Consultation in Corona Period-52

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"न्यूरोलॉजिस्ट ने जब कहा कि आपको Progressive Supranuclear Palsy (PSP) जैसे लक्षण आ रहे हैं और उसका कारण आपका बुढ़ापा है तो मैंने इस पर विश्वास कर लिया पर एक महीने के अंतराल में मेरे साथ के सभी मित्रों को एक-एक करके इस बीमारी ने पकड़ा तो मुझे शक हुआ कि सभी को एक साथ यह बीमारी क्यों हो रही है? 


अभी सभी दसों साथियों का उपचार मेरे साथ ही चल रहा है पर हम सब बड़े अचरज में हैं ऐसा क्यों हो गया।


 वह भी इतने कम समय अंतराल में। 


चिकित्सक यह नहीं बता पा रहे हैं कि इसका कारण क्या है पर वे बार-बार एक ही बात कह रहे हैं कि हमारे बुढ़ापे के कारण ऐसे लक्षण आ रहे हैं। क्या इस बारे में आप अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं? 


क्या आप मार्गदर्शन कर सकते हैं कि इस रोग का कारण क्या है और हम सभी साथियों को इसने एक साथ क्यों पकड़ा?"


 शहर के एक बुजुर्ग ने मुझसे परामर्श के लिए समय मांगा और परामर्श के दौरान अपनी यह समस्या बताई। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।


 बेहतर यही होगा कि आप अपने साथियों को लेकर मुझसे मिलने आए ताकि पता चल सके कि आप सब लोगों में ऐसा क्या समान है जिसके कारण सभी को एक-एक करके यह रोग हो गया।


 जब सारे बुजुर्ग मित्र एक साथ मुझसे मिलने आए तो उन्होंने बताया कि वे मॉर्निंग वॉक में साथ जाते हैं और उनका साथ दो-तीन घंटों का रहता है। 


इस मॉर्निंग वॉक के दौरान वे तरह-तरह की एक्सरसाइज करते हैं, खूब हंसते हैं और प्रसन्न रहने की कोशिश करते हैं।


 पीएसपी जैसे लक्षण पहले एक साथी में आए और उसके बाद एक के बाद एक सभी साथियों में वैसे ही लक्षण आने लगे।


 पहले वे अपने चिकित्सक से मिले। जब उन्होंने कहा कि यह न्यूरोलॉजी का प्रॉब्लम है तो उन्होंने न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह ली। 


थोड़ी सी जांच के बाद न्यूरोलॉजिस्ट ने बता दिया कि आपके सारे लक्षण पीएसपी से मिलते जुलते हैं पर वास्तव में आपको पीएसपी नहीं है। 


हो सकता है कि आने वाले समय में वे निश्चित रूप से कह सकें कि आप सभी को पीएसपी है।


 उन्होंने स्वास्थ का ध्यान रखने की हिदायत दी और कहा कि दवाओं का नियमित सेवन करें। 


इससे उनका रोग ठीक तो नहीं होगा पर इनके साथ वे लंबा जीवन जी सकते हैं। 


चिकित्सक ने यह भी कहा कि वे अकेले घूमने जाने की बजाय परिवार के किसी सदस्य को साथ में लेकर जाएं और जब भी ऐसे लक्षण आयें तो तुरंत घर वापस आ जायें। 


मैंने उन बुजुर्गों की सभी रिपोर्ट देखी और पाया कि उनके न्यूरोलॉजीस्ट सही कह रहे थे कि सारे लक्षण पीएसपी से मिलते जुलते हैं।


 मैंने उनसे सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या के बारे में विस्तार से जानकारी ली। 


यह पूछा कि सुबह से लेकर शाम तक क्या-क्या खाते हैं और जो भी खाद्य सामग्री का प्रयोग वे करते हैं उनका स्रोत क्या है और इन खाद्य सामग्रियों में ऐसी कौन सी चीज है जिसका प्रयोग सभी करते हैं।


 उनमें से एक चीज उन सब में समान थी और वह थी शक्कर के स्थान पर स्टीविया का प्रयोग।


 मैंने उनसे पूछा कि क्या आप यह स्टीविया विदेशी कंपनी की खरीदते हैं या फिर देसी बाजार से।


 उन्होंने बताया कि पुणे की एक कंपनी है जो कि स्टीविया की खेती करती है। उससे ही हम स्टीविया लेते हैं।


 उन्होंने आगे बताया कि वे लंबे समय से इसका प्रयोग कर रहे हैं और इससे उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं है।


 इसके प्रयोग से शक्कर के ऊपर उनकी निर्भरता पूरी तरह से समाप्त हो गई है।


 मैंने उन्हें बताया कि भारत के बहुत सारे स्टीविया उत्पादक गोबर के घोल के साथ ऐरवा नामक वनस्पति का प्रयोग करते हैं।


 इस वनस्पति का प्रयोग करने से स्टीविया का उत्पादन बढ़ जाता है और उसमें बहुत अच्छे से कीट नियंत्रण हो जाता है पर पत्तियों में एक विशेष प्रकार का दोष उत्पन्न हो जाता है। 


पत्तियों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से ऐसे ही लक्षण आते हैं जैसे कि आप सभी को आ रहे हैं। 


उनके अनुरोध पर मैंने पुणे के स्टीविया उत्पादक से बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे ऐरवा नामक वनस्पति का प्रयोग फसल उत्पादन के दौरान नहीं करते हैं।


 इससे यह स्पष्ट हो गया कि बुजुर्गों को हो रही समस्या का कारण स्टीविया नहीं था।


 बुजुर्गों में एक और समान बात थी कि वे रोज सुबह गेहूँ के पौधों के रस का प्रयोग करते थे। 


उन्होंने बताया कि सालों से वे इस रस का प्रयोग कर रहे हैं। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से ठीक रहती है और उन्हें मौसमी बीमारियां नहीं होती है। 


उनमें से कुछ ने कहा कि यह कैंसर से बचाता है जबकि कुछ ने कहा कि यह डायबिटीज को ठीक करता है।


 मॉर्निंग वॉक खत्म होने के बाद वे इसका प्रयोग करते हैं। 


मैंने उनसे पूछा कि क्या आप गेहूँ के पौधों को घर में लगाते हैं फिर घर में ही रस तैयार करके उसका सेवन करते हैं?


 तो उन्होंने कहा कि पहले वे ऐसा करते थे पर आज कल जिस पार्क में घूमने जाते हैं उसके सामने ही यह उपलब्ध हो जाता है।


 हम वही से खरीद कर ताजे रस का सेवन कर लेते हैं।


 उन्होंने बताया कि ये गेहूँ के पौधे उनके पार्क में ही भ्रमण करने वाले एक साथी के फार्म से आते है और वह फॉर्म पूरी तरह से ऑर्गेनिक है। 


मुझे सूत्र मिल गया था। 


मैंने कहा कि मैं उन सज्जन से बात करना चाहता हूं जो कि गेहूँ के पौधों के रस को पार्क के सामने बेचते हैं। 


भले ही वह कहते हो कि वे इसे ऑर्गेनिक तरीके से उगा रहे हैं पर मुझे पूरा शक है कि वे किसी रसायन का प्रयोग करते हैं और वह रसायन ग्लाइफासेट हो सकता है क्योंकि पंजाब के बहुत सारे किसान जो ग्लाइफासेट का प्रयोग बड़ी मात्रा में करते हैं फसलों को खरपतवारों से बचाने के लिए उनमें पीएसपी जैसे लक्षण सामान्य रूप से देखे जा सकते हैं।


 यह हो सकता है कि ऑर्गेनिक फार्म के मालिक ने गेहूँ के पौधों  को ऐसे खेत में लगाया हो जहां पहले ग्लाइफासेट का प्रयोग किया गया हो या फिर हो सकता है कि आसपास के खेतों में ग्लाइफासेट का प्रयोग किया गया हो। 


यह भी हो सकता है कि उन्होंने गेहूँ को बोने से पहले ग्लाइफासेट का प्रयोग किया हो ताकि खेत में उपस्थित खरपतवार पूरी तरह से नष्ट हो जाए। 


ग्लाइफासेट एक खतरनाक कृषि रसायन है। यह एक तरह का न्यूरोटॉक्सिन है जिसका प्रभाव खेतों में कई वर्षों तक रहता है।


 किसानों के लिए यह बहुत उपयोगी है क्योंकि यह खरपतवारों को प्रभावी तरीके से नष्ट करता है।


 पर जिस जमीन में इसका प्रयोग किया जाता है जब किसान उस जमीन में फसल लगाते हैं तो फसलों पर भी इसका प्रभाव आ जाता है।


जब वह हमारे पाचन तंत्र में जाता है तो नाना प्रकार के रोग उत्पन्न करता है जिनमें कि दिमागी रोग और कैंसर जैसे भयानक रोग भी शामिल हैं।


 बुजुर्गों ने इस पर आश्चर्य व्यक्त किया और बोले कि अगर आप चाहे तो हम सब मिलकर उनके फार्म में विजिट कर सकते हैं। 


जब मैं उनके साथ फार्म पहुंचा तो वहां फार्म के मालिक नहीं थे बल्कि कुछ मजदूर काम कर रहे थे। 


मजदूरों से जब मैंने विस्तार से इस बारे में पूछा तो उनमें से एक ने बताया कि इस फार्म में ग्लाइफासेट का अक्सर प्रयोग होता है। 


अब बात साफ हो चुकी थी। 


यह फार्म नाम का ही ऑर्गेनिक था। गेहूँ भी नाम का आर्गेनिक था और यही कारण था कि सारे बुजुर्गों को पीएसपी जैसे लक्षण आ रहे थे।


 मैंने बुजुर्गों को पूरी बात विस्तार से समझाई और उनसे कहा कि आप किसी के ऑर्गेनिक कह देने पर उसे ऑर्गेनिक न मान बैठें। पहले उसकी परीक्षा करें। 


उसे कैसे तैयार किया गया इस बारे में विस्तार से छानबीन करें और अगर आप यह नहीं कर सकते हैं तो ऑर्गेनिक के नाम पर अपना पैसा बर्बाद न करें और अपने स्वास्थ को खतरे में नहीं डालें।


 गेहूँ के पौधों के रस के लिए गेहूँ आप अपने घर मे गमले में लगा सकते हैं और अपनी निगरानी में ही उसका प्रयोग कर सकते हैं जैसा कि आप पहले कर रहे थे।


जरा सी मेहनत से बचने के लिए आपने पार्क के सामने से तथाकथित ऑर्गेनिक गेहूँ के पौधों का रस पिया और आपकी जान पर बन आई। 


यह Agrochemical induced PSP है न कि वास्तविक पीएसपी और आपको जो दवाएं दी जा रही है वह वास्तविक पीएसपी की दी जा रही है जिनके बहुत सारे साइड इफेक्ट है।


 इसलिए बेहतर यही होगा कि आप सबसे पहले बाहर से गेहूँ के पौधों का रस पीना बंद करें।


 मैं आपको एक विशेष मेडिसिनल राइस दे रहा हूं जिसका सत्व आप सुबह पीना शुरू करें। इससे धीरे-धीरे ग्लाइफासेट का असर कम होना शुरू होगा। 


फिर आप 15 दिनों के बाद मुझसे दोबारा मिलें।


 15 दिनों के बाद जब वे फिर से मिले तो उनकी स्थिति में काफी सुधार था। पीएसपी जैसे लक्षण पूरी तरह से समाप्त हो चुके थे। उनकी दवाएं बंद हो चुकी थी।


 उन्होंने मुझसे अनुमति मांगी कि वे चावल का प्रयोग लंबे समय तक करना चाहते हैं।


 मैंने कहा कि चावल की भूमिका यही तक थी। 


अब इसके बाद इसके प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। आप जैसी दिनचर्या में रहते हैं वह सबसे अच्छी दिनचर्या है। 


आप उसका पालन करिए। आपको किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ लंबे समय तक नहीं होगी।


 मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।


 उन्होंने धन्यवाद दिया। 


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