Consultation in Corona Period-88

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


 "सारी दुनिया कहती है कि ब्राह्मी से एपिलेप्सी ठीक होती है और आप कह रहे हैं कि मेरे बेटे की एपिलेप्सी का कारण ब्राह्मी है।


 आप हमेशा अटपटी बातें करते हैं पर मैं आपकी बात को मानूँगा क्योंकि आपको याद होगा कि 2005 में भी मैंने आपसे संपर्क किया था। 


उस समय मेरी पत्नी को बार-बार अबॉर्शन हो रहा था और उसका कोई कारण नहीं पता चल रहा था। 


जब हमने आपसे समय लिया और आपसे आकर 2 घंटे तक चर्चा करते रहे तो चर्चा के अंत में आप ने बताया कि यदि मेरी पत्नी तुलसी की चाय और गाजर का प्रयोग बंद कर दें तो उसकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा।


 उस समय हमें बहुत गुस्सा आया क्योंकि हम किसी दवा की आशा से आपके पास आए थे और आपने हमारा इतना समय लेने के बाद सिर्फ यही कहा कि तुलसी की चाय बंद की जाए और साथ में गाजर का प्रयोग भी। 


हम अनमने मन से वापस चले गए और हमने आपकी बात नहीं मानी। अगली बार जब फिर से गर्भपात हुआ तो मेरी पत्नी ने कहा कि इस बार मैं गर्भावस्था के दौरान किसी भी रूप में तुलसी की चाय का प्रयोग नहीं करूंगी और गाजर तो मैं वैसे भी नहीं खाऊंगी। 


उसके बाद हमें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और सब कुछ ठीक हो गया। 


उस समय हमें जो बात अटपटी लगी थी जब हमने उसे मानी तो हमारी समस्या सुलझ गई। उस समय बहुत सारे डॉक्टरों ने साफ कह दिया था कि अबॉर्शन का तुलसी की चाय और गाजर से किसी भी तरह का संबंध नहीं है। 


जब हमने आपसे पूछा था कि आपने तुलसी की चाय क्यों बंद करवाई तो आपने बताया था कि घर में उग रही तुलसी से चाय बनाने पर गलती से भी यदि उसमें तुलसी की मंजरी आ जाए तो तुरंत अबॉर्शन हो जाता है। 


यदि तुलसी से चाय बनाने वाले व्यक्ति को इस बात की खबर हो तो वह मंजरी का प्रयोग भूल कर भी नहीं करेगा पर अनजाने में यह गलती हो सकती है।


 आपने यह भी बताया कि गाजर के मध्य में जो उसका पीला भाग होता है वही गर्भपात के लिए उत्तरदाई है और उसके वैज्ञानिक प्रमाण भी हैं। 


आज इतने सालों बाद मेरे बेटे को एपिलेप्सी की समस्या हुई है। मैं पिछले 3 सालों से ब्राह्मी पर आधारित आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रयोग कर रहा हूँ।


 पर समस्या ठीक होने के बजाय और अधिक बढ़ती जा रही है। आधुनिक दवाएं तो मैं पहले ही आजमा चुका हूँ और मुझे निराशा ही हाथ लगी है। 


आयुर्वेदिक दवाओं से ऐसा होगा ऐसी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।"


उत्तर भारत के एक सज्जन मुझे फोन पर यह सब बता रहे थे।


 उनके लड़के को एपिलेप्सी की समस्या थी और जैसा कि वे बता रहे थे कि यह समस्या उग्र होती जा रही थी। 


मैंने उनसे उनके बेटे के द्वारा ली जा रही सभी दवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली और यह भी पता किया कि इन दवाओं का स्रोत क्या है?


 उन्होंने बताया था कि वे स्थानीय फार्मेसी से ब्राह्मी पर आधारित नुस्खे लेते हैं क्योंकि वह फार्मेसी अपने खेतों में ब्राम्ही की खेती करती है वैदिक विधियों से।



 उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती है और कीटनाशकों का प्रभाव नहीं होता है। उनका कहना था कि बाजार में जो आयुर्वेदिक नुस्खे मिलते हैं उनमें इस बात की गारंटी नहीं होती है कि उनमें प्रयोग की गई ब्राम्ही को रासायनिक खेती वाले खेतों से एकत्र किया गया है या जंगलों से।


 पर विश्वास की फार्मेसी से लेने से सारी चीजें आंखों के सामने होती है इसलिए किसी भी प्रकार की चूक की संभावना नहीं रहती है।


मैंने उनके फार्मेसी वाले से जब बात की तो सारी स्थिति साफ हो गई। वे जिस प्रकार की ब्राह्मी की खेती कर रहे थे उससे दोषपूर्ण ब्राम्ही उत्पन्न हो रही थी और उसी कारण उनके बेटे को एपिलेप्सी की समस्या हो रही थी।


 मैंने उनसे कहा कि आप किसी भी प्रकार की ब्राह्मी का प्रयोग कुछ समय के लिए रोक दें और उसके बाद फिर 1 महीने बाद मुझे बताएं कि क्या एपिलेप्सी के लक्षणों में किसी प्रकार का सुधार हुआ। 


वे इस बात को मान गए और 25 दिनों बाद ही उनका फोन आया कि अब वे लक्षण तेजी से कम होते जा रहे हैं और स्थिति में काफी सुधार हो रहा है। 


डर के मारे जो उनका लड़का स्कूल नहीं जाता था और पढ़ाई में पिछड़ रहा था अब वह फिर से गति पकड़ने लगा है और उसके पूरे स्वास्थ में अच्छे परिवर्तन के लक्षण दिख रहे हैं। 


मैंने उन्हें सलाह दी कि वे अब दूसरे ब्रांड की ब्राह्मी का प्रयोग करें। इस ब्रांड में ऐसी ब्राह्मी का प्रयोग किया जाता है जिसे कि जंगल से एकत्र किया जाता है। 


जब उन्होंने इस ब्राह्मी का प्रयोग किया तो उनके बेटे की स्थिति में और तेजी से सुधार होने लगा और किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं दिखा।


 कुछ समय बाद जब वे मुझसे मिलने आये तो मैंने उन्हें विस्तार से समझाया कि जब ब्राम्ही की खेती की जाती है तो उसमें खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी होता है। 


ब्राह्मी के साथ बहुत सारे खरपतवार उगते हैं जो कि ब्राह्मी को दोषपूर्ण बनाने के लिए पर्याप्त है। मैं उन्हें अमानिया जैसे खरपतवारों की बात बता रहा था। 


अमानिया के प्राकृतिक रसायन ब्राह्मी के पौधों को प्रभावित करते हैं।


 न केवल उसकी वृद्धि में बाधा पहुंचाते हैं बल्कि उसके रासायनिक गुणों में भी परिवर्तन कर देते हैं इसलिए जरूरी है कि ऐसे खरपतवारों को खेतों से पूरी तरह से हटाया जाए।


 बहुत बार ऐसे खरपतवार ब्राम्ही की पत्तियों के साथ मिल जाते हैं जब उन्हें एकत्र किया जाता है और नुस्खे में भी पहुंच जाते हैं। इससे भी कई तरह की हानियाँ होती है। एपिलेप्सी जैसे लक्षण भी इन्हीं कारणों से आते हैं।


 उन्हें इस बात का आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि अगर वे 4 साल पहले ही मुझसे संपर्क कर लेते तो बेटे को इतनी तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ता।


 वे जिस दवा का प्रयोग कर रहे थे असल में समस्या उसी दवा से हो रही थी।


 मैंने उन्हें यह भी बताया कि ऐसे मामले मेरे पास आते रहते हैं और जब भी ब्राह्मी से किसी भी प्रकार के विपरीत लक्षण दिखते हैं तो सबसे पहले मेरा ध्यान उसकी खेती पर जाता है और ज्यादातर मामलों में सारी करतूत ब्राह्मी के साथ उगने वाले खरपतवारों की होती है। 


उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। 


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