Consultation in Corona Period-107

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"कोरोना से पूरी तरह उबर चुके 1,000 से अधिक प्रभावितों के मामले हमारे पास है। उन्हें नाना प्रकार की शारीरिक समस्याएं हो रही है जो कि आमतौर पर कोरोनावायरस प्रभावित लोगों में देखी जाती हैं। 


हमें इन प्रभावितों के लिए विशेष Diet Schedule बनाने का काम मिला हुआ है। ये सभी प्रभावित यूरोप से हैं पर मुख्यता स्पेन से हैं। 


हमने Diet Schedule तैयार कर लिया है और हम आपसे मदद चाहते हैं कि आप इस पर अपनी राय दें और आवश्यक हो तो सुधार करें। क्या आप इस दिशा में हमारी मदद करेंगे?" 


मुंबई के एक शोध संस्थान ने मुझसे संपर्क किया कि मैं उनके द्वारा बनाए गए Diet Schedule का अध्ययन करूं और अपने सुझाव दूं।


 जैसा कि ऊपर बताया गया है कि यह Diet Schedule कोरोनावायरस से ठीक हो चुके मरीजों के लिए था जिन्हें नाना प्रकार की समस्याएं हो रही थी। 


शोध संस्थान के डायरेक्टर ने मुझसे सीधा संपर्क किया। मैंने उन्हें बताया कि इतने सारे मामलों पर सलाह देना तो बहुत श्रम साध्य कार्य है।


 इससे मेरा शोध कार्य बुरी तरह प्रभावित होगा। फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि रोज कुछ मामलों को समझने की कोशिश करूँ। 


मैंने जब उनके द्वारा बनाए गए Diet Schedule का अध्ययन किया तो उनमें कई प्रकार की खामियां पाई। उसमें बहुत सी ऐसी भोजन सामग्रियों का प्रयोग किया गया था जो कि इन समस्याओं को बढ़ा देने वाली थी।


 क्योंकि कोरोनावायरस पूरी दुनिया के लिए नया है इसलिए वायरल रोगों पर काम करने वाले विशेषज्ञ ही बता सकते हैं कि किस तरह की भोजन सामग्री का प्रयोग करने से कोरोना के कारण होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है। 


एक बात और थी। 


उन्होंने जिन सामग्रियों का प्रयोग किया था वे पूरी तरह से भारतीय नहीं थी। इन सामग्रियों में फास्ट फूड को भी शामिल किया गया था और कहीं कहीं तो हानिकारक फलों को भी इसमें जगह दी गई थी। 


मैंने उन्हें साफ शब्दों में कहा कि 1 हजार मामलों के लिए एक Diet Schedule बनाना सही नहीं होगा। बेहतर यह होगा कि हर मामले की अच्छे से जांच परख की जाए और हर मामले के लिए एक पृथक और विशेष Diet Schedule बनाया जाए। 


मैंने यह भी कहा कि मैं भारतीय भोजन सामग्रियों और औषधीयों की सहायता से Diet Schedule बना सकता हूं। आपको इस बात का प्रबंध करना होगा कि ये भोजन सामग्रियां और औषधीयां यूरोपीय देशों में पहुंच सके और वहां के प्रभावित इनका सफलतापूर्वक प्रयोग कर सकें। 


शोध संस्थान के डायरेक्टर ने बड़े ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनी और कहा कि वे अपनी टीम से बात कर मुझे बताएंगे। 


कुछ समय बाद उनका संदेश आया कि उनकी टीम के 55 सदस्य मेरे साथ जुड़ने के लिए तैयार हैं। आपको सिर्फ दिशा निर्देश देना है फिर वे एक-एक करके सभी मामलों के लिए पृथक Diet Schedule बनाने के लिए तैयार है। 


मैंने तय किया कि मैं रोज 20 मामलों के लिए Diet Schedule बनाऊंगा और फिर उन्हें टीम के सदस्यों के पास भेजूंगा ताकि वे उन्हें अंतिम आकार दे सके। 


उसके बाद एक बार फिर से इन Diet Schedule की जांच करूंगा ताकि किसी भी प्रकार की त्रुटि न हो।


 मैंने शोध संस्थान के डायरेक्टर से यह भी कहा कि जब प्रभावित इन Diet Schedule का प्रयोग करना शुरू करें तो मुझे लगातार फीडबैक चाहिए होगा ताकि उनको हो रही किसी भी प्रकार की नई समस्या का तुरंत ही समाधान बताया जा सके और यदि किसी सामग्री को लेने में किसी तरह की दिक्कत हो तो उस सामग्री को उसी समय दूसरी सामग्री से बदला जा सके।


 मुझे बताया गया कि प्रभावितों में अधिकतर ऐसे लोग हैं जिनके फेफड़े बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं और उन्हें सांस संबंधी तरह तरह की समस्याएं हो रही है।


 ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्हें कि कोरोना के बाद दिमाग की समस्या हो गई है। दिमाग की समस्याओं से प्रभावित लोगों के लिए Diet Schedule बनाना एक चुनौती के समान रहा। 


इसके अलावा किडनी, लीवर और दूसरे महत्वपूर्ण अंगों की समस्याओं के लिए भी कई तरह के Diet Schedule बनाए गए और इनमें इस बात का ध्यान रखा गया कि प्रभावित किस उम्र के हैं और कोरोनावायरस ने शरीर को किस हद तक प्रभावित किया है?


 यूरोपीय देशों में इस तरह के Diet Schedule पहुंचने के बाद वहां के स्वास्थ विशेषज्ञों में एक विशेष तरह का उत्साह दिखाई दिया और उन्होंने उस संस्थान से अनुरोध किया कि वे उनके देशों के मामलों को भी देखें। 


दुनियाभर में लाखों लोग कोरोनावायरस से प्रभावित हुए हैं। इनमें से कुछ लोगों के लिए ही Diet Schedule बनाना संस्था के लिए भारी पड़ने लगा। 


इस समस्या को देखते हुए उन्होंने अपनी टीम को बड़ा किया और 200 सदस्यों को मेरे साथ काम पर लगा दिया। नए मामलों को देखना और नए शेड्यूल बनाने का कार्य अब भी जारी है। 


यह अच्छी बात है कि इन Diet Schedule से प्रभावित लोगों के जीवन पर अच्छा असर पड़ रहा है और उन्हें Diet Schedule को अपनाने में किसी भी तरह की समस्या नहीं हो रही है। 


हम भारतीयों के लिए यह अच्छी बात है कि इस पूरी परियोजना से बहुत सारे किसान जुड़े हुए हैं और बहुत सारे पारंपरिक चिकित्सक भी। सभी को कुछ न कुछ लाभ हो रहा है और कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है। 


शोध संस्थान के डायरेक्टर छत्तीसगढ़ के ही हैं। 1000 मामलों का लक्ष्य पूरा करने के बाद उन्होंने मुझसे फोन कर बताया कि उन्हें भी एक विशेष समस्या है और उसका समाधान भी मुझसे चाहते हैं।


 उन्होंने बताया कि उन्हें 3 साल पहले पैर में एक फोड़ा हो गया था जोकि पूरी तरह से नहीं भर रहा है। 


उन्होंने कहा कि उन्हें डायबिटीज की समस्या है और चिकित्सक कहते हैं कि यह डायबिटिक वुण्ड है।


 वे लगातार कोशिश कर रहे हैं कि उनके खून में शुगर की मात्रा कम रहे पर ऐसा संभव नहीं हो पाता है और यही कारण है कि चिकित्सक कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति में उनका जख्म किसी भी तरह से ठीक नहीं होगा। 


वे जानते हैं कि इस समस्या का समाधान जितनी जल्दी हो सके उतना अच्छा है पर 3 साल के लंबे अंतराल में तरह-तरह की चिकित्सा पद्धतियों का प्रयोग करने के बाद भी समस्या जस की तस है। 


मैंने उनसे कहा कि मैं उनकी मदद करूंगा। 


मैंने उनसे पिछले 3 सालों से ली जा रही दवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली और यह भी पूछा कि अभी वे कौन-कौन सी दवाई ले रहे हैं? 


उन दवाओं के सैंपल मैंने रायपुर भी मंगा लिए ताकि उनकी अच्छे से पड़ताल की जा सके। दवाओं के बारे में विस्तार से अध्ययन करने पर उनमे किसी भी प्रकार का दोष नजर नहीं आया। तब मेरा ध्यान उनके द्वारा उपयोग की जा रही भोजन सामग्रियों पर गया और मैंने उन सामग्रियों की पड़ताल शुरू की।


 मैंने पाया कि वे बहुत ही साधारण भोजन करते हैं और उस भोजन में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो कि उनके जख्म को भरने में बाधक सिद्ध हो रही हो। 


मैंने उनसे पूछा कि वे अपने दिमाग पर जोर लगाकर मुझे यह बताएं कि पिछले कई सालों से वे किस भोजन सामग्री का प्रयोग बिना रुके हर मौसम में कर रहे हैं। 


उन्होंने कुछ दिनों का समय मांगा और फिर उसके बाद मुझे बताया कि वे छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध लड्डू का प्रयोग लंबे समय से कर रहे हैं जिसे कि छत्तीसगढ़ में छेबारी लड्डू कहा जाता है। 


मैंने उन्हें बताया कि इस लड्डू का प्रयोग प्रसव के बाद महिलाओं के स्वास्थ को ठीक करने के लिए किया जाता है। 


यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक का काम करता है ताकि प्रसव के बाद होने वाली समस्याओं को पूरी तरह से समाप्त किया जा सके। 


यह तासीर में गर्म होता है और छत्तीसगढ़ में पीढ़ियों से इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसका स्वाद बहुत चरपरा और कड़वा होता है। इसलिए इसे कड़वा लड्डू भी कहा जाता है और बच्चे इसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं।


 इसका प्रयोग प्रसव के बाद ही किया जाता है और अन्य मौसम में नहीं किया जाता है। ठंड इसके प्रयोग की सबसे अच्छी ऋतु मानी जाती है।


 आजकल छत्तीसगढ़ में इसका प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है। न केवल महिलाएं बल्कि सभी उम्र के लोग हर मौसम में इस लड्डू का प्रयोग करते हैं। 


यह मानकर कि इससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाएगी और वे साल भर बीमार नहीं पड़ेंगे। ऐसा प्रयोग शास्त्रों में वर्णित नहीं है।


 इस लड्डू की बढ़ती मांग के कारण इसकी कीमत हर साल आसमान छूने लग जाती है और पहले कुछ ही जड़ी बूटियां बेचने वाली दुकाने ही इसे तैयार करती थी। 


अब हर दुकान और विशेषकर हर मिठाई दुकान में यह लड्डू मिलता है और अनुमोदित मात्रा से अधिक में आम लोग इसका प्रयोग करते हैं। 


यह दुर्भाग्य की बात है कि सभी दुकानदार इसे शास्त्र सम्मत विधि से नहीं बनाते हैं। अधिकतर दुकानदार इसमें शक्कर का प्रयोग करने लगे हैं ताकि इसकी कड़वाहट कम हो और ज्यादा से ज्यादा लोग इसे खा सकें। 


इस लड्डू में बहुत ही दुर्लभ जड़ी बूटियों का प्रयोग होता है जो कि बहुत आसानी से नहीं मिलती है। यही कारण है कि ये लड्डू बहुत ज्यादा दुर्लभ भी होते हैं और इनकी कीमत भी अधिक होती है।


 पर आजकल जो लड्डू बाजार में उपलब्ध है उनमे न तो जड़ी बूटियों की गुणवत्ता की गारंटी होती हैं न ही उन में मिलाए जाने वाले घटकों की। 


इन लड्डूओं की किसी भी प्रकार से सरकारी विभाग द्वारा जांच नहीं की जाती है इसलिए सभी दुकानदार निरंकुश हो जाते हैं।


 इन लड्डू के कारण या कहें कि इन दोषपूर्ण लडडू के कारण कई तरह की बीमारियां होने लग गई हैं और कई प्रकार के कैंसर को बढ़ावा मिलने लग गया है।


 मैंने शोध संस्थान के डायरेक्टर साहब से पूछा कि वे कहां से लड्डू खरीदते हैं?


जब उन्होंने उस दुकान का नाम बताया तो मैंने उनसे कहा कि आप गलत स्थान से इस लड्डू को खरीद रहे हैं और आपको वैद्य या आयुर्वेदिक चिकित्सक के अनुमोदन के अनुसार ही इस लड्डू का प्रयोग करना चाहिए था। 


आप पिछले 3 सालों से 1 दिन भी बिना चूके इस लड्डू का प्रयोग कर रहे हैं जो कि पूरी तरह से दोषपूर्ण लड्डू है। 


इससे आपको कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो रही होंगी जैसे कि आपको बवासीर की समस्या हो गई होगी विशेषकर खूनी बवासीर की। आपकी रातों की नींद गायब हो गई होगी। आपके हाथ पैरों में बहुत अधिक पसीना आने लगा होगा आदि आदि। 


मैं आपको यही परामर्श दूंगा कि आप तुरंत ही इस लड्डू का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें और जब आपका जख्म पूरी तरह से ठीक हो जाए उसके बाद किसी दक्ष चिकित्सक के अनुमोदन पर ही इनका प्रयोग करें। 


उन्होंने बताया कि वे बचपन से ही छत्तीसगढ़ में रहे हैं। उनके घर में भी यह लड्डू बनाया जाता था। 


दुकान से वे जो लड्डू खरीदते हैं उसमें वह स्वाद नहीं होता जो कि घर के बने लड्डू में हुआ करता था। 


उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वे अब इस लड्डू का प्रयोग नहीं करेंगे और देखेंगे कि उन्हें किस तरह का लाभ होता है और अगली बार जब भी लड्डू का प्रयोग करना होगा तो वे अपनी दादी से कहेंगे कि उनके लिए विशेष तौर पर यह लड्डू बना दें ताकि उन्हें बाजार पर इसके लिए निर्भर न रहना पड़े।


 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


15 दिनों के बाद उनका फोन आया कि उनकी समस्या अब धीरे-धीरे सुलझने लगी है। घाव भरने लगा है और उसमें होने वाली असहनीय जलन भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। 


3 साल पुराना फोड़ा 45 दिनों के अंदर पूरी तरह से ठीक हो गया बिना किसी नई दवा के।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। 


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