Consultation in Corona Period-240 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"जैसे ही मैंने अपने न्यूरोलॉजिस्ट को बताया कि मैं बचपन से खेसारी दाल खाता रहा हूँ और अभी भी रोज खेसारी दाल खाता हूँ तो उन्होंने तुरंत ही कह दिया कि मेरी नर्वस सिस्टम की सभी समस्याओं के लिए यह जहरीली दाल जिम्मेदार है। मैं तो इसे जहरीला नहीं मानता क्योंकि हमारा पूरा परिवार बचपन से इसका प्रयोग करता रहा है। यह हमारे खेतों में उगती है और हम इसका प्रयोग अलग-अलग व्यंजनों में भी करते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट ने बताया कि उसमें एक विशेष प्रकार का न्यूरोटॉक्सिन पाया जाता है जिसके कारण लंबे समय तक इसका प्रयोग करने से कई तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं खेसारी दाल का प्रयोग करना पूरी तरह से बंद कर दूँ और इसके स्थान पर दूसरी दालों का प्रयोग करूँ। उन्होंने यह भी बताया कि आजकल कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी बहुत सी किस्में बना ली है जिसमें इस तरह के न्यूरोटोक्सीन नहीं पाए जाते हैं। उन वैराइटीज को अगर खेत में लगाया जाए फिर उस दाल का प्रयोग किया जाए तो किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया कि मुझे इन सब बातों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है क्योंकि अगर खेसारी दाल से समस्या होती तो हमारे पूरे परिवार को और हमारे पूरे गांव को भी होती पर किसी को भी इस तरह का लक्षण नहीं आ रहा है। मैं रहता तो दिल्ली में हूँ और एक बड़े उद्योग घराने से संबंध रखता हूँ पर मेरी जड़े छत्तीसगढ़ में है

 जहां इस दाल का प्रयोग बड़ी आबादी के लोग करते हैं। 

न्यूरोलॉजिस्ट ने मुझे कई तरह की दवाईयाँ दी है पर इससे मेरी समस्या ठीक नहीं हो रही है इसलिए मैंने आपसे परामर्श का समय लिया है। आप क्या यह बता सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के किसी मेडिसिनल राइस का प्रयोग करने से खेसारी दाल के इस नुकसानदायक प्रभाव को दूर किया जा सकता है या किसी मेडिसिनल राइस का प्रयोग करने के साथ खेसारी दाल का प्रयोग भी किया जा सकता है जिससे किसी भी तरह का नुकसान न हो।" दिल्ली से आए एक सज्जन ने परामर्श के लिए मुझे समय लिया। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

 मैंने उनसे पूछा कि क्या आप के न्यूरोलॉजिस्ट ने किसी तरह की जांच की और उसके बाद बताया कि आपको खेसारी दाल के कारण इस तरह की समस्या हो रही है तो उन्होंने कहा कि नहीं उन्होंने किसी भी तरह का परीक्षण नहीं किया बस मेरे यह कहने पर कि मैं खेसारी दाल का प्रयोग करता हूँ उन्होंने झट से कह दिया कि सभी समस्या की जड़ यही है।

 मैंने उनसे कहा कि मैं एक छोटा सा परीक्षण करना चाहता हूँ। बेहतर होगा कि आप यह परीक्षण किसी पारंपरिक चिकित्सक से कराएं जिससे यह पता चल सके कि आपकी समस्या का कारण खेसारी दाल है या नहीं। मैं आपको उन पारंपरिक चिकित्सक का पता दे देता हूँ। आप वहाँ चले जाएं। मैं आपको एक पत्र भी लिख कर दे देता हूँ जिससे वे आपकी प्राथमिकता से मदद कर देंगे। 

उन सज्जन ने कहा कि यदि आप यहां परीक्षण कर सकते हैं तो आप ही कर दें। मैं क्यों एक लंबी यात्रा करूं और उन पारंपरिक चिकित्सक से मिलने जाऊं। मैंने उनसे कहा कि इस परीक्षण में 2 दिन का समय लगेगा। इसके लिए आपको रायपुर में रुकना होगा और हर दिन नियत समय पर मुझसे मिलने आना होगा। वे इस बात के लिए तैयार हो गए।

मैंने उनके द्वारा बताए गए सभी प्रकार के लक्षणों की एक लंबी सूची बनाई और उस आधार पर वनस्पतियों के प्रभाव का अध्ययन करने लगा। मुझे संदेह के दायरे में 20 तरह की वनस्पतियां दिखीं। यह जानना जरूरी था कि किस विशेष वनस्पति के कारण उन्हें इस तरह के लक्षण दिख रहे हैं। 

दूसरे दिन जब वे मुझसे मिलने आए तो मैंने उनके मुंह में एक पान का बीड़ा रखा और उनसे कहा कि आप 20 मिनट तक इसे अपने मुंह में घुमाते रहे और फिर मुझे बताएं कि क्या आपको स्वाद में किसी तरह का परिवर्तन लग रहा है? 20 मिनट बीत जाने के बाद उन्होंने बताया कि उनके मुंह के स्वाद में किसी भी तरह का कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है। मैंने उनसे कहा कि अब परीक्षण पूरा हो चुका है और आपके परीक्षण के आधार पर यह पता चल गया है कि 20 में से 13 प्रकार की वनस्पतियां आपकी समस्या का कारण नहीं है। 

अब एक छोटा सा परीक्षण कल और करना होगा। दूसरे दिन फिर नियत समय पर वे आ गए और मैंने उनके सामने पके हुए चावल की एक प्लेट रखी और उनसे कहा कि आप इस चावल को मुंह में रखें। कुछ समय के लिए और जब भी आपको लगे कि आपके मुंह से बहुत अधिक मात्रा में लार निकल रही है तो आप मुझे बताएं। 7 मिनट के अंदर ही उन्होंने बताया कि पके हुए चावल खाने से उनके मुंह में बहुत अधिक लार बन रही है तब मैंने उन्हें एक दूसरे किस्म का पका हुआ चावल दिया जिससे कि उनकी समस्या का समाधान हो गया। अब पता चल चुका था कि उनकी समस्या का मूल क्या है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप किसी मात्रा में अतीस का प्रयोग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि मैं आपको अपने द्वारा प्रयोग किए जा रहे हैं सभी फार्मूले की पूरी जानकारी देता हूँ। वैसे मैं बहुत अधिक दवाओं का सेवन नहीं कर रहा हूँ। मुझे डायबिटीज की समस्या नहीं है। न ही ब्लड प्रेशर की समस्या है। मुझे साल भर शरीर के अलग-अलग भागों में बड़े-बड़े फोड़े हो जाते हैं इसलिए छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों की सलाह पर मैं गुम्मी भाजी का प्रयोग कर रहा हूँ। गुम्मी भाजी को मैं बरसात में ताजे रूप में इस्तेमाल करता हूँ और साल भर फिर उसे सुखाकर इस्तेमाल करता हूँ। इससे मुझे फोड़ों की समस्या नहीं होती है और एंटीबायोटिक्स का प्रयोग नहीं करना पड़ता है। इसके अलावा मैं किसी और तरह की जड़ी बूटियां नहीं ले रहा हूँ। 

मैंने उनसे पूछा कि अतीस का प्रयोग होम्योपैथिक दवाओं में भी होता है। क्या आप किसी तरह की होम्योपैथिक दवा ले रहे हैं तब उन्होंने बताया कि वे एकोनाइट नामक एक होम्योपैथिक दवा ले रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें साल भर हल्का बुखार आ जाता है विशेषकर जब मौसम बदलता है तब। इसके लिए उनके होम्योपैथिक चिकित्सक ने उन्हें एकोनाइट नामक दवा दी है जिसका मदर टिंचर उन्हें पानी के साथ लेना होता है। 

मैंने उन्हें खुलासा करते हुए कहा कि अतीस को ही अंग्रेजी में एकोनाइट कहा जाता है। मैंने जो परीक्षण किया उससे यह पता चल रहा है कि आपके शरीर में इस वनस्पति के विष की अधिकता है जिसके कारण आपको नर्वस सिस्टम की समस्याएं हो रही है। मैंने उनसे कहा कि आप मुझे वह पर्ची दिखाएं जिसमें होम्योपैथी डॉक्टर ने इसके उपयोग के बारे में लिखा है। जब उन्होंने पर्ची दिखाई तो उसमें लिखा था कि तीन से चार बूँद मदर टिंचर एक कप पानी में सुबह के समय लेना है।

 जब मैंने इस बारे में उन सज्जन से बात की तो उन्होंने बताया कि 3 से 4 बूँद से क्या होता है वे तो अधिक मात्रा में इसका प्रयोग करते हैं और जो मात्रा उन्होंने बताई वह 20 से 25 मि.ली. की थी। उन्होंने कहा कि होम्योपैथिक दवाओं को कम लो या ज्यादा इससे किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है। मैंने कहा कि यह आपकी गलतफहमी है। आपको जितनी मात्रा में अनुमोदन किया गया है आपको उतनी ही मात्रा में उस दवा का प्रयोग करना चाहिए था। आप बहुत अधिक मात्रा में इस दवा का प्रयोग कर रहे हैं जिससे कि आपको नर्वस सिस्टम की कई तरह की समस्याएं हो रही है।

 मैं आपको एक और बात बताना चाहता हूँ कि गुम्मी भाजी का प्रयोग एक मौसम में ही किया जाता है और लंबे समय तक इसका प्रयोग कभी भी नहीं किया जाता है विशेषकर सूखी हुई अवस्था में। आप साल में एक बार बरसात के मौसम में ही इस भाजी को खा लेंगे तो आपकी समस्या साल भर के लिए सुलझी रहेगी। लगातार इसके प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। मुझे नहीं लगता कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों ने आपको इसे साल भर खाने को कहा होगा तब उन्होंने स्वीकार किया कि चिकित्सकों ने तो केवल बरसात में ही इसके प्रयोग की सलाह दी थी पर मैंने अपना दिमाग लगाया और उसका प्रयोग में साल भर करने लगा। 

मैंने अब उनसे खुलासा किया कि गुम्मी भाजी की एकोनाइट से विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिसके बारे में मैंने बहुत से शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। इस बारे में बहुत लिखा है क्योंकि छत्तीसगढ़ के लोग गुम्मी भाजी शौक से खाते हैं और साथ ही होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग करते हैं। न केवल होम्योपैथिक दवा बल्कि आधुनिक दवा से भी इस भाजी की तरह-तरह की सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रियाएं होती है।

 मैंने उनसे कहा कि अब आपको अपनी समस्या की जड़ का पता चल गया है। यह समस्या खेसारी दाल के कारण नहीं है बल्कि ड्रग इंटरेक्शन के कारण है। आप गुम्मी भाजी का प्रयोग एक मौसम में ही करें और एकोनाइट की उतनी ही मात्रा का प्रयोग करें जितना कि होम्योपैथी चिकित्सक ने आपको अनुमोदित किया है। इससे आपकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। उन्होंने धन्यवाद दिया और वे वापस लौट गए। कुछ समय बाद उनका फोन आया कि अब उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो गया है। 

उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया और मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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