Consultation in Corona Period-155

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हमारे शोध संस्थान के एक वैज्ञानिक को क्रॉनिक किडनी डिजीज हो गई है। यह डिजीज की सेकंड स्टेज है। उनके ऊपर किसी भी तरह की दवा का असर नहीं हो रहा है। उनकी क्रिएटिनिन की मात्रा बहुत अधिक बढ़ गई है। आप दवा भेज दें।" 

बंगलुरु के एक शोध संस्थान के डायरेक्टर ने जब मुझे यह संदेश भेजा तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। आप मेरी बात उन वैज्ञानिक से करवा दें ताकि मैं आवश्यक जानकारी उनसे ले सकूं।

 उन्होंने कहा कि आपको और किस प्रकार की जानकारी चाहिए? इतनी जानकारी के अलावा उनके पास किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं है और वे आपसे सीधे नहीं मिलना चाहते हैं। बस आप दवा भेज दें। 

मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको यह पता है कि उनके रोग का कारण क्या है तो उन्होंने कहा कि नहीं, हमें इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है कि उन्हें यह रोग कैसे हुआ।

 मैंने उन्हें बताया कि मेरे काम करने का तरीका बिल्कुल ही अलग है। मैं पहले रोग के कारण को जानने की कोशिश करता हूं और फिर उस आधार पर भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान की सहायता से उसका समाधान करने की कोशिश करता हूं। बिना रोग का कारण जाने उसका समाधान खोजना अधिकतर मामलों में बेकार साबित होता है। 

इस प्रश्न को टालने के लिए उन्होंने कह दिया कि उन्हें यह अनुवांशिक रूप से है और यही उनके इस रोग का कारण है।

 मैंने कहा कि यदि उन्हें अनुवांशिक रोग के रूप में यह रोग है तो इसके प्रमाण उन्हें प्रस्तुत करने चाहिए। यह तो वैसे ही बात हुई जैसे कि तांत्रिक कहते हैं कि किसी भूत ने पकड़ लिया है पर जब उनसे कहा जाता है कि आप बताइए कि भूत कहां है तो वह कहते हैं कि भूत तो हम आपको दिखा नहीं सकते। 

आजकल आधुनिक चिकित्सक मेहनत से बचने के लिए सभी बीमारियों को अनुवांशिक घोषित कर देते हैं और कह देते हैं कि इसका कोई इलाज नहीं है फिर भी इलाज करने के लिए दसों प्रकार की दवाएं दे देते हैं। यह बिलकुल ही विपरीत बात होती है। मैं इसके पक्ष में कभी भी नहीं रहता। 

मैंने उन्हें सलाह दी कि हमारे देश में असंख्य चिकित्सक हैं और असंख्य चिकित्सा प्रणालियाँ है। आप अगर उनकी सहायता ले तो वे आपकी मदद कर सकते हैं पर इतनी कम जानकारी में मैं आपकी किसी भी प्रकार की सहायता नहीं कर पाऊंगा। 

उन्होंने उसके बाद फिर मुझसे संपर्क नहीं किया कई महीनों तक। कुछ समय बाद उनका फिर से संदेश आया कि अब उनके वैज्ञानिक की समस्या और अधिक बढ़ गई है और वे आपसे मिलने के लिए रायपुर आना चाहते हैं। इससे पहले उन्होंने उन वैज्ञानिक महोदय की पूरी रिपोर्ट मेरे पास भेज दी।

 रिपोर्टों के अध्ययन से पता चला कि अभी उन्हें चौथी स्टेज का क्रॉनिक किडनी डिजीज हो चुका था और सभी चिकित्सक हाथ खड़े कर चुके थे। जब वे वैज्ञानिक महोदय मुझसे मिलने रायपुर आये तो मैंने उनके पैरों के तलवों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर आरंभिक परीक्षण किया और उनसे पूछा कि आपको इसके अलावा और किसी तरह का रोग है और यदि है तो आप उस रोग के लिए कौन-कौन सी दवाईयाँ ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वे केवल क्रॉनिक किडनी डिजीज के लिए ही दवा ले रहे हैं और इसके अलावा उन्हें किसी भी प्रकार का रोग नहीं है। 

परीक्षणों के आधार पर मैंने उन्हें बताया कि परीक्षण बता रहे हैं कि आपको Rheumatoid Arthritis की समस्या है। क्या आपको इस बारे में जानकारी है? उन्होंने कहा कि हां, मुझे इस बात की जानकारी है और इसके लिए मैं किसी भी प्रकार की आधुनिक दवा नहीं ले रहा हूं। मैं उत्तर भारत के एक वैद्य से एक नुस्खा ले रहा हूं। इससे मुझे बहुत लाभ हो रहा है।

 मैंने उनसे कहा कि आपने मुझसे यह जानकारी क्यों छुपाई? आप अगर पहले ही यह जानकारी मुझे देते तो मैं आपकी बेहतर तरीके से मदद कर पाता। वह तो मेरे परीक्षण ने ही यह बताया कि आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस की समस्या है जिससे सारी बातें खुलकर सामने आने लगी।

 उन्होंने कुछ नहीं कहा। 

मैंने उन वैद्य के बारे में जानकारी मांगी तो वे नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि इसका मेरे क्रॉनिक किडनी डिजीज से क्या वास्ता? आप उसी बीमारी पर ध्यान दें जिसकी चिकित्सा के लिए मैं आपके पास आया हूं।

 मैंने उनसे कहा कि अगर आपको मेरी कार्यशैली पसंद नहीं आ रही है तो मैं आपकी फीस वापस कर देता हूं। आप किसी और से उचित सलाह ले ले।

 उन्होंने अपने गुस्से पर थोड़ा काबू किया और वैद्य का पता दे दिया। जब मैंने अपना डेटाबेस खंगाला तो उन वैद्य के बारे में पूरी जानकारी मिली। यह भी पता चला कि मैं रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए किस फार्मूले का प्रयोग करते हैं और उनमें किन घटकों का प्रयोग करते हैं। 

उनके बारे में एक विशेष जानकारी प्राप्त हुई। वे दुनिया भर में रूमेटाइड अर्थराइटिस की चिकित्सा करने के लिए प्रसिद्ध थे और दुनियाभर के मरीज उनके पास आते रहते थे। मुझे भी दो-तीन बार उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके कार्य स्थान पर नहीं बल्कि अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में जहां उन्हें विशेष तौर पर बुलाया गया था। उनके बारे में और उनके फार्मूले के घटकों के बारे में सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद समस्या का समाधान होता दिखा।

 मैंने वैज्ञानिक महोदय से कहा कि आप कुछ समय तक इस फार्मूले का उपयोग बंद करके देखें। मुझे यह लगता है कि धीरे-धीरे अपने आप ही किडनी की हालत में सुधार होगा और आप इस बीमारी के चंगुल से पूरी तरह से बच जाएंगे।

 वे फिर से नाराज हो गए और कहने लगे कि ऐसी अटपटी बातों का क्या मतलब। मुझे वैद्य की दवा से जब फायदा हो रहा है तो मैं उसे क्यों बंद करूं और इस दवा का मेरी किडनी से क्या संबंध? 

 मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपने वैद्य को बताया है कि आपको क्रॉनिक किडनी डिजीज की समस्या है तो उन्होंने कहा कि मैंने यह बात वैद्य को नहीं बताई है।

 मैंने उनसे कहा कि यदि आपने यह बात वैद्य को बता दी होती तो वे आपको भूलकर भी यह फार्मूला नहीं देते। अब उनकी समझ में थोड़ी-थोड़ी बात आई। उन्होंने मुझसे पूछा कि इस फार्मूले में क्या दोष है? मैंने उनसे कहा कि जिन वैद्य से आप चिकित्सा करवा रहे हैं वे अपने नुस्खों में तरह-तरह के जंगली बीटल का उपयोग करते हैं। वे जाने माने Entomotherapist है। उन्होंने आपके फार्मूले में जंगल में पाए जाने वाले एक बीटल का उपयोग किया है। इस बीटल पर अधिकतर एक विशेष तरह के फंगस का आक्रमण होता है जो कि बीटल पर ही आश्रित रहती है। जब बीटल को फार्मूले में डाला जाता है तो उसको बहुत अधिक शोधित किया जाता है। यदि शोधन में किसी भी प्रकार की चूक होती है तो यह फंगस भी मानव शरीर में पहुंच जाता है। इस बात को वैद्य अच्छी तरह से जानते हैं और यह भी मानते हैं कि हर बार पूरी तरह से शोधन करना संभव नहीं होता है इसलिए वे अपने मरीजों को साफ तौर पर कह देते हैं कि यदि उन्हें किडनी या लीवर की किसी तरह की समस्या है तो वे भूल कर भी इस फार्मूले का उपयोग न करें।

 दरअसल यह फंगस किडनी और लीवर के लिए विष के समान है। मैंने और अधिक विस्तार से खुलासा करते हुए उनसे कहा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में साइक्लोसपोरिन नामक जो दवा बनाई जाती है और जिससे रूमेटाइड अर्थराइटिस की चिकित्सा की जाती है, वह दवा इसी फंगस से तैयार होती है और आप अगर आधुनिक साहित्य का अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि साइक्लोसपोरिन का प्रयोग किडनी और लीवर के मरीजों में बहुत संभलकर किया जाता है और जो जानकार है वे भूल कर भी किडनी के मरीजों को इस दवा को नहीं देते हैं।

 साइक्लोसपोरिन किडनी की समस्या को न केवल बढ़ा देती है बल्कि बहुत से मामलों में मैंने अपने अनुभव से देखा है कि यह कई तरह के किडनी रोग भी उत्पन्न करती है। यदि इसे अधिक मात्रा में लंबे समय तक लिया जाए तो स्वस्थ किडनी भी बीमारी से ग्रस्त हो जाती है और धीरे-धीरे क्रॉनिक किडनी डिजीज की समस्या हो जाती है। 

मेरे पास आने वाले लोगों को मैं बार-बार कहता हूं कि वे जानकारों और चिकित्सकों को अपने बारे में पूरी जानकारी दें। जितनी अधिक से अधिक जानकारी संभव हो वह दे। उनसे किसी भी तरह की बात न छुपाए। यदि आपने अपने वैद्य को इस बारे में बता दिया होता तो वे आपको भूल कर भी इस फार्मूले को नहीं देते और आपकी किडनी की हालत इस हद तक खराब नहीं होती।

 वैज्ञानिक महोदय की ऐसी स्थिति हो गई जैसे कि वे गहरी नींद से जागे हो। उन्होंने धन्यवाद दिया।

 मैंने उनको सलाह दी कि आप अपने अर्थराइटिस के लिए दवा के स्थान पर फंक्शनल फूड का प्रयोग करें। इसके बारे में मैं आपको पूरी जानकारी दे रहा हूं और मुझे 3 महीने के बाद बताएं कि आपकी किडनी की हालत कैसी है। 

मैंने उनसे यह भी कहा कि आप क्रॉनिक किडनी डिजीज के लिए बिना रोग का कारण जाने जिन आधुनिक दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं यदि संभव हो तो आप उनका प्रयोग भी रोक दें और यह समझे कि आपकी समस्या का अब पूरी तरह से समाधान हो गया है और आपको अब किडनी की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। 

मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस गंभीर समस्या से पूरी तरह से मुक्त हो जाएंगे। आप को डरने की जरूरत नहीं है। आप अपना आत्मविश्वास बनाकर रखें। समस्या की जड़ पता चल गई है अब आपका कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सकता।

 वे एक नए उत्साह से भर गए और वापस लौट गए। 2 महीनों के बाद उनका फोन आया कि उनकी किडनी की हालत में काफी सुधार हुआ है और अब वे पीछे की ओर लौट रहे हैं अर्थात अब उनकी किडनी फिर से सामान्य होती जा रही है।

 कुछ समय बाद उनके डायरेक्टर साहब का फोन आया। उन्होंने भी धन्यवाद दिया।

 मैंने उनसे यही कहा कि यदि इस बारे में पूरी छानबीन नहीं की जाती तो कभी भी हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते और वैज्ञानिक महोदय की हालत काबू से बाहर हो जाती। 

 उन्होंने इस बात को माना।

 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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