Consultation in Corona Period-173

 Consultation in Corona Period-173

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"अमेरिका के जिस शोध संस्थान में मैं शोध कर रहा था वहां की लाइब्रेरी में मैंने आपके द्वारा लिखी हुई एक बुक देखी जो कि Christmas disease पर थी। आपने इस पुस्तक में लिखा था कि कैसे आप पारंपरिक चिकित्सकों से मिले, उनसे इस बीमारी के बारे में जानकारी एकत्र की और उनके पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डाक्यूमेंटेशन किया। यह बुक बहुत बड़ी थी पर फिर भी मैं उसे पूरा पढ़ गया। 

अपना शोध खत्म करने के बाद मेरे मन में रुचि जागी कि मैं भारत जाऊँ और वहाँ के पारंपरिक चिकित्सकों से मिलकर उनके पारंपरिक ज्ञान के बारे में जानूँ। मैं अपना पूरा जीवन ही इन पारंपरिक चिकित्सकों के साथ बिता देना चाहता था। पहले मैंने टूरिस्ट वीजा का प्रबंध किया और जल्दी ही मैं भारत पहुंच गया।

 पहले मैंने कुछ समय महाराष्ट्र के पारंपरिक चिकित्सकों के साथ बिताया। उन्होंने मुझे स्वीकार नहीं किया और लगातार मुझसे दूरी बना कर रखी। उन्होंने अपने नुस्खों के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं दी जिससे ऊबकर फिर मैं छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों के पास आ गया।

 मैंने महंगे होटल में रहने की बजाय गांव में ही एक झोपड़ी में रहने का प्रबंध किया जिससे कि मैं पारंपरिक चिकित्सकों से लगातार मिल सकूं और उनके साथ जंगल की यात्रा कर सकूं।

 जब मैं छत्तीसगढ़ के बस्तर पहुंचा तो मुझे वहां की जैव विविधता देखकर बड़ा ही सुकून मिला। वहां के लोग बड़े ही सहृदय थे और उन्होंने मुझे जल्दी से अपना लिया। मैं पारंपरिक चिकित्सकों के लिए दवा लेने के लिए जंगल जाने लगा उनके शिष्यों के साथ। 

एक बार जब मैं जंगल से लौट रहा था तो अचानक ही मुझे बहुत जोर से चक्कर आया और फिर मैं उसी स्थान पर गिर गया। पारंपरिक चिकित्सक के शिष्यों ने मुझे तुरंत ही पारंपरिक चिकित्सक के पास पहुंचाया। मेरी स्मृति पूरी तरह से चली गई थी। मैं होश में रहते हुए भी किसी को पहचान नहीं पा रहा था। पारंपरिक चिकित्सक भी इस स्थिति से हैरान थे। करीब 1 घंटे बाद मेरी स्मृति फिर से वापस आ गई पर मैं बहुत अधिक कमजोरी महसूस कर रहा था।

 पारंपरिक चिकित्सक ने पूछा कि यह पहली बार हुआ है या इससे पहले यह हो चुका है? मैंने कहा कि मेरे जीवन में यह पहली बार हुआ है और यह एक भयानक अनुभव था। उन्होंने मेरी जांच की और कई प्रकार की जड़ी बूटियां दी। इससे मैं निश्चिंत हो गया कि अब मुझे कभी इस जीवन में इस तरह की समस्या नहीं होगी पर अगले सप्ताह जब मैं गांव के बाजार से लौट रहा था तो फिर मुझे वैसा ही दौरा पड़ा और मेरी स्मृति कई घंटों के लिए चली गई। 

मैंने अमेरिका में अपने डॉक्टर मित्रों से इस बारे में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि यह दिमाग की कोई समस्या हो सकती है इसलिए इसे हल्के में लेने की आवश्यकता नहीं है। उसे तुरंत वापस अमेरिका आ जाना चाहिए ताकि उसकी पूरी जांच की जा सके और बीमारी का मूल कारण जाना जा सके। 

पारंपरिक चिकित्सक को भी इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि उनकी दवा के बावजूद भी कैसे फिर से दौरा आ गया और मेरी हालत इतनी बिगड़ गई। उन्होंने कुछ दवाओं को बदला और फिर मुझसे कहा कि मैं लंबे समय तक आराम करूं। किसी भी प्रकार का शारीरिक और मानसिक परिश्रम न करूं। मैंने उनकी बात मानी और अब दिन भर गांव में ही रहने लगा।

 एक रात जब मैं पेशाब के लिए उठा तो मुझे फिर से वैसा ही दौरा आया और मैं उसी स्थान पर गिर गया। सुबह लोगों ने देखा तो मुझे उठाया और फिर बहुत देर के बाद मुझे होश आया। मैंने वापस अमेरिका जाने की योजनाओं को अंतिम रूप दे दिया।

 जब मैं अमेरिका पहुंचा और मैंने अपने दिमाग की पूरी जांच करवाई तो ऐसा किसी भी प्रकार का दोष नहीं दिखाई दिया जिसे कि डॉक्टर गंभीर मानते। मैं अमेरिका में 3 महीने रहा पर मुझे एक बार भी ऐसा दौरा नहीं आया। मेरी दवाई चलती रही और फिर मैंने फैसला किया कि जब सारी रिपोर्ट पूरी तरह से ठीक है तो मुझे वापस बस्तर जाना चाहिए और अपने शोध कार्य को जारी रखना चाहिए। 

मैं जब वापस बस्तर पहुंचा तो उस गांव में बाजार का दिन था। यह मेरा सबसे पसंदीदा दिन था। मैंने जमकर खरीददारी की और जब मैं वापस लौटने लगा तो मुझे एक बार फिर से वैसा ही दौरा आया और मैं अपनी स्मृति को कुछ समय के लिए खो बैठा।

 अब मुझे यह तो समझ में आ रहा था कि यह सब बस्तर में आने के बाद ही हो रहा है। मैंने अपने खानपान की सामग्रियों की अच्छे से जांच की। सभी दवाओं को भी ठीक से परखा पर मुझे और मेरे पारंपरिक चिकित्सक को रोग का कारण पता नहीं चला इसलिए मैंने फैसला किया कि आपसे समय लेकर परामर्श लूँ और इस बारे में आपके विचार जानूँ।" अमेरिका के शोधार्थी ने जब मुझसे संपर्क किया तो मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा। 

उसने पूछा कि क्या आपने पहले इस तरह के मामले देखे हैं तो मैंने कहा कि मैंने ऐसे सैकड़ों मामले देखे हैं। यह जड़ी बूटियों की आपस में होने वाली प्रतिक्रिया के कारण हो रहा है पर यह पता लगाना जरूरी है कि वे पारंपरिक चिकित्सक तुम्हें किस प्रकार की दवा दे रहे हैं और तुम्हारा खान-पान किस तरह का है? जब उसने पूरी जानकारी दी तो मुझे उसके द्वारा दी गई जानकारी में किसी भी प्रकार का दोष नजर नहीं आया। पारंपरिक चिकित्सक की दवा बिल्कुल सही थी और साथ ही उसके खाने-पीने में किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं था।

 मैंने उससे पूछा कि क्या वह अमेरिका में दी जा रही दवाओं का प्रयोग अभी कर रहा है तो उसने कहा कि भारत आते ही उसने यह प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया था। उसने यह भी बताया कि वह भारत में रहकर कुछ दिनों तक च्यवनप्राश का उपयोग करता रहा उसके बाद फिर उसने मेरे लेख पढ़े और उस आधार पर उसने च्यवनप्राश का उपयोग करना पूरी तरह से बंद कर दिया।

 मैंने उसे कहा कि मैं तुम्हारे सामने कुछ दवाओं का नाम लेता हूं। मुझे तुमने बताया है कि तुम मुझे बताई गई दवाओं के अलावा कोई दवा नहीं ले रहे हो पर यदि इनमें से कोई नाम से तुम्हें याद आता है कि तुम ऐसी दवा पहले लेते रहे हो लंबे समय तक या हाल ही में तुमने ऐसी दवा का प्रयोग छोड़ा है तो मुझे जरूर बताना। 

मैंने एक-एक करके संभावित दवाओं का नाम लेना शुरू किया। बात Yartsa gunbu 冬蟲夏草 पर जाकर अटकी। अब स्थिति साफ होने लगी थी। 

उसने बताया कि वह लंबे समय से, लंबे समय अर्थात 10 से भी अधिक वर्षों से, तिब्बत की एक दवा का प्रयोग करता रहा है जिसमें Yartsa gunbu को मुख्य घटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यह बहुत महंगी दवा थी और उसे बताया गया था कि इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत मजबूत हो जाएगी और अलग-अलग मौसम वाले देशों में यात्रा करने से भी वह बार-बार बीमार नहीं पड़ेगा। उसे यह भी बताया गया था कि इससे उसे मलेरिया की समस्या नहीं होगी। तिब्बत के इस नुस्खे में किसी भी प्रकार का दोष नहीं था पर इस नुस्खे की बहुत सारी दवाओं के साथ विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिसके बारे में काफी कुछ लिखा गया है पर तिब्बत में जो विशेषज्ञ इन दवाओं को देते हैं वे उन दवाओं के बारे में नहीं जानते जिनसे उनकी दवा की विपरीत प्रतिक्रिया होती है इसलिए वे इन दवाओं को देते समय कुछ विशेष सावधानी बरतने की सलाह नहीं देते हैं। 

वैसे भी तिब्बत की दवाओं को विशेष माना जाता है और पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है इसलिए इसका प्रयोग लोग लंबे समय तक बिना किसी सलाह के करते रहते हैं और दूसरे लोगों को भी सुझाते रहते हैं कि वे भी इन दवाओं का प्रयोग करें। 

हर तरह की दवाओं की तरह तिब्बत की दवाओं से भी जहां एक और फायदा होता है वहीं दूसरी ओर नुकसान भी होता है यदि उनका प्रयोग विवेकपूर्ण न किया जाए।

मैंने उस युवक से पूछा कि उसे ग्रामीण बाजार बहुत पसंद है जब वह बाजार में जाता है तो क्या बस्तर की प्रसिद्ध चटनी का स्वाद लेता है जो कि वहां आसानी से मिल जाती है तो उसने कहा कि क्या आप  लाल चीटों से तैयार की गई चटनी की बात कर रहे हैं?

 मेरे हां कहने पर उसने कहा कि वह चटनी तो उसे विशेष रूप से पसंद है और जब से पारंपरिक चिकित्सक ने बताया है कि इस चटनी के बहुत सारे औषधि उपयोग हैं तब से वह नियमित रूप से उस चटनी का प्रयोग करता है। अब उसकी समस्या का समाधान बिल्कुल साफ हो गया था। 

मैंने उससे कहा कि मैंने अपने लेखों में पहले भी लिखा है कि आदिवासियों द्वारा प्रयोग की जा रही लाल चीटों से तैयार चटनी निश्चित ही दिव्य औषधि गुणों से भरी हुई है पर बहुत सी दवाओं के साथ वह विचित्र प्रतिक्रियाएं करती है।

 Yartsa gunbu के साथ उसका प्रयोग करने से उसी तरह के लक्षण आते हैं जिस तरह के लक्षण उस युवक को आ रहे थे। यह लक्षण कुछ घंटों तक ही सीमित रहते हैं पर उसके बाद प्रभावित व्यक्ति सामान्य स्थिति में आ जाता है। 

मैंने उसे यह भी बताया कि यदि प्रभावित व्यक्ति भांग का बहुत अधिक नशा करने वाला होता है तब उसे स्थाई रूप से नुकसान होता है और कई बार तो हमेशा के लिए उसकी स्मृति का नाश हो जाता है। 

उस युवक ने मेरी बात पर आश्चर्य व्यक्त किया और मुझे धन्यवाद दिया। उसने कहा कि मैं अब चटनी का प्रयोग रोक कर देखूंगा और फिर आपसे मिलने आऊंगा। अपनी समस्या की प्रगति के बारे में बताने के लिए एक हफ्ते बाद ही उसने फिर से मिलने का समय लिया और बताया कि अब उसे इस तरह के दौरे नहीं आ रहे हैं। उसने चटनी का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है उसने पूछा कि यह बात मुझे पारंपरिक चिकित्सक ने क्यों नहीं बताई? 

मैंने कहा कि हो सकता है कि उन्हें इस बात की जानकारी न हो क्योंकि वे अपनी दवाओं के बारे में अच्छे से जानते हैं पर उनकी दवाओं की आधुनिक दवाओं से या दूसरे स्थान की दवाओं से क्या प्रतिक्रिया हो रही है इस बारे में उन्हें जानकारी न हो। यदि उनके पास ऐसी किसी भी तरह की जानकारी होती तो वे तुमसे बिल्कुल भी नहीं छुपाते। 

मैंने उस युवक से कहा कि बस्तर का एक पारंपरिक धान Yartsa gunbu के लंबे प्रभाव को खत्म करने में सक्षम है। यदि वह चाहे तो 15 दिनों तक उसे पकाकर उपयोग कर सकता है। उसके बाद फिर वह मजे से चटनी का प्रयोग कर सकता है बिना किसी नुकसान के। उसने कहा कि वह उन किसानों को जानता है जो इस पारंपरिक धान की खेती कर रहे हैं। 

उसने एक बार फिर से मुझे धन्यवाद दिया।

 मैंने उसे शुभकामनाएं दी। 


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