Consultation in Corona Period-93

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


 "आजकल तो कोई भी स्वास्थ समस्या होने पर सारा दोष कोरोनावायरस को दिया जाता है पर हमें यह स्वीकारने में जरा भी संकोच नहीं है कि इन स्वास्थ समस्याओं के लिए हमारा प्रोडक्ट जिम्मेदार है।


 यही कारण है कि जैसे ही हमें पता चला कि हमारे प्रोडक्ट के कारण मार्केट में बहुत सारे लोग विभिन्न स्वास्थ समस्याओं से प्रभावित हो रहे हैं तो हमने बिना किसी देरी के सारे प्रोडक्ट को वापस मंगा लिया और उसकी जांच करानी शुरू कर दी।


 हम बड़ी उम्मीद से अपने उत्पाद अडूसा यानी वासा को लेकर बाजार में गए थे क्योंकि कोरोना के कारण बड़ी संख्या में लोग फेफड़े की समस्याओं से परेशान थे और चिकित्सक उन्हें लगातार सलाह दे रहे थे कि वे वासा का प्रयोग करें ताकि उनके फेफड़े की स्थिति पूरी तरह से ठीक रहे।


 हालांकि वासा कोरोनावायरस का इलाज नहीं है पर उसके लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में कामयाब रहा है। ऐसा हमारे मार्केटिंग एजेंट भी बताते रहे और हमारे वैज्ञानिक भी। 


पर जब उल्टी रिपोर्ट आनी शुरू हुई कि वासा के कारण कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो रही है तो हमने अपने डॉक्टरों की टीम को इसके लिए लगाया।


 उन्होंने बड़ा चौंकाने वाला तथ्य प्रस्तुत किया कि प्रभावितों में साइनाइड के समतुल्य लक्षण आ रहे हैं पर यह बहुत ही कम मात्रा में साइनाइड से जो लक्षण आते हैं वे लक्षण थे। 


हमने अपनी खेती की विधि की पूरी तरह से जांच की। हम जिस कृषि रसायन का प्रयोग कर रहे थे उसकी भी लैबोरेटरी में जांच करवाई पर यह हम नहीं जान पाए कि हमारे उत्पाद में सायनाइड कहां से आ रहा था।


 आपने हर्बल फार्मिंग पर बहुत शोध किया है और दुनिया भर में जड़ी-बूटियों की खेती करवा रहे हैं इसलिए हमने आपसे परामर्श लेने का निश्चय किया है।


 आप हमें जल्दी से जल्दी इस समस्या का कारण बताएं और साथ में समाधान भी बताएं ताकि हम अपने इस उत्पाद में थोड़ा बहुत सुधार करके फिर से बाजार में प्रस्तुत कर सके और इस कोरोनावायरस काल में कुछ लाभ अर्जित कर सके।"


 उत्तर भारत के एक फार्मास्यूटिकल कंपनी के डायरेक्टर ने जम्मू से संपर्क किया तो मैंने विस्तार से उनसे जानकारी मांगी और साथ ही वासा का सैंपल भी। 


जब वासा के सैंपल की जांच की तो उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं पाई गई। जब साइनाइड के लिए पत्तियों की जांच की गई तो उसमें बहुत ही कम मात्रा में सायनाइड के अंश मिले। 


यह किसी सैंपल में अधिक थे और किसी सैंपल में कम। मैंने उनसे खेती की विधियों के बारे में विस्तार से जानकारी ली।


 वे कई वर्षों से या कहें कि कई पीढ़ियों से हर्बल फार्मिंग कर रहे हैं और देश में एक जाना पहचाना नाम हैं इसलिए उन्होंने हर्बल फार्मिंग में किसी भी तरह की कोई चूक नहीं की थी।


 ऑर्गेनिक फार्मिंग तो नहीं करते थे पर कृषि रसायनों का बहुत अधिक जरूरत पड़ने पर ही उपयोग करते थे।


 वे जिन रसायनों का उपयोग कर रहे थे उनमें किसी भी मात्रा में साइनाइड उपस्थित नहीं था। फसल के दौरान किसी भी तरह का सूखा नहीं सहन करना पड़ा था।


 न ही अधिक मात्रा में फसल को पानी की आपूर्ति की गई थी। फसल को सही अवस्था में काटा गया था। 


फिर भी पत्तियों में विषाक्तता कहां से आ रही थी इस बात का अंदाज ही नहीं लग पा रहा था। 


जब उन्होंने फोन पर मुझसे बात करने का समय लिया तो मैंने पहला प्रश्न उनसे यही पूछा कि जिस खेत में वासा की खेती की गई क्या वह खेत पहली बार इस्तेमाल किया गया? 


तब उन्होंने कहा कि वे पिछले 2 वर्षों से वासा की खेती कर रहे हैं पर यह खेत उनके पास कई दशकों से है।


 मेरा अगला प्रश्न था कि 2 वर्ष पहले तक उन खेतों में किस फसल को लिया जा रहा था जब उन्होंने कहा कि उन खेतों में 15 से भी अधिक वर्षों से कलिहारी की खेती की जा रही थी तब सारे रहस्य धीरे-धीरे खुलने लगे। 


कलिहारी एक विषैली औषधीय फसल है जिसकी जड़ों से खतरनाक एलिलोकेमिकल्स निकलते हैं और ये एलिलोकेमिकल्स साइनाइड युक्त होते हैं। 


जिन स्थानों में बहुत अधिक पानी गिरता है वहां पर तो पौधों से निकले हुए केमिकल पानी में बह जाते हैं और ये जमीन के अंदर चले जाते हैं


 पर अधिकतर कलिहारी की खेती ऐसे स्थानों पर की जाती है जहां बहुत अधिक वर्षा नहीं होती है क्योंकि बहुत अधिक वर्षा वाले स्थान में कलिहारी उगाने पर उसके गुणों में कमी आ जाती है। 


ऐसे स्थानों पर कलिहारी के पौधों से निकले हुए रसायन कुछ हद तक मिट्टी में रह जाते हैं और जब अगली फसल ली जाती है तो अगली फसल की जड़े उन रसायनों को अवशोषित कर लेती हैं। 


मैंने अपने अनुसंधान में यह पाया है कि सभी पौधे इतने सक्षम नहीं होते हैं कि वे मिट्टी में पड़े पहले की फसल के रसायन को अवशोषित कर ले और इतने विषैले हो जाए कि उनके प्रयोग से विपरीत लक्षण आने लगे या किसी की जान पर बन आये।


 पर बहुत सी फसलें इन रसायनों को अवशोषित करने में सक्षम होती हैं और साथ ही जब इन फसलों का उपयोग किन्ही उत्पादों में किया जाता है तो उन उत्पादों में भी दोष आ जाते हैं। 


अडूसा या वासा उनमें से एक फसल है।


 जब उन्होंने समस्या का कारण जाना तो सिर पकड़ लिया और कहा कि उन्हें इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी अन्यथा वे कुछ साल रुक कर वासा की खेती उस खेत में करते।


 उन्होंने पूछा कि क्या इसका कोई समाधान है?


 वे चाहते थे कि मैं कुछ ऐसे रसायन उन्हें बताऊं जिनकी सहायता से साइनाइड से प्रभावित वासा की पत्तियों को उपचारित किया जा सके और उसे फिर से बाजार में उतारा जा सके। 


मैंने उन्हें कहा कि इस बारे में मेरा ज्ञान नहीं है। हां, मैं आपके खेतों के उपचार की विधि बता सकता हूं जिससे कि मिट्टी से साइनाइड के अंश जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाए और आप वहां पर दूसरी फसल सुरक्षित ढंग से ले सकें।


 उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह है कि जो हमने अडूसा उत्पादित किया है उसे पूरा का पूरा हमें फेंकना होगा। 


मैंने कहा कि हां, यदि उसके उपचार की विधि नहीं मिलती है तो यही करना होगा। यह आपके लिए एक बड़ा घाटा होगा पर एक अच्छा सबक भी। 


मैंने उन्हें बताया कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में बहुत सारे मेडिसिनल राइस इस समस्या के लिए उपयोग किए जाते हैं।


 इन मेडिसिनल राइस को खेतों में लगाने से एक तरह से खेत पूरी तरह से शुद्ध हो जाते हैं। उनके विकार पूरी तरह से दूर हो जाते हैं। 


न केवल सायनाइड बल्कि दूसरे घातक तत्व भी मिट्टी से पृथक हो जाते हैं। इन मेडिसिनल राइस को पकने के बाद प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि उन्हें नष्ट कर दिया जाता है। 


इनकी 60 से 70 दिन की एक फसल लेने पर मिट्टी पूरी तरह से शुद्ध हो जाती है और उसमें अगली किसी भी फसल को सुरक्षित ढंग से लगाया जा सकता है।


मैंने उन पारंपरिक चिकित्सकों के पते उन्हें बताएं जिनके पास यह राइस उपलब्ध थे और उनसे कहा कि आप अगर मेरा नाम उन्हें बताएंगे तो वे आपको बहुत ही कम कीमत पर या बिल्कुल मुफ्त ही इन्हें दे सकते हैं।


 पर मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप उनकी मेहनत के अनुसार उन्हें कीमत देने में किसी भी प्रकार की कमी न करें।


 मैंने उन्हें आगे बताया कि बहुत सारी ऐसी औषधीयाँ है जिनका प्रयोग साइनाइड युक्त वासा के साथ करने से वासा का यह दोष खत्म हो जाता है। 


यह देश का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है पर इस पर अभी अनुसंधान नहीं हुए हैं।


 क्योंकि जिस तरह की घटना आपके साथ हुई है ऐसी घटनाएं बहुत कम होती है या कहें कि ऐसी घटनाओं के बारे में बहुत कम पता चलता है। 


भारत के लोगों में हर्बल प्रोडक्ट पर गहरी आस्था है और इन प्रोडक्ट का उपयोग करने से यदि उन्हें किसी तरह की स्वास्थ्य समस्या होती है तो वे कभी भी इन प्रोडक्ट्स को इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानते हैं।


 वे मान लेते हैं कि वे जो आधुनिक दवा खा रहे हैं उसके कारण ये उल्टे प्रभाव हो रहे हैं। 


यही कारण है कि हर्बल प्रोडक्ट की ठीक से जांच नहीं हो पाती है और जाने अनजाने असंख्य लोग गलत तरीके से तैयार किए गए हर्बल प्रोडक्ट का उपयोग कर अपना स्वास्थ बिगाड़ते रहते हैं।


 डायरेक्टर साहब ने उन औषधीयों में रुचि दिखाई जो कि साइनाइडयुक्त वासा के साथ प्रयोग की जा सकती थी। 


मैंने उन्हें विस्तार से पूरी जानकारी दी।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

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