैसे विकार उत्पन्न करने में सक्षम है। इन घटकों के विषैले प्रभाव को दूर करने के लिए ही इस फार्मूले को बनाने के बाद विभिन्न वनस्पतियों के रस में 2 दिनों तक इसे खरल करना बहुत जरूरी है। इससे ये दोष खत्म हो जाते हैं। अगर आप खरल नहीं करेंगे तो ये दोष बने रहेंगे और यह फार्मूला दोषपूर्ण हो जाएगा जैसा कि अभी हो रहा है। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस फार्मूले के बारे में आयुर्वेद के ग्रंथों में लिखा है और यह भी लिखा है कि दांतों का हिलना, दांतो का गिरना और दांतों में पानी लगना इन सभी समस्याओं के लिए यह मंजन बेहद कारगर है। इससे दांतों के कृमि नष्ट हो जाते हैं और दांत वज्र के समान हो जाते हैं। पर यह तभी हो सकता है जबकि मंजन को सही वैदिक रीति से बनाया जाए जो कि आप नहीं कर रहे हैं।

 अब आप यह बताइए कि क्या आपके परिवार में भी इस मंजन का प्रयोग होता है? क्या आपके बेटे ने भी लंबे समय तक इस मंजन का प्रयोग किया है तब उन्होंने कहा कि हम सब इसका उपयोग लंबे समय से कर रहे हैं और बेटा तो अभी विशेष तौर पर इस मंजन का उपयोग कर रहा है। यह मंजन इतना अधिक सुरक्षित है कि यदि इसका कुछ हिस्सा मंजन करते वक्त पेट में भी चला जाए तो किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है। मैंने कहा कि यह तो आप बड़ी भूल कर रहे हैं। यह मंजन केवल दांतो के लिए है। इसे किसी भी हालत में शरीर के अंदर नहीं जाना चाहिए।

फिर मैंने गंभीर होते हुए उनसे कहा कि मुझे लगता है कि आपके आपके बेटे की कैंसर की समस्या के लिए यही मंजन दोषी है। यदि वह इसका प्रयोग करना अभी से रोक दे और फिर उसे ऐसी दवाएं दी जाए जो कि इस मंजन में प्रयोग किए जाने वाली औषधियों के विरुद्ध काम करती हैं तो मुझे लगता है कि आने वाले सालों में इसे कैंसर से पूरी तरह से मुक्ति मिल सकती है।

 वे सज्जन पहले तो बहुत देर तक बहस करते रहे और अपने मंजन को ठीक बताने की कोशिश करते रहे। जब मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैंने इस मंजन का प्रयोग करने वाले लोगों से बातचीत की और पाया है कि 50 प्रतिशत लोगों को ओरल कैंसर हो गया है तब उन्हें एकाएक मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। तस्दीक के लिए उन्होंने उन लोगों से बात की तो अपना माथा पकड़ लिया। उनके अधूरे ज्ञान ने न केवल उनके अपने बेटे को खतरे में डाल दिया था बल्कि उन लोगों को भी खतरे में डाल दिया था जिन्हें कि वे मुफ्त में मंजन दे रहे थे इसकी खूबियां बता कर।

 मुझे 3 घंटे का इंतजार करना पड़ा। उसके बाद परिवार वालों ने निश्चय किया कि वे इस मंजन का न तो खुद प्रयोग करेंगे न कि किसी और को प्रयोग करने की सलाह देंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि आप जो करना चाहते हैं करें। जिस भी तरह की दवा देना चाहते हैं, दें। हम आपको पूरी तरह से सहयोग करने के लिए तैयार हैं।

 उस युवक को ओरल कैंसर से पूरी तरह से मुक्त होने में 5 वर्षों का लंबा समय लगा पर अच्छी बात यह रही कि धीरे ही धीरे सही पर वह इस विकट रोग से मुक्त हो गया। जब उसने मंजन का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया तब शरीर ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई और 3 साल के बाद परीक्षणों से पता चला कि शरीर अब कैंसर को खुद ही निपटाने में लगा हुआ है। इससे अच्छी खबर भला क्या हो सकती थी।

 मैंने उन्हें आधुनिक चिकित्सक के पास यह कह कर भेजा कि इन चिकित्सक से लगातार अपने बेटे की जांच कराते रहें और कैंसर पर नजर रखें क्योंकि बेटे के थोड़ा भी कमजोर होने पर कैंसर फिर से सिर उठा सकता है। यदि जरूरी हो तो कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी जैसे आधुनिक उपायों का भी लाभ उठाएं।

 यदि किसी तरह की जरूरत मेरी ओर से हो तो मैं हमेशा उपस्थित हूं। सभी ने राहत की सांस महसूस की और एक असंभव सा लगने वाला केस भी संभव हो गया जब इसके कारणों की जांच की गई।

 चिकित्सा का यही तरीका सर्वोत्तम है। भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लगे। 


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