Consultation in Corona Period-24

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"आप बस मेरी खूनी उल्टियां बंद करवा दीजिए मुझे कुछ और नहीं चाहिए।। मैंने इसीलिए आपसे संपर्क किया है।"


यह फोन स्वीडन से था मारिया का।


 मारिया को दो साल पहले बोन कैंसर का पता चला था। जब आधुनिक उपचार पूरी तरह से असफल साबित हुए तो उसने भारत में शरण ली और उत्तर भारत के गंगोत्री क्षेत्र के आसपास के एक वैद्य से दवा लेनी शुरू की।


 जब दवा से लाभ होना शुरू हुआ तो वह कुछ महीनों के अंतराल में भारत आने लगी और दवा लेने लगी।


इस जनवरी में वह फिर भारत आई और वैद्य से दवा ली। उसके बाद जब वह वापस लौट गई तो उसे उस दवा से लाभ तो हुआ लेकिन जब भी वह दवा का सेवन करती थी उसके बाद उसे खून की उल्टियां होने शुरू हो जाती थी। 


वह बुरी तरह से घबरा गई। उसने वैद्य से संपर्क किया तो वैद्य ने कहा कि जब अगले महीने तुम वापस भारत आओगी तो मैं दवा में परिवर्तन कर दूंगा और अभी यह दवा मत लो। 


उसके बाद भारत में लॉक डाउन लग गया और मारिया का भारत आना लगभग असंभव हो गया। उसके कैंसर की समस्या बढ़ने लगी और उसने मजबूरीवश वैद्य की दवाई को खाना जारी रखा।


 परिणाम स्वरूप खूनी उल्टी भी जारी रही। उसका स्वास्थ तेजी से गिरने लगा।


 कैंसर पर मेरे शोध आलेखों और फिल्मों को देखकर उसने मुझसे संपर्क किया।


 मैंने उसे दो टूक कहा कि जिस वैद्य से दवा ले रही हो उसी से संपर्क करो। वही बता सकते हैं कि यह समस्या क्यों हो रही है और इसका समाधान क्या है। 


उसने अपनी मजबूरी बताई पर फिर भी मैंने कहा कि बिना वैद्य से बात किए और यह पूछे कि वे कौन सी कौन सी दवा आपको दे रहे हैं मैं आपकी किसी भी तरह से मदद नहीं कर सकता। 


अब मुझे पता नहीं कि आपके वैद्य अपना गुप्त फार्मूला मुझे बताने के लिए तैयार होंगे कि नहीं होंगे। 


मारिया ने बड़ी मुश्किल से अपने वैद्य को मनाया और मुझसे फोन पर बात कराई। यह अच्छी बात थी कि वे मुझे जानते थे और उन्होंने कहा कि वह पहले कई बार मुझसे संपर्क कर चुके हैं।


 उन्होंने बताया कि वे 18 जड़ी बूटियों वाले एक फार्मूले का उपयोग अभी तक कर रहे थे। जनवरी में जब मारिया भारत आई थी तो उन्होंने फॉर्मूले में नयी जड़ी बूटियां शामिल की थी ताकि उनका कैंसर जल्दी से ठीक हो सके। 


मैंने विस्तार से उनके फार्मूले के बारे में जानकारी प्राप्त की। एक जड़ी बूटी पर ध्यान अटका। 


मैंने उनसे पूछा कि क्या आप इस जड़ी बूटी को हिमालय के दुर्गम स्थान तपोवन से लेकर आ रहे हैं और अपने फार्मूले में उपयोग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हां, यह जड़ी-बूटी तपोवन से ही लाई गई है।


 मैंने उन्हें बताया कि इस बूटी में कोई दोष नहीं है पर इसकी फार्मूले के दूसरे घटकों के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही है जिसके कारण मारिया को लगातार खून की उल्टियां हो रही है। 


वैद्य जी ने पूछा कि फार्मूले के इस दोष को कैसे दूर किया जा सकता है?


 उन्होंने इस बात को भी माना कि उन्होंने बिना जाने अपनी मर्जी से इस बूटी को फार्मूले में शामिल किया जबकि उनके पूर्वज इसका प्रयोग नहीं करते थे। 


उन्हें लगा कि तपोवन में उगने वाली हर जड़ी बूटी संजीवनी होती है और उससे किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हो सकता।


 मैंने वैद्य जी को बताया कि तपोवन में यह जड़ी-बूटी जहां उगती है उसके पास ही में एक और जड़ी बूटी उगती है। 


अगर उस जड़ी-बूटी को फार्मूले में शामिल कर लिया जाए तो यह दोष दूर हो सकता है।


 लॉक डाउन के समय में फिर से तपोवन जाकर दूसरी जड़ी-बूटी को लाना संभव नहीं है और यह संभव भी हो गया तो इसे स्वीडन तक पहुंचाना संभव नहीं है। 


बेहतर यही होगा कि आप मारिया को कहें कि इस फॉर्मूलेशन का प्रयोग रोक दें और प्रतीक्षा करें लॉकडाउन खुलने का। उसके बाद आप उन्हें बुलाकर नया फार्मूला दे दे। इससे उनकी तकलीफ पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।


 जो फार्मूला मारिया के पास में है उससे तपोवन की बूटी को हटा पाना असंभव है। यह कहकर मैने अपनी बात खत्म की।


 वैद्य जी ने मुझे धन्यवाद दिया और मारिया को साफ शब्दों में कह दिया कि वह इस फार्मूले का प्रयोग अभी रोक दें।


 कुछ समय बाद मारिया का फिर से फोन आया है कि बोन कैंसर की समस्या ने उग्र रूप धारण कर लिया है और वह उस फार्मूले को फिर से उपयोग करना चाहती है पर बिल्कुल नहीं चाहती है कि खूनी उल्टियां हो।


 मैंने कहा कि मैं अपनी तरफ से मदद करने की कोशिश करता हूं।


 मैंने पचमढ़ी के एक वैद्य से बात की जो कि इस तरह के फॉर्मूलेशंस का उपयोग करते रहे हैं। उन्होंने मेरी बात पूरी तरह सुनी और कहा कि उनके पास ऐसा कोई उपाय नहीं है जिसकी सहायता से खूनी उल्टियां रोकी जा सके। 


इस तरह मैंने देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले 50 से अधिक पारंपरिक चिकित्सकों से बात की। पर नतीजा सिफर ही रहा।


इसके बाद मैंने अपने डेटाबेस का अध्ययन करना शुरू किया। इससे मुझे काम की जानकारी मिली।


 मैंने मारिया से कहा कि वह दवा का प्रयोग जारी रख सकती है पर उसे किसी भी हालत में किसी भी रूप में नमक का प्रयोग रोकना होगा।


 मुझे लगता है इससे उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा।


 उसने कहा कि वह इसके लिए तैयार है और वह किसी भी हालत में नमक का प्रयोग नहीं करेगी। 


उसने दवा लेना फिर से शुरू किया और एक सप्ताह बाद उसका संदेश आया है कि अब यह समस्या पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है।


 मैंने मारिया के वैद्य से भी संपर्क किया और उन्हें यह जानकारी दी ताकि भविष्य में वे जब कभी इस फॉर्मूलेशन का उपयोग करें तो अपने मरीजों को इस तरह की सावधानी बरतने की सलाह अवश्य दें।


 इस तरह इस संकट के दौर में भारत का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान एक बार फिर काम आया और मारिया को उसने बड़ी राहत दी।


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