Consultation in Corona Period-165

 Consultation in Corona Period-165

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"यह मामला 32 वर्ष के एक नवयुवक का है जो कि अविवाहित है। उसे एचआईवी पॉजिटिव जैसे लक्षण आ रहे हैं पर टेस्ट से पता चल रहा है कि वह एचआईवी पॉजिटिव नहीं है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से कम होती जा रही है और जब वह हमारे अस्पताल में आया तो उसकी स्थिति बहुत बुरी थी। 

उसके सभी अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहे थे और वह कई तरह के इंफेक्शन का शिकार था। हमारी तेज से तेज और प्रभावी दवाएं भी उस पर किसी भी तरह से असर नहीं कर रही थी। जैसे-तैसे हमने उसके प्राणों की रक्षा की पर अभी भी उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है। हमने इंटरनेट पर पढ़ा कि बहुत सारी दवाओं के इंटरेक्शन से एचआईवी पॉजिटिव जैसे लक्षण आते हैं इसलिए हमने आपसे संपर्क किया है। क्या आप इस केस में हमारी मदद कर सकेंगे? आपकी जो भी फीस होगी हम देने को तैयार हैं?

 आपको याद होगा 10 साल पहले भी हमने आपसे संपर्क किया था सिकल सेल एनीमिया के एक केस के संदर्भ में और उस केस में आपकी सहायता से हमें न केवल बहुत अधिक सफलता मिली थी बल्कि बहुत अधिक नाम भी मिला था।" कोलकाता के एक शोध संस्थान के डायरेक्टर ने जब यह संदेश भेजा तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

 आप मुझे उस युवक की पूरी रिपोर्ट भेजें और साथ में एक छोटा सा वीडियो बनाकर भेजें ताकि मैं उसकी स्थिति को ठीक से जान सकूं। उसकी सारी रिपोर्ट और वीडियो मिलने के बाद मैंने जब उसके परिजनों और डायरेक्टर साहब से विस्तार से बात की तो ऐसा लगा कि यह ड्रग इंटरेक्शन का मामला है।

 मैंने उनसे कहा कि यदि संभव हो तो आप उस युवक को लेकर रायपुर आ जाएं या मेरे कोलकाता आने की व्यवस्था करें। डायरेक्टर साहब ने कहा कि सबसे पहले जरूरी है कि स्थिति को ठीक किया जाए। एक बार उसकी स्थिति में थोड़ा भी सुधार हो जाए तो हम हिम्मत कर पाएंगे कि उसे रायपुर लेकर आ सके। 

मैंने उन्हें बताया कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में 7 तरह के मेडिसनल राइस का प्रयोग इस तरह के लक्षणों में किया जाता है। इनमें से तीन मेडिसिनल राइस तो आपके बंगाल में ही मिल जाएंगे जबकि शेष मेडिसिनल राइस के लिए छत्तीसगढ़ और झारखंड के पारंपरिक चिकित्सकों से संपर्क करना होगा। यदि आप कहें तो मैं आपके लिए इसकी व्यवस्था कर सकता हूं। इस बात के लिए वे तैयार हो गए और जल्दी ही ये मेडिसिनल राइस उस युवक के पास पहुंच गए और उसने इनका प्रयोग करना शुरू कर दिया।

 कुछ दिनों के बाद डायरेक्टर साहब का फिर से फोन आया कि उसकी स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है पर यह नाममात्र का ही है। मैंने उन्हें दूसरा विकल्प सुझाया कि बहुत से पारंपरिक चिकित्सक जंगली वृक्षों की कोटरों से एकत्र किए गए मानसून की पहली वर्षा के जल का प्रयोग ऐसी स्थिति के लिए करते हैं। यदि आप चाहें तो ऐसे पारंपरिक चिकित्सक का पता मैं आपको दे सकता हूं जिनके पास यह मेडिकेटेड वाटर होगा। इसके नियमित प्रयोग से इस युवक की जीवनी शक्ति फिर से वापस लौट सकती है। 

उन्होंने कहा कि मैं खुद ही उन पारंपरिक चिकित्सकों से संपर्क करूँ और उनके लिए मेडिकेटेड हीलिंग वाटर का प्रबंध करूँ। मैंने बस्तर के पारंपरिक चिकित्सक के पास से वृक्षों की कोटरो से एकत्र किया गया प्रथम मानसून की वर्षा का जल उनके पास भेज दिया और वह युवक उस जल का उपयोग करने लगा। 

2 महीने के बाद फिर डायरेक्टर साहब का फोन आया कि उस जल के उपयोग से उस युवक को बहुत अधिक लाभ हुआ है और अब उसकी स्थिति में बहुत अधिक सुधार है।

 अच्छी खबर सुनकर मैंने उनसे कहा कि बंगाल के बहुत से पारंपरिक चिकित्सक ओस की बूंदों को एकत्र करते हैं और फिर उसे जीवनी शक्ति बढ़ाने के लिए प्रभावित रोगियों को देते हैं। अगर आप चाहें तो उत्तर बंगाल के पारंपरिक चिकित्सकों से संपर्क कर सकते हैं जिनके पास यह जल प्रचुर मात्रा में मिल सकता है। युवक के परिजनों ने उत्साह दिखाया। उन्होंने पारंपरिक चिकित्सकों से यह जल एकत्रित कर लिया और उसका उपयोग एक विशेष तरह के लकड़ी के पात्र में भरकर उस युवक द्वारा किया जाने लगा। फिर डायरेक्टर साहब से किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं हुआ।

 1 साल बाद उन्होंने फिर से संपर्क किया कि वह युवक अभी भी हमारे अस्पताल में है। उसकी स्थिति में काफी सुधार तो हुआ है पर बीच-बीच में उसकी स्थिति बिगड़ जाती है इसलिए अब जरूरी हो गया है कि हम अपना ध्यान ड्रग इंटरेक्शन पर फोकस करें और इस समस्या का मूल कारण जानने की कोशिश करें।

 मैंने उस वक्त युवक के द्वारा ली जा रही तमाम दवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी एकत्र की। फिर जड़ी बूटियों का एक मिश्रण डायरेक्टर साहब के पास भेजा ताकि वे उसे उस युवक के तलवों पर लगा कर देखें और उसके बाद आने वाली प्रतिक्रियाओं के बारे में मुझे विस्तार से बताएं। उन्होंने धैर्यपूर्वक इस पारंपरिक परीक्षण को किया और उसका एक छोटा सा वीडियो बनाकर मुझे दिया। 

जब वीडियो को मैंने देखा तो मैंने डायरेक्टर साहब से कहा कि यह Asteraceae परिवार के पौधों के कारण आने वाले लक्षण हैं। आप उसकी दवाओं की जांच करके मुझे बताएं कि क्या उसमें Asteraceae परिवार की वनस्पतियां शामिल है? 

उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओर से तो उसे टॉनिक दिया जा रहा है पर वह बंगाल के एक पारंपरिक चिकित्सक से कई तरह की पारंपरिक दवायें ले रहा है। इनके बारे में पूरी जानकारी हमें भी नहीं है। मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे उन पारंपरिक चिकित्सक से मेरी सीधी बात कराएं ताकि मैं उनसे पूछ सकूं कि उनके फार्मूले में किस तरह के घटक डाले गए हैं और क्या इनमें Asteraceae परिवार की वनस्पतियों को डाला गया है?

 जब मेरी उन पारंपरिक चिकित्सक से बात हुई तो मुझे लगा कि उनके लिए पारंपरिक चिकित्सक का शब्द गलती से इस्तेमाल किया गया है। वास्तव में वे एक युवा वैद्य थे जो कि तरह-तरह के नए प्रयोग करते थे और किताबों को पढ़ कर उन्होंने इस फ़न में महारत हासिल की थी। 

जब मैंने उस युवक को दिए जा रहे हैं फार्मूले के घटकों के बारे में उनसे जानकारी ली तो समस्या का समाधान होता हुआ नजर आया। 

उन्होंने बताया कि वे एक विशेष तरह की सफेद फूलों वाली वनस्पति का प्रयोग इस फार्मूले में कर रहे है जो कि सभी जगह उगती है। जब मैंने उनसे कहा कि आप इस वनस्पति की तुरंत फोटो खींचकर मुझे भेजें तो उन्होंने ऐसा किया। 

फोटो देखने के बाद मुझे पता चला कि वह अपने फार्मूले में गाजर घास की जड़ों का उपयोग कर रहे थे और इस खतरनाक खरपतवार को पुनर्नवा समझ रहे थे। अब समस्या का मूल कारण सामने आ गया था। मेरा ध्यान उनके द्वारा उपयोग किए जा रहे दूसरे फार्मूले पर गया। इसमें भी संभवत: उन्होंने इसी तरह की गलती की होगी- ऐसा मेरा सोचना था।

 दूसरे फार्मूले के बारे में वैद्य ने बताया कि वे इस फार्मूले को उड़ीसा के पारंपरिक चिकित्सकों से खरीदते है फिर उसे यहां लाकर अपने मरीजों को देते है। 

उड़ीसा के पारंपरिक चिकित्सकों की बात सुनकर मैंने उनसे तुरंत पूछा कि वे उन पारंपरिक चिकित्सकों का नाम बताएं ताकि मैं जान सकूं कि उन्होंने फार्मूले में किन-किन जड़ी बूटियों का प्रयोग किया है। जब पारंपरिक चिकित्सकों के नाम और उनके फार्मूले मेरे सामने आए तो उनमें एक ऐसा फार्मूला दिखा जिसमें वे भ्रमरमार नामक दुर्लभ जड़ी-बूटी का प्रयोग करते हैं। यह फार्मूला उस युवक को भी दिया जा रहा था।

 जब मैंने अपना डेटाबेस खंगाला तो मुझे पता चला कि भ्रमरमार की गाजर घास की जड़ों के साथ तीव्र विपरीत प्रतिक्रिया होती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। 

गाजर घास भारतीय मूल का पौधा नहीं है जबकि भ्रमरमार विशुद्ध रूप से भारतीय वनस्पति है। अक्सर इन दोनों का प्रयोग एक साथ नहीं किया जाता है पर इन नीम हकीम महोदय ने बिना जानकारी के वनस्पतियों का मनमाना प्रयोग करके एक युवक की जान को खतरे में डाल दिया था। 

जब मैंने डायरेक्टर साहब को पूरी बात का खुलासा किया तो उन्होंने सिर पकड़ लिया और कहा कि बिना दक्ष चिकित्सकों की सलाह के चाहे वे किसी भी पद्धति के हो यदि कोई ऐसे ही दवाओं का उपयोग करेगा तो उसे ऐसे ही नरक तुल्य कष्ट भोगना पड़ेगा। इसमें भला हम क्या कर सकते हैं। 

उन्होंने तुरंत ही उस युवक के परिजनों को बुलाया और सारी बात बताई। परिजनों ने निर्णय लिया कि अब वे उस वैद्य से किसी भी तरह की दवाई नहीं लेंगे।

 3 महीनों के बाद डायरेक्टर साहब का फिर से धन्यवाद भरा फोन आया कि अब वह युवक अस्पताल से जा चुका है और उसकी हालत पूरी तरह से ठीक है। 


यह एक सुकून भरी खबर थी। 


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