Consultation in Corona Period-114

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"ऐसा लगता है हमारे साथ बड़ा धोखा हुआ है। हमें उम्मीद है कि आप हमारी मदद करेंगे।"


 दिल्ली के एक सज्जन मुझसे फोन पर बात कर रहे थे और अपनी समस्या बता रहे थे।


 उन्होंने बताया कि उनकी 50 वर्षीय पत्नी को अर्थराइटिस की समस्या है और यह समस्या पिछले 10 सालों से है। 


उन्होंने तरह-तरह की चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लिया पर उन्हें बताया गया कि यह लाइलाज रोग है और यह पूरी तरह से कभी भी ठीक नहीं होगा। 


बस इसके कारण आने वाले लक्षणों को ही ठीक किया जा सकता है। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों ने खानपान में नियंत्रण रखने को कहा और कुछ दवाएं दी जिनका आजीवन प्रयोग करना था।


 आजीवन प्रयोग करने का अर्थ यह था कि वह रोग पूरी तरह से कभी भी ठीक नहीं होगा। बस किसी भी तरह से वह नियंत्रण में रहेगा। 


आखिर थक हार कर उन्होंने हिमाचल प्रदेश के एक पारंपरिक चिकित्सक से मिलने का मन बनाया जो कि इस रोग की चिकित्सा में दक्ष माने जाते हैं। 


वे चाहते थे कि पारम्परिक चिकित्सक किसी भी प्रकार की कोई दवा न दें। ऐसा कोई इलाज बताएं जो कि भले ही लम्बा समय ले पर इस समस्या को जड़ से खत्म करे। 


हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक चिकित्सक ने उनकी पत्नी की पूरी तरह से जांच की।


 उन्होंने बताया कि इस रोग की चिकित्सा के लिए वे कई प्रकार की जड़ी बूटियों का लेप करते हैं और रोगियों को सलाह देते हैं कि वे एक विशेष वृक्ष मोदगर के नीचे दिन के 4 से 5 घंटे गुजारें।


 पर मुश्किल यह थी कि न तो देश के बड़े शहरों में यह वृक्ष मिलता है और न ही उत्तर भारत में। 


यह वृक्ष अधिक संख्या में छत्तीसगढ़ में उपस्थित है इसलिए उन्होंने इन सज्जन को सलाह दी कि वे छत्तीसगढ़ चले जाएं और नियमानुसार वृक्षों के साए में अपना अधिक से अधिक वक्त गुजारें।


 हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक चिकित्सक ने कहा कि यदि वे इसके लिए तैयार है तो उनके लिए जड़ी बूटियों का लेप तैयार किया जा सकता है।


 उन पारम्परिक चिकित्सक ने सज्जन को कई ऐसे रोगियों से मिलाया जो कि इस सरल उपचार से ठीक हुए थे। इससे सज्जन बहुत प्रभावित हुए और उनकी पत्नी भी। 


उन्होंने निश्चय किया कि वे 6 महीने के लिए छत्तीसगढ़ जाएंगे और उस वृक्ष की तलाश कर जड़ी बूटियों का लेप लगाकर उसके साए में लंबे समय तक बैठेंगे। 


वे बहुत उत्साहित थे।


 उन्होंने दिल्ली की एक टूर कंपनी की मदद ली और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया। टूर कंपनी ने कहा कि वे एक स्थानीय विशेषज्ञ को रायपुर से साथ में जोड़ देंगे जो कि उन्हें उस वृक्ष के पास रोज लेकर जाएगा और उपचार हो जाने के बाद वापस लेकर आएगा।


 इस कार्य के लिए टूर कंपनी ने उनसे 15000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से शुल्क लेने की योजना बनाई। इस शुल्क में रायपुर में ठहरने और टैक्सी से आने जाने का शुल्क शामिल नहीं था। 


सज्जन पूरी तरह से छत्तीसगढ़ से अनजान थे और उन्हें डराया गया था कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए स्थानीय किसी व्यक्ति को लेकर जाना ही अच्छा है। यही कारण था कि उन्होंने इतनी अधिक कीमत पर भी 2 महीने के लिए टूर कंपनी को मंजूरी दे दी। 


उन्होंने मेरे बारे में इंटरनेट पर काफी कुछ पढ़ा था इसलिए उनकी योजना थी कि वे रायपुर आ कर पहले मुझसे मिलेंगे और उसके बाद फिर टूर कंपनी से संपर्क कर अपना उपचार शुरू करेंगे। 


उन दिनों मैं मुंबई की लंबी यात्रा में था इसलिए जब वे रायपुर आये तो उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। 


फोन पर उनसे बात हुई तो मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी और यह भी कहा कि 15000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से बहुत अधिक है पर यदि यह आपके बजट के हिसाब से सही है तो फिर आप इसे जारी रख सकते हैं।


दो महीनों के बाद जब उन्होंने मुझसे फिर से संपर्क किया तो वे बहुत अधिक घबराए हुए थे।


 उन्होंने कहा कि पत्नी की अर्थराइटिस की समस्या तो बिल्कुल भी ठीक नहीं हुई बल्कि उन्हें पूरे शरीर में सूजन हो गई है और नाना प्रकार के फोड़े निकल रहे हैं इसलिए वे जितनी जल्दी हो सके रायपुर आकर मुझसे मिलना चाहते हैं। 


मैंने उन्हें उसी दिन का समय दिया और शाम को वे मुझसे मिलने आ गए।


 मैंने उनकी पत्नी को ध्यान से देखा तो यह पता चला है कि उन्हें किसी वृक्ष के कारण एलर्जी हो गई है। वृक्ष का नाम भी मेरे मन में आ गया पर मैंने निश्चय किया कि पहले उनसे पूछा जाए कि उन पर क्या बीती है और उनको मुझसे किस तरह की मदद चाहिए। 


उन्होंने बताया कि स्थानीय व्यक्ति की सहायता से उन्होंने उस वृक्ष के नीचे कई घंटे गुजारने का कार्य शुरू किया। पहले ही दिन से पत्नी को पूरे शरीर में सूजन होने लगी और बहुत असहनीय खुजली होने लगी। 


जब गांव के लोगों ने हमें इस वृक्ष के नीचे बैठे देखा तो उन्होंने बहुत मना किया कि यह वृक्ष नुकसानदायक है। 


इसके नीचे बहुत अधिक समय तक बैठने से स्वास्थ को स्थाई हानि हो सकती है पर टूर कंपनी के व्यक्ति ने उन सब को भगा दिया और हमसे कहा कि जिस वृक्ष की बात हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक चिकित्सक ने की है यह वही वृक्ष है और उन्हें इन सब चीजों को अनदेखा करके अपने कार्य में लगे रहना चाहिए।


 ग्रामीण तो अधिकतर ऐसे ही बाहरी व्यक्तियों को टोकते रहते हैं और उन्हें अनावश्यक इधर-उधर घुमाते रहते हैं। 


जब पत्नी की हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी तो हमने रोज जाने की बजाए हफ्ते में 2 दिन उस वृक्ष के नीचे बैठने की योजना बनाई जो कि बाद में हफ्ते में एक दिन तक हो गई। 


उनकी समस्या में किसी भी तरह का सुधार नहीं हुआ तब हमने हिमाचल के पारंपरिक चिकित्सक से बात की। उन्होंने कहा कि मोदगर के वृक्ष के नीचे बैठने से ऐसी किसी भी तरह की समस्या नहीं होती है। 


उन्हें भी आश्चर्य हो रहा था कि कैसे सज्जन की पत्नी को इस तरह के लक्षण आ रहे हैं। 


मैंने उनकी पूरी बात बड़े ध्यान से सुनी और फिर उनसे कहा कि आप उस वृक्ष की फोटो मुझे दिखा सकते हैं जिस वृक्ष के नीचे आप इतना अधिक समय गुजार रहे थे? 


जैसे ही उन्होंने उस वृक्ष की तस्वीर दिखाई तो सारी समस्या का समाधान हो गया। 


वे मोदगर के वृक्ष के नीचे नहीं बैठे थे बल्कि भिलावा के वृक्ष के नीचे बैठे थे जो कि ऐसे लक्षण पैदा करने के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है यानी टूर कंपनी के व्यक्ति ने उन्हें गलत जानकारी दी थी। 


ग्रामीण पूरी तरह से सही थे जिनकी बात अनसुनी कर दी गई थी। 


मैंने उन्हें परामर्श दिया कि अब आप 1 हफ्ते तक के उस वृक्ष के नीचे न जाएं और उन्हें एक देसी फार्मूला दिया ताकि भिलावा के लक्षण पूरी तरह से खत्म हो जाए। 


एक हफ्ते में ही उनकी पत्नी की सारी समस्याओं का समाधान हो गया। उन्होंने बहुत अधिक राहत महसूस की। 


यह बात उन्होंने हिमाचल के पारंपरिक चिकित्सक को बताई। तब पारंपरिक चिकित्सक ने कहा कि आपको पहले ही पंकज अवधिया से मिल लेना था तो किसी तरह की गलतफहमी नहीं होती।


 उन पारंपरिक चिकित्सक ने उन्हें सलाह दी कि अब वे गिंधोल नामक वृक्ष के नीचे बैठे जिससे कि भिलावा के वृक्ष के दोष दूर हो जाएंगे और अर्थराइटिस की समस्या भी पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। 


उन्होंने यह भी बताया कि यह वृक्ष बहुत दुर्लभ है और गोंद के लिए इसकी मांग के कारण जंगल में इसकी तेजी से कमी होती जा रही है। 


इस बार वे किसी दक्ष विशेषज्ञ की सहायता लें ताकि किसी तरह की गलती होने की संभावना न रहे।


 इस बार टूर कंपनी ने दिल्ली से एक वानस्पतिक विशेषज्ञ को भेजा जो कि पूरे उपचार के दौरान इस दंपत्ति के साथ रहने वाले थे। 


उन्होंने मुझसे संपर्क किया और कहा कि उन्हें स्थानीय नाम नहीं बल्कि वैज्ञानिक नाम चाहिए। फिर वे इंटरनेट से इसकी फोटो निकालकर दंपत्ति को सही स्थान पर ले जाएंगे।


 मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वैज्ञानिक नाम से जंगल में काम नहीं चलेगा। स्थानीय नाम ही काम आएगा और स्थानीय व्यक्ति स्थानीय नामों को ही अच्छे से समझते हैं पर वे अपनी बातों पर अड़े रहे।


 मैंने भी उन्हें ज्यादा समझाने की कोशिश नहीं की। मैंने उन सब को शुभकामनाएं दी और कहा कि यदि मेरी जरूरत हो तो मुझसे फोन पर बात करें और यदि परामर्श के लिए समय चाहिए तो मैं कोशिश करूंगा कि आपको इस बार की तरह जल्दी ही परामर्श के लिए समय मिल जाए। 


इस बार 1 महीने के अंदर ही उनका फोन आ गया कि उनकी समस्या बहुत अधिक बढ़ गई है। पहले अर्थराइटिस का दर्द बादल वाले दिनों में ही होता था अब तो 24 घंटे होता रहता है और किसी भी तरह के पेनकिलर से ठीक नहीं होता है।


 वे बहुत निराश लग रहे थे और उन्होंने कहा कि उन्होंने पारंपरिक चिकित्सक पर विश्वास करके गलती की। उनकी पारंपरिक विधि आधुनिक विज्ञान की कसौटी में कभी कसी नहीं गई है इसीलिए लोगों को बेवजह ही इस तरह की समस्या झेलनी पड़ती है। 


उनकी पत्नी की हालत बहुत खराब थी और वह बहुत गुस्से में थी।


 मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे उस वृक्ष की तस्वीर भेजें। जब तस्वीर मेरे पास आई तो मैंने कहा कि इस बार फिर से आपने गलती की। 


आपको गिंधोल के वृक्ष के नीचे रहने को कहा गया था पर आप तो पडरी के वृक्ष के नीचे रह रहे थे जो कि अर्थराइटिस के मरीजों के लिए अभिशाप से कम नहीं है। 


पडरी का वृक्ष बहुत दुर्लभ है इसलिए नहीं कि इसकी बहुत अधिक मांग है बल्कि इसके दुर्गुणों के बारे में छत्तीसगढ़ के लोग जानते हैं। 


गलती से यह अगर खेतों की मेड़ों पर उग जाता है तो किसान इसे बिना देरी के खत्म कर देते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है इसके नीचे खेती का काम करने से उन्हें शरीर में बेहद पीड़ा होगी और जोड़ों में दर्द स्थाई रूप से उत्पन्न हो जाएगा। 


मैंने आपको पहले ही कहा था कि आपको वृक्ष के स्थानीय नाम का उपयोग करना था और व्हाट्सएप के इस युग में इस वृक्ष की फोटो मुझे भेज देनी चाहिए थी ताकि पहले दिन से ही आप किसी तरह की गलती से बच सकें। 


मैंने उन्हें पांच तरह के मेडिसिनल राइस दिए और कहा कि इनका प्रयोग में 15 दिनों तक करें तो पडरी के वृक्षों से होने वाले दुष्प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 


उन्होंने धन्यवाद दिया और विधिवत मेडिसिनल राइस का प्रयोग करना शुरू किया।


 20 दिनों के बाद उन्होंने फिर से परामर्श का समय लिया तो उन दोनों के चेहरे में खुशी झलक रही थी। 


उन्होंने बताया कि इन मेडिसनल राईस का प्रयोग करने से पडरी के वृक्ष के दुष्प्रभाव तो पूरी तरह से ठीक हो गए और साथ ही उनके अर्थराइटिस के दर्द में भी बहुत अधिक कमी आई है। 


उनके इस कथन ने मेरे मन में भी काफी उत्साह भर दिया और मैंने कहा कि आप इन मेडिसिनल राइस का एक महीने तक प्रयोग करते रहे और फिर मुझे प्रगति के बारे में बताएं।


 आज 3 सालों के बाद उन्होंने बताया कि अब वे पूरी तरह से इस घातक बीमारी से मुक्त है और अभी भी इन मेडिसिनल राइस का विधिवत प्रयोग कर रही हैं।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।  


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