Consultation in Corona Period-92

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"बॉडी में हमें आर्सेनिक, धतूरा और मरकरी के लक्षण दिखे और हमें पूरा विश्वास था कि जब हम शव परीक्षण करेंगे तो हमें इन तीनों में से कोई न कोई विष जरूर मिलेगा।


 पर गहन परीक्षण के बाद भी इन तीनों में से किसी विष का कोई भी अंश शरीर में नहीं था। 


इससे हम सभी उलझ गए हैं और हमें यह नहीं सूझ रहा है कि आखिर 70 वर्षीय वृद्ध की हत्या कैसे की गई?"


 मुंबई से मेरे फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र फोन पर बात कर रहे थे और एक ऐसे केस के बारे में बता रहे थे जिसके बारे में उनके सभी साथियों को यह शक था कि यह हत्या का केस है।


 पर यह नहीं जान पा रहे थे कि हत्या किस तरह से हुई। उन्होंने बताया कि जिन वृद्ध की हत्या की गई है वे अकूत संपत्ति के मालिक थे और उनके बाद उनकी पूरी संपत्ति उनकी पत्नी को मिलने वाली थी। 


उनके एक भी बेटे नहीं थे और न ही बेटी। पहले पुलिस को उनकी पत्नी पर शक था क्योंकि हत्या के कुछ घंटे पहले ही उनकी पत्नी एक वैद्य को लेकर आई थी जिसने उनके पति को बहुत सारी दवाएं दी थी। 


घर के नौकर ने बताया कि जब इन दवाओं को दिया गया तो सेठ जी की हालत बहुत बिगड़ गई और जो लक्षण उसने बताएं वे सभी खतरनाक विष की ओर इशारा करते थे।


 इसलिए सबसे पहले पुलिस ने उनकी पत्नी को गिरफ्तार किया और गहनता से छानबीन की पर उन्हें किसी भी तरह का सुराग नहीं मिला।


 जब पत्नी ने बताया कि उसे खुद को हड्डियों का कैंसर है और वह ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है। फिर वह अपने पति की हत्या क्यों करेगी तब पुलिस वालों को होश आया और उन्होंने क्षमा मांगते हुए उन्हें केस से अलग कर दिया। 


घर के नौकरों से भी गहनता से पूछताछ हुई पर किसी भी तरह का कोई परिणाम नहीं निकला।


 मैंने आपके नाम की सिफारिश की है पर पुलिस के मुखिया इस बात से खुश नहीं है। 


उनका कहना है कि जो वैज्ञानिक है वे फॉरेंसिक विशेषज्ञ से मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए आपकी मदद नहीं ली जाए।


 पर फिर भी आपने इतने सारे मामलों को सुलझाया है। इसलिए मैंने उन्हें मना लिया है कि वे आपकी बात भी सुने।


 आप यह बताइए कि आपको हमारी ओर से किस तरह की मदद की जरूरत है? हम आपकी सारी जरूरतें पूरी करेंगे।


 मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 


मुझे आप उन दवाओं के सैंपल भेज दें जिनका प्रयोग वे सज्जन कर रहे थे। जब मुझे दवाओं के सैंपल मिले तो मैंने देखा कि उनमें तीन किडनी की दवाएं थी। 


एक ताकत की दवा थी। एक प्रोस्टेट की दवा थी जबकि कई तरह के अवलेह थे। 


मैंने पारंपरिक विधि से पहले इन सब दवाओं की जांच की। उसके बाद स्थानीय लैब की सहायता से इनका परीक्षण किया।


 मुझे बताया गया है कि वृद्ध डायबिटिक थे और लंबे समय से मेटफॉर्मिन का प्रयोग कर रहे थे।


 मैंने पहले उनकी पत्नी से बात की और उनसे पूछा कि क्या ये दवाएं उन्होंने जीवन में पहली बार लेनी शुरू की या पहले भी इन्हें लेते रहे हैं?


 उन्होंने कहा कि उनके पति को आयुर्वेदिक दवाओं पर किसी भी तरह का विश्वास नहीं था इसलिए जिंदगी भर वे आधुनिक दवाओं के सहारे रहे।


 पर जब उनकी तबीयत बहुत बिगड़ने लगी तब मैंने वैद्य जी को बुलाया और उन्होंने इतनी सारी दवाएं लिख कर दी।


 पर पता नहीं इन दवाओं से ऐसा क्या हुआ कि इन्हें लेने के कुछ घंटों बाद ही उन्हें बहुत बेचैनी होने लगी और देखते ही देखते उनकी मृत्यु हो गई। 


उनकी पत्नी से बात करने के बाद मैंने वैद्य जी से बात की और पूछा कि उन सज्जन को कौन-कौन सी बीमारी थी?


 वैद्य जी ने बताया कि उन्हें प्रोस्टेट की बीमारी थी और साथ ही पेशाब बहुत कम मात्रा में निकल रही थी। 


इसी आधार पर इतनी सारी दवाएं उनको लिख कर दी जिन्हें अलग-अलग दिन लेना था। एक साथ नहीं लेना था। 


उन्होंने यह भी बताया कि वे लंबे समय से डायबिटीज के मरीज थे और इसके लिए वे एक अंग्रेजी दवा मेटफॉर्मिन का लंबे समय से प्रयोग कर रहे थे। 


जब वैद्य जी ने उनसे कहा कि इसके स्थान पर वे आयुर्वेदिक नुस्खा दे सकते हैं तो वे बहुत गुस्सा हुए और उन्होंने कहा कि डायबिटीज की दवा को मैं किसी भी हालत में बंद नहीं कर सकता। 


आप बाकी रोगों की दवा दे दें पर डायबिटीज के लिए तो मैं मेटफॉर्मिन का ही प्रयोग करता रहूँगा। इससे मुझे हमेशा से बहुत अधिक लाभ होता रहा है।


 वैद्यजी के नुस्खे में च्यवनप्राश का भी एक नुस्खा था जो कि किसी ब्रांड का नहीं था।


 वैद्य जी ने बताया कि वे इसे अपनी प्रयोगशाला में तैयार करते हैं और इसकी बहुत अधिक मांग है। 


वे शास्त्रीय विधि से इसे तैयार करते हैं और प्रतिनिधि द्रव्यों के स्थान पर मूल द्रव्यों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण यह च्यवनप्राश बहुत अधिक प्रभावी होता है। 


उन्होंने यह भी बताया कि इससे इस च्यवनप्राश की कीमत बहुत अधिक बढ़ जाती है और केवल साधन संपन्न लोग ही इसे ले पाते हैं। 


जब मैंने च्यवनप्राश के घटकों के बारे में उनसे जानकारी लेनी शुरू की तो पहले तो वे हिचके फिर उन्होंने विस्तार से सब कुछ बताना शुरू किया। 


मैंने उनसे पूछा कि आप इन घटकों को खुद जंगल जाकर एकत्र करते हैं या कहीं और से खरीदते हैं?


 फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको मालूम है कि आपका च्यवनप्राश दोषपूर्ण है?


 इसके स्वाद में भिन्नता है और इसे अधिक मात्रा में लेने से उल्टी लगने लग जाती है तो वे नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि इसमें सारे शुद्ध घटक डाले गए हैं और किसी भी तरह की मिलावट नहीं की जाती है।


मैंने उन्हें बताया कि जब उनके च्यवनप्राश का मैंने रायपुर में परीक्षण करवाया और साथ ही पारंपरिक विधियों से भी परीक्षण किया तो उससे यह ज्ञात हुआ कि इस च्यवनप्राश में अति दोष युक्त पिपली और बेल का प्रयोग किया गया है।


 इस च्यवनप्राश का कुछ सैंपल मैंने दक्ष पारंपरिक चिकित्सकों को भी दिया जिन्होंने परीक्षण कर बताया कि अति दोषयुक्त पिपली और बेल के कारण यह च्यवनप्राश पूरी तरह से दोषपूर्ण हो गया है। 


सम्भवतः जहां से आप पिपली खरीद रहे हैं वहां इसे अच्छे से रखा नहीं गया है और पिपली के गुणों को नष्ट करने वाले दूसरे घटकों के साथ संग्रहित किया गया है। 


मैंने उनसे पूछा कि आप क्या मुझे बता सकते हैं कि आप च्यवनप्राश को किस विधि से तैयार करते हैं और उस विधि के बारे में चरणबद्ध तरीके से मुझे बता सकते हैं क्या?


 तो उन्होंने सारी विधि एक साँस में ही बता दी। मैंने उनसे प्रश्न किया कि यह विधि शास्त्र सम्मत नहीं है।


 उन्होंने कहा कि उनके पिताजी इस विधि से च्यवनप्राश बनाते थे और उसी विधि को अपनाते हुए वर्षो से वे इसी तरह का च्यवनप्राश बना रहे हैं।


 वैद्य जी बोले कि क्या इस च्यवनप्राश के कारण ही उन वृद्ध की जान गई है तो मैंने कहा कि नहीं, बिल्कुल नहीं। 


यह च्यवनप्राश दोषयुक्त है पर इतना भी दोषयुक्त नहीं है कि यह किसी की जान ले ले।


 फिर मैंने अपने फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र से बात की कि समस्या का समाधान कुछ हद तक मिल गया है और अगर वे चाहे तो मैं अभी उन्हें विस्तार से यह सब समझा सकता हूँ।


 मैंने उन्हें बताया कि वैद्य जी ने दोषपूर्ण च्यवनप्राश दिया था। इस च्यवनप्राश की डायबिटीज की आधुनिक दवा मेटफॉर्मिन के साथ बहुत बड़े स्तर पर विपरीत प्रतिक्रिया होती है। 


ऐसा च्यवनप्राश में उपस्थित पिपली और बेल की आधुनिक दवा के साथ प्रतिक्रिया के कारण होता है।


 फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र ने पूछा कि क्या च्यवनप्राश के कारण वृद्ध की जान गई?


 मैंने कहा कि इस विपरीत प्रतिक्रिया के कारण उनको बहुत अधिक बेचैनी हुई होगी और उनकी सांस तेज चलने लगी होगी पर असली काम तो शराब के उस पेग ने किया जो उन्होंने दवाओं के सेवन के 1 घंटे बाद लिया था।


 जिन दवाओं के कारण विपरीत प्रतिक्रिया हो रही थी शराब ने उस प्रतिक्रिया को और अधिक उग्र बना दिया। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो गई और धीरे-धीरे उनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया। 


यही उनकी मृत्यु का भी कारण रहा।


 इन दवाओं के आपसी इंटरेक्शन के बारे में न वैद्य को जानकारी थी न उनकी पत्नी को।


 यह उन्हीं को पता हो सकता है जो कि ड्रग इंटरेक्शन पर काम करते हैं विशेषकर पारंपरिक और आधुनिक दवाओं के बीच होने वाले ड्रग इंटरेक्शन पर। 


फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र ने मुझे धन्यवाद दिया और यह पूरी जानकारी पुलिस के मुखिया को दी।


 पूरी जानकारी प्राप्त कर पुलिस के मुखिया भड़क गए और कहने लगे कि यह कैसी खोज है? 


मेटफॉर्मिन तो मैं भी लेता हूँ और साथ में च्यवनप्राश का भी यदा-कदा प्रयोग करता रहता हूँ पर मुझे तो इस तरह की कोई समस्या नहीं होती है। 


मैंने पहले ही कहा था कि आप इस केस में किसी वैज्ञानिक की मदद न लें।


 मेरे फोरेंसिक विशेषज्ञ मित्र उन्हें बहुत समझाते रहे पर वे मानने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने इसके वैज्ञानिक प्रमाण मांगे।


 इस विषय में मैंने किसी भी प्रकार का शोध पत्र प्रकाशित नहीं किया था इसलिए मेरे पास कोई प्रमाण नहीं था। केवल अनुभव था और इसे मानने के लिए पुलिस के मुखिया तैयार नहीं थे।


 कुछ समय बाद पुलिस के मुखिया ने मुझे मिलने के लिए बुलवाया और एक बार फिर से मेरी बात ध्यान से सुनी।


 मैंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति तैयार हो तो इसी च्यवनप्राश का प्रयोग मेटफॉर्मिन के साथ और उसके बाद शराब का प्रयोग उस पर किया जा सकता है और यह सिद्ध किया जा सकता है कि इनके ही संयोग के कारण ऐसे भयानक लक्षण आए और उन सज्जन की मृत्यु हुई।


 घबराए नहीं। जब हम ऐसा प्रयोग करेंगे तो इसका एंटीडोट अपने साथ में रखेंगे। जैसे ही विपरीत लक्षण आएंगे उस एंटीडोट का प्रयोग करके हम उस प्रयोग को वही रोक देंगे। 


पुलिस के मुखिया ने कहा कि और कोई क्यों मैं खुद ही अपने ऊपर यह प्रयोग करके देखूंगा और मुझे विश्वास है कि आपकी बात कपोल कल्पना से अधिक नहीं निकलेगी। 


आनन-फानन में सारी दवाइयां मंगाई गई। डॉक्टरों की एक पूरी टीम को स्टैंड बाय में रखा गया। मैंने दूध में औषधियां मिलाकर उनके बाजू में रख दी जो कि एंटीडोट का काम करती।


 सारी तैयारियों के बाद उन्होंने सभी दवाओं का प्रयोग वैसे ही क्रम में किया और उसके बाद शराब का अल्प मात्रा में सेवन किया। 


आधे से 1 घंटे तक उनके ऊपर किसी भी तरह का कोई असर नहीं हुआ पर उसके बाद घातक लक्षण आने लगे।


 पर अपने अहम के कारण वे इन लक्षणों के बारे में सारी जानकारी हमसे छुपाते रहे। जब उनकी आंखें पलटनी शुरू हुई तो डॉक्टरों की टीम ने बिना किसी देरी के औषधि मिला दूध उन्हें पिलाया और बड़ी मुश्किल से वे वापस होश में आए। 


उसके बाद कई घंटों तक गहरी नींद में रहे। 


दूसरे दिन सुबह उन्होंने मुझे अपने ऑफिस में बुलवाया और कहा कि उन्हें मृत्यु का कारण मिल गया है।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। 


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