Consultation in Corona Period-100

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मुझे 35 वर्ष की उम्र में ही Menopause जैसे लक्षण आ रहे हैं पर चिकित्सक कहते हैं कि यह Menopause नहीं है लेकिन वे ये नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है।


 मेरी जिंदगी पिछले 3 सालों में नर्क जैसी हो गई है। न जीते बनता है न मरते।" 


पूर्वी भारत की एक महिला ने फोन पर मुझसे परामर्श के लिए समय मांगा और अपनी स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। 


उन्होंने कहा कि समस्या की शुरुआत कब्ज की शिकायत से हुई। बहुत अधिक कब्ज होने के कारण उन्हें रोज Purgative लेना पड़ता था।


 उन्होंने सनाय पत्ती से लेकर इसबगोल तक का प्रयोग किया। इससे शुरू में तो उनकी कब्ज की शिकायत ठीक हुई पर बाद में इन सब दवाओं की आदत सी पड़ गई और बिना इन दवाओं के एक दिन भी उनका पेट साफ नहीं होता था। 


उसके बाद उन्हें जोड़ों में दर्द की शिकायत हुई। जोड़ों का दर्द पहले तो घरेलू औषधियों से ठीक हो गया पर उसके बाद समस्या नासूर बनती गई और उनके घुटनों का ऑपरेशन कराने की नौबत आ गई। 


ऑपरेशन के बाद भी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ क्योंकि घुटने के अलावा दूसरे जोड़ों में दर्द होना शुरू हो गया। 


इस बीच उनके बाल तेजी से झड़ने लगे और एक साल के अंदर उन्होंने हेयर ट्रांसप्लांट कराने की बात सोची। 


हेयर ट्रांसप्लांट भी अधिक सफल नहीं रहा और बालों के झड़ने का क्रम जारी रहा।


 उन्हें बताया गया कि अंदर की कोई समस्या है जिसके कारण सारी चीजें विपरीत हो रही है पर अंदर की कौन सी समस्या के कारण ऐसा हो रहा है। यह कोई भी नहीं बता पा रहा था। 


सभी चिकित्सक अंदाज लगा रहे थे और तरह-तरह के प्रयोग कर रहे थे। इससे लाभ होने के स्थान पर बहुत अधिक हानि हो रही थी।


 उसके बाद उनकी दांतों की समस्या समस्या शुरू हुई। रात को नींद में दांत कटकटाने लगे। 


मुंह में बहुत अधिक लार आने लगी और हर तीसरे चौथे दिन में मुंह में छाले होने लगे। 


मुंह का स्वाद कड़वा रहने लगा। हर चीज कड़वी लगती थी। 


इसके बाद सिर में बहुत अधिक पसीना आने का क्रम शुरू हुआ। पहले सिर में पसीना रात को ही आता था। उसके बाद चौबीसों घंटे आने लगा। 


इसके साथ एक नई समस्या की शुरुआत हुई। 


इस समस्या में हाथ पैरों में बहुत तेज जलन होती थी और रात को सोते समय पैर बिस्तर के ठंडे कोनों को तलाशता रहता था।


 जब उनकी ऐसी स्थिति थी तब 20 से अधिक दवायें वे ले रही थी। इनमें होम्योपैथी, यूनानी, एलोपैथी और आयुर्वेदिक दवाएं शामिल थी। 


हर समस्या के लिए एक या दो दवाई दी जा रही थी पर मुश्किल इस बात की थी कि उन्हें किसी भी तरह से लाभ नहीं हो रहा था।


 उसके बाद उन्हें पीरियड्स में प्रॉब्लम होनी शुरू हुई और Menopause जैसे लक्षण आने लगे। 


जब उनकी हड्डियों में दर्द होने लगा तो हड्डियों की Density की जांच की गई और यह पाया गया कि हड्डियां बहुत अधिक कमजोर होती जा रही है और Osteoporosis जैसे लक्षण आ रहे हैं। 


इसके बाद उनके स्तनों में गठानें हो गई। उसे पहले तो कैंसर माना गया। पर जब इसकी जांच की गई तो पता चला कि यह कैंसर नहीं है।


 गठानें कुछ दिनों तक तो सामान्य रही। उसके बाद वे पकनी शुरू हो गई और उनमें मवाद बनने लगा। घाव की ड्रेसिंग करते करते वे परेशान हो गई। 


उन्होंने अरोमाथेरेपी भी ज्वाइन की और योग भी। इसके साथ ही वे नेचुरोपैथी का भी सहारा ले रही थी। 


उन्होंने नमक का प्रयोग कम कर दिया था और आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग तो बिल्कुल ही बंद कर दिया था। 


बाहर बाजार से सब्जी खरीद कर खाने की बजाय वे अपने घर में सब्जियां उगा रही थी और उनका प्रयोग कर रही थी।


 उन्होंने ऑर्गेनिक राइस का प्रयोग शुरू किया और धीरे-धीरे ऑर्गेनिक फलों का उपयोग भी। 


उन्होंने बाहर का खाना पूरी तरह से बंद कर दिया और खाने में तेल की मात्रा को न्यूनतम स्तर पर ले आई। इन सब के बावजूद उनके लक्षणों में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं आई और सभी समस्या धीरे-धीरे उम्र होती गई।


 उनकी पूरी बात सुनकर मेरे मन में आया कि यह एक विशेष प्रकार की वनस्पति के दुष्प्रभाव के लक्षण है इसलिए मैंने उनसे विस्तार से उनके द्वारा उपयोग की जा रही सभी दवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की और उनके घटकों का अध्ययन किया। 


भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान के अनुसार इस समूह के लक्षण ज्यादातर दोषपूर्ण चंदन का प्रयोग करने से आते हैं। 


जब किसी नुस्खे में दोषपूर्ण चंदन का प्रयोग किया जाता है तब उसकी प्रतिक्रिया नुस्खे के दूसरे घटकों से होती है तब इस प्रकार के लक्षण आते हैं। 


दोषपूर्ण चंदन के साथ मुझे तुलसी की प्रतिक्रिया का शक था पर उन्होंने जिन दवाओं की सूची मुझे भेजी थी उनमें न तो चंदन का प्रयोग किया गया था न ही तुलसी का। 


उनके द्वारा प्रयोग की जा रही खाद्य सामग्रियों की ओर ध्यान गया। जब मैंने इस बारे में उनसे विस्तार से बात की तो पता चला कि वे एक प्रकार की हर्बल चाय का उपयोग कर रही है जिसमें तुलसी को मुख्य घटक के रूप में प्रयोग किया जाता था। 


मैंने उन्हें तुरंत ही परामर्श दिया कि वे तुलसी का प्रयोग अर्थात तुलसी की चाय का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दें और फिर 15 दिनों के बाद मुझे बताएं कि उनकी स्थिति कैसी है?


जब अगली बार उनका फोन आया तो उन्होंने बताया कि उनकी हालत में आंशिक सुधार हुआ है।


 मुझे सूत्र मिल गया था। अब इसी सूत्र के सहारे पूरी समस्या का समाधान करना था। 


मैंने उन्हें सुझाव दिया कि फोन से परामर्श लेने से अब बात नहीं बनेगी। उन्हें रायपुर आना होगा ताकि मैं जड़ी बूटियों का लेप लगाकर कुछ तरह के परीक्षण उन पर कर सकूं।


 वे इस बात के लिए तैयार हो गई और अपने पति के साथ अगले ही हफ्ते मुझसे मिलने रायपुर आ गई। 


मैंने उनके दोनों पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाया और उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा। जब प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि सारे झगड़े की जड़ दोषपूर्ण चंदन का प्रयोग ही है पर मुश्किल इस बात की थी कि वे किसी भी रूप में चंदन का प्रयोग नहीं कर रही थी। 


बातों ही बातों में उनके पति ने बताया कि उनकी पत्नी एक विशेष प्रकार का च्यवनप्राश बनाती है और उसे अपने मित्रों और परिवार जनों को मुफ्त में देती हैं। यह रोचक जानकारी थी। 


मैंने उन महिला से पूछा कि च्यवनप्राश बनाने की जानकारी आपको कहां से मिली तो उन्होंने कहा कि उन्होंने यूट्यूब में देखकर च्यवनप्राश बनाने की विधि सीखी और पिछले कई वर्षों से न केवल खुद इसका प्रयोग कर रही है बल्कि दूसरों को भी इसे दे रही है। 


मैंने झट से पूछा कि क्या 3 वर्षों से आप इनका प्रयोग कर रही है? 


उन्होंने कहा कि हां, 3 वर्षों से। 


मैंने उनसे पूछा कि आपने जब खाद्य सामग्रियों और दवाओं की सूची मेरे पास भेजी तब आपने च्यवनप्राश का जिक्र क्यों नहीं किया तब उन्होंने कहा कि च्यवनप्राश तो किसी तरह की दवा नहीं है। यह तो आयुर्वेदिक उत्पाद है और इससे किसी तरह की हानि होने की संभावना नहीं है इसलिए मैंने इसके बारे में आपको बताना उचित नहीं समझा। 


अब बारी थी च्यवनप्राश के घटकों के बारे में गहनता से जानकारी लेने की। जब उन्होंने घटकों की पूरी सूची मेरे हाथ में सौंपी तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। 


च्यवनप्राश में न केवल चन्दन का प्रयोग किया गया था बल्कि तुलसी का भी प्रयोग किया गया था। इसका अर्थ था कि पिछले 3 वर्षों से जो वे नरक तुल्य कष्ट झेल रही थी उसका कारण वही च्यवनप्राश था।


 मैंने विस्तार से इस बारे में उन्हें बताया कि दोषपूर्ण चंदन के कारण उन्हें इस तरह की समस्या हो रही है। चंदन में दोष कई कारणों से होता है। उनमें से एक मुख्य कारण चंदन में सेंट्रल स्पाइक रोग का होना है। 


जब ऐसे वृक्षों से चंदन एकत्र किया जाता है जिसमें इस रोग का बहुत अधिक प्रकोप होता है तब चंदन में दोष उत्पन्न हो जाता है। ऐसे वृक्षों से चंदन का एकत्र नहीं करना चाहिए और एकत्र करने के बाद उनका दवा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगर दवा में प्रयोग जरूरी है इसका शोधन करना चाहिए और उसके दोष दूर हो जाने के बाद उसका प्रयोग करना चाहिए। 


आपने निश्चित ही बाजार से चंदन को खरीदा होगा जहां इस बात का ध्यान नहीं रखा गया होगा कि इसे एकत्र करते समय इस बात को देखा जाए कि वृक्ष इस विशेष रोग से प्रभावित है या नहीं। यहीं सब गड़बड़ हो गई। 


आपको इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ कि आपकी समस्या का कारण आपके द्वारा प्रयोग किया जा रहा दोषपूर्ण च्यवनप्राश है।


 अब मैं आपको यही सलाह दूंगा कि आप इस च्यवनप्राश का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें और फिर मुझे 15 दिनों के बाद बताएं। आपके लक्षणों में तेजी से कमी आएगी पर इसमें कुछ समय अवश्य लगेगा। 


अगली बार जब उनका फोन आया तो उनके लक्षण काफी कम हो गए थे। उनकी सभी बीमारियां एक-एक करके खत्म होती जा रही थी और इस तरह उनकी दवाये भी कम होती जा रही थी। 


च्यवनप्राश को बंद करने के एक साल बाद उनके बाल आने फिर से शुरू हो गए। 


Menopause जैसे लक्षण तो 6 महीने में ही खत्म हो गए। कब्जियत की शिकायत भी जाती रही। 


धीरे-धीरे वे पूरी तरह से सामान्य अवस्था में आ गई। पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद उन्होंने मुझे धन्यवाद ज्ञापित किया।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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