Consultation in Corona Period-159

Consultation in Corona Period-159



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"कुछ वर्षों पहले हमने आपकी एक बुक खरीदी थी जो कि Creutzfeldt–Jakob disease (CJD)  or subacute spongiform encephalopathy or neurocognitive disorder due to prion disease विषय पर थी। उस बुक के बारे में आपने लिखा था कि उसमें छह लाख से अधिक पन्ने हैं। 

हमें इस पर एकाएक विश्वास नहीं हुआ क्योंकि यह विश्व की दुर्लभतम बीमारी है और इसके बारे में आधुनिक साहित्य उपलब्ध नहीं है फिर कैसे कोई इतनी बड़ी बुक इस विषय पर लिख सकता है।

 हमने सोचा कि आपने स्पेसिंग बढ़ा दी होगी और फॉन्ट को बढ़ा दिया होगा जिससे बुक इतनी बड़ी हो गई होगी पर जब हमें यह बुक प्राप्त हुई तो हमने देखा कि उसे बहुत कम स्पेसिंग देकर लिखा गया था और उसमें सबसे छोटा फॉन्ट इस्तेमाल किया गया था। बुक A4 फॉर्मेट में नहीं थी बल्कि B4 फॉर्मेट में थी। 

जब हमने उसे सही मायने में बुक का आकार दिया तो उसमें 10 लाख से अधिक पन्ने निकले। इससे हमारी योजना पूरी तरह से गड़बड़ा गई।

 हमने 35 वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई थी जो कि आपकी इस बुक का अध्ययन करने वाली थी। पहले हमारी योजना थी कि हम सभी वैज्ञानिकों को इस बुक का प्रिंट आउट निकाल कर दे देंगे ताकि वे इसे विस्तार से पढ़ सके पर जब 10 लाख से अधिक पन्ने की बुक हमारे पास आई तो हमने उस बुक को 35 पीडीएफ में बदल दिया और 35 वैज्ञानिकों को पढ़ने के लिए दे दिया। 

इन 35 वैज्ञानिकों ने कई वर्षों की मेहनत के बाद ऐसे 10,000 नोट्स के बारे में जानकारी एकत्र की है जिसके बारे में लिखा तो आपकी बुक में गया था पर जिसका विस्तार आपके डेटाबेस में है। जब हम आप की वेबसाइट पर गए तो वहां पर हमें पता चला कि आपका मेडिसिनल प्लांट डेटाबेस अभी तक ऑनलाइन नहीं हुआ है क्योंकि इसका आकार सौ टीबी से भी ज्यादा है।

 हमें इस बुक के आधार पर आपसे कई बातें करनी हैं जो कि इस दुर्लभतम बीमारी से संबंधित है। पहली बात तो हम जानना चाहते हैं कि जिन 10000 नोट्स को हमारे वैज्ञानिकों ने चुना है उन्हें हम अभी कैसे पढ़ सकते हैं? क्या आपके डेटाबेस का कोई हिस्सा अभी ऑनलाइन है और अगर नहीं तो पूरे डेटाबेस को ऑनलाइन होने में कितना समय लगेगा और क्या हमें उस वक्त तक रुकना होगा? कृपया आप इस बारे में हमें विस्तार से जानकारी दीजिए। 

दूसरी बात जो हमें करनी है वह दो ऐसे मरीजों से संबंधित बातें हैं जो कि बड़े बिजनेस घराने से संबंध रखते हैं और उन्हें यह बीमारी हो सकती है। 

"हो सकती हैं" वाक्य का उपयोग मैंने इसीलिए किया क्योंकि अभी भी चिकित्सक यह नहीं बता पा रहे हैं कि उनकी तेजी से बिगड़ती हालत के लिए कौन सा कारक जिम्मेदार है पर 80% चिकित्सक कहते हैं कि इन दोनों व्यक्तियों को यही रोग हुआ है। जैसा कि आप जानते हैं इस रोग में रोगियों के दिमाग की हालत बहुत तेजी से बिगड़ती है और 1 साल के अंदर ही ज्यादातर मामलों में उनकी मृत्यु हो जाती है। इसका दुनिया में कोई इलाज नहीं है। बस मरीज की देखभाल इस आधार पर की जाती है कि उन्हें कैसे लक्षण आ रहे हैं? उनसे उन्हें कैसे उबारा जाए?

 इन दोनों व्यक्तियों को लेकर हम भारत आना चाहते हैं पर पहले आप यह बताएं कि क्या आप इस कोरोना काल में यूरोप की यात्रा कर पाएंगे? हम आपके लिए विशेष विमान की व्यवस्था कर देंगे और आपकी जितनी भी फीस होगी हम देने के लिए तैयार हैं। यदि आप आ सके तो हमें इन दोनों व्यक्तियों को अपनी टीम के साथ भारत लाने में होने वाली सारी परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी।" यूरोप के एक जाने-माने शोध संस्थान के डायरेक्टर ने जब यह संदेश मुझे भेजा तो मैंने उनसे कहा कि जिस मेडिसिनल प्लांट डेटाबेस की बात वे कर रहे हैं उसके वर्ष 2025 से पहले ऑनलाइन होने की संभावना बहुत कम है।

 नियम से तो इसे इसी साल ऑनलाइन हो जाना था पर कोरोनावायरस से सारी व्यवस्था गड़बड़ हो गई और हमें इस मिशन को आगे बढ़ाना पड़ा। अभी डाटा व्यवस्थित रूप से मेरे पास है पर इससे 10,000 नोट से संबंधित जानकारी को निकालना टेढ़ी खीर है।

 जब डायरेक्टर साहब ने मुझे यह संदेश भेजा तो साथ में उन्होंने उन दोनों व्यक्तियों की रिपोर्ट भी भेजी जिसका अध्ययन मैंने विस्तार से किया। उनकी हालत बहुत खराब थी और रिपोर्ट को पढ़ने के बाद यह साफ लगता था कि उन्हें यह दुर्लभतम बीमारी हुई है। चिकित्सक यह जानना चाहते थे कि यह बीमारी उन्हें कैसे हुई और इसका समाधान कैसे किया जा सकता है? मैंने डायरेक्टर साहब को बताया कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में इस बीमारी को दूसरे नामों से जाना जाता है और देश के अलग-अलग भागों के पारंपरिक चिकित्सक इसे अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। अलग-अलग तरीके से इसकी चिकित्सा की जाती है। इसके बारे में बहुत पहले से पारंपरिक ज्ञान भारत में उपलब्ध है पर कभी भी किसी ने इसका दस्तावेजीकरण नहीं किया। 

यह मान लिया गया कि इस दुर्लभतम बीमारी के बारे में आधुनिक विज्ञान को बहुत कम जानकारी है तो भला पारंपरिक विज्ञान में यह जानकारी कैसे पहुंच सकती है?

 मैंने उन्हें बताया कि मैंने इस पर एक और बुक लिखी है जिसमें मैंने ऐसे 100 से ज्यादा मामलों के बारे में लिखा है जो कि भारत के पारंपरिक चिकित्सकों के पास पिछली कई पीढ़ियों में आए हैं और जिसका उन्होंने इलाज किया है। 

उन्होंने कैसे इलाज किया और किन-किन जड़ी बूटियों का प्रयोग किया और क्या मरीजों की हालत में किसी तरह का सुधार हुआ? इन सब के बारे में मैंने इस बुक में लिखा है। यह बुक अभी प्रकाशित नहीं हुई है। यदि आप इसकी अग्रिम बुकिंग करवाना चाहें तो आप करवा सकते हैं।

 मैंने उनसे कहा कि अभी मेरा यूरोप आना बिल्कुल भी संभव नहीं है क्योंकि मैं अभी लगातार कैंसर ड्रग इंटरेक्शन पर लिख रहा हूं और इस प्रोजेक्ट को समाप्त होने में कई वर्षों का समय लगेगा यदि मैं दिन-रात इसी में लगा रहा तो। 

बेहतर होगा कि आप दोनों व्यक्तियों को लेकर भारत आ जाएं ताकि मैं पारंपरिक विधियों से उनका परीक्षण कर यह सुनिश्चित कर सकूं कि उन्हें यही बीमारी है या किसी दूसरे कारण से उन्हें इस तरह की तकलीफ हो रही है।

 कुछ अंतराल के बाद डायरेक्टर साहब का फिर से संदेश आया कि उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल से बात कर ली है। इन दोनों व्यक्तियों को उसी अस्पताल में रखा जाएगा और फिर मुझे रायपुर से मुंबई की यात्रा करनी होगी इन दोनों व्यक्तियों से मिलने के लिए।

 मैंने उन्हें बताया कि अभी मुंबई में हालात सुधरे नहीं है और वहां प्रवेश करने से पहले कई तरह के टेस्टों से गुजरना पड़ता है इसलिए बेहतर होगा कि उन दोनों व्यक्तियों को मुंबई लाने के बजाए सीधे ही रायपुर ले आया जाए।

 रायपुर अब एक सर्वसुविधा संपन्न शहर है और यहां कोरोनावायरस का प्रकोप कम है। आप यहां की सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन को विशेष तौर पर पढ़ ले। यहां विश्व स्तर के बहुत सारे अस्पताल है जहां आप इन दोनों व्यक्तियों को रख सकते हैं। उन अस्पताल में मैं आकर उनकी जांच करने को तैयार हूं अगर वहां का अस्पताल प्रशासन इस बात की मुझे अनुमति देता है।

 डायरेक्टर साहब ने धन्यवाद दिया और कहा कि क्या प्राइवेट जेट के उतरने की सुविधा रायपुर एयरपोर्ट में है तो मैंने कहा कि हां, यहां अक्सर प्राइवेट जेट आते रहते हैं और विस्तार से जानकारी के लिए मैंने उन्हें एयरपोर्ट अथॉरिटी की वेबसाइट का पता दिया और कहा कि आप सीधे ही उनसे संपर्क कर सकते हैं।

उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि रायपुर अब बहुत अधिक विकसित हो गया है और विश्व के बेहतरीन अस्पतालों जैसी सुविधाएं अब रायपुर में भी उपलब्ध हो गई है।

 कुछ समय के बाद डायरेक्टर साहब का फिर से संदेश आया कि वे सारी तैयारियों में जुटे हुए हैं। उन दोनों व्यक्तियों की हालत बहुत तेजी से बिगड़ती जा रही है। इस बात की कोशिश की जा रही है कि वे इस लंबी यात्रा में किसी भी प्रकार से और अधिक प्रभावित न हो। 

उन्होंने पूछा कि आपने अपनी बुक में बहुत से किस्म के मेडिसनल राइस के बारे में लिखा है जो कि इस दुर्लभतम बीमारी में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। क्या ये दोनों व्यक्ति जब रायपुर आएंगे तो आपके पास ये मेडिसनल राइस उपलब्ध होंगे?

 मैंने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ के बहुत से किसान इन उपयोगी मेडिसिनल राइस की खेती कर रहे हैं और यदि आप मुझे 10 दिन पहले अपने आने की सूचना देंगे तो मैं उन किसानों से इन देसी चावल को एकत्र कर लूंगा और फिर इनका प्रयोग उन व्यक्तियों पर किया जा सकेगा।

 यदि ये किसानों के पास नहीं मिला तो स्थानीय इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संग्रह में ये चावल उपलब्ध है। वहां से इन्हें अल्प मात्रा में एकत्र किया जा सकता है।

 उन्होंने इन सारी तैयारियों के लिए धन्यवाद दिया।

 अब हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि वे कब रायपुर आते हैं और इस दुर्लभतम बीमारी से त्रस्त व्यक्तियों को कैसे छत्तीसगढ़ का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान राहत पहुंचा सकता है।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)