Consultation in Corona Period-84

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"अभी जो सारी रिपोर्ट आई है वे यही बता रही हैं कि शरीर के अंदर के रक्त नलिकाएं जगह-जगह से फट गई है और उनसे खून बाहर आकर जम रहा है। 


Hematoma का यह मामला हमें बहुत डरा रहा है। पापा जी को नाक से खून निकलने की समस्या हर ठंड में हो जाती है और उस समय कभी कभी उनके पेशाब में भी खून मिलता है पर इस तरह शरीर के विभिन्न हिस्सों की रक्त नलिकाओं से खून निकलने की समस्या पहली बार हो रही है। 


अभी कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन लगा हुआ है। ऐसे में उन्हें अस्पताल में भर्ती करना भी एक समस्या है। 70 वर्ष की आयु में उन्हें हम इंफेक्शन के डर से अस्पताल में भर्ती नहीं करना चाह रहे हैं।


 उन्हें पहले थायराइड की समस्या थी। इसके लिए उनकी दवायें नियमित रूप से चल रही थी। अभी जनवरी में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर का जब पता चला तो उसके लिए भी कई तरह की दवाएं उन्हें दी जा रही है। 


उन्हें लगता है कि अचानक ही इस तरह इंटरनल ब्लीडिंग का कारण उनकी डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की दवा है। 


ऐसा मानते हुए उन्होंने अभी इन सभी दवाओं का प्रयोग करना बंद कर दिया है जबकि उनके चिकित्सक कह रहे हैं कि दवाओं का प्रयोग किसी भी हालत में बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि इंटरनल ब्लीडिंग से इन दवाओं का कोई वास्ता नहीं है। 


उनको और भी तरह के लक्षण आ रहे हैं जिनके बारे में एक वीडियो बनाकर मैं आपको भेज रही हूँ। आप इनका अध्ययन करें और यह स्पष्ट करें कि क्या यह किसी ड्रग इंटरेक्शन के कारण हो रहा है?"


 यह फोन उनकी बिटिया का था जोकि बहुत अधिक चिंतित थी।


 उनके द्वारा भेजे गए वीडियो को देखने के बाद मैंने कहा कि उनके चिकित्सक सही कह रहे हैं कि इस तरह के लक्षण थायराइड, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की दवाइयों के कारण नहीं आते हैं इसलिए सबसे पहले तो आपके पिताजी को चिकित्सकों की बात मानना चाहिए और इन सब दवाओं का सेवन जारी रखना चाहिए।


 मैंने उनसे यह भी कहा कि जब भी उनके पिताजी को थोड़ा अच्छा लगे तो उनकी बात मुझसे करवाएं। हो सकता है कि उनसे बातचीत करने से यह स्पष्ट हो सके कि इस तरह के विचित्र लक्षण क्यों आ रहे हैं?


 जब उनके पिता जी से बात हुई तो वे बार-बार यही कहते रहे कि उन्होंने जीवनभर कभी दवाओं का अधिक सेवन नहीं किया है क्योंकि जीवनभर वे बीमार नहीं रहे हैं। 


बस उन्हें ठंड में ही समस्या होती है जब नाक से बहुत अधिक खून निकलता है और वे बहुत अधिक कमजोर हो जाते हैं। 


उन्होंने बताया कि वे अपने बेटे के पास जब अमेरिका गए थे तब उन्होंने वहां के डॉक्टरों से भी अपनी जांच करवाई थी पर डॉक्टर यह नहीं बता पाए कि उनको ठंड में ही नाक से खून निकलने की समस्या क्यों होती है?


 वे मुझसे बार-बार अनुरोध कर रहे थे कि मैं उनके चिकित्सकों को कहूँ कि वे डायबिटीज, थायराइड और ब्लड प्रेशर की दवाओं को पूरी तरह से बंद कर दें।


 मैंने उनसे विनम्रतापूर्वक कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि आपके सभी चिकित्सक सही दिशा में हैं और आपको जो विचित्र लक्षण आ रहे हैं उसका कारण ये दवाएं नहीं है।


 मैंने उनकी बेटी से कहा कि वह ध्यानपूर्वक ऐसी भोजन सामग्रियों की सूची बनाएं जिनका प्रयोग वे हर बार ठंड के समय ही करते हैं और इस बार वे गर्मी के मौसम में उन सामग्रियों का प्रयोग कर रहे हैं जिनके कारण ऐसे लक्षण आ सकते हैं। 


उन्होंने जब एक लंबी सूची मुझे सौंपी तो मैंने लक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि शीत ऋतु में उगने वाली किसी वनस्पति के कारण ऐसे लक्षण आ सकते हैं। 


उनकी लंबी सूची में से मैंने तीन भोजन सामग्री अलग की। यह भोजन सामग्री थी गेहूँ, चना और सौंफ। 


इन तीनों भोजन सामग्रियों के नमूने मैंने कोरियर से उनसे मंगवा लिए और जब अपनी प्रयोगशाला में उन सबकी जांच की तो सबसे पहले सौंफ को दोषमुक्त पाया। 


उसके बाद गेहूँ की जांच की तो उसमें भी किसी प्रकार का दोष नहीं मिला।


 उन्होंने जो चना भेजा था उसके छोले बना कर मैंने खाए और फिर इन चनों को पानी में भिगोकर अंकुरित करके देखा पर उसमें भी किसी भी प्रकार की विषाक्तता नहीं मिली।


 लक्षणों के आधार पर मैंने उन्हें एक विशेष तरह का मेडिसिनल राईस सुझाया और उनके लिए इसकी व्यवस्था कर दी। 


मैंने उन्हें साफ शब्दों में कहा कि जब तक यह नहीं पता चलता है कि किस रसायन के कारण इस तरह के लक्षण आ रहे हैं तब तक आप इस राइस का प्रयोग कर सकते हैं पर इससे पूरी तरह से समस्या का समाधान नहीं होगा बल्कि उस रसायन की विषाक्तता कुछ हद तक कम हो जाएगी। 


राइस की भूमिका यही तक है। 


जब उन्होंने इसका प्रयोग करना शुरू किया तो उनके लक्षण कम होने लगे और उन्हें राहत महसूस होने लगी पर उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हुआ।


 एक दिन उनकी बेटी ने मुझे एक वीडियो भेजा जिसमें उनके पिता जी प्रसन्न मुद्रा में भोजन कर रहे थे। मैंने उस वीडियो को ध्यान से देखा तो अनायास ही उनकी थाली पर मेरा ध्यान गया और मैंने उनकी बिटिया से पूछा कि वे किस तरह की सब्जी का प्रयोग इतनी रुचि के साथ कर रहे हैं।


 तो उन्होंने बताया कि यह उनकी फेवरेट सब्जी है जो कि चने की पत्तियों से तैयार की जाती है और वह कहते हैं कि बिना ऑक्सीजन के वे रह सकते हैं पर चने की पत्तियों से तैयार इस सब्जी के बिना एक पल भी नहीं रह सकते हैं।


 उन्होंने आगे बताया है कि ठंड में तो चने की ताजी पत्तियां मिल जाती है पर अभी इस कोरोना काल में गर्मी के मौसम में हम चने की सूखी पत्तियों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे हमने पहले से ही बड़ी मात्रा में तैयार कर लिया था।


 मैंने उनसे पूछा कि आप को कहां से चने की पत्तियां मिल जाती है इस कंक्रीट जंगल में तो उन्होंने बताया कि उनके बड़े पिताजी का शहर के पास ही एक फार्म है जहां वे चने की ऑर्गेनिक खेती करते हैं। चने की भाजी वहीं से आ जाती है।


अब कुछ-कुछ सूत्र मिलने लगा था।


 मैंने कुछ वनस्पतियों की तस्वीरें उन्हें भेजी और फिर कहा कि वह अपने बड़े पिताजी से यह पूछ कर बताएं कि क्या उनके फॉर्म में ये वनस्पतियां होती हैं?


 उनके बड़े पिताजी ने तस्वीर देखने के बाद कहा कि इसमें से केवल एक ही प्रकार की वनस्पति उनके फार्म में उगती है और वह उनके लिए सिरदर्द बनी हुई है। 


ठंड में जितनी भी फसल वे लेते हैं सब में इस वनस्पति की उपस्थिति रहती है और इस वनस्पति का नियंत्रण बहुत कठिन होता है। 


वे ऑर्गेनिक खेती करते हैं इसलिए किसी भी प्रकार के खरपतवारनाशी का प्रयोग नहीं कर सकते हैं अन्यथा इस विशेष वनस्पति को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। उन्होंने ऐसा बताया।


 मैंने उनसे पूछा कि आपको इस वनस्पति के बारे में क्या-क्या जानकारी है? 


उन्होंने बताया कि पुणे से जब उन्होंने ऑर्गेनिक खेती के बारे में विस्तार से ट्रेनिंग ली थी तब उन्हें बताया गया था कि ऑर्गेनिक खेती में उगने वाले वाली सभी वनस्पतियां औषधीय गुणों से भरपूर होती है इसलिए हम भी इस वनस्पति को औषधि गुणों से परिपूर्ण मानते हैं।


 और इसलिए मैं अपने छोटे भाई के लिए जब चने की भाजी भेजता हूँ तो इसके साथ में इस वनस्पति को भी भेज देता हूँ। यह मेरे छोटे भाई को बहुत पसंद आती है।


 अब सारी समस्या का समाधान आंखों के सामने दिखने लगा था। 


जिस वनस्पति की बात मैं उनसे कर रहा था वह वनस्पति वास्तव में एक बहुत ही अधिक जहरीली वनस्पति थी जिस का वैज्ञानिक नाम मैलीलोटस है। 


यह ठंड के मौसम में उगने वाली फसलों में खरपतवार की तरह होती है और यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में लंबे समय तक किया जाए तो वैसे ही लक्षण आते हैं जैसे कि इन सज्जन को आ रहे थे। 


भारतीय किसान इस वनस्पति को अच्छे से पहचानते हैं और अपने हाथों से उखाड़ कर खेतों से इसे अलग कर देते हैं। 


पुणे की जिस संस्था से बड़े पिताजी ने ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग ली थी संभवत वहां के विशेषज्ञ से उन्हें गलत जानकारी मिल गई।


 इस वनस्पति के रसायन जब मिट्टी में निकलते हैं तो उन्हें चने के पौधे अवशोषित कर लेते हैं और उनमें विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है। 


इस विष को आसानी से महसूस नहीं किया जा सकता है। केवल वैज्ञानिक परीक्षण से ही यह पता चल सकता है कि इसमें विष कितनी मात्रा में उपस्थित है और वह किस तरह से इसे उपयोग करने वाले व्यक्ति को प्रभावित करेगा।


 मैंने अपने अनुभव से देखा है कि जब चने की फसल में यह वनस्पति खरपतवार के रूप में उगती है तब चने के सभी पौधे विष से युक्त नहीं होते हैं।


 केवल वे ही पौधे विष से परिपूर्ण होते हैं जो कि इस वनस्पति की अधिक संख्या से घिरे होते हैं। 


मैंने उनकी बिटिया से कहा कि आप इन चने की पत्तियों का प्रयोग अब पूरी तरह से रोक दें फिर मुझे 15 दिनों के बाद बताएं कि उनकी हालत में किसी तरह का सुधार हुआ कि नहीं। 


जब उनका फिर से फोन आया तो उन्होंने बताया कि उनकी स्थिति में आश्चर्यजनक तरीके से सुधार हुआ है और उनकी ताजा रिपोर्ट बता रही है कि अब इंटरनल ब्लीडिंग की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया है।


 पर वे बहुत नाराज हैं क्योंकि उन्हें उनकी मनपसंद चने की पत्तियों की सब्जी नहीं दी जा रही है। 


मैंने उनसे कहा कि अब चने की पत्तियां अगले ही मौसम में मिलेंगी। जब उनके बड़े भाई ऐसी पत्तियां भिजवायेंगे जो कि पूरी तरह से मैलीलोटस से मुक्त हो।


 ये पत्तियां उन खेतों से आएंगी जो कि मैलीलोटस से पूरी तरह से मुक्त हो। तब तक उन्हें संयम का पालन करना होगा नहीं तो स्थिति पहले की तरह बिगड़ सकती है। 


वे इस बात को समझ गए और उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

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