Consultation in Corona Period-256 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-256





Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"हमने छत्तीसगढ़ के घने जंगलों से बहुत ही दुर्लभतम वनस्पतियों को एकत्र किया है और अब हम उसकी वैज्ञानिक पहचान करवाना चाहते हैं। हम आज दोपहर तक रायपुर पहुंच जाएंगे। यदि संभव हो तो आप आज शाम का ही अपॉइंटमेंट दे दीजिए 2 घंटों के लिए ताकि इत्मीनान से इन वनस्पतियों की पहचान हो सके और इससे संबंधित चर्चा भी।" एक जाने-माने वैज्ञानिक महोदय का जब यह संदेश आया तो मैंने अपने आप को असमर्थ पाया क्योंकि शाम को उत्तर-पूर्व से लंबी यात्रा करके कुछ लोग मुझसे मिलने आने वाले थे और उन्होंने 3 महीने पहले से समय लेकर रखा था।

 फिर कुछ समय बाद जब उन लोगों का फोन आया कि वे आज नहीं कल मिलना चाहते हैं यदि संभव हो तो क्योंकि उनकी ट्रेन लेट हो गई है। तब मैंने राहत की सांस महसूस की और उन्हें दूसरे दिन का समय दे दिया। साथ ही वैज्ञानिक महोदय को भी यह संदेश दे दिया कि शाम के 2 घंटे आपके लिए मैंने रख लिए हैं।

 शाम को जब घंटी बजी और मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि उनके स्थान पर कोई और व्यक्ति खड़ा हुआ है। उस व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा कि सर की तबीयत अचानक से बिगड़ गई है। उन्हें बीपी की समस्या हो रही है इसलिए उन्होंने दवा लेकर होटल में ही आराम करने का निर्णय लिया है। उन्होंने 30 प्रकार की वनस्पतियों को बांधकर मुझे दिया है और कहा है कि मैं आपसे मिलकर इनकी वैज्ञानिक पहचान करवा लूँ। मैं उनका जूनियर हूँ और पिछले कई सालों से उनके मार्गदर्शन में शोध कर रहा हूँ। 

मैंने जूनियर का स्वागत किया और कहा कि मैं 2 मिनट के बाद एक फोन अटेंड करके आता हूँ तब तक वे आराम से बैठे। जब मैं वापस आया तो मैंने देखा कि जूनियर भी सर्दी की किसी समस्या से परेशान लग रहे थे। बार-बार वे अपनी नाक को साफ कर रहे थे। मेरे आते ही उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक महोदय की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई है और उन्हें आनन-फानन में होटल वालों ने एक बड़े अस्पताल में भर्ती करा दिया है इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप जल्दी से वनस्पतियों की पहचान करें ताकि मैं उनसे मिलने अस्पताल जा सकूं। ऐसा कहकर उन्होंने वनस्पतियों के बंडल को धीरे-धीरे खोलना शुरू किया। 

कुछ समय बाद मुझे भी नाक में गीलेपन का कुछ एहसास हुआ और जब मैंने रुमाल से उस गीलेपन को परखने की कोशिश की तो देखा कि यह तो खून था। ताजा खून। मैंने जूनियर से उसी समय कहा कि आप जड़ी बूटियों को यहां न खोलें बल्कि लॉन में फैला दें ताकि उनकी अच्छे से पहचान हो सके। फिर उनसे यह भी पूछा कि क्या आपको भी नाक में किसी तरह की तकलीफ हो रही है या नाक से खून निकल रहा है तो उन्होंने कहा कि हां, आपको कैसे पता चला?

 मेरे दिमाग की घंटी बजी और मैंने तुरंत ही ब्लड प्रेशर की मशीन से जूनियर का ब्लड प्रेशर चेक किया तो मेरे होश उड़ गए। उनका ब्लड प्रेशर इतना अधिक था कि कल्पना करना भी मुश्किल था। दूसरे ही पल मैंने मशीन को अपनी बाहों में लगाया और जब ब्लड प्रेशर को नापा तो पता चला कि मेरी भी वैसी ही हालत है। मैंने लड़खड़ाते हुए अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाया और जड़ी बूटियों के चूर्ण की तलाश करने लगा। तबीयत इतनी बिगड़ी हुई थी कि बोतल के ढक्कन को खोलने में बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे यह कोई बहुत बड़ा कार्य हो। 

कमरे से वापस आते समय मैं दो बार लड़खड़ा कर गिर गया। जूनियर की हालत खराब थी। उन्होंने मुझे गिरते देख कर भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं की। मैंने पहले जड़ी बूटियों के चूर्ण को मुंह में डाला और गटागट पानी पी गया। इसके बाद मैंने कम शब्दों में जूनियर को बताया कि आप जो वनस्पति लेकर आए हैं उनमें एक वनस्पति ऐसी है जो कि बहुत विषैली है। इसी विषैली वनस्पति का प्रभाव हम सब पर पड़ रहा है और वैज्ञानिक महोदय भी इसी के शिकार हुए हैं ऐसा लगता है। यदि उनकी चिकित्सा ठीक से नहीं की गई तो समझ जाओ कि वे कुछ घंटों के मेहमान हैं। आज रात ही वे इस दुनिया से जा सकते हैं। मेरे पास इसका एंटीडोट है जिसका मैंने अभी प्रयोग किया है। इस चूर्ण को आप भी खा ले और पानी पी जाएं ताकि इसका असर कुछ तो कम हो जाए। 

जूनियर ने अपने मुंह में चूर्ण डाला पर पानी नहीं डाल पाए। उससे पहले ही बेहोश हो गए। आधे पौन घंटे के बाद जब मैं फिर से होश में आया तो मेरा शरीर पूरी तरह से पसीने से भीगा हुआ था। ऐसा लगता था जैसे कि किसी ने पानी से नहला दिया हो। बीपी कम हो चुका था पर बहुत अधिक कमजोरी हो रही थी। सामने जूनियर बेसुध पड़े हुए थे। जब मैंने उनका ब्लड प्रेशर नापा तो उसे भी सामान्य पाया। ब्लड प्रेशर की मशीन के दबाव से उनकी आंखें खुल गई और वे हड़बड़ा कर उठ बैठे।

 मैंने जूनियर से कहा कि हमें इस वनस्पति को नष्ट कर देना होगा अन्यथा इसके विष के फैलने से पूरी कॉलोनी में लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। ऐसा कहकर मैं बाथरूम की ओर बढ़ा और टॉयलेट में उपयोग किए जाने वाले एसिड की बोतल ले आया। बिना किसी देरी के उस वनस्पति पर डाल दिया।

 उसके बाद हम लोगों ने निर्णय किया कि हम अस्पताल की ओर जाएंगे और वैज्ञानिक महोदय की जान बचाने की कोशिश करेंगे। जब उन्होंने अस्पताल का नाम बताया तो संयोग से वह मेरे मित्र का अस्पताल निकला। मैंने मित्र से फोन पर बात की और सारे लक्षणों के बारे में बताया। मित्र ने बताया कि वैज्ञानिक महोदय की हालत बहुत खराब है। बीपी कंट्रोल से बाहर है और अब उनका बचना बहुत मुश्किल है। मैंने कहा कि सिर्फ 1 घंटे उन्हें बचाने की कोशिश करते रहो तब तक मैं एंटीडोट लेकर अस्पताल पहुंच जाऊंगा और उसके बाद उम्मीद है कि उनकी तबीयत में सुधार होगा।

 जब मैंने ओला की सेवाएं लेने का निश्चय किया तब जूनियर ने कहा कि वे गाड़ी से आए हैं और ड्राइवर बाहर ही बैठा हुआ है। जब हम उनकी गाड़ी तक पहुंचे तो ड्राइवर को सकुशल देखकर राहत की सांस महसूस हुई। यही लगा कि जब वनस्पतियां बंडल के रूप में थी और पूरी तरह से ढकी हुई थी तब उनका विषाक्त प्रभाव आसपास नहीं फैल रहा था। जब बंडल को खोला गया तभी यह समस्या हुई। 

जूनियर ने बताया कि वे लंबी यात्रा करके इसी गाड़ी से आए हैं और वनस्पतियों का बंडल गाड़ी में पीछे में रखा हुआ था उस समय तो हम लोगों को किसी भी तरह की कोई तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने यह भी बताया कि जब इस वनस्पति को एकत्र किया जा रहा था तो वनवासियों ने इसे एकत्र करने से साफ मना कर दिया। बड़ी मुश्किल से एक पारंपरिक चिकित्सक तैयार हुए जिन्होंने पहले विशेष तरह की जड़ी बूटियों का सेवन किया फिर उसके 1 घंटे बाद इस वनस्पति को उखाड़ कर लाए। हमने पारंपरिक चिकित्सक द्वारा ली जा रही दवाओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया और इसे अंधविश्वास ही माना पर अब जब मेरी और आपकी हालत ऐसी हो रही है तब मुझे समझ आ रहा है कि हमने बहुत बड़ी गलती कर दी है।

 जब हम अस्पताल पहुंचे तो वैज्ञानिक महोदय बेसुध हो चुके थे। उनके मुंह के माध्यम से एंटीडोट को उनके शरीर में पहुंचाया गया। उस समय तक मुझे गहरी नींद आने लगी थी। बस ऐसा लगता था कि कहीं बिस्तर मिल जाए और उसमें सोया जाए।

सबसे पहला काम मैंने यह किया कि घर में फोन करके परिवारजन को बता दिया कि जब वे बाजार से वापस आएं तो घर के अंदर प्रवेश न करें बल्कि एक रिश्तेदार के घर जाएं। जब मैं अस्पताल से वापस आऊंगा तब घर को पूरी तरह से साफ करने के बाद ही घर में प्रवेश हो पाएगा। मैंने यह भी कहा कि किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। मैं 1 घंटे के अंदर घर पहुंच जाऊंगा। मेरी स्थिति बिल्कुल ठीक है। 

ऐसा कहते-कहते मैं गहरी नींद में चला गया फिर जब मेरी नींद खुली तो मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा क्योंकि मैं अस्पताल में ही था और दिन निकल चुका था। चिकित्सक मित्र ने बताया कि मुझे गहरी नींद में पड़े हुए दो से अधिक दिनों का समय हो गया है। यही हाल जूनियर का भी था। मित्र ने खुशखबरी दी कि वैज्ञानिक महोदय अब पूरी तरह से ठीक है। वे मौत के मुंह से वापस आ चुके हैं। वैज्ञानिक महोदय के परिजन भी अब आ गए हैं और उनकी पूरी तरह से देखभाल हो रही है। मेरे परिजन भी बाहर ही खड़े थे और बेहद चिंतित है।

 जब दूसरे दिन वैज्ञानिक महोदय, उनके जूनियर और मैं तीनों फिर से बैठे तो मैंने उन्हें बताया कि आपके द्वारा लाई गई एक वनस्पति बहुत ही जहरीली है। इसे छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चिकित्सा में माचा विष कहा जाता है और यह यदि गलत हाथों में पड़ गया तो किसी जैविक हथियार से कम नहीं है। केवल कुछ ही पारंपरिक चिकित्सक इसकी काट के बारे में जानते हैं और आम लोगों में यह जानकारी है कि भूल कर भी इस वनस्पति को छेड़ना नहीं है। जंगल के जानवर भी इस बात को जानते हैं और इस वनस्पति से दूर रहते हैं। 

मैंने उन्हें इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम बताया और उनसे कहा कि वे इसके बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक न करें अन्यथा अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।

 मैंने उन्हें यह भी बताया कि जब भी मैं पौधों को पहचानने के लिए लोगों को समय देता हूँ तो बहुत अधिक सावधानी बरतता हूँ क्योंकि ऐसी घटना मेरे साथ पहले भी हो चुकी है। इसके लिए मैं तगड़ी फीस लेता हूँ ताकि यदि वनस्पतियों के कारण स्वास्थ को किसी भी प्रकार का नुकसान हो तो उसकी भरपाई की जा सके। मेरे पास उन्हीं वनस्पतियों को लाया जाता है जिसके बारे में कोई भी किसी तरह की जानकारी नहीं देता है। मुझसे उम्मीद की जाती है कि मैं इन वनस्पतियों को पहचान कर उनकी मदद करूंगा। अधिकतर ये जहरीली वनस्पतियां होती हैं जो कि न केवल एकत्र करने वालों को बल्कि दूसरे मुझ जैसे इसकी पहचान करने वाले लोगों को भी प्रभावित करती है।

 मैंने वैज्ञानिक महोदय से कहा कि बीते दिन की घटना से हम लोगों के हृदय और किडनी पर बहुत बुरा असर पड़ा होगा क्योंकि हमारा ब्लड प्रेशर नियंत्रण से बाहर था। मैंने उन्हें एक विशेष तरह का मेडिसिनल राइस पर आधारित फार्मूला सुझाया और कहा कि वे कम से कम 5 से 7 साल तक इस फार्मूले का प्रयोग लगातार करते रहे जिससे कि इस विष का दुष्प्रभाव पूरी तरह से खत्म हो जाए। किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें अन्यथा इस बीच ही हमारी जान जा सकती है। वैज्ञानिक महोदय ने धन्यवाद दिया जान बचाने के लिए और पहचान बताने के लिए। 

उन्होंने क्षमा मांगी कि उनके कारण इतने लोगों की जान खतरे में पड़ गई। उन्होंने आर्थिक रूप से भरपाई की पेशकश की और कहा कि उनके प्रोजेक्ट में बहुत पैसे हैं और अगर आप चाहे तो उनमें से अपनी चिकित्सा के लिए धन ले सकते हैं।

 मैंने कहा कि यह तो ऑक्यूपेशनल हजार्ड है। इससे बचा नहीं जा सकता है। मैं अगर यह जोखिम नहीं उठाता तो मेरे जैसा कोई विशेषज्ञ ऐसा जोखिम उठाता जिसे शायद इसके एंटीडोट के बारे में जानकारी नहीं होती। यह तो अच्छा हुआ कि जल्दी ही मुझे इस बात का आभास हो गया कि इस वनस्पति के कारण ही ऐसी समस्या हो रही है। 


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