Consultation in Corona Period-147

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हमें कोंकण क्षेत्र से निकले हुए 1 सप्ताह से भी अधिक का समय हो गया है। हमारे साथ एक एंबुलेंस है जिसमें हम मरीज को साथ लेकर आ रहे हैं। 

इस एंबुलेंस के अलावा दो और गाड़ियां है जिसमें डॉक्टरों की टीम है और मेरे सहायक हैं। इतने सारे लोगों को इस कोरोनावायरस के समय आपके घर में लाना हमने ठीक नहीं समझा इसलिए हम स्थानीय चर्च में ठहर गए हैं और आपसे अनुरोध करते हैं कि जब भी आपको समय मिले तो आप आकर मरीज को देख लें। उनकी हालत बहुत तेजी से बिगड़ती जा रही है। 

हमने आपसे परामर्श के लिए जो समय लिया था उससे हम बहुत अधिक आगे आ चुके हैं पर हमें उम्मीद है कि आप अपना बहुमूल्य समय निकालकर यहां आकर इन मरीज को एक बार अवश्य देख लेंगे।"

 बंगलुरु के एक मिशनरी हॉस्पिटल के शोध निदेशक ने मुझसे फोन पर कहा। 

मैं इन मरीज का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। वे कोंकण के एक प्रसिद्ध पारंपरिक चिकित्सक थे। इनकी तबीयत पिछले 1 साल से बहुत खराब थी। जब मिशनरी के लोगों को उनकी हालत के बारे में पता चला तो उन्होंने दुनिया भर के 8 डॉक्टरों को उनके गांव में बुलाकर उनकी जांच कराई और हर संभव कोशिश की कि वे फिर से ठीक हो जाए।

 निदेशक साहब ने बताया कि उस क्षेत्र के लिए ये पारंपरिक चिकित्सक बहुत अहम स्थान रखते हैं और इनका बचना जरूरी है। उन्होंने अपने जीवन में असंख्य लोगों को जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति दिलाई है और हम चाहते हैं कि वे हमारे बीच लंबे समय तक रहे ताकि उस क्षेत्र के लोग कभी भी बीमार न पड़े। 

उन्होंने पहले कोशिश की कि मैं कोंकण आकर उन पारंपरिक चिकित्सक को देख लूं पर जब मैंने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर वहां आने से इंकार कर दिया तो उन्होंने कहा कि वे बंगलुरू से एक बड़ी सी एंबुलेंस में डॉक्टरों की टीम को लेकर धीरे-धीरे रायपुर पहुंच सकते हैं और यहां पर सारे परीक्षण करवा सकते हैं। मैंने उन्हें समय दे दिया पर धीरे-धीरे आने के कारण वे निर्धारित समय पर मुझसे नहीं मिल सके।

 मुझे इस बात की संभावना पहले से लग रही थी इसलिए मैंने अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय उनके लिए बचा कर रखा था। उन्होंने सारी रिपोर्ट पहले ही भेज दी थी और यह भी बता दिया था कि उनके चिकित्सकों ने पारंपरिक चिकित्सक को कौन-कौन सी दवा दी है और दिन में किस तरह उन दवाओं का उपयोग किया जा रहा है। 

मुझे बताया गया कि उन्हें कोमा जैसे लक्षण आ रहे हैं अर्थात वे कुछ समय तक होश में रहते हैं फिर पूरी तरह से बेसुध हो जाते हैं। जब वे होश में रहते हैं तो कुछ बड़बड़ाते रहते हैं पर उनकी भाषा किसी को भी समझ में नहीं आती है। 

संभवत: वे अस्पष्ट शब्दों में उन जड़ी बूटियों की ओर इशारा करते होंगे जिनके प्रयोग से उनकी स्थिति ठीक हो सकती है पर उनकी इस गूढ़ भाषा को कोई भी समझ नहीं पाता होगा। यह मेरा अंदाज ही था।

 1 साल पहले जब उनको ऐसे लक्षण आने शुरू हुए तो उन्होंने सबसे पहले लोगों से मिलना-जुलना पूरी तरह से बंद कर दिया और अपने स्वास्थ की देखभाल में लग गए। उन्होंने अपने अनुभव से बहुत सारी जड़ी-बूटियों और नुस्खों का प्रयोग किया पर उनकी स्थिति तेजी से बिगड़ती गई।

 निदेशक साहब ने एक महत्वपूर्ण जानकारी दी कि जिंदगी भर ये पारंपरिक चिकित्सक जड़ी बूटियों का प्रयोग दूसरे लोगों पर करते रहे पर पिछले कुछ समय से अपनी स्वास्थ समस्या के लिए वे आधुनिक दवाओं का प्रयोग कर रहे थे।

 1 साल में उनकी तरह-तरह के विशेषज्ञों ने चिकित्सा की पर वे बहुत अधिक कमजोर होते गए। उनका खाना- पीना बहुत कम हो गया और अब तो ऐसा लगता है कि उनके बचने की संभावना बहुत कम है इसीलिए डॉक्टरों की इतनी बड़ी टीम लेकर हम आपके पास आए हैं ताकि रास्ते में उनकी हालत बिगड़ न जाए।

 जब मैं स्थानीय चर्च में पहुंचा तो वे कोमा की अवस्था में थे। मैंने निदेशक साहब से कहा कि इस समय तो जड़ी बूटियों का लेप लगाना ठीक नहीं होगा। मैं इंतजार करता हूं जब भी उन्हें होश आए तो मुझे तुरंत बुला लीजिएगा ताकि उस समय मैं अपना परीक्षण कर पाऊं। 

लंबे इंतजार के बाद रात 1 बजे उनका फोन आया कि अब उनको होश आ गया है और आप आकर परीक्षण कर सकते हैं। जब मैंने जड़ी बूटियों का लेप उन पारंपरिक चिकित्सक के पैरों में लगाया तो उनकी आंखें चौड़ी हो गई। शायद उन्हें इस बात का एहसास हो रहा था कि कौन-कौन सी जड़ी बूटियों का लेप उनके पैरों में लगाया गया है।

 1 घंटे तक उनके शरीर के विभिन्न अंगों में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं होती रही। वे उठ कर बैठ गए और साफ शब्दों में मुझसे अपनी भाषा में कुछ बोलने लगे। निदेशक साहब स्थानीय बोली जानते थे। उन्होंने बताया कि पारंपरिक चिकित्सक कह रहे हैं कि अब उन्हें अच्छा लग रहा है इसलिए लेप को धोया न जाए बल्कि इसके के ऊपर ताजा लेप फिर से लगा दिया जाए।

 निदेशक साहब ने बताया कि पिछले 1 साल में उन्होंने इतना चैतन्य उन पारंपरिक चिकित्सक को कभी भी नहीं देखा। उन्होंने मुझसे अनुमति मांगी कि क्या इस लेप को दोबारा लगाया जा सकता है तो मैंने उनसे कहा कि यह किसी प्रकार की चिकित्सा नहीं है। इसका उद्देश्य मात्र परीक्षण करना है जो कि अब पूरा हो चुका है इसलिए अब इस लेप को पैरों में लगे रहने देना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा।

 मैं अपने साथ कुछ विशेष वृक्षों की पत्तियां लेकर आया था। इन पत्तियों को मैंने उनके बिछावन पर बिछा दिया और निदेशक साहब से अनुरोध किया कि वे इन्हें चैन से सोने दे।

 दूसरे दिन शाम को चार बजे फिर निदेशक साहब का फोन आया है कि इतनी देर बाद अब पारंपरिक चिकित्सक गहरी नींद से जागे हैं और उन्हें बहुत तेज भूख लग रही है। 

मैंने उनके लिए पहले से ही देसी चावल की व्यवस्था कर रखी थी जो कि कमजोर व्यक्ति को कम समय में बहुत अधिक बलवान बना देता हैं। मैंने उस देसी चावल को पकाकर उनके सामने परोसा तो वे स्वाद लेकर उसे खाने लगे और उन्होंने झट से उस चावल का नाम बता दिया। उनकी इस स्थिति को देखकर सभी में उत्साह भर गया और उम्मीद करने लगे कि जल्दी ही उनकी तबीयत में सुधार हो जाएगा।

 रात को बारह बजे फिर से मेरे पास फोन आया। निदेशक साहब बड़े घबराए हुए थे। उन्होंने बताया कि उनकी हालत पहले जैसी हो गई है और अब फिर से कोमा में चले गए हैं।

 मैं तुरंत उनके पास पहुंच गया और उनके सहायकों से यह पूछने लगा कि क्या ये पारंपरिक चिकित्सक लोगों को छू कर उनके दर्द को दूर करने की क्षमता रखते थे अर्थात दर्द वाली जगह पर अपना हाथ रख देते थे जिससे कि दर्द काफी हद तक कम हो जाता था तो उनके सहायकों ने बताया कि हां, उनकी इस विद्या के ही तो वहां के लोग बड़े कायल थे और उनके हाथ के सामने बड़े से बड़ा पेन किलर बौना साबित हो जाता था। 

यह मेरे लिए महत्वपूर्ण जानकारी थी क्योंकि इसी जानकारी की सूचना मेरे द्वारा किए गए परीक्षण से मिल रही थी। मैंने निदेशक साहब से पूछा कि रात को सोते समय क्या उन्हें किसी तरह की दवा दी गई?

 उन्होंने बताया कि रात को तो वे बेहोश हो गए पर आपने जो चावल दिया था उस चावल के प्रयोग के बाद उन्हें उनकी नियमित दवाई दी गई। मैंने तुरंत ही उन्हें निर्देशित किया कि वे जिन beta-blockers का प्रयोग उन पारंपरिक चिकित्सक पर कर रहे हैं उनका प्रयोग तुरंत ही रोक दें। 

उन्होंने पूछा कि क्या beta-blockers के कारण ही पारंपरिक चिकित्सक की ऐसी हालत हुई है तो मैंने कहा कि इसके बारे में मैं आपको बाद में बताऊंगा। पहले आप 2 दिनों तक beta-blockers को पूरी तरह से बंद कर दें और फिर मुझे बताएं कि क्या उनको फिर से कोमा जैसे लक्षण आ रहे हैं?

 2 दिनों बाद निदेशक साहब का फिर से फोन आया कि अब उन्हें किसी भी तरह की समस्या नहीं है। पहले की तरह सामान्य हो गए हैं। बहुत कमजोरी के कारण वे बिस्तर से नहीं उठ पाते हैं पर लगातार कोशिश करते हैं कि वे उठें। भले ही इसके लिए उन्हें किसी का सहारा क्यों न लेना पड़े।

 2 दिन में ही उनकी हालत में चमत्कारिक रूप से सुधार हुआ है। कोमा जैसे लक्षण तो जैसे पूरी तरह से गायब ही हो गए हैं। अगर हमें पहले से पता होता कि beta-blocker से इतना सीरियस साइड इफेक्ट हो सकता है तो हम पहले ही इन दवाओं को बंद कर देते और उनकी हालत इतनी नहीं बिगड़ती।

 मैंने उनसे कहा कि आप धैर्य रखें और 3 दिनों तक और उन पर नजर रखें फिर मुझे बताएं। 

2 दिनों के बाद निदेशक साहब उन पारंपरिक चिकित्सक को अपनी गाड़ी में लेकर मेरे घर आ गए। पारंपरिक चिकित्सक पूरी तरह से ठीक थे। यह एक अच्छी खबर थी। 

जब हम तीनों बैठे तो मैंने खुलासा किया कि पारंपरिक चिकित्सक अपने शरीर के विभिन्न अंगों में विशेषकर पैरों के तलवों और हाथ की हथेलियों में तरह-तरह की जड़ी बूटियों के लेप लगाते हैं। इन लेपों के प्रभाव से ही लंबे समय में उनके हाथों में ऐसा गुण उत्पन्न हो जाता है कि किसी भी दर्द वाले स्थान पर वे हाथ रख देते हैं तो प्रभावित व्यक्ति को असीम शांति और सुख की अनुभूति होती है। 

उसका दर्द कुछ समय के लिए छूमंतर हो जाता है। पर इस सिद्धि को पाने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ता है। उन्हें किसी भी प्रकार के रसायनों का प्रयोग अपने शरीर पर करने से बचना पड़ता है। 

शौच के बाद वे किसी तरह के साबुन का प्रयोग नहीं करते हैं और न ही नहाने के लिए। वे किसी तरह के इत्र के प्रयोग से भी बचते हैं क्योंकि अगर इत्र का प्रयोग किया जाए तो जड़ी बूटियों का असर काफी हद तक कम हो जाता है। 

जड़ी बूटियों का लेप शरीर के विभिन्न अंगों में कम से कम 20 वर्षों तक लगातार लगाने से और असीम धैर्य का प्रदर्शन करने से इस तरह के विशेष गुण शरीर में आते हैं। पारंपरिक चिकित्सक ने भी गहन तप किया होगा। उसके बाद ही उन्हें यह सफलता मिली होगी। ऐसा करने के बाद एक सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि बहुत सारी आधुनिक और पारंपरिक दवाओं से उनके शरीर की विपरीत प्रतिक्रिया होने लग जाती है।

 यहां तक कि खानपान में भी थोड़ी सी गड़बड़ी होने से शरीर विशेष रूप से प्रतिक्रिया करने लग जाता है।

 इस बात को पारंपरिक चिकित्सक अच्छे से जानते हैं और बहुत संभल कर रहते हैं। मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये पारंपरिक चिकित्सक अपनी स्वास्थ समस्या के लिए अपनी दवा को छोड़कर आधुनिक दवा क्यों ले रहे थे?

 हो सकता है कि इनकी अपनी दवा इनके अपने शरीर पर विपरीत प्रतिक्रिया कर रही हो इसलिए घबराकर उन्होंने आधुनिक दवा का सहारा लेना पसंद किया। बात चाहे कोई भी रही हो पर इसी ने सब कुछ गड़बड़ कर दी।

 ऐसे पारंपरिक चिकित्सक जिन जड़ी बूटियों का लेप अपने शरीर के विभिन्न अंगों में करते हैं उनमें आम की छाल का प्रयोग अधिकता से होता है। इसके अलावा वे 38 किस्म की जड़ी बूटियों का नियमित प्रयोग करते हैं लेप के रूप में।

 आधुनिक दवाओं विशेषकर beta-blocker से इनकी विपरीत प्रतिक्रिया होती है और वैसे ही लक्षण आते हैं जैसे कि इन्हें आ रहे थे।

 यह विडंबना ही है कि बीटा ब्लॉकर से ऐसे लक्षण आएंगे इसकी जानकारी पारंपरिक चिकित्सकों को नहीं होती है और पारंपरिक चिकित्सक इस तरह की जड़ी बूटियों का सालों से प्रयोग कर रहे हैं इसकी जानकारी आधुनिक चिकित्सकों को नहीं होती है। बस यहीं सब कुछ गड़बड़ हो जाता है इसलिए न तो beta-blockers का दोष है और न ही उनके द्वारा उपयोग की जा रही दवाओं का। दोष केवल इसलिए है कि इन दोनों दवाओं को अज्ञानतावश एक साथ लिया जा रहा है। यह एक ड्रग इंटरेक्शन का मामला है जो कि अब पूरी तरह से सुलझ गया है। 

भविष्य में आपको और पारंपरिक चिकित्सक को इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। मैं आपको उन दवाओं की एक लंबी सूची दे रहा हूं जिनकी विपरीत प्रतिक्रिया इनके शरीर में होगी जब वे इनका प्रयोग करेंगे। इन्हें अपने जीवन में इन दवाओं से परहेज करना होगा। अगर वे ऐसा करेंगे तो उन्हें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होगी।

 निदेशक साहब बड़े गौर से मेरी बात सुन रहे थे। उन्होंने कहा कि यह सब जानकारियाँ आपको कहां से होती है। आपने तो मेडिकल साइंस की विधिवत शिक्षा नहीं ली है और मेडिकल साइंस में तो इस बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। 

मैंने उन्हें बताया कि मैंने आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सकों के बीच पिछले 30 वर्षों से एक सेतु की तरह काम किया है। यही कारण है कि मुझे दोनों पद्धति की दवाओं के बीच होने वाली प्रतिक्रियाओं के बारे में अच्छी जानकारी हो गई है। 

आपका कहना सही नहीं है कि मेडिकल साइंस में इस विषय में अधिक जानकारी नहीं है। जानकारियों का तो अंबार है पर इन जानकारियों को हासिल करने में कोई भी रुचि नहीं दिखाता है। अगर कोई विद्यार्थी ड्रग इंटरेक्शन में पीजी करना चाहे या इसके आगे की पढ़ाई करना चाहे तो पूरी दुनिया में इस तरह के कोर्स उपलब्ध नहीं है जबकि आधुनिक मेडिकल साइंस की पढ़ाई का यह विशेष अंग होना चाहिए। यह जन स्वास्थ से जुड़ा हुआ मामला है और ड्रग इंटरेक्शन के कारण लाखों लोग हर वर्ष अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।

 मैंने ड्रग इंटरेक्शन के बारे में करोड़ों पन्नों की हजारों किताबें लिखी है और सभी किताबें ऑनलाइन है मुफ्त में। यदि मैं जीवन भर भी अपने द्वारा एकत्र की गई जानकारियों को लिखता रहा तो भी इन्हें पूरी तरह से लिख नहीं पाऊंगा। 

जब इतनी सारी जानकारी उपलब्ध है तो आधुनिक मेडिकल साइंस को इस ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए और इसे सरल शब्दों में अपने छात्रों तक पहुंचाना चाहिए ताकि ड्रग इंटरेक्शन से एक भी जान दुनिया के किसी भी कोने में न जा सके।

 निदेशक साहब ने मुझे धन्यवाद दिया।

 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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