Consultation in Corona Period-139

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मुझे तो पहले से ही च्यवनप्राश पर शक था। मैंने आपके ढ़ेर सारे लेख पढ़े हैं।

आपने उन लेखों के माध्यम से बताया है कि कैसे च्यवनप्राश में कई तरह की मिलावट की जाती है और कम स्तर के घटकों का जब उसमें प्रयोग किया जाता है तो कैसे उसकी गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे नाना प्रकार की स्वास्थ समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। 

जैसा कि आप जानते हैं कि मुझे कुछ दिनों से दोनों हाथों में कंपन की समस्या है। सुबह शाम मेरे हाथ बहुत जोर-जोर से कांपते हैं। ऐसा अभी-अभी होना शुरू हुआ है। 

चिकित्सकों ने पहले कहा कि यह पार्किंसन जैसा लक्षण है। जब उन्होंने पूरी जांच की तो मुझे बताया कि मुझे पार्किंसन रोग नहीं है।

 उन्होंने रोग का कारण जाने बिना इस कंपन को खत्म करने के लिए बहुत सारी दवाएं दी है जिनका प्रयोग मैं लगातार कर रहा हूं

 मैंने हाल ही में च्यवनप्राश का प्रयोग करना शुरू किया है इसलिए मेरा शक उसी पर है। मैं आपको कुरियर के माध्यम से इस च्यवनप्राश का सैंपल भेज रहा हूं। 

कृपया आप इसकी अपनी प्रयोगशाला में जांच करें और साथ ही पारंपरिक विधियों से भी जांच करें और मुझे बताएं कि इसमें किस तरह का दोष है जिसके कारण मुझे इस तरह की समस्या हो रही है।" 

भोपाल के एक सज्जन ने जब मुझे इस तरह का संदेश भेजा तो मैंने कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

 जब उनका सैंपल मिला और मैंने उस च्यवनप्राश की जांच की तो मुझे उसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष नजर नहीं आया। सभी घटकों को सही तरीके से मिलाया गया था और उनकी आपस में किसी भी प्रकार की नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी। 

जब अगली बार उनका फोन आया तब मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने च्यवनप्राश का प्रयोग बंद करके देखा तो उन्होंने कहा कि च्यवनप्राश पर शक होते ही मैंने च्यवनप्राश का प्रयोग करना बंद कर दिया। 

तब मैंने उनसे पूछा कि क्या च्यवनप्राश का प्रयोग बंद करने से आपके हाथों का कांपना पूरी तरह से ठीक हो गया तो उन्होंने कहा कि नहीं च्यवनप्राश को बंद करने के बावजूद हाथों की समस्या जस की तस रही। 

फिर भी मैंने सोचा कि हो सकता है कि उसका गहरा असर मुझ पर हो गया हो जिसके कारण मुझे पूरी तरह से ठीक होने में समय लगेगा। 

मैंने उन्हें बताया कि उनके द्वारा भेजे गए च्यवनप्राश में किसी भी प्रकार का दोष नहीं है और मुझे नहीं लगता कि उनकी यह समस्या इसके कारण है। 

इसके बाद कई सप्ताह तक उनका फोन नहीं आया। 

फिर जब फोन आया तो उन्होंने बताया कि उन्होंने विभिन्न पद्धतियों की दवाओं का प्रयोग करना शुरू किया है पर हाथों का कांपना बढ़ता जा रहा है। इससे उन्हें रोज के कार्यों में समस्या हो रही है और मन में एक डर सा बैठ गया है कि कहीं यह कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है।

 वे चाहते थे कि मैं उन्हें कुछ देसी दवा बताऊँ जो कि हाथों के कंपन के लिए प्रयोग की जाती है। मैंने कहा कि मेरा विश्वास है कि पहले रोग का कारण जाना जाए। उसके बाद ही किसी तरह का समाधान बताया जाए। बिना रोग का कारण जाने समाधान के उपाय अपनाने से अक्सर लाभ नहीं होता है। 

हाथों की कंपन के लिए बहुत सारे मेडिसिनल राइस का प्रयोग होता है पर रोग का कारण जानना बहुत जरूरी है।

 मैंने उनसे यह भी कहा कि यदि आप चाहे तो मैं रोग का कारण ढूंढने में आपकी मदद कर सकता हूं। वे इस बात के लिए तैयार हो गए। 

मैंने उन्हें 50 प्रश्नों की एक प्रश्नावली भेजी और उनसे कहा कि वे इत्मीनान से इस प्रश्नावली को पूरा करें और फिर मुझे वापस भेजें। 

उनके द्वारा भेजी गई प्रश्नावली के जवाबों का मैंने जब अध्ययन किया तो मुझे पता चला कि वे अपनी समस्या के लिए 18 से अधिक प्रकार की दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। इन दवाओं में होम्योपैथीक, आयुर्वेदिक और आधुनिक दवाएं शामिल थी।

 जब उन्हें यह समस्या नहीं हो रही थी तब वे केवल कुछ ही दवाओं का प्रयोग कर रहे थे। इन दवाओं में Glimepiride नामक दवा थी जो कि टाइप टू डायबिटीज के लिए प्रयोग की जाती है। 

रात को दूध के साथ सफेद मूसली का चूर्ण ले रहे थे। उन्हें कब्जियत की शिकायत थी इसलिए वे हफ्ते में दो बार इसबगोल का प्रयोग करते थे। कभी-कभी एनिमा का प्रयोग भी कर लेते थे। बस इसके अलावा उनके जीवन में और कोई दवा नहीं थी।

 मैंने उनसे पूछा कि आपने सफेद मूसली का प्रयोग कब से आरंभ किया तो उन्होंने बताया है कि सफेद मूसली का प्रयोग उन्होंने हाल ही में आरंभ किया है। उनके बड़े भाई साहब का फार्म है जहां सफेद मूसली उगाई जाती है। वहीं से वे सफेद मूसली लेते हैं और फिर घर में उसका चूर्ण बनाकर उसे दूध के साथ लेते हैं।

वे सफेद मूसली का प्रयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कर रहे थे जिसकी इस कोरोना काल में बहुत अधिक जरूरत है।

 मैंने उनसे कहा कि यदि संभव है तो आप रायपुर आ जाए ताकि मैं 5 तरह की बूटियों का एक लेप आपके हाथों में लगा कर यह सुनिश्चित कर सकूं कि यह समस्या किसी तरह के ड्रग इंटरेक्शन के कारण तो नहीं है। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और अगले ही दिन रायपुर आ गए।

 जब मैंने आरंभिक परीक्षण किए तो मुझे इस बात का यकीन हो गया कि यह किसी तरह के ड्रग इंटरेक्शन के कारण हो रहा है। जब मैंने अपना डेटाबेस खंगाला तो मुझे इस तरह के 100 से अधिक केस मिले जिसके बारे में भारत के पारंपरिक चिकित्सकों ने मुझे बताया था। 

इस परीक्षण के आधार पर मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे Glimepiride का उपयोग कुछ समय तक रोक कर देखें और फिर मुझे बताएं कि क्या उनकी समस्या का किसी तरह से समाधान हुआ या नहीं?

 उन्होंने 1 सप्ताह बाद मुझे बताया कि Glimepiride का उपयोग रोकने से उनकी समस्या का काफी हद तक समाधान हो गया है। उन्होंने इस बारे में अपने चिकित्सक से बात की है।

 चिकित्सक ने कहा है कि हाथों का इस तरह जोर-जोर से काँपना Glimepiride का साइड इफेक्ट नहीं है। उन्हें भी इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि कैसे इस सुरक्षित दवा का प्रयोग करने से इस तरह के लक्षण आ रहे हैं।

 फिर मैंने उनसे कहा कि आप Glimepiride का प्रयोग फिर से शुरू कर दें और राहर या तुअर की दाल जो आप रोज खा रहे हैं उसका प्रयोग 1 सप्ताह तक रोक दें और फिर मुझे इस बारे में बताएं। 

एक हफ्ते बाद उनका फोन आया कि Glimepiride का उपयोग शुरू करने से उनकी समस्या फिर से वैसी नहीं हुई और उन्होंने अरहर की दाल का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया है। 

उन्हें मैंने फिर से सलाह दी कि वे इस हफ्ते Glimepiride और अरहर की दाल का उपयोग फिर से शुरू कर दें और 1 सप्ताह के लिए सफेद मूसली का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दें। 

जब उन्होंने ऐसा किया तो उनके हाथों के काँपने की समस्या बिल्कुल भी उग्र नहीं हुई। 

अगली बार जब उनका फोन आया तब उन्होंने व्यग्रता से पूछा कि क्या सफेद मूसली, अरहर की दाल और Glimepiride के बीच आपसी प्रतिक्रिया होने के कारण इस तरह के विचित्र लक्षण आ रहे हैं?

 मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि ऐसा दोषपूर्ण सफेद मूसली, तुअर की दाल और Glimepiride की आपसी प्रतिक्रिया के कारण हो रहा है। 

मैंने उनसे अनुरोध किया कि आप अपने बड़े भाई साहब से फोन पर बात करवाएं जो कि सफेद मूसली की खेती करते हैं।

 जब उनके भाई साहब फोन पर आये तो मैंने उनसे पूछा कि क्या आप सफेद मूसली के साथ दूसरी फसलों को उगाते हैं विशेषकर दलहन की फसल तो उन्होंने बताया कि वे सफेद मूसली के पकने के बाद उसकी पत्तियों के झड़ने के बाद सफेद मूसली के बेड पर राहर या तुअर की खेती करते हैं। इस तरह एक मौसम में ही दो फसल ले लेते हैं। अब सारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी थी। 

मैंने उन सज्जन को बताया कि जब सफेद मूसली के साथ में अरहर की खेती की जाती है तो अरहर में दोष उत्पन्न हो जाता है और अरहर के रसायनों के कारण सफेद मूसली में भी दोष उत्पन्न हो जाता है।

 जब इन दोषपूर्ण सफेद मूसली और अरहर की दाल का प्रयोग बहुत सी आधुनिक दवाओं के साथ किया जाता है तो हाथों में कंपन होने जैसी समस्या प्रकट हो जाती है। 

आप यदि सफेद मूसली दूसरे स्थान से खरीद कर या पारंपरिक चिकित्सक से एकत्र करके प्रयोग करेंगे तो आपको इस तरह की समस्या बिल्कुल भी नहीं होगी।


 इसी तरह आप दूसरे स्त्रोत से अरहर की दाल खरीदेंगे और उसे खायेंगे तो इस तरह की समस्या नहीं होगी। 

इस पूरे मामले में Glimepiride का कोई दोष नहीं है। मैंने उन्हें यह भी बताया कि 90 के दशक में जब हम छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर सफेद मूसली की खेती कर रहे थे उस समय हमने सफेद मूसली को बहुत सारी  दूसरी फसलों के साथ उगा कर देखा। 

यह जानने के लिए कि दूसरी फसलों की उत्पादकता पर क्या असर पड़ता है?

 जब हमने इस तरह तैयार सफेद मूसली को विभिन्न नुस्खों में प्रयोग करना शुरू किया तो बहुत सी दूसरी फसलों के साथ सफेद मूसली को लगाने से सफेद मूसली दोषपूर्ण हो गई है इस बात का खुलासा हुआ। विभिन्न तकनीकी मार्गदर्शकों की सहायता से हमने रसायन के स्तर पर यह जानने की कोशिश की कि आखिर सफेद मूसली के कौन से रसायन दूसरी फसलों के रसायन से प्रभावित होते हैं और सफेद मूसली में तरह-तरह के विकार उत्पन्न कर देते हैं। 

10 साल के लंबे अध्ययन के बाद हमें सारी स्थिति धीरे-धीरे साफ होने लगी और हम किसानों को बताने लगे कि सफेद मूसली या किसी दूसरी औषधि फसल के साथ मनमाने प्रयोग न किए जाएं अन्यथा जनस्वास्थ को बड़ी हानि हो सकती है। 

इस बारे में हमने एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की और विभिन्न सरकारी अनुसंधान केंद्रों को भेजा कि वे इस तरह के प्रयोग करने से पहले इस बात को सुनिश्चित करें कि प्रयोग करने के बाद उत्पादकता के साथ में औषधि फसल के औषधीय गुणों की भी जांच की जाए ताकि यदि मिश्रित फसल से किसी तरह का नुकसान हुआ है तो उसे नुस्खों में प्रयोग करने से पहले ही जाना जा सके। 

वे सज्जन रुचि पूर्वक मेरी बात सुनते रहे।

 वापस जाकर उन्होंने दूसरे स्त्रोत से एकत्र की गई सफेद मूसली का प्रयोग करना शुरू किया और साथ ही अरहर की दाल भी बदल दी। 

इससे उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया। उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

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