Consultation in Corona Period-30

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"जो डॉक्टर मृतक का इलाज कर रहे थे उन्होंने भी कंफर्म किया है कि Ascending Polyneuropathy के स्पष्ट लक्षण दिखाई दे रहे थे।


 आप जब पोस्टमार्टम स्पेसीमेन कलेक्शन करवाएं तो खून के सैंपल को अंधेरे में रखें और उसमें थक्का न जमे इसका प्रयास करें क्योंकि यह विष खून का थक्का जमाने में माहिर है।"


 मैं पुलिस के एक विशेषज्ञ से बात कर रहा था जो कि एक मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में लगे हुए थे।


 उनका शक था कि मौत किसी वनस्पति के कारण हुई है और मेरी बातों से उनकी बात की पुष्टि हो रही थी।


 जब भी मुझे मर्डर मिस्ट्री सुलझाने के लिए बतौर विशेषज्ञ बुलाया जाता है तो मुझे बार-बार बचपन में पढ़े गए कर्नल रंजीत के उपन्यास की याद आती है।


 कर्नल के साथ एक खूबसूरत सी सेक्रेटरी होती थी और वे दोनों मिलकर इस तरह की मिस्ट्री को सुलझाते थे पर मुझे तो यह काम अकेले ही करना पड़ता है।


 मेरा काम केवल परामर्श देना होता है और पुलिस के विशेषज्ञ असल मायने में कर्नल रंजीत का काम करते हैं।


 यह मामला एक तांत्रिक से जुड़ा हुआ था जो वशीकरण की विद्या से लोगों को ठगने का काम करता था।


 वह युवकों को कहता था कि वह वशीकरण की सहायता से उनकी समस्याओं को दूर कर सकता है और अगर युवक चाहे तो वह वशीकरण सिखा भी सकता है। इसके एवज में वह मोटी रकम वसूल करता था।


 ऐसे ही एक युवक की जान उस तांत्रिक के हाथों चली गई थी। वशीकरण शिविर के समापन में वह तांत्रिक एक तरह की बूटी सभी शिष्यों के मुंह में रखता था और उसे चबाकर थूक देने की सलाह देता था। 


जब इस युवक ने उस बूटी को मुंह में रखा तो उसकी हालत बिगड़ने लगी और देखते ही देखते उसकी जान पर बन आई।


 उसे तुरंत ही अस्पताल में भर्ती किया गया जहां डॉक्टरों के भरसक प्रयास के बावजूद उसकी जान नहीं बच सकी। 


राजनीतिक पहुंच वाले तांत्रिक का कहना था कि वह तो इस बूटी का प्रयोग हजारों लोगों पर कर रहा है और अगर कोई चाहे तो वह सबके सामने अपने मुंह में इसे डाल कर दिखा सकता है इसीलिए मौत का कारण बूटी न होकर उस युवक की कोई पुरानी स्वास्थ समस्या थी।


 पर पुलिस के विशेषज्ञों को लग रहा था कि यह मृत्यु बूटी के कारण हुई है। विशेषज्ञों ने मुझसे संपर्क किया तो मैंने कहा कि मुझे उस बूटी का नाम चाहिए और उसका सैंपल चाहिए।


 जब मुझे सैंपल मिला तो मैंने उसे कलिहारी के रूप में पहचाना जो कि एक बहुत जहरीला पौधा है।


 अक्सर तांत्रिक इसे अपने पास रखते हैं। अपने शिष्यों को प्रभावित करने के लिए इस जहरीले पौधे की जड़ को मुंह में रखकर दिखाते हैं और दावा करते हैं कि उनके चमत्कारिक प्रभाव के कारण इस बूटी का उनके ऊपर कोई असर नहीं होता है।


 इस पौधे की जड़ में सायनाइड जैसा विष होता है और इसकी अल्प मात्रा ही कुछ पलों में जान ले लेती है। इस विष के लक्षणों से साफ हो जाता है कि मृत्यु कलिहारी के कारण हुई है या किसी और कारण से।


 इसलिए मैंने उन डॉक्टर से बात की जिसने मृतक को बचाने की भरसक कोशिश की थी। उन्होंने वही लक्षण बताएं जो कि कलिहारी के विष के कारण होते हैं।


 पुलिस के विशेषज्ञ चाहते थे कि पोस्टमार्टम के समय किस तरह के सैंपल लेना है इस बारे में मैं मार्गदर्शन करूं तो उनकी बातों को दम मिलेगा और वे इसे वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध कर पाएंगे कि मृत्यु का कारण कलिहारी का विष है। 


मैंने उन्हें पूरी विधि विस्तार से बतायी और कहा कि कोलचिसिन का अध्ययन करने वाले बहुत से विशेषज्ञ हैं जो इस सैंपल का एनालिसिस करके दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे।


 संतुष्ट होने के बाद मैंने उनसे अनुरोध किया कि मैं एक बार तांत्रिक से मिलना चाहता हूं ताकि पूरी घटना का सही रूप से पता चल सके। 


तांत्रिक ने उस बूटी का एक बड़ा टुकड़ा खाकर मुझे दिखाया और कहा कि देखिए इसका कोई असर नहीं होता है।


 मैंने तांत्रिक से कहा कि इससे पहले अगर कुछ विशेष तरह की जड़ी बूटी आप खा लेंगे तो निश्चित ही इसका असर नहीं होता है।


 क्या आप यह जड़ी-बूटी अपने शिष्यों को भी देते हैं कलिहारी खिलाने के पहले तो उन्होंने कहा कि शिष्य को मैं नहीं देता हूं पर उन्हें बहुत अल्प मात्रा में ही कलिहारी मुंह में रखने को दी जाती है।


 तांत्रिक ने बताया कि उसने अपने बगीचे में बहुत सारे कलिहारी के पौधे लगाकर रखे हैं। वह अक्सर जंगल जाकर कलिहारी के कन्द एकत्र करता है पर विशेष परिस्थितियों में घर में उग रही कलिहारी के कंदो को भी उपयोग कर लेता है। 


मैंने उसे बगीचे में उग रही कलिहारी को दिखाने को कहा। पौधों को देखने से सारी बातें साफ हो गई। 


सारे पौधे सूखे हुए थे और उनमें तरह-तरह के कीड़ों का आक्रमण हुआ था अर्थात कलिहारी के पौधे स्वस्थ नही थे। 


जब बहुत से जहरीले पौधों में वातावरणीय तनाव होता है तो उसमें विष की मात्रा बढ़ जाती है। संभवत: तांत्रिक ने अपने बगीचे से इकट्ठा किया हुआ कलिहारी का कन्द उस युवक को खिलाया होगा न कि जंगल से एकत्र किया हुआ।


 बाद में मैंने तांत्रिक से गहराई से पूछा तो उसने यह माना कि उस युवक को बगीचे की ही कलिहारी खिलाई गई थी।


 मैंने उसे बताया कि एक तो जहरीले पौधों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और अगर करना ही है तो शास्त्र सम्मत विधि से करना चाहिए ताकि इस प्रकार की गलती न हो।


 पूरे समय पुलिस के विशेषज्ञ साथ में रहे। सारा मामला पानी की तरह साफ हो चुका था। अब उनके पास पर्याप्त सबूत थे कि युवक की मौत कलिहारी के कारण ही हुई है। 


यह विडंबना ही है कि पूरे देश में इस खतरनाक पौधे को "गणेश फूल" का नाम दिया गया है और जगह-जगह इसे घरों में लगाया जाता है। 


इसके आकर्षक फूलों के कारण लोगों को लाख समझाने के बावजूद वे इसे लगाना नहीं छोड़ते हैं और ऐसी खतरनाक घटनाएं होती रहती हैं।


 देश के दूसरे हिस्सों में इसे कलिहारी के स्थान पर कलहकारी भी कहा जाता है और यह बात फैलाई जाती है कि इसे घर में लगाने से झगड़ा हो जाता है। 


 शायद इसका उद्देश्य यही है कि लोग इस डर के कारण इसे घर में न लगाएं और इस बहाने यह विष परिवार को नुकसान न कर सके।


 कलिहारी कोलचिसिन का स्रोत है जिसका प्रयोग कैंसर जैसी घातक बीमारियों की चिकित्सा में होता है। देश के बहुत से हिस्सों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।


 जब हम इसकी खेती करते हैं तो खेत के चारों ओर घेराबंदी कर देते हैं और द्वार पर चौकीदार को बिठा देते हैं ताकि कोई भूल से भी इन खेतों में न आ सके। 


किसी भी हालत में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ऐसे खेतों से दूर रहने की सलाह देते हैं। पशुओं को विशेष तौर पर बचाते हैं।


 इसकी खेती एक महंगी खेती होती है। 


जिन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं होती है वे इस वनस्पति की जड़ों को शकरकंद की जड़ समझ कर खा जाते हैं और अनजाने ही मृत्यु को गले लगा लेते हैं।


 इस बारे में पूरे देश में व्यापक जन जागरण करने की आवश्यकता है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

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