कैंसर से ज्यादा घातक है कैंसर का बाजार

कैंसर से ज्यादा घातक है कैंसर का बाजार

पंकज अवधिया

“बस एक पाउच मुंह में ररखें और इसके अंदर भरा पाउडर अपने आप ही पूरे मुंह में फ़ैल जाएगा और आपके मुंह के कैंसर को एक बार में ही खत्म कर देगा –ऐसा हमे बताया गया था. दिन में तीन पाउच लेना था और एक सप्ताह तक इसे लेना था. हम इसे पिछले तीन महीनों से ले रहे हैं. “  मुंह के कैंसर (Spindle Cell Carcinoma-Mandibular)  की अतिम अवस्था में पहुंच चुके एक रोगी के पिता मुझे यह जानकारी दे रहे थे.
यह मलेशिया में बना हर्बल उत्पाद था और छत्तीसगढ़ में इसे सब रोगों की एक दवा बताकर आम लोगों को बेचा जा रहा है. कैंसर के रोगी उनके ख़ास निशाने पर है.

“जब रक खुराक से कैंसर ठीक हो जाता है तब इतने लम्बे समय तक इसे क्यों ले रहे हैं? इसमें आपका कितना खर्च हो गया ?” मैंने पूछा.

“एक पाउच की कीमत है २००० रूपये और एक दिन का खर्च है ६००० रूपये . आप समझ सकते हैं कि तीन महीने में हमने कितना खर्च किया होगा/” वे मायूस होकर बोले.

“क्या इससे कैंसर से छुटकारा मिला ?” मैंने आगे पूछा

“मही, रोग तो बढ़ता ही जा रहा है. हमारे दूर के रिश्तेदार ने हमे यह दिया था और वे अब यह कह रहे हैं कि फायदा भले न हो पर चूंकि यह हर्बल है इसलिए नुक्सान नही करेगा.” रोगी के पिता के जवाब में निराशा का पुट था.

मैंने मलेशिया की इस कम्पनी की वेबसाईट देखी. उसमे कैंसर में इसकी उपयोगिता के बारे में किसी तरह का दावा नही किया गया था. इस हर्बल उत्पाद में सेव और नाशपाती का सत्व होता है और इसे सामान्य टानिक की तरह बेचा जाता है. ये नेटवर्क मार्केटिंग के लोग हैं जो पैसे के लिए अपने जान-पहचान वालों को ठगने के लिए कैंसर की अचूक दवा के रूप में इसे बेचते हैं.

पेट के कैंसर की अंतिम अवस्था में मौत से संघर्ष कर रही एक ६२ वर्षीय महिला के परिजन मुझसे मिलने आते हैं तो मैं पूछता हूँ कि अभी कौन सी दवाएं चल रही हैं. उनका जवाब होता है कि केवल दर्द की दवा चल रही है और अमेरिका से Frankincense Oil नामक महंगी दवा लेनी शुरू की. इस दवा से कैंसर पूरी तरह खत्म हो जाता है. इसकी भारी कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही थी. इससे परिवार का बजट बिगड़ा हुआ था.

मैंने पूछा कि क्या Frankincense Oil ने कभी किसी कैंसर के रोगी को राहत पहुंचाई है? “

“इंटरनेट में बड़े[-बड़े दावे किये गए हैं और सभी जगह इसकी ही चर्चा है . इसलिए हमने बिना जांचे परखे इसे देना शुरू कर दिया.” उन्होंने जवाब दिया.

मैंने खुलासा किया कि छत्तीसगढ़ के जंगलों के पाए जाने वाले सलिहा नामक वृक्ष की गोंद से यह तैयार होता है. यह वृक्ष सर्वसुलभ है और चंद रुपयों में यह पंसारी की दुकान में मिल सकता है फिर अमेरिका से इसे ऊँची कीमत देकर खरीदने का क्या औचित्य? उनके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा.

कैनाबिस आइल, बेकिंग सोडा, तेलिया कंद, एप्पल सिडार विनेगर, कोकोनट आइल,   Frankincense Oil आदि नाम आपको इंटरनेट में कैंसर शब्द खोजते ही मिल जायेंगे और इन्हें बनान्रे वाले व्यवसायियों ने पूरे बाजार पर नख से शीढ़ तक कब्जा कर रखा है. इनका बस एक ही काम हैं कि कैसे मरते हुते व्यक्ति से कितनी जल्दी और कितना अधिक पैसा बना सकें. ये कीमोथेरेपी जैसी आधुनिक चिकित्सा विधियों की बुराई करके पहले कैंसर के रोगियों की सहानुभूति एकत्र करते हैं और फिर विकल्प के रूप में अपने उत्पाद पेश कर देते हैं. ये काम वे सीधे तौर पर कम करते हैं. वे आपके आस-पास के लोगों के माध्यम से मार्केटिग करते हैं और पैसे के लालच में आपके जान पहचान के लोग आपको लूटने में जरा भी देर नही करते हैं.  

जब देश के पारम्परिक कैंसर विशेषज्ञ  किसी कैंसर रोगी की चिकित्सा का बीड़ा उठाते हैं तो वे दसों प्रकार की जड़ी=बूत्यिओं का प्रयोग करते हैं. उदाहरण के लिए जब  पारम्परिक कैंसर विशेषज्ञ Spindle Cell Carcinoma of Kidney  का उपचार करते हैं तो १३० दिन का कार्यक्रम वे बनाते हैं और १३० दिनों तक सुबह-शाम बाहरी और आंतरिक तौर पर जड़ी-बूटियों का प्रयोग करते हैं और रोगी को अपनी सतत निगरानी में रखते हैं उसके बाद भी कैंसर के विरुद्ध अपनी लड़ाई में खुद को विवश पाते है और नई जड़ी-बूटियों के साथ नये उत्साह से नये कार्यक्रम को शुरू करते हैं. ऐसे में क्या  Frankincense Oil  या बेकिंग पावडर एकमात्र औषधि के रूप में कैंसर जैसे महारोग को खत्म कर सकता है? लगता है जैसे कि इन उत्पादों से आम लोगों को ठगने वाले कैंसर को जानते ही नही है.

कुछ वर्षों पहले कोंडागांव के एक कैंसर रोगी के पास मुझे थाईलैंड में बना हर्बल उत्पाद मिला. वे बड़े विश्वास के साथ इस उत्पाद का प्रयोग कर रहे थे. वे कैंसर की अंतिम अवस्था में थे और उन्हें विशवास था कि कुछ ही दिनों में इस उत्प्पद से वे ठीक हो जायेंगे. यह उत्पाद इतना अधिक महंगा था कि वे अपनी जमीन बेचने की तैयारी कर रहे थे. मैंने उत्पाद का अवलोकन किया तो पाया कि उसमे पेड़ों में उगने वाला एक प्रकार का काष्ठ मशरूम था. यह मशरूम उनके घर के बगल में उग रहे आम के पेड़ पर प्राकृतिक रूप से उग रहा था. इस बात से अनजान वे थाईलैंड इस मशरूम का पावडर ऊँची कीमत पर खरीद रहे थे.

छत्तीसगढ़ के भोले-भाले लोगों को बाहर से आकर लोग ठगते रहें हैं. अब कैंसर का बाजार राज्य में तेजी से बढ़ रहे कैंसर रोगियों में अपना मुनाफ़ा खोज रहा है. यह विडम्बना ही है कि राज्य में इन छद्म उत्पादों पर नकेल कसने वाला कोई नही है. फेसबुक और व्हाट्स अप पर जानबूझकर फैलाई जा रही जानकारियों को सच मानने वाले अब बढ़ते जा रहे हैं. जब हम समझ लेंगे कि इंटरनेट का उद्देश्य ज्ञान के प्रसार से ज्याबा बड़ी अन्तराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पाद को बेचना है तभी हम इस प्रकार की ठगी से बच सकेंगे.



(पंकज अवधिया जैव-विविधता विशेषज्ञ हैं और राज्य में कैंसर से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर शोध कर रहे हैं. )      

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