Consultation in Corona Period-39

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हत्या 2 साल पहले हुई है। कब्र को फिर से खोदकर कंकाल निकाला गया है।



वृद्धा के बेटे को हत्या का शक है। उसने मुकदमा दायर किया है। 


फॉरेंसिक विशेषज्ञ ने आपका नाम अनुमोदित किया है और मैं इस केस को देख रहा हूं।"


मेरे वकील मित्र का जब यह फोन आया तो मैंने उनसे कहा कि आप इस केस में है इसलिए मैं आपकी मदद करूंगा और इस केस से जुड़ना पसंद करूंगा। 


आप मुझे विस्तार से जानकारी दें। 


उन्होंने बताया कि दो साल पहले 80 साल की एक वृद्धा की मृत्यु हो गई थी जिसे प्राकृतिक मृत्यु बताया गया और उन्हें दफन कर दिया गया। 


उनके सात बेटे थे जो कि उनके साथ नहीं रहते थे। वह अकेले रहती थी और एक केयरटेकर कुछ समय उनके साथ रहती थी। 


एक बेटा विदेश में था और बाकी छह बेटे उसी शहर में रहते थे।


 मुकदमा छोटे बेटे ने किया है जो कि विदेश में था और मृत्यु के समय किसी कारणवश नहीं आ पाया था।



 उसने अपने भाईयों पर इल्जाम लगाया है कि यह मामला स्वाभाविक मृत्यु का नहीं है बल्कि एक हत्या का है। 


उसने कुछ प्रमाण भी प्रस्तुत किए हैं। माननीय न्यायालय ने इसे स्वीकार कर लिया है।


 कब्र फिर से खोदी गई है और अब फॉरेंसिक विशेषज्ञ की मदद ली जा रही है। 


अपील में कहा गया है कि यह मौत विष के कारण हुई है अर्थात वृद्धा को जहर देकर मारा गया है इसीलिए फॉरेंसिक विशेषज्ञ इस केस में जुड़े हुए हैं पर कंकाल में विष की उपस्थिति का पता लगाना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है। 


उन्होंने अपने ज्ञान के अनुसार जितनी कोशिश करनी थी उतनी कोशिश कर ली है पर सफलता बिल्कुल भी नहीं मिली है। 


यदि ऐसे ही रहा तो केस जल्दी ही बंद हो जाएगा। ऐसा कहकर वकील मित्र ने अपनी बात पूरी की।


 मैंने फॉरेंसिक विशेषज्ञ से बात की और कहा कि मैं अपने ज्ञान के आधार पर आपको 400 प्रकार के विष और कंकाल में उनके परीक्षण के बारे में बता सकता हूं।


 यह पूरी तरह से ब्लाइंड केस है और हमें सभी प्रकार की संभावनाओं पर विचार करना होगा। यदि आप इतने सारे प्रयोग करने को तैयार हैं तो मैं आपको सारी जानकारियां देने को तैयार हूं।


 वे बड़े उत्साही विशेषज्ञ थे। उन्होंने इन परीक्षणों को आजमाने के लिए अपनी हामी भर दी।


 पूरी प्रक्रिया में कई महीने लग गए और यह नहीं पता चल सका कि यह प्राकृतिक मृत्यु थी या हत्या थी। वह भी विष दे कर की गई हत्या।



इस बीच वकील मित्र का फोन आया है कि आप इस केस से हट जाइए क्योंकि फॉरेंसिक विशेषज्ञ को जान से मारने की धमकी मिली है और इस केस से हटने की बात उनसे कही गई है।


 कहीं यह धमकी आपको भी न मिलने लगे।


 इतने लंबे प्रयोगों के बाद हम सब बहुत निराश हो चुके थे पर इस धमकी ने हममें फिर से एक नया उत्साह भर दिया। 


धमकी मिल रही थी मतलब सही में हत्या हुई है अन्यथा किसी को इसकी क्या पड़ी है। 


मैंने फॉरेंसिक विशेषज्ञ से बात की और कहा कि क्या आप आगे प्रयोग करने को तैयार हैं तो उन्होंने कहा कि धमकी तो मेरे लिए रोजमर्रा की बात है। 


मैं तो इसके डर से हटने वाला नहीं पर मेरे सभी उपाय खत्म हो चुके हैं और जब तक हम कोई ठोस सबूत नहीं देंगे तब तक माननीय न्यायालय हमें अधिक समय नहीं देगा इसलिए जो भी करना है जल्दी से करना होगा। 


मैंने नए सिरे से काम करने का मन बनाया और वकील मित्र से अनुरोध किया कि क्या मैं उस केयरटेकर से बात कर सकता हूं जो अंतिम दिनों में वृद्धा के साथ थी। 


उस केयरटेकर से मैंने अंतिम एक महीने में जैसी भी वृद्धा की हालत रही उसके बारे में विस्तार से जानकारी मांगी तो उसने बताया कि आखिरी के महीनों में उनकी बहुत बुरी हालत थी।


 वह बहुत बेचैन रहती थी। दिन भर घर में घूमती रहती थी और दीवारों से टकराती रहती थी फिर थक कर वही पर सो जाती थी। 


हम लोग वहीं से उठाकर उन्हें पलंग पर ले आते थे और नींद खुलते ही फिर से वही करने लग जाती थी। 


बहुत सारे डॉक्टर आए। सभी ने उपचार किया पर वे इस बेचैनी को ठीक नहीं कर पाए। 


उनके बेटे भी आए और उन्होंने भी अपनी मां से बात की पर फिर भी वह समझ नहीं पाई।


 मुझे सूत्र मिल गया था।


 मैंने फॉरेंसिक विशेषज्ञ से कहा कि वे रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाले मसालों की विषाक्तता का अध्ययन करें।


 मुझे उम्मीद है कि उन्हें सफलता मिलेगी।


 जब उन्होंने यह परीक्षण किया तो जल्दी ही हमें पता चल गया है कि किचन में प्रयोग होने वाला एक मसाला इस हत्या के लिए उत्तरदाई था जिसे दवा बता कर वृद्ध को उसका एक बेटा लंबे समय तक खाने के लिए प्रेरित कर रहा था। 


उसकी अधिकता के कारण ही वे लक्षण आ रहे थे जिसके बारे में केयरटेकर ने बताया था।


यह विष बोन मैरो में एकत्र हो जाता है और हत्या के कई सालों बाद भी यदि इसकी जानकारी है तो इसकी उपस्थिति को सिद्ध किया जा सकता है।


 फॉरेंसिक विशेषज्ञ ने जब जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की तो उसे स्वीकार कर लिया गया और जिम्मेदार बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया।


 90 के दशक में जब मैंने भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण शुरू किया था तब मुझे विष के बारे में बहुत जानकारी मिलती थी पर मुझे लगता था कि यह मेरे कोई काम की नहीं है क्योंकि मुझे तो विभिन्न बीमारियों की औषधियां खोजनी थी और उनसे संबंधित पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण करना था।


 पर जैसा कि एक Ethnobotanist को करना चाहिए  कि उसे जो भी जानकारी मिल रही है उसे उसी रूप में बिना सोचे समझे लिख लेना चाहिए। 


हो सकता है कि आज वह काम की न हो लेकिन बाद में काम में आ सकती है।


 जानकारी एकत्र करते समय किसी भी प्रकार का दिमाग नहीं लगाना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उस समय वह बात हमें समझ न आती हो पर बाद में कोई विशेषज्ञ उसे अच्छी तरह से समझा सकता है। 


इसलिए लिखना जरूरी है और वही मैंने किया। 


आज इतने सालों बाद यह ज्ञान ऐसे पेचीदे मामलों को सुलझाने में अहम भूमिका निभा रहा है। 


सर्वाधिकार सुरक्षित

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