Consultation in Corona Period-26

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"पिताजी की हालत बहुत खराब है। डॉक्टर ने उन्हें 12 घंटों का समय दिया है इसलिए हमारा आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध है कि आप शीघ्र अतिशीघ्र जबलपुर आ जाएं। 


हम चाहते हैं कि आप उनकी मृत्यु के समय उनके साथ रहें और अपनी धनंजय विद्या का अभ्यास करें।"


रात को दो बजे जब यह अजीब सा फोन आया तो मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। 


मन में आया कि कह दूं कि आपको किसी ने गलत जानकारी दी है पर मैंने उनसे कहा कि अभी तो लॉकडाउन लगा है और अभी आना संभव नहीं है।


 उन्होंने कहा कि इसके लिए हमने आपके लिए एक विशेष विमान की व्यवस्था की है जो संभवत सुबह 7:00 बजे आपको मिल जाएगा। 


उससे आप जबलपुर शीघ्र अतिशीघ्र आ सकते हैं। मैंने उनसे पूछा कि मेरे बारे में जानकारी उन्हें कहां से मिली?


उन्होंने खुलासा किया कि उत्तराखंड के एक धर्मगुरु ने हमें बताया है कि आपने धनंजय विद्या का ज्ञान उनसे लिया है और उन्होंने ही कहा है कि ऐसी परिस्थिति में वे नहीं आ सकते इसलिए रायपुर से आपको बुला लिया जाए।


 मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि मैं वैज्ञानिक हूं और मैंने धनंजय विद्या से संबंधित पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है पर इसका अभ्यास मैंने नही किया है। 


मैं लंबे समय से इसकी वैज्ञानिक व्याख्या करने की कोशिश कर रहा हूं पर जिस तरह की सहायता आप मुझसे चाहते हैं वह मैं नहीं कर पाऊंगा। 


आप मेरी भावनाओं को समझें और अभी भी समय रहते मेरे आने जाने का प्रबंध न करें।


90 के दशक में जब मैंने भारत के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करना शुरू किया था तब मुझे सबसे पहली बार धनंजय विद्या के बारे में पता चला था।


 इस विद्या का संबंध मृत्यु के बाद सक्रिय होने वाली धनंजय वायु से है और यह एक तरह का भारत का गुप्त ज्ञान है। 


इसके बारे में किसी ने न ज्यादा अध्ययन किया है न ही लिखा है। इसलिए मैंने निश्चय किया कि मैं इसके बारे में लिखूंगा पर जब तक इसकी वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कर लूंगा तब तक इसे प्रकाशित नहीं करूंगा। 


देशभर में घूमने पर मुझे पता चला कि बहुत से पारंपरिक चिकित्सक और धर्मगुरु इस बारे में विस्तार से जानकारी रखते हैं पर बड़ी मुश्किल से आम लोगों को बताते हैं। 


90 के दशक में ही मुझे एक प्रसिद्ध अभिनेता के घर मुंबई जाने का मौका मिला। वे मृत्यु शैया पर थे और मुझे परामर्श के लिए बुलाया गया था। 


वहां एक धर्मगुरु आए थे जिनसे उम्मीद की जा रही थी कि वे धनंजय विद्या का प्रयोग करें और अभिनेता को मौत के मुंह से बाहर निकालें। 


 उन्होंने शांत स्वर में परिवार वालों को यह समझाया कि अभिनेता के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर जीवन वापस भी आता है तो उनका जीवन कष्ट में होगा।


 इससे बेहतर तो यह है कि मैं उनके लिए  मंत्रोच्चार करूं और उनके अगले जीवन के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करूँ।


 घरवाले उनकी बात को मान गए। उनकी इस बात ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया। 


बाद में जब मैं उनका चेला बना तो उन्होंने इस गुप्त ज्ञान के बारे में विस्तार से जानकारी दी और यह भी कहा कि विधि के विधान को टालना मनुष्य के बस की बात नहीं है और यदि वह हठपूर्वक प्रयास करता भी है तो ज्यादातर मामलों में उसे असफलता ही मिलती है।


 पिछले 30 वर्षों में मुझे बहुत सारे जड़ी बूटियों के नुस्खे मिले और संबंधित ज्ञान मिला। बस्तर के एक वयोवृद्ध पारंपरिक चिकित्सक ने मुझे एक जड़ी बूटी का घोल दिया और कहा कि इसे सुखाकर यदि किसी मृत व्यक्ति की कलाइयों पर लगाया जाए तो उसके शरीर में हलचल होने लग जाती है पर ऐसा मृत्यु होने के एक घंटे के अंदर करना होता है।


 उनकी बड़ी ख्याति थी और लोग उन्हें बहुत मानते थे। 


जब मैंने पूछा कि क्या इससे मृत्यु से जीवन फिर वापस मिल सकता है तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया पर यह प्रयोग उन्होंने कई बार हम चेलों को करके दिखाया। 


बाद में जब मैंने इसकी वैज्ञानिक व्याख्या करने की कोशिश की तो मुझे पता चला है कि मृत्यु के बाद शरीर में वायु कुछ असंतुलन और कुछ असमंजस में होती है इसलिए बहुत ही छोटे स्तर पर यह प्रतिक्रिया होती है। 


इसके बारे में हमारे देश का पारंपरिक ज्ञान विस्तार से व्याख्या करता है पर यह धनंजय विद्या नहीं है। 


इस विद्या के बारे में विस्तार से ज्ञान एकत्र करने के बाद मैंने निश्चय किया कि मैं आजीवन इसके बारे में जानकारी एकत्र करता रहूंगा और इसे अभ्यास में कभी नहीं लाऊंगा।


 जबलपुर से आए फोन ने मुझे बड़ी दुविधा में डाल दिया था। 


मैंने उत्तराखंड के स्वामी जी को फोन करके अनुरोध किया कि एक वैज्ञानिक को इस अभ्यास में न घसीटें। उन्होंने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया।


उसके बाद इस तरह के फोन आने बन्द हो गए।


 भले ही धनंजय विद्या मृत्यु के बाद का विज्ञान है पर मेरा मानना है कि इसे मृत्यु से पहले कोमा में पड़े मरीज की जान बचाने के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है।


 दो वर्ष पहले मैंने अपने एक अमेरिकी मित्र से इस पर विस्तार से चर्चा की थी। वे एक बड़े संस्थान में वैज्ञानिक है और उन्होंने कहा था कि वे इस दिशा में प्रयास करेंगे।


दो सालों के अथक प्रयासों के बाद उन्होंने एक मॉडल तैयार किया है जिसमें इस ज्ञान को परखा जा सकता है। इसमें सारी वैज्ञानिक विधियां हैं और वे अपने साथियों से भी सलाह ले रहे हैं। 


उनका कहना है कि धनंजय विद्या दुनिया की दूसरी संस्कृतियों में भी अन्य नामों से प्रचलित है पर उसके बारे में किसी ने कभी गहराई से काम नहीं किया है। 


वे चाहते हैं कि मैं अमेरिका में आकर उनके साथ रहकर यह शोध करुं और मैं चाहता हूं कि वे छत्तीसगढ़ आए और छत्तीसगढ़ में यह शोध करें। यहीं पर बात अटकी हुई है पर मुझे लगता है देर सबेर इसकी वैज्ञानिक व्याख्या हो जाएगी।


 आज जब कोरोना के कारण लाखों लोग बेमौत मर रहे हैं इस समय शायद यह ज्ञान जीवन बचाने में अहम भूमिका निभा सकता है पर अभी इस पर वैज्ञानिक शोध नहीं हुए हैं और ऐसे शोध करने में कम से कम 5 से 7 साल लगेंगे।


हो सकता है इससे अधिक समय लगे।


 हम उम्मीद करते हैं कि आगे कभी ऐसी महामारी पृथ्वी पर फिर से फैले तो वैज्ञानिक परीक्षण के बाद धनंजय विद्या का यह दुर्लभ ज्ञान आम लोगों के काम आ सकेगा और उनकी अकाल मृत्यु को टाला जा सकेगा।


 हमारे प्रयास जारी है। 


सर्वाधिकार सुरक्षित

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