Consultation in Corona Period-254 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-254





Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"जैसे ही निवाला पेट में पहुंचता है पेट में बहुत तेज दर्द होता है और उसके बाद मेरी पत्नी खाने की टेबल से उठ जाती है। इस तरह दिन-ब-दिन उसका खाना कम होता जा रहा है। यह भी एक कारण है उसके कमजोर होने का और बार-बार बीमार पड़ने का। 

हमने पेट के अल्सर से लेकर पेट के कैंसर तक की जांच कराई पर जांच में किसी भी तरह का दोष नजर नहीं आया। पत्नी को हमेशा बहुत ठंड लगती रहती है। चिकित्सकों ने कहा कि ऐसा एनीमिया के कारण हो सकता है पर जब उसके खून की जांच की गई तो कोई विशेष लक्षण नहीं दिखे पर फिर भी उसकी तकलीफ को एनीमिया मानते हुए चिकित्सकों ने कई प्रकार के आयरन टॉनिक दिए। लंबे समय तक इससे उसके स्वास्थ में सुधार तो हुआ पर उसकी ठंड लगने की समस्या का समाधान नहीं हुआ। उसे हड्डियों तक बहुत ठंड लगती है और यदि वह ऐसे स्थान पर पहुंच जाए जहां पर अधिक मात्रा में पानी है जैसे कि आस पास कोई तालाब या झील हो तब उसकी ठंड लगने वाली समस्या बहुत अधिक बढ़ जाती है। ठंड लगने की समस्या को देखते हुए बहुत से चिकित्सकों ने मलेरिया की जांच करवाई पर इस जांच में भी कुछ नहीं पता चला। लक्षणों के आधार पर उसे मलेरिया की दवाई भी दी गई और कुछ चिकित्सकों की सलाह पर टीबी की भी पर नतीजा सिफर ही रहा। अलग-अलग चिकित्सकों से मिलने के कारण दवाओं का जखीरा बढ़ता गया फिर हमने निश्चय किया कि जब चिकित्सक किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो इतनी सारी दवाओं का सेवन करने से क्या फायदा। हमने धीरे-धीरे करके सभी दवाएं बंद कर दी। 

पत्नी ने योगाभ्यास का सहारा लिया है पर इससे उसकी मानसिक शक्ति तो बढ़ गई है पर शरीर अभी भी कमजोर ही है। हम लंबे समय से इस चक्कर में पड़े हुए हैं। आपको याद होगा बहुत सालों पहले हमने आपका व्याख्यान आयोजित किया था अपने विभाग में और आपका सम्मान भी किया था। इंटरनेट पर फिर से आपको पाकर मुझे लगा कि एक बार समस्या के बारे में आपको बताना चाहिए इसलिए मैं समय लेकर आपसे मिलने आ गया।" पड़ोसी राज्य से आए एक वन अफसर अपनी व्यथा सुना रहे। थे मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

जब उनकी पत्नी से बात हुई तो उन्होंने बताया है कि इन लक्षणों के अलावा उन्हें दिन भर बहुत नींद आती रहती है और चाय कॉफी का प्रयोग करने से भी यह नींद पूरी तरह से नहीं जाती है। नींद भगाने के लिए उन्होंने सूर्यभेदी प्राणायाम का भी प्रयोग किया पर नींद किसी भी तरह से नहीं जा रही है। सुबह के समय उन्हें बेहोशी की तरह लक्षण आते हैं और दोपहर के समय ऐसा लगता है जैसे कि उल्टी हो जाएगी पर उल्टी होती नहीं है। केवल उबकाई आती है। मैंने उनकी पत्नी के नाखून देखें फिर उनकी आंखों की जांच की। इसके बाद जीभ की बारी आई।

 इस आधार पर मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको हाथ पैरों में सूजन का अनुभव होता है। क्या ऐसा लगता है कि हाथ पैर फैलकर डबल हो गए हैं और उनमें सुन्नता आ गई है तब उन्होंने कहा कि हां ऐसा होता है।

 मैंने उनसे उनको रात को आने वाले सपनों के बारे में भी बताने को कहा और पूछा कि क्या उन्हें पानी वाले सपने अधिकतर दिखाई देते हैं तब उन्होंने कहा कि जब मैं ठीक थी तब पानी वाले सपने ज्यादा दिखाई देते थे पर अभी मुझे आग वाले सपने ज्यादा दिखाई देते हैं। इस आधार पर मैंने एक छोटे से परीक्षण की अनुमति उनसे मांगी जिसके लिए वे तैयार हो गई। 

मैंने उन्हें 7 तरह के जंगली फल चखने को दिए और फिर उन फलों के स्वाद के बारे में उनसे जानकारी ली। अब परीक्षण पूरा हो चुका था। जब मैंने उनके द्वारा उपयोग की जा रही खानपान की सामग्रियों की जानकारी ली और यह भी पूछा कि अभी वे कौन सी दवा ले रही है तो उन्होंने बताया कि वे अभी केवल त्रिफला का प्रयोग कर रही है और यह प्रयोग बहुत लंबे समय से कर रही है।

 बीच में टोकते हुए उनके पतिदेव ने कहा कि आप तो जानते ही हैं कि त्रिफला हम स्वयं ही तैयार करते हैं विभाग के द्वारा यानी जंगल से हम इसके घटकों को एकत्र करके विभाग के औषधालय में इसे बनाते हैं और फिर इसकी मार्केटिंग करते हैं सस्ते में यानी हमें सब कुछ अति शुद्ध ही मिलता है। यह एक महत्वपूर्ण जानकारी थी। इस जानकारी ने इस समस्या की संभावित कारणों के दायरे को बहुत कम कर दिया था। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपका औषधालय जंगल में है यानी आसपास बड़ी मात्रा में जंगली वृक्ष है विशेषकर कुसुम के वृक्ष तब उन्होंने कहा कि हां हमारा औषधालय शहर से दूर है और समझ जाइए कि जंगल के बीच ही है जहां वनवासी आकर दवाओं को तैयार करते हैं और फिर शहर में स्थित विभाग की दुकान के माध्यम से इनकी बिक्री की जाती है। इस व्यवस्था से जो भी लाभ होता है वह वनवासियों का होता है। केवल लागत मूल्य हम अपने पास रखते हैं। 

सारी बातें होने के बाद अनुमोदन के रूप में मैंने उनकी पत्नी से कहा कि आप 15 दिनों तक त्रिफला का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें और फिर मुझे बताएं।

15 दिनों के बाद उन्होंने फिर से मिलने का समय लिया और मुझे बताया कि त्रिफला का प्रयोग पूरी तरह से रोक देने से अब उनकी समस्या 90% तक सुलझ गई है। इस आधार पर मैंने उनसे कहा कि अब आप त्रिफला का प्रयोग फिर से शुरू कर सकती हैं पर औषधालय में तैयार किया हुआ त्रिफला उपयोग करने की बजाय आप किसी नामी कंपनी के त्रिफला का उपयोग करें या कम से कम यह प्रयास करें कि ऐसे औषधालयों में तैयार किया गया त्रिफला आप उपयोग करें जो कि जंगल में स्थित न हो। इसके बाद 15 दिनों के बाद फिर मुझे बताएं। 

मेरे अनुमोदन को सुनकर उनके पति थोड़े व्यग्र हो गए। मैंने उनसे कहा कि आप धैर्य रखें। मैं आपको बाद में पूरी बात विस्तार से समझा दूंगा। 15 दिनों के बाद वे दोनों जब मुझसे मिलने फिर से आए तो उन्होंने बताया कि त्रिफला का प्रयोग करने के बावजूद भी उनके लक्षण अब पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं और बहुत लंबे समय के बाद उन्हें राहत मिली है।

मैंने उनके पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि मैं आपको एक तस्वीर दे रहा हूं एक विशेष तरह के जीव की। मुझे आप वापस लौट कर यह बताएं कि क्या यह जीव आपके आसपास के जंगल में है या फिर इसकी अधिकता आपके औषधालय में है?

 वन अफसर वापस लौट गए और उन्होंने जल्दी ही मुझे संदेश दिया कि इस जीव की बहुत अधिक संख्या कुसुम के वृक्षों में है जोकि औषधालय के आसपास बड़ी संख्या में है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इसकी संख्या उनके औषधालय में भी बहुत अधिक है और कभी उन्होंने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।

 मैंने उन्हें जिस जीव की तस्वीर दी थी वह वास्तव में क्रॉस स्पाइडर की तस्वीर थी जो कि न केवल हमारे बगीचों बल्कि जंगलों में भी अधिक संख्या में होती है। इसका विष बहुत घातक होता है। शहर में इस बात की संभावना बहुत कम होती है कि हमारी भोजन सामग्री या दवा मकड़ी के संपर्क में किसी तरह से आए पर जंगली इलाकों में औषधालय होने पर इस बात की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।

 जंगलों में पाई जाने वाली क्रॉस स्पाइडर शहरों में पाई जाने वाली इसी तरह की मकड़ी से ज्यादा बड़ी होती है और उनमें विष भी अधिक होता है। जंगल में स्थित औषधालय में जब दवाओं का निर्माण किया जाता होगा तब किसी तरह यह विष दवाओं में मिल जाता होगा और इस ओर कोई ध्यान भी नहीं देता होगा। यदि इससे किसी तरह के लक्षण आते होंगे तो यह मान लिया जाता होगा कि यह किसी और कारण से आ रहे हैं क्योंकि उन्हें तो लगता है कि जड़ी बूटियों या हर्बल दवाओं से किसी भी तरह का नुकसान नहीं हो सकता है। मैंने छत्तीसगढ़ में ऐसे कई मामले देखे हैं और उनका समाधान भी किया है। पहले पहल इन मामलों को सुलझाने में बहुत समय लगा और मामले की जड़ तक जाने में काफी पसीना बहाना पड़ा। अब तो लक्षणों के आधार पर और एक छोटे से परीक्षण के आधार पर ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि कहीं इस मकड़ी के विष के कारण तो इस तरह के लक्षण नहीं आ रहे हैं। 

उन वन अफसर ने तुरंत ही निर्देश दिया कि औषधालय की पूरी सफाई की जाए। उन्होंने उस मकड़ी की एक बड़ी सी तस्वीर औषधालय में लगा दी और सभी को चेता दिया कि किसी भी हालत में यह मकड़ी औषधालय में नहीं दिखनी चाहिए।

 उन्होंने एक छोटा सा सर्वेक्षण भी किया। यह उन लोगों पर था जो कि उनके औषधालय से लगातार त्रिफला खरीदते थे और उसका प्रयोग करते थे। उन्होंने 100 से भी ज्यादा ऐसे मामलों की पहचान की जिनमें उसी तरह के लक्षण आ रहे थे जिस तरह के लक्षण उनकी पत्नी को आ रहे थे। उन्होंने सारी जानकारी मुझे दी और मुझसे उम्मीद की कि मैं उन्हें कुछ ऐसे उपाय बताऊं जिनके प्रयोग से इस मकड़ी के विष को खत्म किया जा सके कम समय में।

 मैंने उन्हें एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजा जो कि एक विशेष तरह का मेडिसनल राइस उगाते हैं। मैंने उन्हें निर्देशित किया कि आप प्रभावित लोगों को इस मेडिसिनल राइस का प्रयोग 1 महीने तक करने के लिए कहेंगे तो मकड़ी के विष का पूरा प्रभाव खत्म हो जाएगा। उन्होंने मेरी बात मानी और मुझे धन्यवाद दिया।

मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी।


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